बी फेराल गोल्ड जैसे आयुर्वेदिक बाजीकरण योग के सेवन से अनेक स्त्रियों के साथ सम्भोग करने से भी की कमी नहीं होती है। शुक्र यानि वीर्य गाढ़ा होता है।
भोजनानि विचित्राणि पानानि विविधानि च।
गीतं श्रोत्राभिरामाश्च वाचः स्पर्शसुखास्तथा॥९॥ यामिनी चन्द्रतिलका कामिनी नवयौवना।
गीतं श्रोत्रमनोज्ञं च ताम्बूलं मदिरा स्रजः॥१०॥
गन्धा मनोज्ञा रूपाणि चित्राण्युपवनानि च। मनसश्चाप्रतीघातो वाजीकुर्वन्ति मानवम्।।११।।
अर्थात पुरुषों के बजीकरण के लिए अनेकों प्रकार के सुस्वादु एवं विचित्र भोजन, विविध पान (विविध मद्य, दुग्ध, जल, मांसरस, फलरस आदि द्रव विशेष उपयोगी होते हैं।
मनोनुकूल एवं कर्णप्रिय गीत एवं संगीत, मधुर वचन (कामिनियों से मधुर प्रेमालाप करने से पुरुष कामातुर हो जाता है।
पत्नी या प्रिया का स्पर्श, सुखस्पर्शी वस्त्र आभूषणादि, पूर्णचन्द्रमा युक्त चन्द्रकिरण, निरभ्रयुक्त चन्द्रमा, नवयौवना कामिनियों की संगति, वार्तालाप, स्पर्श-सुख सेक्स वृद्धि में सहायक है।
कर्णप्रिय संगीत, गीत, ताम्बूल, मदिरा, स्फटिक एवं अन्य रत्नों की माला, मन को प्रसन्न करने वाले सुगन्धित इत्र एवं सुन्दराकृति स्त्रियों के दर्शन करने से पुरुषों में भयंकर कामवासना का विस्तार होता है।
विचित्र एवं विभिन्न वर्णों वाले सुगन्धित तथा मनोहर पुष्पों की वाटिका (उपवन), जहाँ पर मन अशान्त नहीं हो अर्थात् मन को प्रेरित करने वाले सभी कामुक साधन उपस्थित हों, वे सभी भाव पुरुष को वाजीकरण के लिए अनुकूल है।
धातुवैषम्य भायोगान् संसेव्य वृष्यान्
ससितमथपयः शीतलं चाम्बु पीत्वा
गच्छेन्नारीं रसज्ञां स्मरशरतरलां कामुकः काममाद्ये।
यामे हृष्टः प्रहृष्टां व्यपगतसुरतस्तत्समुत्पाद्य सद्यः कान्तः कान्ताऽङ्गसङ्गादमहदपि न वै धातुवैषम्यमेति ॥१२॥
अर्थात कामी पुरुष को सफल एवं अनुभूत तथा सर्वोत्कृष्ट वृष्य योग का सेवन करना चाहिए तथा बाद में चीनी युक्त सुखोष्ण गाढ़ा दूध या शीतलजल पीना चाहिए। बाई फेरल गोल्ड माल्ट और कैप्सूल एक बेहतरीन बाजीकार्क योग है।
तदनन्तर प्रसन्नचित्त होकर कामकला में प्रवीण तथा कामिनी स्त्री के साथ रात्रि के प्रथम प्रहर में सुखपूर्वक सम्भोग करें। इस प्रकार मैथुन करने से थोड़ी मात्रा में भी धातु की कमी नहीं होती है।
वृष्यतमा स्त्री के लक्षण…(वङ्गसेन)
सुरूपा यौवनस्था च लक्षणैर्यदि भूषिता।
वयस्या शिक्षिता या वै सा स्त्री वृष्यतमा मता॥१३॥
अर्थात जो स्त्री रूपवती हो, युवती हो, कामशास्त्र के लक्षणों से युक्त हो, अर्थात् नृत्य, गीत, वाद्य, संगीत, लास्य तथा कामशास्त्र की कलाओं से परिपूर्ण हो, अवस्था भी अनुकूल हो एवं सुशिक्षित हो, ऐसी स्त्री ‘वृष्यतमा’ कही जाती है ।
महर्षि चरक ने भी कहा है; यथा –
‘सुरूपा यौवनस्था या लक्षणैर्या विभूषिता।
या वश्या शिक्षिता या च सा स्त्री वृष्यतमा मता॥
(नोकरणाधिकार:)
नानाभक्त्या तु लोकस्य दैवयोगाच्च योषिताम्।
तं तं प्राप्य विवर्धन्ते नरं रूपादयो गुणा:।। वयोरूपवचोहावैर्या यस्य परमाङ्गना।।१०॥११॥
पान प्रविशत्याशु हृदयं दैवाद्वा कर्मणोऽपि वा।
गत्वा गत्वाऽपि बहुशो यां तृप्ति नैव गच्छति।
सा स्त्री वृष्यतमा तस्य नानाभावा हि मानवाः॥
(च.चि. २/१/७-१५)
अर्थात ‘वश्या’ शब्द का प्रयोग जिसके साथ पुनः पुनः महर्षि अग्निवेश ने विशेषरूप से किया है जो वश में रहने का संकेत सम्भोग करने पर पुरुष को तृप्ति नहीं मिलती हो; अपने रूप, लावण्य, सुन्दरता, वचन, हाव-भाव, भक्ति एवं वशीभूत के कारण पुरुष के हृदय में प्रविष्ट होकर स्वयं तथा पुरुष को भी कामासक्त बना देती है, वही स्त्री वृष्यतमा कहलाती है।
वाजीकरण के योग्य पुरुष (भा.प्र.)
स्त्रीष्वक्षयं मृगयतां वृद्धानाञ्च रिरंसताम्। क्षीणानामल्पशुक्राणां स्त्रीषु क्षीणाश्च ये नराः॥१४॥ विलासिनामर्थवतां रूपयौवनशालिनाम्।
राणां बहुभार्याणां विधिर्वाजीकरो हितः॥१५॥
अर्थात स्त्रियां साथ यथेच्छ सम्भोग करने वाले तथा सम्भोग करने की अधिक इच्छा वाले पुरुष, वृद्ध, क्षीण शरीर वाले, अल्पवीर्य वाले एवं सम्भोग की इच्छा रखने वाले, स्त्रियों के साथ सम्भोग जन्य शुक्रक्षीण वाले, विलासी पुरुषों, धनिकों, रूप तथा यौवन वाली अनेक स्त्रियों वाले पुरुषों के लिए वाजीकरण औषधों का प्रयोग उचित है।
सेक्स में संतुष्टि देने वाले मर्द….
योषित्प्रसङ्गात्क्षीणानां क्लीबानामल्परेतसाम्।
हिता वाजीकरा योगाः प्रीणयन्ति बलप्रदाः।
एतेऽपि पुष्टदेहानां सेव्याः कालाद्यपेक्षया॥१६॥
अर्थात अत्यधिक स्त्रियों से सम्भोग करने के कारण क्षीण शुक्र एवं क्षीण शरीर वाले, साध्य नपुंसकों के लिए, अल्प शुक्र वाले पुरुषों के लिए वाजीकरण योग का सेवन करना हितावह यानि जरूरी है।
अमृतम द्वारा निर्मित B-Feral Gold Malt & Capsule यह वाजीकरण योग शरीर को पुष्ट करता है तथा बलदायक।
परिपुष्ट शरीर वाले पुरुषों को भी देश – कालादि पर विचार कर वाजीकरण औषधों का सेवन अवश्य करना चाहिए।
माषद्विदल क्षीरपाक प्रयोग .
घृतभृष्टमाषविदलं दुग्धं सिद्धं च शर्करामिश्रम्।
भुक्त्वा सदैव कुरुते तरुणीशतमैथुनं पुरुषः॥१७॥
अर्थात माष (उड़द) की दाल को यवकुट कर घृतभृष्ट करें। तथा दुग्ध में अच्छी तरह पकाकर खीर बना लें और उसमें यथेच्छ मात्रा मे सुखोष्णदूध पियें।
अथवा उदुम्बरत्वक्स्वरस या क्वाथ ५० | मि.ली. के साथ अनुपान रूप में प्रयोग करने से १ सप्ताह में ही वृद्ध पुरुष भी तरुण (युवा) पुरुष के जैसा सम्भोग में समर्थ हो जाता है। अर्थात् वृद्ध भी जवान हो जाता है।
(भैषज्यरत्नावली)
आमलास्वरस भावित आमलाचूर्ण प्रयोग…
सप्तधाऽऽमलकीचूर्णमामलक्यम्बुभावितम्।
घृतेन मधुना लीढ्वा पिबेत्क्षीरपलं नरः।। वाजीकरणयोगोऽयमुत्तमः परिकीर्तितः ॥२२॥
जल १२०० तः एक स्टेनलेस मलाकर मन्दाग्नि दूध
आमलाचूर्ण में ताजे आंमले के स्वरस की ७ भावना दें और बाद में सुखा लें और काचपात्र में संग्रहीत करें।
प्रतिदिन ३ से ५ ग्राम की मात्रा में विषम मात्रा में मधु-घृत मिलाकर लेहन (चाट) कर ऊपर से मिश्री मिश्रित सुखोष्ण गोदुग्ध पियें। ऐसा प्रतिदिन करने से कामशक्ति प्रतिदिन बढ़ती है तथा यह उत्तम वाजीकरण योग है।
वाजीकरण में अपथ्य….
अत्यन्तमुष्णकटुतिक्तकषायमम्लं
क्षारञ्च शाकमथवा लवणाधिकञ्च।
कामी सदैव रतिमान् वनिताभिलाषी
नो भक्षयेदिति समस्तजनप्रसिद्धिः॥२३॥
अर्थात जो पुरुष कामी हो, हमेशा ही सम्भोग करना चाहता हो, अहर्निश स्त्रियों को चाहने वाला हो, वह पुरुष अतिउष्ण, अतिकटुद्रव्य, अत्यन्तअम्लद्रव्य, अत्यन्तक्षारीयपदार्थ, अत्यन्तलवण तथा अत्यन्तशाक (पत्रशाक) का सेवन नहीं करें । ऐसी मान्यता समस्त जनता में प्रसिद्धि है ।
घृतभर्जित बस्ताण्ड प्रयोग – (च.द.)
पिप्पलीलवणोपेतौ बस्ताण्डौ क्षीरसर्पिषा।
साधितौ भक्षयेद्यस्तु स गच्छेत्प्रमदाशतम् ॥२४॥
अर्थात बकरे के दोनों अण्डकोष को निकालकर उसे जल के साथ उबाल लें। बाद में उन दोनों अण्डों को दबाकर जलीयांश को निकाल दें तथा गोघृत में हल्का लाल होने तक भून लें। उसमें सैन्धवलवण और पिप्पलीचूर्ण मिलाकर प्रतिदिन २-२ अण्डे इसी प्रकार सेवन करें। ऐसा प्रतिदिन सेवन करने से १०० प्रमदाओं के साथ सम्भोग करने की शक्ति हो जाती है।
बस्ताण्डप्रयोग –
बस्ताण्डसिद्धे पयसि भावितांश्चासकृत्तिलान्।
यः खादेत्स नरो गच्छेत् स्त्रीणां शतमपूर्ववत्॥२५॥
(अ.ह.)
अर्थात ग्राम बकरे के दोनों अण्डकोष को ८ गुना गोदुग्ध तथा १६ गुना जल में क्षीरपाक विधि से पाक करें। जब जल नष्ट हो जाय और केवल ही शेष रहे तो अण्डकोष को निकालकर दूध को वस्त्र दूध
में मिश्रीचूर्ण मिलाया हुआ पिएं।
उच्चटाचूर्णमप्येवं उच्चटामूलचूर्ण शतावरीमूलचूर्ण प्रयोग क्षीरेणोत्तममुच्यते ।
(न.द.)
शतावर्ग्युच्चटाचूर्ण पेयमेवं सुखार्थिना ॥३०॥ उच्चटामूलचूर्ण (रक्तगुञ्जामूल) ५ ग्राम को शर्करा मिश्रित गरम गोदुग्ध २५० मि.ली. के साथ प्रातः सायं सेवन करने से अथवा गुञ्जामूलचूर्ण एवं
अश्वगंधा, शिलाजीत, यष्ठीमधु, सफेद मूसली, शतावरी, कोंच पाक, त्रिकटु चूर्ण युक्त b feral एक एक चम्मच शर्करा मिश्रित सुखोष्ण गोदुग्ध के साथ प्रातः सायं २० से २५ दिनों तक सेवन करने से कामशक्ति बढ़ती है।
यष्टिमधु चूर्ण (च.द.)
कर्ष मधुकचूर्णस्य घृतक्षौद्रसमन्वितम् । पयोऽनुपानं यो लिह्यान्नित्यवेगः स ना भवेत् ॥३१॥
यष्टिमधुचूर्ण (मुलेठी) १० ग्राम, मधु १० ग्राम एवं गोघृत ५ ग्राम मिलाकर प्रात:- सायं लेहन कर शर्करा मिश्रित सुखोष्ण गोदुग्ध २५० मि.ली. पिलायें । ऐसा १ माह तक सेवन करने से पुरुष प्रतिदिन अनेक स्त्रियों के साथ सम्भोग करने का उत्सुक रहता है।
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