क्या है अमृत–
पहले इसको समझना जरूरी है –
प्राचीन वेद-पुराण और भारतीय धर्मशास्त्रों में
अमृत उत्पत्ति के बारे में बताया गया है कि
अमृत की खोज समुद्र मंथन द्वारा हुई ।
प्रकृति को मथने की यह प्रक्रिया अत्यंत जटिल
थी । इसमें आध्यात्मिक व भौतिक दोनों
क्रियाओं का प्रयोग हुआ था ।
देव और दानव
इसके प्रणेता तथा कारक बने ।
विशेष-अमृतम गोल्ड माल्ट
दुनिया का पहला
अद्भुत उत्पाद का निर्माण कैसे
व क्यों करना पड़ा ।
इसकी जानकारी देने हेतु सतयुग की तरफ लौटना पड़ेगा । अन्यथा
अमृत उत्पत्ति की संक्षिप्त ज्ञान के बिना
यह लेख ब्लॉग कुछ अधूरा सा लगता ।
कैसे और क्यों हुआ था- समुद्र मंथन :
समुद्र मंथन के पश्चात देव और दैत्यों में युद्ध का कारण धन-सम्पदा नहीं था । दोनों के पास अथाह सुख-समृद्धि, रत्न-धातु, स्वर्ण, धनकोष की कमी नहीं थी । कोई भी एक दूसरे से कम नहीं था ।
आपसी विवाद या युद्ध का
कारण लक्ष्मी भी नहीं थी ।
देव-दानव दोनों
अपार सिद्धि-ऐश्वर्य के स्वामी थे ।
दोनों दानी-वरदानी, तपस्वी व योद्धा, वीर सर्वसुविधा सम्पन्न
और परम् शिव भक्त थे ।
तन्त्र-मन्त्र-यंत्र के ज्ञाता तथा
महाशक्तिशाली थे ।
फिर भी आपस में युध्द हुआ । क्यों?
पुराणों में, वेदों में इस युद्ध
का विस्तार से वर्णन है ।
क्या मिला समुद्र-मंथन से–
वेद-पुराणों के अनुसार सृष्टि के कल्याण हेतु
समुद्र मंथन हुआ । इसके परिणाम स्वरूप
14 दुर्लभ व अद्भुत वस्तु मिली, जैसे-
महालक्ष्मी, (श्री हरिविष्णु को मिली) ।
गरल (महाविष) को महादेव ने ग्रहण किया तथा आयुर्वेद प्रवर्तक भगवान धन्वन्तरि जिनके कारण चिकित्सा जगत का प्रारम्भ हुआ ।
महाभारत, शिवपुराण, स्कन्दः पुराण,
भविष्य पुराण एवम हरिवंश पुराण
आदि ग्रंथों में समुद्र-मंथन के विषय में विस्तृत रुप से बताया है । इस मंथन में महाबलशाली,
शक्तिशाली, महाज्ञानी, विशेष यांत्रिक (इंजीनियर) सृष्टि के ईमानदार प्रशासनिक अधिकारी “राहु“की मुख्य भूमिका रही । अमृत बटवारे के फलस्वरूप देवताओं ने राहु के साथ छल किया । दुष्परिणाम यह हुआ कि राहु का शीश कट गया, जिस कारण केतु जैसे खतरनाक
ग्रह का उदय हुआ ।
सारे झगड़े की जड़ था अमृत ।
इन सब 14 रत्नों में अमृत ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण था।
अमृत को लेकर ही
दोनों में घमासान युद्ध हुआ था –
[और अधिक जानकारी
अमृतम मासिक पत्रिका के पुराने अंकों में विस्तार से दी गई है।]
मात्र अमृत ही सबप्रकार से
सभी को स्वस्थ व निरोग रखते हुए इस जीव-जगत को अजर-अमर बना सकता था ।
इसी अमृत की कुछ बूंदे पृथ्वी पर 4 स्थानों पर गिरी, जहां हर 12 वर्ष में कुम्भ स्नान की परंपरा है । लेकिन स्कन्ध पुराण के अनुसार यह अमृत दक्षिण भारत के
“कुम्भकोणम“
अन्नावरम,
कुमारावरम,
दाता वरम
नामक स्थानो पर भी गिरा था।
अमृतम जड़ी-बूटियों की उत्पत्ति का रहस्य-
अमृतम आयुर्वेद के अधिकांश ग्रंथों
में बताया है कि
अमृत की बूंदे पृथ्वी पर गिरने से
अमृतम जड़ी-बूटियाँ उत्पन्न हुई, उन्हीं
हर्ब्स से अमृतम गोल्ड माल्ट निर्मित किया।
उनके नाम इस प्रकार हैं-
आँवला, सेव, हरड़-
इन तीनों प्राकृतिक फलों का
अमृतम आयुर्वेद की एक विशेष
विधि द्वारा मुरब्बा बनाया जाता है,
जिसको बनाने में लगभग 20 से 25
दिन का समय लग जाता है ।
गुलाब–
इसकी पंखुड़ियों से 1 से 2
माह में गुलकन्द निर्मित होता है ।
इन सभी मुरब्बा, गुलकन्द बनने के बाद
पीसकर शुद्ध घी में सिकाई कर
अमृतम गोल्ड माल्ट बन पाता है ।
अश्वगंधा–
अश्व (घोड़े) की तरह
ऊर्जावान बनाने में सहायक है ।
सफेद मूसली-
शक्ति, स्फूर्ति दायक है ।
चिरायता–
पुराने से पुराने ज्वर, मलेरिया नाशक चमत्कारी जड़ी-बूटी (हर्ब्स) ।
भूमि आँवला–
यकृत (लिवर) को
सुरक्षित बनाये रखता है।
मुलेठी–
गले, फेफड़े, कण्ठ रोग नाशक,
बुढापा रोकने में सहायक ।
शंखपुष्पी–
मन्द मस्तिष्क की
मलिनता मिटाये ।
बायबिडंग–
अति सूक्ष्म कृमि नाशक ।
अर्जुन-ह्रदय को हितकारी,
रक्तचाप को सामान्य बनाये रखे
यह आयुर्वेद का अमृत होने से इसे अमृता भी कहते हैं ।
अमृता सर्वरोग नाशक ओषधि है ।
पुर्नरवा–
उदर विकार नाशक ।
भूख बढ़ाता है ।
शुण्ठी –
मसालों में सोंठ के नाम से प्रसिद्ध ।
जीवाणु नाशक । अम्लपित्त (एसिडिटी)
में विशेष लाभकारी ।
कालीमिर्च–
ह्र्दय, कण्ठ, त्वचारोग, बलगम,
श्वांस, पेट के रोग आदि में उपयोगी ।
सौंफ–
आँतो को बलकारक ।
हाजमा पाचक । गेस विकार नाशक ।
जीवनीय शक्ति वर्द्धक ।
धनिया–
गुर्दा व यकृत रोगों में लाभकारी ।
दालचीनी–
शरीर के शिथिल अवयवों व
नाडियों को क्रियाशील बनाये ।
इलायची–
सडनरोधक । बीमारियों को उत्पन्न करने वाले जीवाणु, कीटाणु का नाश करे ।
नागकेशर–
अर्श (बबासीर) के मस्सों को सुखाकर, सूखा मल गलाकर पेट साफ
करने में सहायक ।
महिलाओं के सभी गुप्त रोग नाशक ।
अंजीर–
सूखे मल को ढीला कर पेट तुरन्त साफ करता है । बच्चों के अंदरूनी विकारों
का नाशकर हष्ट-पुष्ट बनाये ।
पाण्डु, पीलिया रोग नाशक ।
सिद्ध मकरध्वज–
बल-वीर्य वर्धक, शक्तिदाता ।
सहस्त्रा वीर्या–
शरीर की बन्द व जाम नाडियों को
क्रियाशील बनाकर खून तथा वीर्य बढ़ाता है ।
अभ्रक भस्म–
बार-बार होने वाले सर्दी-,जुकाम,
कमजोरी,दुबलापन दूर करने में उपयोगी ।
बांझ स्त्रियोँ के लिये अति उत्तम ।
अमृतम गोल्ड माल्ट में डाले गए मुख्य घटक
की फिलहाल संक्षिप्त जानकारी दी जा रही है ।
उपरोक्त जड़ी-बूटियों (हर्ब्स) के बारे में आगे बहुत कुछ दुर्लभ खोज विशेष विस्तृत जानकारियों के साथ प्रस्तुत की जावेगी ।
अतः स्वास्थ्य ही सर्वश्रेष्ठ सम्पदा है ।
ताउम्र स्वस्थ व प्रसन्न रहने,
बुढ़ापे से बचनेके लिए
आज ही अपना महत्वपूर्ण आर्डर देवें ।
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अमृतम गोल्ड माल्ट के बारे
अभी बहुत कुछ बाकी है ।
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