अमृतम तंत्र, मंत्र और स्वास्थ्य…
दुनिया केवल दैवीय शक्ति तंत्र के बारे में जानती है। तंत्र शास्त्रों में दस तंत्र का वर्णन मिलता है और इनकी अधिष्ठात्री देवियां भी 10 ही हैं।
जब तक मानव तंत्र शुद्ध होते, तब तक किसी भी तंत्र सिद्धि कामना करना व्यर्थ है।
हमारे शरीर में दस तंत्र है –
कंकाल तंत्र,
पेशीय तंत्र,
रक्त परिसंचरण तंत्र,
लिम्फैटिक तंत्र,
श्वासनीय तंत्र,
पाचन तंत्र,
अंतः स्रावी तंत्र
मूत्रीय तंत्र,
स्नायु तंत्र एवं
प्रजनन तंत्र।
ये सभी मिल कर पूरे शरीर को स्वस्थ एवं
निरोग रखते हैं। इनमें से एक में ही थोड़ी-सी
खराबी आने से ही पूरे शरीर पर असर पड़ता है। जिससे थकावट, चिड़चिड़ापन एवं कई तरह के
विकारयुक्त लक्षण देखे जा सकते हैं जो अलग-अलग बीमारियों के प्रतीक होते हैं।
आयुर्वेद के ग्रंथ माधव निदान के अनुसार…
तंत्र एक ऐसी व्यवस्था है जिसके अंतर्गत कुछ सिद्धि प्राप्त करने के लिए – जैसे अपने शरीर को स्वस्थ रखने एवं जन्म-मरण से छुटकारा पाने हेतु प्राचीन विद्वानों, ऋषि-मुनियों द्वारा मंत्रों की रचना की गयी।
हर मंत्र की रचना इस प्रकार होती है जिससे हर शब्द स्वर व्यंजनों के जोड़ से सही बैठता है। अतः उन मंत्रों के शुद्ध उच्चारण से कंठ से निकले हर मंत्र के शब्दों के स्वर से ऐसा कंपन पैदा होता है – जिससे मस्तिष्क को जाती हर नाड़ी प्रभावित होती है।
अतः इन उत्पन्न तरंगों द्वारा अंत: स्रावी ग्रंथियां जैसे- पिय्यूटरी, पीनियल, थाइराइड और पेराथाइरायड तक पहुंच इनको उत्तेजित करती हैं।
इस उत्तेजना से हर ग्रंथि अपना कार्य कुशलतापूर्वक कर शरीर के हर अंग में अपना योगदान देती है, जिससे स्वास्थ्य बना रहता है एवं शरीर सुचारू
रूप से अपनी प्रतिरोध क्षमता बढ़ाता रहता है।
इससे न केवल प्रतिरोध क्षमता बढ़ती है, बल्कि सामान्य बीमारियों से भी बचा जा सकता है।
मंत्रों की महिमा...
चार वेद हैं। महामृत्युंजय मंत्र ऋग्वेद से और गायत्री मंत्र यजुर्वेद से है।
मंत्रों से बीमारी मिटती हैं…
वेद मंत्रों की ऋचाओं का हमारे कंठ पर बहुत असर होता है। एक्यूप्रेशर पद्धति के अनुसार हमारी जीभ पर हर अंग का रिफलेक्शन है।
वास्तव में इन मंत्रों में ऐसे शब्द हैं जिनके
उच्चारण से जीभ पर उनका प्रभाव पड़ता है।
जो भी हिस्सा जिस शब्द के बोलने से छू जाता है,
वही उत्तेजना पैदा होती है और वही भाग, जिस
अंग को दर्शाता है वही प्रभावित हो अपना कार्य सुचारू रूप से करने लगता है।
तंत्र द्वारा उपासना के लिए जगदंबे देवी से भी मंत्रों द्वारा प्रार्थना की जाती है। शरीर के अंदर व बाहर हर अंग, मन, बुद्धि की रक्षा के लिए फल मिलते हैं।
ॐ की शक्ति है चमत्कारी….
केवल ॐ को ही एक श्वास में छोड़ते समय बोलने से ही, जितना लंबा सांस रोककर बोलेंगे,
उतना ही समय १० सैकंड से ६० सैकंड तक उच्चारण में लग सकता है। इससे शरीर पवित्र हो जाता है।
शरीर में कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकल जाती है। ऑक्सीजन का प्रवाह रक्त में बढ़ जाता है जिससे स्फूर्ति आ जाती है।
ॐ को बोलने से केवल गला ही कार्यरत रहता है, जिससे गले से संबंधित सभी बीमारियों से छुटकारा,
तो मिलता ही है, साथ में फेफड़ों, हृदय एवं मानसिक रोगों से भी मुक्ति मिल जाती है। इस एक शब्द वाले मंत्र ‘ऊं’ में ही इतनी शक्ति है ।
ॐ के जाप ध्यान से रोग दूर होते हैं…
ॐ के जप से अपने शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर सब विकारों पर विजय पायी जा सकती है।
इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए स्वच्छ वायु में प्राणायाम करने के पश्चात यजुर्वेद के किसी एक मंत्र को शुद्ध उच्चारण से बार-बार पढ़ने से स्वस्थ एवं निरोग रहने में बहुत लाभ मिलता है और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ जाती है।
शरीर का हर अंग स्वस्थ रहे तभी हम पूर्ण रूप से स्वस्थ एवं निरोग कहलाएंगे। यह तभी संभव है जब हर अंग को पूरी शक्ति मिलती रहेगी। अतः सिद्धासन या कमलासन में बैठकर ही प्राणायाम के पश्चात ही अगर मंत्रों को बोला जाए तो लाभ निश्चित है।
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