हल्दी से ही हेल्दी शब्द बना। हल्दी, हरिद्रा के 100 से ज्यादा फायदे ग्रंथों में लिखे हैं। जानेंगे, तो ही मानेंगे। पढ़े हल्दी का लाजबाब ब्लॉग |

  • आप जानकार हैरान हो जाएंगे कि स्वास्थ्य का अंग्रेजी शब्द हेल्दी मेडिकल साइंस ने हल्दी से ही लिया गया है। शरीर की सब समस्या हल करती है इसलिए इसे हल्दी कहते हैं।
  • हल्दी से ही हेल्दी शब्द का निर्माण हुआ

अथ हरिद्रा तस्या नामानि गुणाँश्चाह (जड़ी बूटी रहस्य) प्राचीन हस्तलिखित पांडुलिपियों का यह संस्कृत श्लोक हल्दी के चमत्कारी गुणों का वर्णन कर रहा है।

हरिद्रा कटुका तिक्ता देहवर्णविधायिका।

उष्णा रूक्षा शोधनी चस्त्रीणां वैभूषणं मता॥

कफ वातं रक्तदोषं कुष्ठं कण्डूं प्रमेहकम्।

त्वग्दोषं च व्रणं शोकं पाण्डुरोगं कृमीन्विषम्॥

पीनसं चारुचिं पित्तमपचीं चैव नाशयेत्।

(शा. नि. अष्टवर्ग, पृष्ठ: १५८)

हरिद्रा कटुका तिक्ता रूक्षोष्णा कफवातहा।

वर्ण्या त्वग्दोषमेहाम्रशोथपाण्डुव्रणापहा॥ शोफपाण्डुकफपित्तदरिद्राचर्मदोषमपहन्ति हरिद्वा।

(सि. भे. म. द्वितीय गुच्छ, हरीतक्यादि वर्ग: ३६)

  • अर्थात हल्दी स्वाद में केतु, तिक्त होती है और देह के रन को निखारती है। हल्दी गर्म होने से फेफड़ों का शोधन करती है यानि कफनाशक है। स्त्रियां हल्दी का उबटन करें, तो उनका वैभव बढ़ता है।
  • हल्दी कफ, वात, खून की खराबी, कुष्ठ, सफेद दाग, प्रमेह और मधुमेह नाशक ओषधि है। त्वचा विकार, वर्ण, व्रिण जख्म, खून की कमी, पांडुरोग, पीना, जुकाम, अरुचि और पित्त से पनपी बीमारियों और गले के रोग, रक्त दोष, चर्म रोग को ठीक करती है।
  • आयुर्वेद में हल्दी को हरिद्रा कहा जाता है। भावप्रकाश ग्रन्थ के अनुसार हल्‍दी की विभिन्न किस्में होती हैं- अम्बाहल्दी, दारुहल्दी, वनहल्दी आदि।
क्या नहीं हैं है हल्दी में फिर, 
  • क्यों रहते हो जल्दी में।
सभी को बीमारी होने के बाद एलोपैथिक मेडिसिन लेने की लेट लग चुकी है। जरा पुरानी किताबें, भारत के ग्रंथ उठाकर देखो, तो हल्दी 100 से अधिक बीमारियों को घर बैठे ठीक करने की क्षमता रखती है। 
क्यों रहते हो जल्दी में
  • !!द्राति गच्छति इति हरिद्रा!!अर्थात जिसके कन्द पीतवर्ण हों। पूजा में पूज्यनीय हो।, जो दुख दारिद्र रुकने न दे।
  • हल्दी अमृत है अगर अल्पमात्रा में सेवन करें, तो। एक प्राचीन हस्तलिखित पांडुलिपि में हल्दी को हरिद्रा, हलदेह बताया है। क्योंकि हल्दी, देह यानि शरीर की समस्त समस्यायों का हल कर तन को तंदुरुस्त बनाती है।
  • सबका जी अच्छा करने के लिए इसे सब्जी में मिलाते हैं। पबजी खेलने वाले भी हल्दी का इस्तेमाल कर हेल्दी बने रहते हैं।

हल्दी एंटीबायोटिक क्यों है?

  • हल्दी एक प्राकृतिक मसाला है। इसे संस्कृत में हरिद्रा कहते हैं। हल्दी एंटीबायोटिक होने के कारण इसका उपयोग संक्रमण, वायरस मिटाने और मोच, कटने, घाव, सूजन, दर्द दूर करने में होता है। हल्दी एंटीसेप्टिक आयुर्वेदिक ओषधि है।
  • हल्दी में प्रतिजैविक रोगाणुरोधी यौगिकों का व्यापक समूह होता है, जिसका उपयोग कवक और प्रोटोजोआ सहित सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखे जाने वाले जीवाणुओं के कारण हुए संक्रमण के इलाज के लिए होता है।
  • हलदी के गुण– कटु तथा तिक्तरस युक्त, रूक्ष, उष्णवीर्य, कफ पित्त नाशक, शरीर के वर्ण को उज्ज्वल करने वाली एवम् चर्मदोष, प्रमेह, रक्तविकार, शोथ, पाण्डु तथा व्रण को दूर करने वाली होती है।
  • हल्दी चार प्रकार की होती है चार शास्त्रों के सार से साभार ये चारों हल्दी प्राकृतिक ओषधियां होने से आयुर्वेदिक दवा निर्माण में उपयोगी हैं। इनकी पहचान, गुण लाभ तथा फायदे क्या हैं जानेंगे इस लेख में। यह बुद्धिवर्धक ब्लॉग आपके ज्ञानचक्षु खोल देगा। ये 25000 हजार शब्दों का है।
  1. हल्दी यह मसाला और ओषधि भी है
  2. वनहरिद्रा कुष्ठ रोग एवं वात रक्त का नाश करती है।
  3. दारूहल्दी यह वात रोगों में उपयोगी कण्डूघ्न (Antipsoric Antiprurigmous antipreitics ) है। खुजली को दूर करे उस ओषधि को संस्कृत में कण्डूघ्न कहते हैं ।
  4. आमाहल्दी सभी तरह की हड्डी जोड़ने में काम आती है। इसका लेप करते हैं।
  • कच्ची हल्दी बने कुछ महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक उत्पाद, जो सौंदर्य निखारते हैं-
  • दुनिया का ऐसा कोई सौंदर्य उत्पाद नहीं है जिसमें हल्दी-हरिद्रा का उपयोग न होता हो।
  • सुंदरता बढाने में हल्दी प्रकृति का दिया हुआ लाजबाब वरदान है। त्वचा निखार के लिए भी बहुत लाभदायक होती है ये त्वचा को उजला, साफ सुथरा भी बनाती है।

अमृतम द्वारा निर्मित फेस क्लीनअप अमृतम अष्टगंध, अमृतम फेस वॉश एवं अमृतम उबटन, अमृतम कुंकुमादि तेल में हल्दी का उचित मात्रा में समावेश किया जाता है।

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  • आयुर्वेद की कुछ पुरानी किताबों से सही और सत्य जानकारी जरूर पढ़ें-

हल्दी, हल करें अनेक समस्या 55 फायदे जाने

  1. हल्दी से श्वेतकणों WBC की वृद्धि होती है।
  2. मलेरिया में निदान की दृष्टि से प्रोद्दीपक रूप में (Provocative dose – प्रोह्रोकेटिह्न डोज) इसका उपयोग लाभदायक है जिससे छिपे हुये कीटाणु रक्त में आ जाते हैं तथा रक्तपरीक्षण में दिखलाई देने लगते हैं।
  3. हल्दी चर्म के नीचे की धातुओं एवं श्लैष्मिक कला के लिये स्थानिक रूप से सौम्य स्वापजनक होने के कारण वेदनास्थापन के लिए प्रयुक्त होता है।
  4. हल्दी को गर्म तिल तेल में मिलाकर धूप में मालिश करने से सभी चर्म रोग दूर हो जाते हैं।
  5. हल्दी एक एंटीबायोटिक पदार्थ या यौगिक है, जो जीवाणुओ को जड़ से साफ कर देता है और आगे भी इन कीटाणुओं को पनपने नहीं देती।
  6. हल्दी के फायदे दांत दर्द में हल्दी भुजंकर दांतों में दबाने से दर्द मिट जाता है।
  7. हल्दी के धार्मिक उपयोग शादी विवाह मंगल कार्यों में हल्दी का उबटन करने की प्राचीन परंपरा है।
  8. हल्दी को हरिद्रा भी कहते हैं। यह मङ्गल कार्यों में विशेष शुभदायक है। पूजा में इसके उपयोग से गुरु ग्रह की कृपा मिलती है।
  9. हल्दी सुख-सौभाग्य की प्रतीक है। पैदा होने लेकर मरने तक हल्दी साथ निभाती है।
  10. भगवान श्रीगणेश का स्वास्तिक चिन्ह हल्दी से ही बनाना शुभकारी होता है।
  11. तिरुपति के नजदीक त्रिचनूर नामक तीर्थ में स्थित में माँ पद्मावती का गुरुवार के दिन हल्दी से लेप लिया जाता है-
  12. आविवाहित लोग यदि किसी शिवलिंग या घर के मन्दिर में मिट्टी के दीपक या सकोरे में 27 ग्राम पिसी हल्दी, 5 रेशे केशर के 9 गुरुवार नियमित रखें, तो तत्काल विवाह हो जाता है।
  13. गुण और प्रयोग – हल्दी उष्ण, उत्तेजक, सुगन्धित, रक्तशोधक, त्वग्दोषहर, शोथहर, दीपन, ग्राही, कफघ्न, वातहर, विषघ्न एवं व्रण के लिए लाभदायक है। मसाले के रूप में इसका नित्य व्यवहार होते हुए भी यह एक बहुत अच्छी औषधि है।
  14. हल्दी का उपयोग प्रतिश्याय, कफविकार, चर्मरोग, रक्तविकार, प्रमेह, कामला, यकृत् विकार, पार्यायिक ज्वर, अतिसार, संग्रहणी, व्रण एवं नेत्राभिष्यन्द में किया जाता है ।
  15. प्रतिश्याय यानि जुकाम, खाँसी, प्रमेह, प्रदर एवं नेत्राभिष्यन्द आदि रोगों में जिनमें श्लेष्मा का अत्यधिक स्राव होता है, तब हल्दी को दूध में उबालकर गुड़ मिलाकर पिलाते हैं।
  16. प्रतिश्याय की प्रारंभिक अवस्था में रात के समय इसके धूएँ को नाक से सुंघाते हैं तथा उसके बाद कुछ देर तक जल नहीं पीने देते। इससे बहुत जल्दी लाभ होता है।
  17. खाँसी में हल्दी भूनकर १-२ ग्रा. मधु अथवा घृत के साथ चटाने से लाभ होता है ।
  18. आंवले का रस, हल्दी तथा मधु – इसके प्रयोग से सभी प्रकार के प्रमेहों में अच्छा लाभ होता है। प्रदर में इसके साथ गुग्गुलु या रसांजन का प्रयोग करते हैं ।
  19. चर्म रोग में कारगर खुजली, पामा, दाद, शीतपित्त, उदर्द, फोड़े एवं विचर्चिका आदि रक्तविकार एवं चर्म रोगों में यह बहुत लाभदायक है।
  20. चर्म विकार में हल्दी का चूर्ण गोमूत्र के साथ खिलाया जाता है एवं मक्खन के साथ स्थानीय लेप भी करते हैं। इसके विशेष योग हरिद्राखंड का १० ग्रा. की मात्रा में नित्य कुछ समय तक लेने से उपर्युक्त विकारों में पर्याप्त लाभ होता है ।
  21. चूना या सज्जी खार हलदी के साथ मिलाकर मोच, ऐंठन, चोट, पिच्चित व्रण एवं पुराने घावों पर लगाने से बहुत लाभ होता है। इसके साथ हल्दी तथा मिश्री को खिलाते भी हैं।
  22. बिच्छू एवं सर्प आदि के काटने पर वेदना शान्ति के लिए हल्दीका धूआँ देते हैं।
  23. हल्दी एवं फिटकिरी के सूक्ष्मचूर्ण का कर्णस्राव में कान में प्रधमन कहते हैं।
  24. करने वाले कीटाणु के संवर्ध की वृद्धि रोकने में समर्थ होता है ।
  25. नेत्र रोग नाशक हल्दी सभी प्रकार के नेत्राभिष्यन्द के लिए हल्दी बहुत लाभदायक है। एक भाग हल्दी, २० भाग जल में उबालकर छानकर उसे आँख में बार-बार डालते हैं जिससे आँख की वेदना कम होती है तथा कीचड़ आना भी कम होता है । इसके क्वाथ से रंगे हुए कपड़े का व्यवहार नेत्राच्छादन के लिए किया जाता है।
  26. श्लीपद यानि हाथी पांव में हल्दी को गुड़ एवं गोमूत्र के साथ प्रयोग कराया जाता है ।
  27. सिरदर्द या शिरःशूल एवं जोंक के काटने पर रक्तप्रवाह को रोकने के लिए हल्दी का लेप लाभदायक है।
  28. घृतकुमारी के गूदे में हल्दी को घिसकर शोथयुक्त अर्श यानि पाइल्स पर लगाते हैं।
  29. भूतोन्माद एवं योषापस्मार आदि में इसका धूआँ दिया जाता है ।
  30. हरिद्रा, बलदायक और सुगन्धित है। यह कामला वा पुराने कफरोग में प्रयोज्य है । पिसी हुई हल्दी को तिलतेल के साथ मिश्रित कर मर्दन करने से कण्डप्रभूति चर्मरोग पैदा नहीं होने पाते।
  31. चूने और हल्दी का मिश्रित प्रयोग आघात लगे या पिच्चित वा मोच आये अंगों पर प्रलेप द्वारा किया जाता है।
  32. ब्लैक आई नामक रोग में नेत्र के चतुःपार्श्व में हल्दी का प्रयोग यंत्रणा वा वेदना को दूर करता है।
  33. जोंक इत्यादि के दंश द्वारा जो अतिरिक्त रक्तप्रवाह होता है उसे बन्द करने के लिए हरिद्राचूर्ण लगाते हैं।
  34. हल्दी के क्वाथ द्वारा चक्षु परिषेत्रन से अक्षिधरा करला का प्रदाह ( Conjunctivitis ) शान्त होता है।
  35. हल्दी को दूध में पकाकर तथा शर्करा मिलाकर शीत में प्रयोग करते हैं।
  36. जलती हरिद्रा का धूम ऊर्ध्व श्लेष्मघटित पीड़ा विशेष ( coryza ) में व्यवहृत होता है।
  37. प्रकृद्दोष वा कामला में हरिद्रा सेव्य है।
  38. हरिद्रारंजित वस्त्र नेत्ररोग में न त्राच्छादक के रूप में व्यवहृत होता है।
  39. मूत्रस्थान सम्बन्धी पीड़ाओं में भी हल्दी का प्रयोग हुवा करता है।
  40. वेदनारहित सूजन के ऊपर सज्जीमाटी के साथ हल्दी का प्रलेप किया जाता है।

हल्दी ज्यादा लेने से नुकसान

  1. हल्दी का सेवन कम या साधारण मात्रा में करने पर हृदय पर इसका उत्तेजक प्रभाव पड़ता है जिससे हृदय की पोषक रक्तवाहिनियों में रक्तप्रवाह की वृद्धि होती है, लेकिन अधिक मात्रा में देने पर यह अवसादक है।
  2. द्रव्यगुण विज्ञान के अनुसार हल्दी अमृत है। इसे एक दिन में अधिकतम 100 mg तक लेना हितकारी है। प्राचीन परंपरा यही है। गूगल आदि पर हल्दी के बहुत ही गलत उपयोग बताए जा रहे हैं, इससे शरीर को बहुत हानि हो रही है।
  3. हल्दी की तासीर बहुत गर्म होने से इसका उपयोग बहुत ही कम मात्रा में करना चाहिए अन्यथा यह पित्त की वृद्धि कर उदर विकार, कब्ज आदि उत्पन्न करती है।
  4. हल्दी अधिक मात्रा लेने के कारण फेफड़ों के सूक्ष्म छिद्र बंद हो जाते हैं। फिर, अनेक श्वास, दमा, अस्थमा, छाती में भारीपन और श्वास लेने में दिक्कत होने लगती है।
  5. नमक, मीठा, घी, फल आदि सभी बहुत हितकारी एवं जरूरी हैं लेकिन इनसे पेट नहीं भरा जा सकता।
  6. लिवर या पीलिया के मरीज हल्दी न खाएं।वर्तमान में यकृत रोग, पाचनतंत्र की खराबी, लिवर में सूजन, कब्ज, अर्श आदि की समस्या बढ़ती जा रही है। वैसे भी पीलिया होने पर हल्दी का त्याग करने का मशविरा बुजुर्ग लोग देते थे।
  7. एक महीने में 10 से 12 ग्राम तक ही हल्दी पावडर का सेवन हितकारी होता है। इससे अधिक लेने से फेफड़ों की सूक्ष्म नलिकाएं जाम होने लगती है।
  8. ज्यादा हल्दी खाने से फेफड़ों में सिकुड़न होने लगती है। अगर आपको कोई एलर्जी, सर्दी-खांसी नहीं है, तो हल्दी दूध के साथ कभी नहीं लेना चाहिए।
  9. हल्दी का अधिक उपयोग पित्त की वृद्धि करता है। हल्दी से पसीना भी ज्यादा आता है।
  10. आयुर्वेद चंद्रोदय ग्रन्थ के मुताबिक हल्दी केवल सर्दी लगने या कोल्ड, खांसी या सर्दी के मौसम में के समय ही लेना फायदेमंद होता है।
  11. कुछ लोगों को हल्दी के सेवन से बिना पाइल्स के भी मलद्वार में खून आने लगता है। पुरानी एक सूक्ति है-अति सर्वत्र वर्जते
  12. आयुर्वेद में हर चीज की एक निश्चित मात्रा निर्धारित है। जैसे तुलसी के 4 से 5 पत्ते ही पर्याप्त हैं। क्योंकि इसमें पारा होने से इस पर कभी कोई कीड़ा, मकोड़ा आदि नहीं बैठते। तुलसी का ज्यादा उपयोग दंत विकार पैदा करता है।
  13. नीम की नई कोपल केवल आधा फाल्गुन, पूरा चैत्र और आधा वैशाख माह में ही खाने का निर्देश है। 12 महीने नीम खाने से अल्सर, थायराइड, जोड़ों में दर्द आदि की समस्या खड़ी हो जाती है।
  14. द्रव्यगुण विज्ञान के मुताबिक किसी भी कड़वी वस्तु का अधिक उपयोग शरीर से रस को कम कर देता है, जिससे पित्त की वृद्धि होती है और हड्डियों में कमजोरी तथा आवाज आने लगती है।
  15. नामर्दी नहीं मिटाती हल्दी। हल्दी का ताकत या मर्दाना पन से कोई लेना-देना नहीं है। हल्दी केवल हेल्दी बनाती है यह बात सही है।

व्यापार-कारोबार वृद्धि में चमत्कारी-हल्दी….

  • व्यापार स्थल पर हरेक रविवार दुपहर 11.48 से 12.32 के बीच 9 हल्दी की गांठे सफेद धागे में बांधकर दुकान या उद्योग के मुख्य द्वार पर माला लटका दी जाए, तो सारे वास्तु दोष, नजर आदि दूर होते है।
  • भारत में हल्दीघाटी युद्ध के मैदान की वजह से बहुत प्रसिद्ध है। यह स्थान उदयपुर राजस्थान से 35 km तथा श्रीनाथ द्वारा मन्दिर से 15 किलोमीटर की दूरी पर है। यहाँ की सभी घाटियों का रंग हल्दी जैसा है। इसी जगह महाराणा प्रताप एवं चेतक घोड़े की समाधि बनी है।
  • यहां पर गुलाब पुष्प की बहुतायत मात्रा में खेती होती है। गुलकन्द बहुत प्रसिद्ध है।
  • हलदी के अन्य नाम — हरिद्रा, काञ्चनी, पीता, निशाऽऽख्या (रात्रिवाची सभी शब्द), वरवर्णिनी, वर्ण/त्वचा निखार, कृमिघ्नी, हल्दी, योषित्प्रिया और हट्टविलासिनी ये संस्कृत नाम हल्दी के हैं।
  • हिंदी में हलदी, हरदी, हर्दी, हल्दी | बंगाली में – हलुद। मराठी में – हलद, गुजरात – हलदर। कन्नड़ भाषा में – अरसिन, अरिसिन।
  • तेलगु में पसुपु। पंजाबी में – हलदी, हलदर, हलज। तमिल, मलयालम में- मंजल। फारसी में- जर्द चोब। अरबी में उरुकुस्सफ। अंग्रेजी – Turmeric (टर्मेरिक्) । लेटिन ०- Curcuma longa Linn (कर्क्युमा लाँगा ) | Fam. Zingiberaceae (झिजिबेरॅसी) ।
  • हरिं पीतवर्णं हल्दी – एक बहुत प्रसिद्ध प्रतिदिन के व्यवहार में आने वाली वस्तु प्रायः सभी प्रान्तों के खेतों में रोपण की जाती है लेकिन बंबई, मद्रास तथा बंगाल में इसकी विशेष रूप से उपज की जाती है । चीन एवं जावा आदि देशों में भी इसकी उपज होती है। इसका क्षुप – १ मी. तक ऊँचा होता है ।

हरविलासिनी’ ति पाठा। हरीतक्यादिवर्गः भावप्रकाशनिघण्टौ

हरिद्रा काञ्चनी पीता निशाऽऽख्या वरवर्णिनी।

कृमिघ्नी हलदी योषित्प्रिया हट्टविलासिनी॥

वर्ण्या त्वग्दोषमेहास्त्रशोथपाण्डुव्रणापहा॥

  • हल्दी के पत्ते–केले के नवीन पौधे से निकले हुए पत्ते के समान ३०-४५ से.मी. लम्बे तथा १५-१८ से.मी. चौड़े, उतने ही लम्बे पर्णवृन्त से युक्त, आयताकार- भालाकार एवं पर्णतल की तरफ कुछ नुकीले होते हैं।
  • हल्दी के पत्तों में आम के समान गन्ध आती है। फूल – अवृन्त काण्डज क्रम में निकले हुए, पीतवर्ण के, संख्या में अल्प तथा करीब ३ से.मी. लम्बे; पुष्पदण्ड – १५ से.मी. या अधिक लम्बा तथा पत्रनाल द्वारा आवृत; पुष्पदण्ड की पत्तियाँ हलके हरे रंग की होती हैं।
  1. हल्दी के ताजे पत्तों का उपयोग मछली भूनने में एवं घृत की दुर्गन्ध को दूर करने के लिए उपयोग में लाते हैं। ताजी हल्दी का अचार भी बनाया जाता है।
  • हल्दी की जड़ के नीचे अदरख के समान बड़े-बड़े कन्द होते हैं। यह सर्वाङ्ग पीला होता है। इन्ही कन्दों को हल्दी कहते हैं। ये कन्द विभित्र आकार के, मूल एवं पर्णवृन्तों के चिह्नों से युक्त होते हैं। अन्दर का भाग पीला या नारंगपीत। भग्नशृङ्गवत्। गन्ध–मधुर।
  • हल्दी का स्वाद — कड़वा। चूसने पर लालास्राव का वर्ण भी पीत हो जाता है। रंगने के काम में बिना उबाली हल्दी का व्यवहार किया जाता है और खाने के काम में हल्दी को उबालकर सुखाकर प्रयुक्त करते हैं। उबालने से उष्णवीर्य हल्दी की तीव्रता कम हो जाती है।
  • प्रमेह आदि कफ प्रधान व्यक्तियों में कच्ची हल्दी का रस सहपान या अनुपान के रूप में प्रयुक्त करते हैं।
  • हल्दी में एक प्रकार का सुगन्धित उड़नशील तैल १ प्रतिशत; गोंद वा पीतर्वण का रंजक पदार्थ और एक विशेष तैल रहता है। यह तैल घना पीले रंग का और चिपचिपा होता है । कढ़ी के मसाले में इसी का खूशबूदार स्वाद और गन्ध होती है।

कच्ची हल्दी को सूखी या खड़ी हल्दी बनाने की विधि

  • हल्दी को एक विशेष विधि से तैयार करके बाजार में बेची जाती है। पहले कन्दों को अलग करके साफ करते हैं। फिर मुलायम होने तक जल में उबालते हैं।
  • स्थान भेद के अनुसार ३० मिनट से ६ घंटे तक उबाला जाता है । उबालते समय इसी के कुछ पत्तों को भी जल में डालते हैं। थोड़ा गोबर मिलाने से इसका रंग अच्छा हो जाता है । फिर इन्हें खुली हवा में फैलाकर बार-बार पलटकर धीरे-धीरे सुखाते हैं। सूखने पर रगड़कर साफ करके उपयोग में लाते हैं।
  • ध्यान देवें कच्ची हल्दी के 45 प्रकार से गुणकारी है। यह लेख क्योरा पर अलग से दिया गया है।
  • हल्दी का रासायनिक संगठन—इसमें करक्यूमिन् (Curcumin, C12 Hz00g) नामक एक पीला एवं रवेदार रंजक पदार्थ होता है जो मद्यसार में पूर्णतया घुल जाता है जिससे गहरे पीले रंग का घोल बनता है। इस घोल में क्षार मिलाने से घोल रक्ताभ बादामी वर्ण का हो जाता है।
  • इसके अतिरिक्त हल्दी में ५-६% उड़नशील तैल होता है जिसमें कर्पूरवत् गन्ध आती है तथा इस तैल में करक्यूमेन (Curcumen) नामक एक टरपेन (Terpene ) होता है, जो स्नेहद्रव्य कोलेस्टेरॉल (Cholesterol) को घुलाने के लिए बहुत अच्छा द्रव्य है।
  • हलदी में उपर्युक्त पदार्थों के अतिरिक्त स्टार्च (Starch) २४% तथा अॅल्ब्युमिनाएड्स (Albuminoids) ३०% होते हैं।

विदेशी वैज्ञानिक R. N. Khory की खोज

  • Constituents of C. Longa :-An essential oil 1 p.c.; resin, Curcumin, the yellow colours ing matter; turmeric oil or turmerol. Turmeric/oil is a thick yellow viscid oil. The curry powder owes its aromatic taste and
  • smell to this oil. Actions and uses : -Tonic and aromatic; given in jaundice and in chronic bronchitis. When mixed with tila tela it is applied to the whole body to prevent skin erueptions. With kali chuna, powder of it is applied to bruises, sprains, contused wounds, blackeye, with relief. A paste of it stops bleeding from leechbites. A decoction of it is used as a cooling lotion in conjunctivitis, boiled in milk an sweetened with TT, turmeric is a popular remedy for
  • cold. Fumes of burning turmeric passed into the nostrils relieve coryza. Internally halada is given in affections of the liver and jaundice. On account of its yellow colour, cloth dipped in its paste is employed as an eye-shade. It is used in urinary diseases. and with Sajikhara as an internal application to reduce indolent swelling.

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