यह श्रीकृष्ण का मुख्य भोग है।
बाकी मख्खन, दूध, दही, घी से बने पकवान बनाना शुभ होता है।
पंजीरीइसे पँचजीरी भी कहते हैं। सत्यनारायण की कथा में भी इसका नैवेद्य लगते हैं।
कैसे बनाते हैं पंजीरी-
पंजीरी या पँचजीरी में 5 प्रकार के खाद्य पदार्थों का समान मात्रा में समावेश किया जाता है-
{1}- धनिया
{2}- अजवाइन
{3}- सौंफ
{4}- जीरा
{5}-सोया
इनको बराबर मात्रा में पीसकर, इसमें शक्कर का बूरा एवं शुद्ध घी मिलाते हैं, जो वात-विकार को दूर करने वाली प्राचीनकाल की
“भयँकर दर्द नाशक”
आयुर्वेदिक ओषधि है। इसे श्रीकृष्ण जन्म पश्चात पूजा कर पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, बूरा) के साथ सेवन करते हैं।
यह अमृतम योग अत्यंत स्वास्थ्य वर्द्धक,पौष्टिक तथा वातशामक होता है।
आयुष मंत्रालय की खोज…
राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान”,जयपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक
“आयुर्वेद मत से पर्व एवं स्वास्थ्य”
प्रकाशक : — आयुष विभाग,
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय,
भारत सरकार द्वारा संस्थापित,
लेखक- वैद्य श्री कमलेश कुमार शर्मा
एसोसियेट प्रोफेसर”
स्वस्थवृत एवं योग विभाग”
राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान,जयपुर के अध्ययन, अनुसंधान, अनुभव तथा आयुर्वेद के अनुसार दुनिया के सभी धर्मों के
तीज-त्योहार,व्रत-उपवास, ईद आदि के समय बनने वाला नैवेद्य का सेवन तन-मन में उत्सव, उत्साह में वृद्धि करते हैं।
साथ ही यह स्वास्थ्यवर्द्धक योग भी हैं।
सत्यनारायण की कथा में पंजीरी-
देश की बुजुर्ग महिलाओं को
पता होगा कि पहले समय में
घर-घर में हर महीने की पूर्णिमा या अमावस्या को
“सत्यनारायण की कथा”
में यह “पँचजीरी” (पंजीरी) परिवार के
सभी सदस्य खाकर स्वस्थ्य रहते थे ।
अमृतम शास्त्रों का सत्य-
आयुर्वेद के एक बहुत ही प्राचीन ग्रन्थ
“व्रतराज” में पंजीरी को असाध्य रोग नाशक ओषधि कहा गया है।
पँचजीरी या पंजीरी के हर माह में
दो बार एवं बरसात के दिनों में
15 दिन तक 20 ग्राम की मात्रा में
दूध, दही, घी, शहद और बूरा
(पंचामृत) में मिलाकर अथवा
★ शुद्ध शहद,
★ ब्राह्मी रस,
★ मधुयष्टि सत्व,
★ पान का रस,
★ तुलसी का रस
इन पञ्च महा पदार्थों से निर्मित
“अमृतम-मधु पंचामृत”
के साथ सेवन करने से अवसाद, हीनभावना, बीमारियों का विसर्जन हो जाता है तथा पीड़ित तन, रोग रहित होकर मन शांत हो जाता है।
केन्सर, मधुमेह, पथरी, हृदय रोग, यकृत रोग,उत्पन्न नहीं होते। पाचन तन्त्र मजबूत होता है।
उत्सव से उत्साहवर्द्धन-
“भैषज्य रत्नाकर”
नामक ग्रन्थ में लिखा है कि-
चिंता,शोक,भय-भ्रम,तनाव
से रोगों की वृद्धि होती है।
◆ उत्सव हमें उत्साहित करते हैं,
◆ उत्साह बढ़ाते हैं।
◆ उन्नति में सहायक हैं।
◆ उत्सव के समय उधम के
उपाय ढूढे जाते हैं, जो स्वास्थ्य वर्धक हैं।
◆ उत्सव हमें ऊंचाइया देता है।
◆ ऊंट-पटाँग विचारों को सकारात्मक व भावुक बनाकर विभिन्न विकारों का नाश करते हैं। जिससे हर्ष,उल्लास, अपार आनंद, प्रसन्नता प्राप्त होती है।
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