वातविकार कितने प्रकार के होते है | Learn about vata dosha imbalances with Amrutam

वातविकार कितने प्रकार के होते हैवातविकार कितने प्रकार के होते है

और उनके
*‎लक्षण के बारे में पिछले ब्लॉग (लेख) से*
आगे पढ़िए ।

अमृतम आयुर्वेद के अनुसार दवाइयों की संख्या,
मात्रा कम से कम व सेवन विधि ज्यादा अधिक
समय तक करने से शरीर में जीवनीय शक्ति
क्षीण नहीं होती ।

अमृतम अषधियाँ शीघ्र असरकारक भी हैं
ओर दूरगामी परिणाम भी विशेष लाभकारी हैं
इसे नियमित लम्बे समय तक लेते रहने से
रोगप्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है ।
जिससे शरीर में रोग-रोगाणुओं विकसित
नहीं हो पाते ।

*पिछले ब्लॉग में मांसगत वात वायु के बारे
में विस्तार से बताया गया*।
शेष आगे पढ़ें—

*‎(४) मेदोगत वात वायु*

चर्बी में वायु होने
से, तब सारे लक्षण साँसगत वातवायु
समान होते हैं । इसमें थोड़ी पीड़ा वाली
गाँठे औऱ फोड़े होते हैं  ।

*अमृतम उपाय* (इलाज)- स्वाइनकी टेबलेट
2-2 गोली 2 या तीन बार चाय से ।
ऑर्थोकी माल्ट 1-1 चमच्च 2 या 3 बार
गर्म दूध से एक तक लगातार लेवें ।
कायाकी तेल  पूरे शरीर मे लगाकर
गुनगुने पानी से स्नान करें ।

*(५) हड्डिगत वातवायु*

जब दुष्ट
विकार वायु हड्डियों में ठहर जाती है,
शरीर की शिथिलता कम कर अस्थियों
की संधियों, जोड़ों, घुटनों में तोड़ने
सी पीड़ा होती है । संधियों में शूल
भयंकर दर्द होता है । मांस और बल
क्षय या नाश होकर नींद नहीं आती
एवम बल पीड़ा होती है । हड्डियां कमजोर
हो, गलने लगती हैं । हड्डियों वजोडों में
सूखापन आ जाता है जिससे नाड़ियां
सख्त होकर दर्द से कराह उठती हैं ।

*अमृतम उपाय*- शर्तिया इलाज यही
है कि नियमित *ऑर्थोकी गोल्ड कैप्सूल*
स्वर्ण भस्म,वृहत्वात चिंता मणि रस,
‎ योगेंद्र रस, त्रिलोक चिंतामणि रस,
‎रसराज रस सभी (स्वर्णयुक्त)
‎एवम गुग्गुल, त्रिकटु, सल्लकी, त्रिफला,
‎रसना, दशमूल आदि असरकारक
‎योगों से निर्मित है ।

‎*ऑर्थोकी गोल्ड कैप्सूल* (स्वर्णयुक्त)
रोज एक गर्म दूध के साथ 1 माह तक लेवे ।
ऑर्थोकी चूर्ण 1-1 चम्मच से सुबह-शाम
जल से लेवे ।

*ऑर्थोकी पैन आयल* धूप में बैठकर
दर्द के स्थान पर हल्के हाथ से मालिश
करे ।

*अमृतम टेबलेट* 2-2 गोली दो बार
*‎सादे जल से लेवें ।

असाध्य और  जटिल वातविकार
ग्रहों की मार है । पुरानी बात है-
दवा के साथ दुआ की भी जरूरत है ।
इस रोग के कारक राहु व शनि हैं ।

*अध्यात्म उपाय* अमृतम द्वारा
निर्मित *राहुकी तेल* के दो दीपक
रोज राहुकाल में नियमित 54 दिन
घर या शिव मंदिर में जलावें ।

इस प्रयोग से वात रोगों के साथ-साथ
दुःख, चिंता, तनाव, क्रोध, बेचेनी,
दरिद्रता, कष्ट-क्लेश, कालसर्प,
पित्तरदोष का भी नाश करेगा ।
पिछले 30 वर्षों में पीड़ितों को
बहुत ही शुभपरिणाम प्राप्त हुआ हैं ।
*शनि प्रिय तिल, बादाम, जैतून
चंदनादि तेलों* से निर्मित एक
खुशबूदार तेल *अमृतम मसाज आयल*
प्रत्येक शनिवार पूरे शरीर मे लगाकर
स्नान करें ।

किसी अपाहिज, असहाय, गरीब
स्त्री और पुरुष को प्रत्येक शनिवार
दोनों को 1-1 शीशी दान करें ।
लाभ होने पर 7 शनिवार लगातार
यह चमत्कारी प्रयोग कर सकते हैं ।
खानपान के अलावा क्यों सताता है
वातविकार । ये ज्योतिष का विषय है
इस विषय पर कभी बिस्तर से वैज्ञानिक
विश्लेषण किया जाएगा ।
*अभी और अनेक वात-विकार बाकी हैं,
और अधिक जानने हेतु पढें
देखें, लाइक, शेयर करें
*amrutam.co.in*

।।अमृतम।।
   कष्ट-क्लेशों का काम ख़त्म

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