पंचाक्षर मंत्र जपने की विधि
- शिव पुराण के अनुसार जो भी साधक इसे दिन में 11 बार पाठ करता है, तो उसके ऊपर ग्यारह रुद्रों की कृपा होने लगती हैं। फिर रुलाने वाले रुद्र प्रसन्न होकर दुर्भाग्य को भगा देते हैं।
- सुबह स्नान कर बिना अन्न लिए एक दीपक देशी घी का और एक दीपक राहु की तेल का जलाकर सर्वप्रथम सूर्य का ध्यान करते हुए इस शांति पाठ एक या 3 बार बोलकर अपनी नाभी को सुनाएं
ॐ असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।।
मृत्योर्मा अमृतम् गम।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।।
- ॐ नमः शिवाय को ही ज्यादातर लोग पंचाक्षर मंत्र मानते हैं। दरअसल यह सम्पूर्ण मंत्र नहीं है। इस शिव मंत्र का रहस्य बहुत महान है। इस लेख में न, म:, शि, वा, य शब्दों का पूरा मंत्र अर्थ सहित जानेंगे।
सम्पूर्ण पंचाक्षर मंत्र अर्थ सहित
न से
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्ग रागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै ‘न’ काराय नमः शिवाय।।१।।
- अर्थात (न शब्द से शुरू) जिनके कण्ठ में नागों का हार है, जिनके तीन नेत्र हैं, जो अपने शरीर पर भस्म का लेप लगाये रहते हैं, दिशायें ही जिनका वस्त्र हैं (अर्थात् जो नग्न रहते हैं), ऐसे नित्य शुद्ध, महेश्वर ‘न’ कार स्वरूप भगवान् शिव जी को प्रणाम है।
“मः” से
मन्दाकिनी-सलिल-चन्दन- चर्चिताय,
नन्दीश्वर- प्रमथ – नाथ-महेश्वराय।
मन्दारपुष्प-बहुपुष्प-सुपूजिताय
तस्मै ‘म’ काराय नमः शिवाय॥२॥
- अर्थात गडङ्गाजल, चन्दन, मदार (आक या अकौआ) तथा अन्य पुष्पों से जिनकी सुन्दर विधि से पूजा की जाती है, उन नन्दी के अधिपति प्रमथ गणों के स्वामी महेश्वर ‘म’ कार स्वरूप भगवान् शिव जी को प्रणाम है।
शि से
शिवाय गौरि-वदनाब्जवृन्द – सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्री नीलकण्ठाय वृषध्वजाय, तस्मै ‘शि’ काराय नमः शिवाय॥३।।
- अर्थात सबका कल्याण करने वाले, भगवती के मुख रूपी कमल को विकसित (प्रसन्न) करने के लिए सूर्य रूप, दक्ष यज्ञ- नाशक तथा वृषभ (बैल) के चिह्न की ध्वजा वाले, सुशोभित नीले कण्ठ वाले ‘शि’ कार स्वरूप भगवान् शिव को नमस्कार है।
वा से
वसिष्ठकुम्भोद्भव गौतमार्य-मुनीन्द्र देवार्चित – शेखराय।
चन्द्रार्क – वैश्वानरलोचनाय तस्मै ‘व’ काराय नमः शिवाय।।४॥
- अर्थात वसिष्ठ, अगस्त्य तथा गौतम आदि श्रेष्ठ ऋषियों तथा इन्द्र आदि देवताओं ने भी भगवान भोलेनाथ के मस्तक की पूजा की है, चन्द्रमा, सूर्य, अग्नि जिनके नेत्र हैं, उन ‘व’ कार स्वरूप भगवान् शिव को नमस्कार है।
य से
यक्षस्वरूपाय जटाधराय, पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय, तस्मै ‘य’ काराय नमः शिवाय॥५॥
- अर्थात यक्ष का रूप धारण करने वाले जटाधारी, हाथ में धनुष लिए हुए सनातन दिव्य पुरुष दिगम्बर देव ‘य’ कार स्वरूप भगवान् शिव को नमस्कार है:।
पंचाक्षर मंत्र जपने के फायदे
पञ्चाक्षरमिदं प्रोक्तं, पठेच्छिव सन्निधौ।
शिव-लोक-मवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥
- अर्थात जो कोई भी साधक घर या मन्दिर में भगवान् शिव अथवा शिवलिंग के समीप उनके इस पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ करता है, उसे शिव लोक की प्राप्ति होती है । ऐसा शिवभक्त शिवालिक में महादेव के साथ प्रसन्न रहता है ।
- अंत में 5 बार नीचे लिखे नाग गायत्री मंत्र का जाप अवश्य करें, ताकि राहु की दयादृष्टि बनी रहे।
।ऊँ नाग कुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्पः प्रचोदयात्।
पाठ जप के फायदे
- उपरोक्त प्रयोग विधि अनुसार इस पंचाक्षर मंत्र/स्तोत्र का नियमित सुबह शाम पाठ से निम्नाकिंत दोष, क्लेश, परेशानी पूरी तरह शांत हो जाती हैं। हमेशा के लिए जड़ से दूर होने वाली समस्याएं
- धन की कमी, गृह क्लेश, मानसिक अशान्ति, नकारात्मक विचार, विवाह व उन्नति में रूकावट।
- रोग, परेशानी, उच्चाटन तथा किसी काम में मन न लगना आदि।
- इन सब तकलीफों का कारण राहु का प्रकोप है। कालसर्प, पितृदोष, राहु, केतु, शनि एवं ग्रहो का दुष्प्रभाव है। इसकी शांति के लिये सुबह-शाम या राहुकाल में प्रतिदिन RAAHUKEY oil का दीपक जलाकर ऊपर प्रकाशित मन्त्र का जाप करे, तो निश्चित ही हर क्षेत्र में कामयाबी मिलेगी। 54 दिन लगातार यह प्रयोग सुख, सौभाग्य, सफलता, समृद्धि ऐश्वर्य एवं चमत्कारी परिणाम देने में सहायक है।
- भय-भ्रम, चिन्ता मिटाने में सहायक दुर्भाग्य, दुःख – दारिद्र (गरीबी) से मुक्ति एवं वाद-विवाद चोरी, दुर्घटना से बचने व मन की प्रसन्नता के लिए राहु शिवलिंग कार्ड को निशुल्क मंगाकर अपनी शर्ट में ऊपर की पॉकेट/जेब में रखें।
प्रयोग साधना काल 54 दिन
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