उत्तराखंड में विराजे-,बद्रीनाथ की यात्रा पार्ट-3उत्तराखंड में विराजे-,बद्रीनाथ की यात्रा पार्ट-3

 पार्ट-1 और पार्ट-2 बद्रीनाथ यात्रा में जो अपने नहीं पढ़ पाया वही कुछ और अधूरी जानकारी प्रस्तुत है। आगे शेष पार्ट-4 में दिया जाएगा।
बद्रीनाथ की यात्रा सफल हो, शुभदायक हो, कष्ट-गरीबी मिटे इसके लिए इसका अध्ययन जरूरी है। बिना ज्ञान के अभाव में अक्सर लाभ की जगह हानि होती है।
बद्रीविशाल देते हैं सजा बद्रीनाथ देवालय के ऊपर से नहीं निकलते हेलीकॉप्टर-कुर्सी चली जाती है —
भक्तों में बद्रीनाथ की शक्ति और विश्वास इतना परिपक्व है कि जिस किसी ने भी मन्दिर के शिखर को छुआ, उसकी कुर्सी चली गई।
इंदिरा गांधी, राजीव गांधी एनडी तिवारी, वीरबहादुर सिंह, हरीश रावत एवं लालकृष्ण आडवाणी आदि ऐसे कई गणमान्य नेता रहे हैं, जिन्होंने बद्रीबाबा के ऊपर से हेलीकॉप्टर निकाला, तो उनको कुर्सी गवानी पड़ी। इस भय और विश्वास के चलते ज्यादातर vip लोग मन्दिर के 3 km पहले हेलीपैड से उतरकर बद्रीनाथ मन्दिर में कार से या पेदल जाते हैं।
टिहरी गढ़वाल के राजा की कुंडली देखकर निकाला जाता है कपाट खोलने का महूर्त —
यह परम्परा पिछले 145 वर्षों से चली आ रही है कि पट खोलने के पहले ओर बन्द करते समय शाही परिवार के राजा की जन्म पत्रिका देखकर कपाट खोलने का महूर्त निकाला जाता है। एक मान्यता के मुताबिक
 इन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। मन्त्रोच्चारण द्वारा गर्भगृह के पट खोलते ही राज्य परिवार की सुहागिनों द्वारा पिरा हुआ तिल तेल से  प्रतिमा का श्रृंगार करते हैं। इस पूजा का टिहरी निवासी दर्शन नहीं करते ऐसी भ्रांति भी है। कहते हैं एक बार राजा के दर्शन करने से उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था।
6 महीने साथ रहते हैं उद्वव और पट बन्द होने के दौरान लक्ष्मी जी रहती हैं साथ– यह परम्परा हजारो साल पुरानी है जब मन्दिर के पट खोलकर लक्ष्मीजी को बाहर स्थित लक्ष्मी मन्दिर में ले जाया जाता है एवं उनकी जगह बदरीबबा के बगल से उद्वव को बैठाया जाता है। अनेक नदी-कुंडों के जल से अभिषेक कराकर भक्तों के दर्शन हेतु पट खोल दिये जाते हैं।
कपाट खुलने से 7 दिन पहले लगता है जोशीमठ में मेला
इसे तिगुड़िया उत्सव कहते हैं, इसमें तिगुड़िया देव के अवतारी को चावल, गुड़ और मांस सभी 40 किलो का नैवेद्य लगाकर हजारों लोगों को प्रसाद बतौर बांटा जाता है। इसके बाद जोशीमठ से बद्रीविशाल की डोली यात्रा निर्बाध पूरी होती है। ज्ञात रहे कि पट बन्द होने के बाद बद्रीनाथ की प्रतीक रूप में प्रतिमा को 6 माह तक  जोशीमठ में रखा जाता है। यहां केरल के रावल पण्डित इनकी पूजा करते हैं।
केदारनाथ बाबा भी 6 महीने उखीमठ में विश्राम करते हैं —
यक्ष-किन्नर भूत भैरव
इंद्रा-चन्द्र दिवाकरम।
विष्णु-ब्रह्मा करत स्तुति
केदारनाथ महेश्वरम।।
उखीमठ में स्थित एक प्राचीन शिवालय ॐ ओमकारेश्वर मन्दिर के मठाधीश केदार बाबा की पंचमुखी डोली केदारधाम ले जाने का महूर्त महाशिवरात्रि की रात में निकालते हैं। यह यात्रा जंगल चट्टी, भीमबली, लिनचोली तथा रामद्वारे होते हुए केदारनाथ पहुंचती है।
प्रारब्ध के ठीक हुए बिना सफलता नहीं
आकाश, अग्नि, वायु, जल और भूमि यानि पंचतत्व के मालिक तथा अविष्कारक महाभूतेश्वर नाथ बाबा केदार महादेव इस ब्रह्माण्ड के प्रकाश पुंज हैं। शिव की हर लय-ताल पर सृष्टि का निर्माण और विनाश होता है।
वाराह पुराण एवं स्कन्द पुराण में भोलेनाथ ने देव-दानवो, ऋषि-मुनि, योगी, साधु-सन्त, महात्मा, अघोरी-अवधूत और सांसारिक  लोगों को तीर्थाटन का उपदेश ओर निर्देश दिया है, ताकि लोग तिल-तिल तकलीफ तथा पापों से मुक्ति पा सकें।
भाग्य जगाने के लिए जरूरी है तीर्थयात्रा
हमारे दोष, दुःख-दुर्भाग्य की वजह पूर्व जन्म के पाप होते हैं, जब तक प्रारब्ध ठीक नहीं होगा, तब तक भाग्योदय होना बहुत मुश्किल रहता है। ज्योतिष ग्रंथों में ऐसा उल्लेख है। पिछले पाप कर्म के कारण हमारी कुंडली के गृह-नक्षत्र ऊर्जाहीन हो जाते हैं। पद्मपुराण के एक श्लोक का अर्थ में लिखा है कि कोई भी मानव अपने अच्छे शुभ कर्मों के द्वारा महा मानव यानि सिद्ध पुरुष बनकर ईश्वर का आसन पा सकता है जैसे- सदगुरु साईं बाबा,
भगवान श्रीकृष्ण,  श्रीराधा,
भगवान बुद्ध,  श्रीराम
जगतगुरु आदिशंकराचार्य,
देवरहा बाबा,
स्वामी विशुद्धानन्द जी,
महर्षि रमण तिरुअन्नामलय तमिलनाडु,
बाबा हथियाराम तिरुपति
और वर्तमान में प्रेममन्दिर मथुरा के श्री श्री कृपालुजी महाराज ये सब अपने सद्कर्मो, सद्प्रयासों द्वारा मानव से महामानव बने।
इन परमात्मा स्वरूप महान आत्माओं को अमृतम परिवार शत-शत नमन-प्रणाम करता है।
केदारनाथ के दर्शन करने के बाद ही बद्रीनाथ धाम के दर्शन लाभकारी हैं —
तत: केदारभवंन गच्छेतपापापनुत्तये। केदारनाथं सम्पूज्यsज्ञान तत: सुधी।।
कार्यम बदरि केशस्य दर्शनम शुभदायकम। अकृत्वा दर्शनम वैश्य केदार स्याधनाशीन:।। यो गच्छेदबद्रीम तस्य यात्रा निष्फलतां  वृजेत।
तस्मात्सर्वप्रयत्नेन पूर्व केदार दर्शनम।। स्कंदपुराण केदारखंड
अर्थात केदारनाथ के दर्शन  पश्चात ही बद्रीनाथ के दर्शन करना शुभकारी रहता है, अन्यथा यात्रा निष्फल होती है। प्राणी पितृदोष से पीड़ित होता है। बद्रीनाथ से पहले क्यों करना चाहिए केदारबाबा कि दर्शन इसकी भी एक कथा है, जिसे अगले किसी लेख में बताया जाएगा। संक्षिप्त में बस इतना जानना जरूरी है कि भगवान विष्णु ने भोलेनाथ को वचन दिया था कि जो भी कोई भक्त केदारनाथ से पहले मेरे दर्शन करेगा उसकी यात्रा निष्फलित तथा व्यर्थ रहेगी,  उसे कोई लाभ नहीं होगा। ऐसा क्यों कहा था-विष्णु पुराण की यह कहानी बताना बाकी है। इस विषय पर संक्षिप्त जानकारी बद्रीनाथ यात्रा पार्ट-1 में दी जा चुकी है।
पैदल ही करें उत्तरांचल की यात्रा
जीवन को सफल और ऐश्वर्ययुक्त बनाने के लिए उत्तरांचल की यात्रा पैदल ही करें। बड़े-बुजुर्ग, असहाय, कमजोर भक्तों को कोई दोष नहीं बताया है।
एक श्लोक के मुताबिक
गोयाने गोवध: प्रोक्तो वैफलयम ह्रययानत:। अर्द्धफलं नरारोहे तस्माद्यानम विवर्जनेत।।
अर्थ- बैल, नन्दी, गाय की सवारी करने से गोवध का पाप लगता है। खच्चर, घोड़े से जाने पर यात्रा निष्फल होती है। नरवाहन, पिट्ठू आदि से जाने पर यात्रा का लाभ आधा ही मिलता है।
कैसे करें यात्रा का श्रीगणेश
घर से निकलते समय अपने कुल देवता, इष्टदेव, ग्रामदेवता, स्थान देवता और अपने पूर्वजों का स्मरण कर एक दीपक जलावें। सफेद पुष्प अर्पित कर मख्खन-मिश्री का नैवेद्य अर्पित कर यात्रा सफल होने की कामना करें एवं उनसे भी साथ चलने का निवेदन करें।
छोटे चार धाम की यात्रा हरिद्वार से आरम्भ करें-  
हरकी पौढ़ी गंगातट पर पहुंचकर उत्तराखंड के सभी देवी-देवताओं से भावुक होकर यात्रा सफलता की प्रार्थना कर वहां के क्षेत्रपालों से अगले पड़ाव के यात्रा की आज्ञा लेवें
नमो नमस्ते भगवन्नील भैरव क्षेत्रप। अनुज्ञा•देहि यात्रायै धन्य: 
स्याम त्रिजगत्सु वै।।
बहुत ही भवविभोर होकर प्रार्थना करे कि उत्तराखंड के रक्षक और केदार-बदरी के द्वारपाल, शिवगण क्षेत्रपाल, नील भैरव आपको प्रणाम है। इस पावन तीर्थ के दर्शन की मुझे आज्ञा और मार्गदर्शन देकर कृतार्थ करें, ताकि मैं तिलों लोकों में धन-धान्य से परिपूर्ण होकर धन्य हो जाऊं।
पितरों का शांति विधान
मेरे पीड़ित एवं भटकते पितरों-पूर्वजों को अपने समक्ष स्थान देवें। अब मेरे जीवन में कोई भी दुःख कष्ट न आ सके। मैं अपने कर्तव्यों को जिम्मेदारी पूर्वक निभाते हुए अपनी पत्नी सहित बड़े सकून से शिवधाम में आ सकूँ। मुझे हर बार अपने दर पर बुलाते रहें।
संगम या प्रयाग किसे कहते हैं
यह बहुत विशेष जानने योग्य बात है। ज्यादातर नई पीढ़ी को यह ज्ञात नहीं है। संगम या प्रयाग उस स्थान को कहते हैं जहां दो या इससे अधिक नदियों का मिलन होता है। प्रयाग या संगम की खोज जिन्होंने की, उन्हीं के नाम पर उस तीर्थ का नाम रख दिया गया 
जैसे- दानवीर राजा कर्ण ने कर्णप्रयाग खोजा, तो उसका नाम कर्णप्रयाग के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
यात्रा मार्ग में बहुत से ज्ञात-अज्ञात जल क्षेत्र हैं। इन संगम, प्रयाग, कुण्ड या तालाबों के किनारे जाकर जल में स्नान कर गीले बदन, दोनों हाथों में जल लेकर अपने पितरों का स्मरण करते हुए उन्हें अर्पित करें। यदि कुछ मेवा-मिष्ठान पुष्पादि जल में छोड़कर, दीपक भी जला सकें, तो अत्यंत शुभदायकम होता है।
पोथियों के पोथन्ना
यात्रा किसके लिए नुकसान देह है
भ्रमन्तो पूज्यते योगी, 
भ्रमन्तो पूज्यते नृप:।
भ्रमन्तो पूज्यते विद्वान, 
भ्रमन्ती नांरी विनश्यति।।
पुरानी पोथियाँ यानि पुस्तके कहती है कि भ्रमण करने वाला योगी, राजा और विद्वान पूज्यनीय हो जाता है।
हमारे अनुभवी बुजुर्ग मानते थे कि यदि बच्चे का दिमाग कमजोर हो या एकाग्रचित्त न हो, तो के अधिक से अधिक घुमाना चाहिए। कहने का आशय यही है कि व्यक्ति जितना घूमेगा, उतना ही परिपक्क और योग्य बनेगा। नांरी का अधिक प्रवास अनुचित कहा है।
तीर्थयात्रा के फायदे
यात्रा से हमें बहुत कुछ मिलता है।
यात्रा यथार्थ का बोध कराकर भ्रांतियां मिटाती हैं। यात्रा की यादें स्मरणीय रहती हैं। यात्रा का अर्थ है-एक स्थान से दूसरी जगह जाना। प्रस्थान, सफर, प्रवास, तीर्थाटन, प्रतान आदि।
हिंदी शब्दकोश में यात्रियों को देव-दर्शन करने वाले पण्डे या ब्राह्मण को यात्रीबल कहा है। यात्रा करने वाले व्यक्ति को यात्रिक बताया है।
यात्रा के लिए यान, विमान, वाहन तथा यापन यानी रहने-,खाने के अलावा याबू अर्थात छोटा घोड़ा, खच्चर, टट्टू भी जरूरी है।
एक परम्परा यह भी है की यात्रा पर निकलने से पहले सुहागिन महिलाएं अपने पैरों में याबुक यानि महावर लगाकर प्रस्थान करती थी। यात्रा का प्रत्येक याम अत्यंत आनंददायक व्यतीत होते हैं याम यानि प्रहर यह समय की एक इकाई है, 24 घण्टे में आठ याम या प्रहर होते हैं।
यामल नामक एक अद्भुत तांत्रिक ग्रन्थ यात्रा के समय ही रचा गया था। यात्रा में यातायात की वजह से यत्न भी बहुत होती है। धर्म यात्री याचक ईश्वर से क्षमायाचना करता है।
पण्डों के लिए परमात्मा का रूप होते हैं यात्री
उत्तराखंड के पण्डों के लिए यात्री यजमान यानी अतिथि की तरह होते हैं। यात्रा यात्री को यश-यशस्वी, यशोधन बनाती है। युद्ध रहित इस भाग में कभी मुस्लिमों या यवनों ने कभी आक्रमण नहीं किया। अतः भारत के प्रत्येक परिवार को इस तीर्थक्षेत्र की यात्रा अवश्य करना चाहिए।
यात्रा बिना जीवन व्यर्थ और वन समान है-
जीवन से “जी” शब्द निकलते ही वन बचता है।
सम्पूर्ण भूमि भी वन है। बिना शिव के मानव मन भी वन ही है। जीवन को ऊर्जावान बनाने के लिए  तीर्थयात्रा करते रहना चाहिए। यात्रा से अन्तर्मन पवित्र होता है। सिद्ध सन्यासी, परमहंस और योगी हमेशा अंदर की यात्रा में तल्लीन रहते हैं। यात्रा से यादों की श्रृंखला बनती है। यात्रा यारों के साथ हो, तो चार चांद लग जाते हैं।
यात्रा से बच्चों में ज्ञान का विस्तार और बुद्धि का विकास होता है।
 हिंदी शब्दकोश में जी के अनेक अर्थ हैं- जी
 जान, जीव, मन, चित्त, तबीयत आत्मा, इच्छा आदि।
टेक्निकल युग में  जी का मतलब 2g, 3g, 4g  से है और अध्यत्मिक दृष्टि से शिवजी, गणेशजी, विष्णुजी आदि  सबके जी में बसे हैं।
  प्यार करने वालों की निगाह में जी का अर्थ कुछ अलग है, वे कहते हैं की जी लग लग जाए, तो जी न लगाएं। प्यार प्रेम में आप से फिर तुम हुए और तुम से तुनमा हो गए वाली बात चरितार्थ होती है।
यात्रा करने से
प्रकृति की परिक्रमा, अवलोकन और परमात्मा के दर्शन से मानसिक विकारों का क्षय हो जाता है। यात्रा ईश्वर की हो या अन्दर की दोनो ही जीवन के लिए हितकारी हैं। यात्रा से सकारात्मक ऊर्जा में बढ़ोत्तरी होती है। पॉजिटिव विचारों से ही परम आनन्द की प्राप्ति होती है। यात्रा से शारीरिक तकलीफें मिटकर पापों का नाश हो जाता है।
भाग्योदय दायक होती हैं तीर्थ यात्राएं-
पदयात्रा करते समय कोई मन्त्र, श्लोक, स्त्रोत गुनगुनाने से अन्तर्मन ह्रदय संगीत की तरंगों से लयबद्ध होकर, शरीर पुष्प की भांति हल्का हो जाता है।
मुक्तिकोउपनिषद, सूर्योपनिषद, रहस्योउपनिषद, कठोउपनिषद आदि अति प्राचीन ग्रंथों में शिव को समझने हेतु हरेक प्रसन्न का उत्तर है।
उत्तराखंड की यात्रा शिंवलिंग के जलहरी की साधना है। सम्पूर्ण विश्व में आप किसी भी शिवालय में जाकर देखेंगे, तो पाएंगे कि शिंवलिंग की जलहरी या अरघा उत्तर की तरफ होता है। यदा-कदा ही कहीं-कहीं जलहरी का मुख पूर्व-पश्चिम की ओर होता है। उज्जैन का महाकाल ज्योतिर्लिंग को तांत्रिक शिंवलिंग होने से इनकी जलहरी दक्षिण की तरफ है। इसका वैज्ञानिक रहस्य वेदों में समाहित है।महाकाल कल, काल यानी समय एवं मृत्यु के मालिक हैं।
अवधूत शिव सन्त बताते हैं की धर्म से जुड़ा हर प्रसन्न का उत्तर यानि जबाब उत्तर दिशा में होने से शिंवलिंग की जलहरी उत्तर दिशा की तरफ है। हिमालय हो स्वर्ग का रास्ता सब उत्तर दिशा की तरफ ही है।
सनातन धर्म का रहस्य नामक पुस्तक में लिखा है कि
उत्तरांचल में गन्धर्व, किन्नर, भूत-पिशाच, दैत्य-दानव, रुद्र देवता, शिवगण, असंख्य देवी-देवता, ब्रतधारी मुनि-महात्मा, हठयोगीऔर ऋषि-महर्षि सब सन्सार के कल्याण एव स्वयं की मुक्ति के लिए यहां वर्षों से तपस्यारत हैं।
उत्तराखंड के तीर्थाटन में आने वाले
बद्रीनाथ, पँचबद्री, केदारनाथ तथा पंचकेदार सहित लघु चारो धाम की यात्रा करने वाला पथिक कभी पथभ्रष्ट नहीं होता। अनंत जन्मों के पाप-शाप का नाश, कालसर्प-पितृदोष और अनेक अज्ञात पापों का स्वतः ही निवारण हो जाता है।
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