चातुर्मास यानि वर्षा ऋतु में व्रत उपवास करने से होते हैं चमत्कारी फायदे। जानकार चोक जाओगे |

व्रत उपवास के बारे में 50 के करीब जानकारी आपका दुर्भाग्य मिटा देगी। एक बार ईश्वर की मर्जी से चलें।

  • कभी कोई स्वस्थ्य जीवन हेतु यदि कोई व्यक्ति उपवास, पूजा आदि आचरण में लाने की सलाह देने का प्रयास करता है, तो वे उलटा प्रश्न कर कहते हैं कि ‘धार्मिक व्रतों के पीछे कोई वैज्ञानिक आधार या सिद्धान्त क्या है?
  • आजकल एक परंपरा चल पड़ी है की हम धर्म, कर्म, व्रत, उपवास ये सब हम नहीं मानते। यह सब पाखंड हैं। इसमें धर्म के ठेकेदारों, कथावाचक, साधु संतों का भी दोष है। इसलिए आज भारतीय समाज अपनी-स्वयं की पहचान ही भूलकर अथाह परेशानी झेल रहा है।
  1. दुनिया का कोई भी अपने धार्मिक व्रत-,उपवास को हेय दृष्टि से नहीं निहारता।
  2. व्रत करना स्वास्थ्य के लिए सर्वश्रेष्ठ ओषधि बताया है। इससे मानसिक शांति मिलती है।
  3. आयुर्वेद ग्रंथ और धार्मिक उपनिषदों के अनुसारर व्रत-उपवास की ५० वैज्ञानिक मान्यतायें जाने क्या है?
  4. आयुर्वेद शास्त्रों की एक प्रसिद्ध कहावत है कि -‘वैद्यानां शारदी माता पिता च कुसुमाकरः!! अर्थात् चिकित्सकों के लिये शरद्-ऋतु लाभकारी है। यह एक चिकित्सक माता की भाँति परवरिश करती है, तो वसन्त-ऋतु एक पिता की तरह उनका पालन-पोषण करता है।
  5. दोनों ऋतुएँ अपना प्रभाव मानव के स्वास्थ्य पर अच्छा डालती हैं। अधिकांश व्यक्ति इन दो ऋतुओंके आगमन के साथ-साथ ज्वर, मलेरिया, पीलिया आदि रोगों से पीडित होते हैं।
  6. व्रत का मतलब है पाचनतंत्र और पेट की शुद्धि के लिए लांघन करना यानि एक दिन के लिए अन्न आदि ग्रहण न करना। बिना खाए काम करते रहना।
  7. व्रत के बारे में आयुर्वेद में बहुत ही ज्यादा फायदों का वर्णन है। कुछ लोग रोग प्रतिरोधक क्षमता यानि इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए जल, रस रहित व्रत करते हैं।
  8. उपवास के पालन से होते हैं चमत्कारी फायदे।उपवास का अर्थ है बिना कुछ खाए पिए, बिना कर्म किए ईश्वर या सदगुरु के समीप वास करना। मंत्र का जाप, पूजा, अनुष्ठान में समय व्यतीत करना।
  9. उपवास और आयुर्वेदिक नियम-धर्मों का पालन करने वाले व्यक्तियों का स्वास्थ्य तो उत्तम रहेगा ही, साथ ही धन-दौलत में भी अपार वृद्धि के साथ मनोबल, आत्मविश्वास बढ़ेगा एवं हर क्षेत्र में व्यक्तित्व का भी विकास होगा।
  10. भारत के सौ-दो-सौ वर्षों के इतिहास का ही सिंहावलोकन करें तो आज की तुलना में तत्कालीन भारतीय समाज अधिक स्वस्थ था, नीरोग था।
  11. आज के जैसे भयंकर रोग कोसों दूर थे। सामान्य रोगों का आक्रमण नहीं होता था ऐसी बात नहीं, परंतु वे लोग धर्मशास्त्रवके अनुसार आचरण करके स्वस्थ तथा नीरोग रहनेवका प्रयास अवश्य करते थे और उन्हें सफलता भी मिलती थी।
  12. भारत के आयुर्वेदाचायों हमारे वैदिक ऋषि-मुनियों ने ‘मानव किस प्रकार स्वस्थ जीवन व्यतीत करे’, इसकी खोज करके वैज्ञानिक एवं आयुर्वेद के आधार पर ‘धार्मिक व्रतोंका अनुपालन’ करने का उपाय प्रस्तुत किया।
  13. उपवास, व्रतों के पालन से अनेक सामान्य रोगों से मानव मुक्ति प्राप्त करके स्वस्थ जीवन का अनुभव करते-करते मानसिक तनाव से छुटकारा पाकर भगवत्प्राप्ति का सहज-सुलभ साधन भी पा सकता है। ऐसा विश्वास व्यक्त किया गया है।
  14. भारतवर्ष में नव-वर्षारम्भ से अर्थात् चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से संवत्सर पर्यन्त सभी तिथियों में व्रतों का विधान है।
  15. व्रतराज ग्रन्थानुसार मासव्रत, वारव्रत, तिथिव्रत, नक्षत्रव्रत आदि तो प्रसिद्ध ही हैं। सभी व्रत करने सम्भव, तो नहीं हैं तथापि प्रत्येक मास में कम-से-कम एक या दो व्रतों का विशेषकर एकादशी, प्रदोष पालन अवश्य करना चाहिये।
  16. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा अर्थात् नववर्षारम्भ को मुख मार्जन स्नानादि से निवृत्त होने के उपरान्त सर्वप्रथम कड़वे नीमवके पत्तोंवका सेवन करने का विधान है।
  17. केवल चैत्र माह में प्रतिदिन प्रात:काल कड़वे नीम के पत्तों का सेवन करनेसे रक्त शुद्ध होकर अनेक चर्म-रोगोंसे मुक्ति मिलती है। मधुमेह सन्तुलित होता है।
  18. दुर्गाष्टमी से चैत्र नवरात्र-उत्सव का शुभारम्भ होता है। अनेक स्त्री-पुरुष इसमें उपवास रखकर माँ दुर्गा भवानी की उपासना करके दीर्घ शान्ति और सुख प्राप्त करने की कामना करते हैं।
  19. अक्षय तृतीया व्रत का रहस्य व रखने का तरीका वैशाख मास के शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि में ‘अक्षयतृतीया’ एक अत्यन्त शुभ मुहूर्त है। इस पवित्र तिथि को उपवास पूर्वक जल से भरा हुआ मृत्तिका-कुम्भ, फल-पंखा तथा दक्षिणा सहित दान करनेका विधान है।
  20. अक्षय तृतीया तिथि से प्रतिदिन मिट्टी के घड़े में भरा हुआ जल पीना प्रारम्भ करना आरोग्यदायी माना जाता है। मिट्टीके सम्पर्क से जल शुद्ध होता है।
  21. पञ्चतत्त्वों में से ये दो तत्त्व-जल और पृथ्वी शरीर के लिये पोषक बनते हैं। सर्दी के दिनों में बना हुआ तथा अग्निसम्पर्क से पका हुआ मिट्टी का घड़ा अधिक उपयोगी माना गया है। फ्रिजमें रखे हुए जल की अपेक्षा मटके का पानी अधिक लाभकारी है।
  22. श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत उपवास का महत्व – वैदिक वचन है कि चन्द्रमा मनसो जत्सिश्क्षोः सूर्यो अजायत। श्रोत्रद्वायुश नाभ्या आसदंतरिक्षं हेड्नो द्यौ: समवर्त। पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रत्तथा लोकान् अकलप्यन् (यजुर्वेद३१:१२:१३)
  23. अर्थात- महा-पुरुष के मन से उत्पन्न, चक्षु से सूर्य, श्रोत्र (कान) से वायु और प्राण, मुख से अग्नि, सिर से अन्य सूर्य जैसे प्रकाश-युक्त तारगण, से मंगल, शोत्र से दिशाएं, और प्रकार सब लोक तथा नाभि से अन्तरिक्ष उत्पन्न हुए।
  24. नाभि का रोचक रहस्य इसीलिए सच्चे जानकार सिद्ध गुरु शिष्य को कोई भी मन्त्र नाभि पर ध्यान लगाकर जपने के लिए कहते हैं। लभी ब्रह्माण्ड का केंद्रबिंदु है। इस बारे में amrutam के अन्य लेख में बताया जाएगा।
  25. !! चन्द्रमा मनसो जातः!! का मतलब है परमब्रह्म परमात्मा के मन से चन्द्रमा की उत्पत्ति हुई है।
  26. चन्द्रमा शीतल है। कहते हैं कि चन्द्र-किरणों से अमृत की वर्षा होती है। मानव की सम्पूर्ण क्रिया मन से ही होती है।
  27. चन्द्रमा और भगवान् श्रीगणेश का अद्वितीय सम्बन्ध है। इसी दृष्टि से मन की शान्ति और बुद्धि-प्राप्ति-हेतु श्रीगणेशचतुर्थी का उपवास फलदायी होता है।
  28. प्रत्येक मास में दो चतुर्थी आती हैं। अधिकांश लोग कृष्ण पक्षकी चतुर्थी का व्रत करते हैं। दिनभर उपवास रखकर शाम को भगवान् श्रीगणेश का पूजन करके चन्द्रोदय के पश्चात् चन्द्रकिका दर्शन कर भोजन करना उपयुक्त है।
  29. श्रीगणेश चतुर्थी व्रत के फायदे गणेश सहिंता के अनुसार गणेशचतुर्थी का व्रत रखने वाला मनुष्य कभी भी बिमकर नहीं होता। क्योंकि ये मानव शरीर के मूलाधार चक्र के मालिक हैं।
  30. भगवान् श्रीगणेश को तिल-गुड़का नैवेद्य या मोदक अधिक प्रिय है। चन्द्रोदयके पश्चात् भोजन करने से अन्न में उत्पन्न चन्द्रमा का अमृत एवं उसकी शीतलता मन को शान्ति प्रदान करती है।
  31. कोन कोन से व्रत उपवास करना जरूरी है धार्मिक व्रतों में एकादशी, प्रदोष और शिवरात्रि, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, दोनों नवरात्रि आदि का बड़ा महत्त्व है। वर्ष भर में चौबीस एकादशियाँ आती हैं। इनमें विष्णुशयनी प्रबोधिनी एकादशी तथा महाशिवरात्रि-व्रत का अपने-आप में बड़ा महत्त्व है।
  32. यद्यपि सालभर धार्मिक व्रतों का अपार भण्डार है। शिवभक्त साधुजन एवं जैन परम्परा में चातुर्मास-व्रतों के पालन का आरोग्य प्राप्ति की दृष्टि से अनोखा एवं अद्वितीय महत्त्व माना गया है। यदि हम चातुर्मास में धार्मिक व्रतों का सही-सही पालन करें, तो आरोग्यप्राप्ति के साथ-साथ आध्यात्मिक शान्ति भी प्राप्त कर सकेंगे।
  33. पूरे साल हेल्दी बने रहने के लिए चतुर्मास में ये चीजें खाना वर्जित है अन्यथा स्वास्थ्य होगा खराब गुरुपूर्णिमा से दीपावली के बाद की कार्तिक पूर्णिमा काल 4 मास का होता है। इसे चतुर्मास कहते हैं।
  34. चातुर्मास में वात-पित्त-प्रकोप साग-सब्जियों, अरहर की दाल, रात को नमकीन दही, मीट-मांस, मदिरा का त्याग करना श्रेयस्कर होता है। साथ ही एक समय हलका भोजन करना चाहिये।
  35. विभिन्न रोगों से बचने का घरेलू सामान्य उपाय धार्मिक व्रतों का पालन (आचरण)-कर अपने खान-पान पर ध्यान देते हुए ईश्वर की आराधना करना है, इससे शरीर नीरोग तो रहता ही है, आध्यात्मिक सिद्धियां तथा लाभ भी प्राप्त होता है।
  36. चतुर्मास में सब्जी न खाने की सलाह आयुर्वेद के सभी ग्रन्थों में दी गई है। क्योंकि वर्षा-ऋतुमें अनेक सब्जियाँ सड़ती हैं, उनमें कीड़े प्रवेश करते हैं, तालाब आदि का जल दूषित हो जाता है।
  37. मच्छर, विभिन्न प्रकारके कीड़े-कीट वर्षा-ऋतु और शरद्1 ऋतुमें पैदा होते हैं। इन कीड़ों-मकोड़ों से रोग-मुक्ति के लिये धार्मिक व्रतों का विशेष रूप से आयोजन होता है।
  38. आरोग्य की दृष्टि से सप्ताह में कम-से-कम एक दिन उपवास करके उस दिन से सम्बन्धित देवता की आराधना पूजा-अर्चना करना पुण्यदायक है।
  39. रविवार का दिन भगवान् शिव के लिये, सोमवार का व्रत माँ आदिशक्ति को समर्पित है। मङ्गल के व्रत से भूमि व मङ्गल के दोष दूर होते हैं।
  40. गुरुवार भगवान् अपने गुरु या दत्तात्रेय-हेतु, शुक्रवार या मङ्गलवार माता भवानी के हेतु, शनिवार श्रीहनुमान् एवं शनिदेव की आराधना-हेतु व्रत किया जाता है।
  41. रविवार को दुपहर 4.30 से 6 बजे शिवलिंग पर चन्दन इटरयुक्त जल अर्पित करने से जीवन में चमत्कार होने लगता है। सोमवार को शाम के समय देवी दुर्गा की पूजा-अर्चना करके भोजन करना उपयोगी होता है।
  42. उपवास के दिन मध्याह्न के पश्चात् एक समय भोजन करना चाहिये। सामान्यतः दूध, फल, साबूदाना, सिंघाड़ा, मखाना आदि सात्त्विक, सुपाच्य और हल्के पदार्थों का सेवन करना अत्यन्त लाभकारी है। सम्भव हो तो पूर्ण रूप से निराहार एवं निर्जल व्रत करना चाहिये।
  43. स्कंदपुराण के अनुसार अधिकांश व्रतों-त्योहारों में पशुओं को खिलाने का बड़ा महत्त्व है। –
  44. अतः धार्मिक व्रतों का उचित पालन (आचरण) करने से शारीरिक शुद्धि होकर आध्यात्मिक शान्ति भी प्राप्त होगी। इन व्रतों के माध्यम से हम धन-सम्पदा, ऐश्वर्य की भी प्राप्ति कर सकते हैं।

उपवास न करने से होने वाले नुकसान

  • .ऐसे न जाने कितने प्रश्नों की बौछार करके वे स्वयं तो भ्रमित रहते ही हैं, दुर्बल आस्था वालों को डिगा भी देते हैं।
  • आजकल की छोटी-छोटी बस्तियों, कस्बों, गाँवों, शहरों और बड़े-बड़े नगरों में निवास करने वालों की ओर निगाह डालें, तो परिणाम अपने-आप सामने आता है। जरा सी छींक आने, थोड़ा-सा ज्वर होने तथा सर्दी-खाँसी से पीडित होने पर लोग डॉक्टर की शरण में जाते हैं।
  • तुरंत मूत्र तथा रक्त आदि की जाँच कराने की सलाह मिलती है और रिपोर्ट देखकर चिकित्सक इलाज करते हैं।
  • बड़े-बड़े शहरों-नगरों में नर्सिंग होम और विशालकाय हॉस्पिटलों की श्रृंखलाएँ एक गहन साजिश के तहत फैलती जा रही हैं।
  • आज-के युग में कैंसर, ब्लड प्रेशर, मधुमेह, गठिया आदि रोगों से अधिकांश व्यक्ति पीडित हैं। कुछ रोग, तो ऐसे हैं जो धन के साथ-साथ शरीर का भी नाश कर डालते हैं।
  • सुखी संपन्न जीवन के लिए
  • !!ॐ शंभूतेजसे नमः शिवाय!! का कम से कम एक माला जाप करें।
  • हो सके तो राहुकाल में भी रोज एक माला इस मंत्र की जपे।

किसी भी तरह की अशांति, कष्ट, क्लेश, प्राकृतिक या ईश्वरीय प्रकोप, ग्रह दोष, भूत बाधा, पितृदोष, कालसर्प से राहत हेतु राहु की तेल का एक दीपक रात को जलाएं

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