क्या केले की जड़ खाकर लड़की नपुंसक बन जाती है ?

  • केले की जड़ खाने से लड़की या स्त्री नपुंसक कभी नहीं बनती। बल्कि पुरुषों की कामवासना शान्त हो जाती है। केला ही नारी का ठेला चला रहा है।
  • बाजार में थैला लेकर घूमने की मजबूरी इसी केले के कारण होती है। आदमी की जेब में अगर धैला नहीं तो स्त्री के लिए मात्र वो मिट्टी का ढेला है।
  • केले की जड़ खाने से लिंग सड़ जाता है। फिर स्त्रियों के फड़ या महफिल में शर्मिंदगी उठानी पड़ती है।

केला एक झमेला है

  • सीधा और लम्बा केला महिलाओं के लिए विशेष उपयोगी है। ये केला मर्दों के केंद्र में स्थित है। रात में इस्तेमाल किया जाता है।
  • टेड़ा केला कोई भी स्त्री पुरुष, बच्चे, बुजुर्ग खा सकते हैं। इसे रात में नहीं खाना चाहिए अन्यथा कर असंतुलित होता है।
  • केला आम्रादिफलवर्गः की ओषधि है। यह उदर रोगों में कारगर है। खासकर जब आंतों में सूजन, रूखापन, जख्म, पेट में अल्सर हो, तो दो केले खाली पेट इलायची, सेंधा नमक के चूर्ण के साथ धीरे धीरे खाना चाहिए।
  • स्कावधअन्य रखें कि केला खाने के बाद तुरंत पानी, चाय न पिएं। दूध ठंडा लेना हितकारी होता है।
  • अथ कदलीभेदान् गुणनिर्देशपूर्वकमाह

माणिक्यमर्थ्यामृतचम्पकाया भेदाः कदल्या बहवोऽपि सन्ति।

उक्ता गुणास्तेष्वधिका भवन्ति निर्दोषता स्याहलघुता च तेषाम्॥ (भावप्रकाशनिघण्टु)

  • केला के कच्चे फल-स्वादिष्ट, शीतल, विष्टम्भक, कफकारक, गुरु, स्निग्ध एवम् पित्त, रक्तविकार, प्यास, दाह, क्षत, क्षय, तथा वात को दूर करने वाले होते हैं।
  • केला का पके फल – स्वादिष्ट, शीतल, विपाक में मधुर रसयुक्त, वृष्य ( वीर्यवर्धक), बृंहण ( रस-रक्तादिवर्धक ), रुचि तथा मांस को बढ़ाने वाले एवम् भूख, प्यास, नेत्ररोग तथा प्रमेह के नाशक हैं।
  • खाने वाला केला टेड़ा, मुलायम, लचीला, मीठा होता है जबकि लगाने वाला केला सीधा, खड़ा और कठोर होता है।
  • बिना हड्डी वाला केला के कारण ही संसार का मेला है। यह जनसंख्या में वृद्धि करने में विशेष भूमिका निभाता है।
  • श्यरीर का सारा मैला निकालकर मानसिक सुकून देता है। केला छोटा होने पर बीबी पास नहीं रहती और वो व्यक्ति अकेला रह जाता है।
  • अकेला केला ही दुनिया की पापुलेशन बढ़ाने में लगा हुआ है। ये कभी थकता नहीं है और न हर मानता है।
  • लुगाई की लात खाकर भी आदमी केला पेलने पर मजबूर होता है। केला का मेंला निकलने पर स्त्री पुरुष दोनों को शारीरिक और मानसिक शान्ति मिलती है।
  • एक तो केला अकेला होने के बाद भी केला ही कहलाता है और आंतों को चिकनाहट प्रदान कर सूखे मल को गलाता है।
  • केला हमेशा ठेला पर दिखाई देता है। गाँव शहर कहीं भी मेला लगा हो तो केला जरूर मिल जाएगा।
  • फलों में केला एक ऐसा फल है जिसका कोई चेला नहीं है। केला कभी भी मैला, गंदा नहीं होता क्योंकि केले पर छिलका चढ़ा रहता है। इसे छीलकर खाने से जी हल्का हो जाता है।
  • केला खरीदने के लिए घर से थैला अवश्य ले जाएं। केला व्रत उपवास में भी उपयोगी है।
  • केला खाते हुए आप चल अकेला चल अकेला। गाना गा सकते हैं।
  • केला संसार का पहला एक अहंकार रहित फल है । ये कभी भी नहले पर दहला नहीं मारता।
  • बस केला कभी भी पेला पाली यानी अधिक मात्रा में न खाएं। एक दिन में 3 केले से अधिक न खाएं अन्यथा त्वचा रोग, शीत पित्त की समस्या हो सकती है। केला खाने बाद इलायची अवश्य खाएं, ताकि जल्दी पच जाएगा।

केला को अपना चेला न बनाएं

  • केला खाने के अनेक नुकसान है। मोटे लोगों को कम खाना चाहिए। केले में कैलोरी की मात्रा बहुत ज्यादा होती है, जो वजन बढ़ाती है। इसलिए जिन लोगों का वजन ज्यादा होता है, उन्हें केले के सेवन से बचना चाहिए।
  • केले में प्रोटीन कम होता है, जिस कारण इसके सेवन से मसल्स कमजोर हो सकते हैं।
  • भारत में ज्यादातर लोग केले के छिलके से अधिक स्त्री की बातों से फिसल जाते हैं।
  • मर्द के पास मजबूत ह्रदय और लिंग होना चाहिए। केले के छिलके नहीं हो कभी भी फाइल जाए।
  • केले में पोटेशियम होता है, वर्कआउट के बाद रूटीन में केला खाना फायदेमंद हो सकता है।
  • केले में विटामिन बी6 पाया जाता है जो दिमाग की ताकत बढ़ाने में लाभकारी है और इसके सेवन से याददाश्त तेज होती है।

उत्तृष्णानेत्रगदहृन्मेहनं रुचिमांसकृत्।।

  • केला के संस्कृत नाम – कदली, वारणा, मोचा, अम्बुसारा तथा अंशुमतीफला ये सब।
  • केले के भेदों के नाम – माणिक्यकदली, मर्त्यकदली, अमृतकदली तथा चम्पककदली इत्यादि केले के बहुत से भेद हैं।
  • उक्त भेदों के गुण—ज़ो गुण सामान्यरूप से पूर्व में केले के कह आये हैं वे सब इनमें विशेष रूप से रहते हैं तथा ये निर्दोष एवं लघु भी अपेक्षाकृत अधिक होते हैं। केले के फूल एवं कन्द के गुण आगे शाकवर्ग में दिये हुवे हैं।

केले के विभिन्न नाम

  • हिंदी में- केला, कदली, केरा। बंगाली में – केला, कला। मराठी में० केल। गुजराती में- केला। कन्नड़ – बालि। ते० – अरटि। ता० – वालै। फारसी – मोज़, मोझ । अ० – तल्ड् | अंग्रेजी में – Plantain (प्लॅन्टेन) । ले०- Musa sapientum Linn. ( म्यूसा सेपिएन्टम् ) | FAm Musaceae (म्यूसेसी)
  • केले का वृक्ष प्रायः सब प्रान्तों में होता है। फलने पर इसका पेड़ नष्ट हो जाता है। अन्तर्भूमि शायी कन्द से अंकुर निकल वृक्ष तैयार हो जाता है।
  • केले के बड़े बड़े लम्बे पत्ते मुलायम होते हैं! हवा के झोकों से जगह २ फट जाते हैं। इसके पत्तों पर भोजन करते हैं।
  • भारतवर्ष में उत्पन्न होने वाले फलों में आम के बाद केला ही है। सब प्रकार के केलों में बम्बई का लाल केला, कलकत्ते का चाटिम केला, चम्पक केला (पीला केला) प्रशंसा के योग्य है।
  • पर्वती केला, काला केला, राजभोग, मानभोग, चीनिया आदि केले भी बढ़ियां गिने जाते हैं। अच्छी किस्म के फलों में बीज नहीं होते।
  • केले की दो जातियां ( Species ) होती हैं। उपर्युक्त म्यू० सेपिएन्टम् में फल छोटे होते हैं तथा कच्चे खाये जा सकते हैं तथा दूसरी म्यू०पॅराडिसिका ( Musa paradisica ) जाति में फल बड़े होते हैं किन्तु केवल पकने पर ही खाये जा सकते हैं। इसके जंगली वृक्ष बिहार तथा पूर्वी हिमालय में ४००० फीट तक पाये जाते हैं।

केले का रासायनिक संगठन –

  • केले के पश्चान्न की राख में पोटॅशियम होता है। कच्ची अवस्था में इसमें टैनिन होते हैं। पक फल में शर्करा, विटामिन ‘सी’, कुछ ‘जी’, खनिज द्रश्य एवं अन्य द्रव्य होते हैं।

केले के वैदिक फायदे गुण और प्रयोग

  • केले के पके फल बल्य, रक्तपित्त शामक, संग्राहक तथा जीवनीय हैं। इससे रक्त की मात्रा बढ़ती है, मन्त्र की क्रिया सुधरती है तथा रक्त की अम्लता कम होती है। इसको अतिसारादि में पथ्य के रूप में देते हैं।
  • कच्चे केले का प्रयोग अन्य द्रव्यों के साथ मधुमेह में किया जाता है। इसके फूलों का रस दही के साथ अत्यातंव में देते हैं।
  • केले के फूलों की सब्जी रक्तपित्त में तथा मधुमेह में देते हैं। काण्ड का रस अपस्मार, अपतन्त्रक आदि वातिक विकारों में देते हैं तथा यह तृषा शामक होता है। इसका शरबत खांसी में दिया जाता है।

आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से बात करें!

अभी हमारे ऐप को डाउनलोड करें और परामर्श बुक करें!


Posted

in

by

Tags:

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *