अमृतम आयुर्वेद के अनुसार लकवा-पक्षाघात
पांच के प्रकार के होते हैं —
लकवा को पैरालाइसिस भी कहते हैं। आयुर्वेद के ग्रन्थ चरक सहिंता में यह 88 तरह वात विकारों में एक बताया है।
आयुर्वेद में ८८ वतव्यधियों के लिए ८८ प्रकार की औषधि, जड़ीबूटियों का वर्णन है।
अष्टाङ्ग ह्रदय, शारीरिक विज्ञान व चिकित्सा, चरक सहिंता, सुश्रुत सहिंता, भावप्रकाश, आयुर्वेद सार संग्रह, काय चिकित्सा आदि शास्त्रों में उनके नाम और अनुपान विधि लिखी है।
ध्यान देंवें- वातरोगियों को कभी भी कड़वी चीजों का सेवन हनिदायक है और मीठा हितकारी है।
लकवा नाशक आयुर्वेदिक ओषधियाँ…
¶ वृहत वात चिंतामणि रस स्वर्णयुक्त
¶ रसराज रस स्वर्णयुक्त
¶ योगेंद्र रस स्वर्णयुक्त
¶ स्वर्ण भस्म
¶ सहजन
¶ अमृतम शतावरी चूर्ण
¶ अमृतम वात की क्वाथ
¶ ऑर्थोकी गोल्ड माल्ट
¶ Orthokey Gold Capsule
¶ सहजन
¶ त्रिफला गहन सत्व
¶ महारास्नादि काढ़ा
¶ हरीतकी मुरब्बा
¶ एकांग्विर रस
¶ महावात विध्वन्सन रस
¶ शुद्ध कुचला
¶ शुद्ध शिलाजीत
¶ शुद्ध गूगल आदि
आयुर्वेद के अमृतम ग्रंथों के मुताबिक
पक्षाघात, लकवा यानि पैरालिसीस एक
ऐसा वायु रोग है, जिसके प्रभाव से संबंधित अंग की शारीरिक प्रतिक्रियाएं, बोलने और महसूस करने की क्षमता खत्म हो जाती हैं।
पूरे शरीर में – तंत्रिका तंत्र के द्वारा शरीर के विभिन्न अंगों का नियंत्रण और Organ व वातावरण में सामंजस्य स्थापित होता है, उसे तन्त्रिका तन्त्र कहते हैं।
हमेशा उच्च रक्तचाप बने रहना,
अंगों का ठीक काम न करना,
बहुत पसीना आना,
बुखार रहना आदि समस्या
तन्त्रिका तन्त्र की कमजोरी से होता है।
इस आर्टिकल्स में आयुर्वेद ग्रंथों के मुताबिक
5 प्रकार के लकवा,
पक्षाघात या पैरालिसिस के विषय में जानेंगे
शरीर में दूसरे प्रकार से होने वाले रोग और स्थान —
पक्षाघात (Hemiplegia या Paralysis) इसे अवबाहुक भी कहते हैं।
पैरालिसिस यह दो शब्दों “पार + लिसिस” से मिलकर बना है। पारा का अर्थ है−
आभ्यंतर ( intimate) और लिसिस का अर्थ है− शिथिलता या निष्क्रियता।
लकवा यह वात या वायु रोग है, कुपित हुई वायु शरीर के दाएँ या बाएँ भाग पर आघात कर उस भाग की शारीरिक चेष्टाओं का नाश व अनुभूति और वाणी में रुकावट उत्पन्न कर देती है। इसे पक्षाघात यानी लकवा कहते हैं।
यह उच्च रक्त चाप (हाई ब्लड प्रेशर)
के कारण भी हो सकता है।
लकवा होने की एक वजह तनाव, अधिक चिन्ता भी माना जाता है।
यह, तब होता है, जब अचानक मस्तिष्क के किसी भाग में रक्त संचार बाधित हो जाता है यानि खून की आपूर्ति रुक जाती है या मस्तिष्क की कोई रक्त वाहिका (blood vessel) फट जाती है और मस्तिष्क की नाडियों व कोशिकाओं के आस-पास की जगह में खून भर जाता है।
पक्षाघात या लकवा मारना (Paralysis) एक या एक से अधिक मांसपेशी (Muscle functions) समूह की मांसपेशियों
के कार्य करने में पूर्णतः असमर्थ
यानि तन-मन में ताकत अथवा
अपेक्षित शक्ति, (Required power)
या योग्यता न रख पाने की स्थिति को कहते हैं। पक्षाघात से प्रभावी क्षेत्र
की संवेदन-शक्ति (Sensing power)
समाप्त हो सकती है।
लकवा कई कारणों से हो सकता है।
जानिए इसके कारण, प्रकार और उपाय –
कारण :—
जवानी के दिनों में सेक्स की अधिकता या अधेड़ अवस्था में अत्यधिक भोग विलास, नशे की आदत, मादक द्रव्य व नशीले पदार्थों का उपयोग, ज्यादा आलस्य आदि से स्नायविक तंत्र (Nervous System)
धीरे-धीरे कमजोर होता जाता है। जैसे-जैसे
उम्र बढ़ती जाती है, इस रोग के आक्रमण की
संभावना भी बढ़ती जाती है। इस बीमारी
की वजह अकेले आलसीपन ही नहीं, अपितु
इसके विपरीत ज्यादा भागदौड़,
क्षमता से अधिक मेहनत, परिश्रम या
व्यायाम, कम भोजन या अधिक खाने
आदि कारणों से भी लकवा होने की
स्थिति बन जाती है।
लकवा या पक्षाघात (पैरालिसिस) 5 पांच प्रकार का होता है।
【1】अर्दित : यानि चेहरे का लकवा
(फेशियल पेरेलिसिस) सिर्फ चेहरे पर लकवे का असर होना अर्दित यानि फेशियल पेरेलिसिस कहलाता है। इसमें सिर, नाक, होठ, ढोड़ी, माथा, आंखें तथा मुंह स्थिर होकर मुख प्रभावित होता है और स्थिर हो जाता है।
कान के पीछे नस : दिमाग के निचले हिस्से में फेशियल नस होती है। यह दोनों कान के पीछे से होती हुई चेहरे तक पहुंचती है। बताया कि दोनों ओर 22-22 मांसों में फेशियल नस फैली रहती है। इसमें सूजन होने पर दूसरी ओर चेहरा भारी होने लगता है। साथ में टेढ़ापन होने लगता है।
【2】एकांगघात :
(monoplegia मॉनो-प्लेगिया)
एकांगघात (संस्कृत में अंगघात) या एक तरफ का लकवा रोग का एक प्रकार जिसमें कोई एक हाथ या पैर शून्य एवं क्रियाहीन हो जाता है। इसे एकांगवात भी कहते हैं। इस रोग में मस्तिष्क (ब्रेन) के बाहरी भाग में दिक्कत होने से एक हाथ या एक पैर में रक्त का संचार अवरुद्ध होने से वह हिस्सा कड़क होकर उसमें लकवा हो जाता है। यह समस्या *सुषुम्ना नाड़ी* में भी हो सकती है। इस रोग को एकांगघात यानि मोनोप्लेजिया कहते हैं।
“सुषुम्ना नाड़ी” क्या होती है?…
नाड़ी’ का मतलब धमनी या नस नहीं है। नाड़ियां शरीर में उस मार्ग या माध्यम की तरह होती हैं जिनसे प्राण का संचार होता है, शरीर के ऊर्जा-कोष में, जिसे प्राणमयकोष कहा जाता है, 72,000 नाड़ियां होती हैं। ये 72,000 नाड़ियां तीन मुख्य नाड़ियों- बाईं, दाहिनी और मध्य यानी इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना से निकलती हैं।
【3】 सर्वांगघात :
इसे सर्वांगवात (डायप्लेजिया)
रोग भी कहते हैं। इस रोग में लकवे का असर
शरीर के दोनों भागों पर यानी दोनों हाथ व पैरों, चेहरे और पूरे शरीर पर होता है।
आयुर्वेद शास्त्रों में उल्लेख है−
गृहीत्वार्धन्तनो वायुः शिरास्नायुर्विशोष्य च। पक्षमन्यतमं हन्ति साधिबन्धान्विमोक्षयन्॥ कृत्स्नोर्धकायं तस्य स्यादकर्म्मण्यो विचेतनः। एकाँगरोगन्तं केचिदन्ये पक्षवधं विदुः॥
अर्थात् जिस रोग में वायु आधे शरीर को पकड़कर शिरा और स्नायु को सुखाकर संधिबंधन (जॉइंट) को ढीला कर शरीर के एक तरफ के अंग को निष्क्रिय कर देती है, जिससे शरीर का आधा भाग कार्य करने में असमर्थ हो जाता है, उसे पक्षाघात कहते हैं। जब सारे अंग क्रियाहीन, शिथिल या चेष्टारहित हो जाते हैं, तब उसे सर्वांगघात कहा जाता है। अतः स्पष्ट है कि वात की विकृति ही लकवा/ पैरालिसिस का
प्रमुख कारण है। यह वातविकृति दो प्रकार से होती है−
1. धातुक्षय जनित और
2. आवरण जनित वात विकृति।
चरक संहिता में लिखा है,
“वायोर्धातुक्षयात् मार्गस्यावरणेन च वा।”
【4】 अधरांगघात : paraplegia
इस रोग में कमर से नीचे का भाग यानी दोनों पैर लकवाग्रस्त हो जाते हैं। यह रोग सुषुम्ना नाड़ी में विकृति आ जाने से होता है।
यदि यह विकृति सुषुम्ना के ग्रीवा खंड में होती है, तो दोनों हाथों को भी लकवा हो सकता है।
जब लकवा तंत्रिका कोशिका अर्थात ‘अपर मोटर न्यूरॉन’ प्रकार का होता है, तब शरीर के दोनों भाग में लकवा होता है।
अपर मोटर न्यूरॉन यानि तंत्रिका तंत्र में स्थित एक उत्तेजनीय कोशिका है। इसका कार्य ब्रेन से सूचना का आदान प्रदान और विश्लेषण करना है।
यह कार्य एक विद्युत-रासायनिक संकेत के द्वारा होता है।
अधरांगघात, नीचे के अंगों का पक्षाघात, अर्द्धांग, निम्नांगो का पक्षाघात, पैरों का और पूरे या आधे धड़ का लकवा, शरीर के नीचे के अंगो का पक्षाघात है।
【5】 बाल पक्षाघात : बच्चे को होने वाला पक्षाघात एक तीव्र संक्रामक रोग है।
जब एक प्रकार का विशेष कृमि सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश कर उसे हानि पहुंचाता है
तब सूक्ष्म नाड़ी और मांसपेशियों को आघात पहुंचता है, जिसके कारण उनके अतंर्गत आने वाली शाखा क्रियाहीन हो जाती है।
इस रोग का आक्रमण अचानक होता है और यह ज्यादातर 6-7 माह की आयु से लेकर 3-4 वर्ष की आयु के बीच बच्चों को होता है।
लकवा का आयुर्वेदिक उपचार…
ये पांचों प्रकार लकवा या पक्षाघात एक कठिन रोग है और इसकी चिकित्सा के लिए रोगी को रोज अमृतम ऑर्थोकी ऑयल की सुबह की धूप में दो बार हल्के हाथ से मालिश कर गुनगुने जल से नहाना चाहिए।
ऑर्थोकी गोल्ड माल्ट
आयुर्वेद बीमारी को जड़ से मिटाता है। इसलिए इस बात स्मरण रखें कि रोग धीरे-धीरे ही जायेगा। थोड़ा धैर्य रखें
इन उत्पादों के व्यू गुण-अवगुण हेतु इंस्टाग्राम, गूगल, फेसबुक पर दृष्टिपात करें।
इंस्टाग्राम पर अमृतम को सपोर्ट करें।
असन्तुलित वात-पित्त-कफ अर्थात त्रिदोषों की जांच स्वयं अपने से करने के लिए यह अंग्रेजी की किताब आयुर्वेदा लाइफ स्टाइल
अमृतम ग्लोबल की वेबसाइट पर सर्च करके आप आयुर्वेद के जाने-माने योग्य स्त्री-पुरुष रोग विशेषज्ञ आदि चिकित्सकों से ऑनलाइन सलाह ले सकते हैं।
Leave a Reply