10 हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित महासरताल में है-शेषनाग तीर्थ पार्ट-7
केदारखंड हिमालय ऋषि-महर्षियों, मुनियों की तपस्या स्थली रही है। हमारे भारत के महान महर्षि वैज्ञानिकों ने सन्सार के जन कल्याण के लिए यहां अनेकों वैज्ञानिक, धर्म-शास्त्रों तथा ज्योतिष ग्रन्थॊ की रचना की है, जॊ कि भारतीय संस्कृति के मूल श्रॊत हैं।
कील, भील, किन्नर, गंधर्व, गुर्जर, नाग आदि को उत्तरांचल हिमालय की आदिम जातियों में गिना जाता है।
नागनाथ, नागराजाधार, नगुण, नागेश्वरसौड़, नागणी आदि आदि स्थान यहाँ की जाति से सम्बंधित ग्रामीण क्षेत्र आज भी उपलब्ध हैं।
अति प्राचीन ग्रन्थ स्कन्द पुराण के केदारखण्ड हिमालय में नाग प्रजाति के निवासी होने के पुष्ट प्रमाण मौजूद हैं।
गढ़वाल नागराजाओं का मुख्य मूल स्थान माना जाता है।
सालों-साल से गढ़वाल नागों की लय-ताल से जुड़ा है। गढ़वाल नागवंश में महासरनाग का अतिविशिष्ट स्थान है। नागों के महत्वपूर्ण देवता को बालगंगा क्षेत्र में विशेष श्रद्धा,दर्जा एवं मान्यता प्राप्त है। महासरनाग का निवास स्थान महासरताल है।यह तीर्थ बूढ़ाकेदार से करीब ११ किलोमीटर उत्तर की ऒर लगभग दस हजार (10000) फीट की ऊँचाई पर स्थित है। प्रकृति की अद्भुत आकृति यहां देखने को मिलती है। शिव-शक्ति के सॊन्दर्य से भरपूर, भिन्न भिन्न प्रजातियों एवं दुर्लभ पेड़ों की ऒट में स्थित महासरताल से जुड़ी करीब 1400 सौ साल पुरानी कहानी है।
राजा के यहां जन्मे नाग
बताते हैं कि धुमराणा शाह नाम के राजा का
मैकोटकेमर में राज्य था, इनके पुत्र उमराणाशाह जिसकी कोई संतान न होने के कारण, पुत्र प्राप्ति हेतु शॆषनाग की घनघोर उपासना की थी। महाराज उमराणाशाह तथा उनकी पत्नी फुलमाळा की कठिन तपस्या के चलते शॆषनाग मनुष्य रूप में प्रकट होकर राजा-रानी से कहा, कि – मैं तुम्हारे घर में सिद्ध नागरूप में जन्म लूँगा।
कुछ समय बाद शॆषनाग ने महारानी फुलमाळा के गर्भ से एक मणिधारी नाग और एक इच्छाधारी ने जन्म लिया। ये दोनों नाग-नागिन कभी मानव रूप में तो कभी नाग रूप में परिवर्तित होते रहते थॆ। नाग का नाम महासर (म्हार) तथा नागिन का नाम माहेश्वरी (म्हारीण) रखा गया।
उमराणाशाह की दो पत्नियां थी। दूसरी पत्नी की कोई संतान न थी। सौतेली माँ के सौतेले व्यवहार से कुंठित होकर ये दोनों नाग-नागिन राजयमहल छोड़कर चले गए। नागरूप दोनो भाई बहिनो ने बूढ़ाकेदार क्षेत्र में बालगंगा के तट पर विशन नामक स्थान चुना, जो बहुत ऊंचाई पर स्थित है। यही महासरताल कहलाता है।
विशन में आज भी इनका मन्दिर विध्यमान है।
यहां के रावल पुजारी के पास सुदर्शनशाह द्वारा दिया हुआ नागपूजा विषयक ताम्रपत्र आज भी सुरक्षित है।
‘म्हार’और ‘म्हारीणी’ का ताल नामक दो पुरानी कुदरती झीलें हैं। कहते है नागवंशी दोनो भाई बहिन इन्ही दो तालॊं में निवास करते है।
इस ताल की लंबाई करीब 70 मीटर तथा चौड़ाई 20 मीटर के लगभग है। जबकि ‘म्हारीणी’ ताल वृताकार है। दोनो तालॊं की गहराई का पता नहीं चल पाया।
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