क्लेदन/क्लेदक कफ क्या है और कफ कितने प्रकार होता है?

क्लेदन कफ शरीर के विघटित अणुओं को आपस में जोड़कर उनका रस के द्वारा पोषण करने वाला है।

कफ दोष क्या है?

कफ दोष, ‘पृथ्वी’ और ‘जल’ इन दो तत्वों से मिलकर बना है। ‘पृथ्वी’ के कारण कफ दोष में स्थिरता और भारीपन और ‘जल’ के कारण तैलीय और चिकनाई वाले गुण होते हैं। यह दोष शरीर की मजबूती और इम्युनिटी क्षमता बढ़ाने में सहायक है। कफ दोष का शरीर में मुख्य स्थान पेट और छाती हैं।

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शरीरस्थ कफ चंद्र का प्रतिनिधि है। चंद्रमा की तरह यह शरीर में आर्द्रता, पुष्टि और बल उत्पन्न करता है।

चरक सहिंता, सूत्र १८/५१ में क्लेदन कफ के बारे में पूरा एक अध्याय लिखा हुआ है।

क्लेदन या क्लेदक कफ अन्‍न को गीला करता है और आमाशय में रहता है तथा अन्‍न को अलग अलग करता है। कफ 5 तरह का होता है।

  1. क्लेदक कफ
  2. अवलम्बक कफ
  3. बोधक कफ
  4. तर्पक कफ
  5. श्लेषक कफ

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किसी तरह ज्ञान ग्रहण करना पित्त का कार्य है और उसे धारण करना, ज्ञान का स्मरण या याद रखना क्लेदन कफ का कार्य है।

शरीर में स्निग्धता बनाये रखना, जोड़ों-संधियों के बंधनों को दृढ़ रखना, उनमें शिथिलता न आने देना,

जोड़ों में चिकनाहट यानि लुब्रिकेंट बनाये रखना, शरीर के अंगों को मृदु व स्थिर रखना, शरीर की वृद्धि करना – ये प्राकृत क्लेदन कफ के कर्म हैं तथा पौरूष, उत्साह, क्षमा, सहनशक्ति, मानसिक स्थिरता, धीरता, ज्ञान, विवेक, अलोलुपता, निर्लोभता आदि सदगुण प्राकृत कफ से उत्पन्न होते हैं।

शास्त्रों में कफ-कोप काल का भी समय बताया गया है-

कोरोना का एक कारण कफ सूखना भी है-
आयुर्वेद के अनुरुप कफ का स्वरूप-
सफेद, मटमैला, चिकन, घिलमिला-सा शीतल, तमोगुण युक्त और स्वाद यानि मधुर होता है, विदग्ध (पुराना, तप हुआ) होने से खारी हो जाता है। कफ नाम, स्थान और कर्म-भेदों से 5 प्रकार कहा गया है-)।

कफ के तन में रहने के स्थान..
●कफ शरीर के आमाशय में क्लेदन कफ
●ह्रदय में अवलम्बन कफ
●कण्ठ (गले) में रसन कफ
●सिर में स्नेहन कफ़ यह शरीर की सभी
इंद्रियों को चिकनाई देकर तृप्त करता है।
एक प्रकार से स्नेहन कफ देह में चिकनाहट यानि लुब्रिकेंट बनाये रखता है।
●संधियों अर्थात शरीर के जोड़ों में
में श्लेष्मण कफ रहता है, जो सभी संधियों को जोड़कर रखता है। फ्रेक्चर होने पर श्लेष्मण कफ ही टूटी हड्डीयों को जोड़ने में मदद करता है।
मतलब साफ है-जिन लोगों का कफ पूरी तरह सुख जाता है, उनकी हड्डियां कमजोर होकर चटकने लगती हैं।
इन सभी कफ के शरीर में महत्वपूर्ण कार्य भी हैं उत्पत्ति कैसे होती है-

आयुर्वेद के नियमानुसार शरीर में सर्वप्रथम पित्त पनपता है। पित्त हमें जिंदा रखता है और मारता भी है। स्वस्थ्य रहने के लिए पित्त का सम या सन्तुलित होना पहली शर्त है। पित्त की अधिकता होने से कफ बनने लगता है।

फेफड़ों के लिए अत्यंत हानिकारक हैं-रसायनिक कफ सिरप। क्यों कि यह कफ को पूरी तरह सुखा देते हैं।

कफ का होना भी बहुत जरूरी है-

कफ शरीर में चिकनाहट या लुब्रीकेंट

बनाये रखता है। कफ को विषम होने

बचाना स्वास्थ्यवर्धक होता है।

वैज्ञानिकों ने बताया कि-

भविष्य में हमें केमिकल युक्त दवाओं को लेने

से बचना चाहिए। किसी भी तरह की खांसी

अथवा छोटी-मोटी तकलीफों को ठीक करने के

लिए के लिए घरेलू मसालों, आयुर्वेदिक ओषधियों

को लेने की सलाह दी है।

देश-विदेश के अनेक शरीर वैज्ञानिकों की

फिलहाल अभी आगे की खोज जारी है।

त्रिदोषनाशक आयुर्वेद अपनाएं…..

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भविष्य में तन-मन और अन्तर्मन को शक्तिशाली

बनाए रखने के लिए मजबूत इम्युनिटी आवश्यक है। बढ़ते प्रदूषण, जहरीली वायु की वजह से भविष्य में बीमारियों में भयंकर बढोत्तरी होगी। कोरोना संक्रमण हो अथवा किसी भी प्रकार से रोगों से बचाने में भारत की चिकित्सा पध्दति आयुर्वेद के नियमों को अपनाने की शुरुआत होना चाहिए।

इसे पूर्णतः हानिरहित उपाय इलाज बताया है। विश्व के कुछ एकांतवासी वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में इंसानो की कोशिकाओं पर एलोपैथिक कफ सिरप और अंग्रेजी दवाओं का परीक्षण करने पर पता चला कि- इन दवाओं में उपलब्ध एक रसायन (केमिकल) से शरीर में कोरोना का वायरस और अधिक गति से फैला।

विषैले रसायनों का रहस्य…

एक शरीर साइंटिस्ट शोध टीम के प्रमुख डॉ ब्रायन सोइलेट ने खोजा कि कफ सीरप में मौजूद डेक्सट्रोमिथोंर्फ़न रसायन या केमिकल कोरोना वायरस से संक्रमित रोगियों के लिए भयंकर खतरनाक हो सकता है।

डॉ ब्रायन ने बहुत भावुक होकर कहा है कि- हम बार-बार, हर बार, सब प्रकार से सबको समझाइश देते रहे हैं कि हमें प्राकृतिक प्रदत्त परम्पराओं को शीघ्रता से हर हाल में समझना होगा….. अन्यथा दुनिया के अधिकांश लोग गरीबी रेखा से भी नीचे जाकर खाने को मोहताज हो जाएंगे।

साइंस मैगजीन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार-शरीर में कफ के सूखने से सांस लेना मुश्किल होने लगता है, इसलिए कफ पूरी तरह सूखना नहीं चाहिए।

कफ सन्तुलित होने से शरीर क्रियाशील बना रह सकता है। भारतीय लोगों को इसकी ज्यादा जानकारी होती है।

कफ सूखने से देह को होने वाली हानि के विषय में आयुर्वेद के 40 से ज्यादा शास्त्रों से ली गई जानकारी पढ़कर औरों को भी साझा करें।

पुरानी खांसी से मुक्ति के लिए लोजेन्ज माल्ट का 3 महीने सेवन करें।

मौसम की मार है-कोरोना वायरस शिशिर ऋतु में बदलते मौसम के साथ सर्दी-खाँसी,जुकाम होना स्वाभाविक है।

लोजेन्ज माल्ट-

19 प्रकार विकारों को दूर करता है..

कफ-कोप के सोलह लक्षण….

【१】बिना भोजन के ही पेट भरा सा लगे।
【२】नींद, आलस्य, सुस्ती अधिक आये
【३】शरीर में अत्यधिक भारीपन हो।
【४】मुहँ का स्वाद मीठा से लगे।
【५】मुख से बार-बार पानी गिरे
【६】हर पल-हर क्षण कफ निकले
【७】ज्यादा डकार आये
【८】पखाना बहुत अधिक हो
【९】गला कफ से ल्हिसा सा मालूम हो।
【१०】भूख बहुत कम लगती हो।
【११】खाना खाते ही मन उचाट हो

【१२】मन्दाग्नि से भोजन पचता न हो।

【१३】शरीर सफेद सा होने लगे।

【१४】मल-मूत्र, नेत्रों में सफेदी आने लगे।

【१५】सदैव जाड़ा/ठंडक का एहसास हो।

【१६】गाढ़ा दस्त वह भी अधिक होता हो!

कोरोना शुष्क यानी सूखा कफ विकार है।

बदलते मौसम के दौरान साल में 2 से 3 बार सर्दी-जुकाम, कफ-कास, खांसी, गला रुन्धना, बार-बार छींक आना, खरास, कफ ज्यादा मात्रा में बनना आदि समस्याएं सभी के समक्ष साल में सात दिन के लिए उत्पन्न होती है।

आयुर्वेदिक शरीर क्रिया विज्ञान, धन्वंतरि निघण्टु, वंगसेन सहिंता, शंकर निघण्टु में

लिखा है कि-

जुकाम जैसे रोग शरीर की शुद्धता के लिए बहुत जरूरी है।
फेफड़ों का यह संक्रमण श्वास-नलिकाओं को साफ कर तन-मन को क्रियाशील बनाने हेतु कुदरत की एक व्यवस्था है। सर्दी-खांसी की यह तकलीफ 5 से 7 दिन तक रहकर अपने आप ठीक हो जाती है।

यह सामान्य सर्दी-जुकाम, खाँसी-

हल्दी, दालचीनी, कालीमिर्च, अदरक, जीरा, मुलेठी, मुनक्का, तुलसी का काढ़ा पीने और घरेलू इलाज से ठीक हो सकता है। अंग्रेजी चिकित्सा पध्दति में एंटीबायटिक, एंटीएलर्जी, एंटीकोल्ड दवाईयां कफ को सुखाने के लिए देते हैं

लेकिन ये पहले ही सूखा हुआ कफ है तो इस पर कोई फायदा नहीं होता, बल्कि आदमी अस्थमा, दमा, श्वास की परेशानियों से घिर जाता है। इम्युनिटी घटने लगती है।
स्वस्थ्य शरीर के लिए कफ ढ़ीला होकर निकलना अत्यन्त आवश्यक है। कफ
कोशिकाओं नाड़ियों की गन्दगी है इसका निकलना बेहद जरूरी होता है।

आयुर्वेद ग्रन्थों में कफनाशक अर्थात कफ को नष्ट करने वाली और कफवर्धक यानि कफ को बढाने वाली दो तरह की ओषधियों का उल्लेख मिलता है।
जिन मरीजों की खांसी 7 दिन बाद भी बन्द नहीं हो रही अथवा कफ़ निकलना रुक नहीं रहा हो, उन्हें कफनाशक दवा मुफीद रहती है।
ठसके वाली खांसी, जिसमें कफ नहीं निकलता, गले में दर्द एवं खराश रहती है। दमा-अस्थमा से परेशान हों ऐसे रोगियों को कफवर्द्धक यानी कफ बढ़ाने वाली दवा या काढ़ा लेना लाभकारी रहता है।

कोरोना की बीमारी में मरीज को सांस लेने में दिक्कत होती है, क्योंकि अधिक एलोपेथी मेडिसिन लेने से कफ पूरी तरह सुख चुका होता है। जिससे फेफड़ों या लंग्स में प्राणवायु यानि ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती है। इस कारण शरीर शिथिल, निढाल होकर आलस्य, सुस्ती से घिरने लगता है। कोई काम करने की इच्छा खत्म होने लगती है और बेचैनी, घबराहट, चिड़चिड़ाहट तथा डिप्रेशन महसूस करने लगता है।

कफ कोप का काल (समय)…

# बचपन में 3 वर्ष की उम्र तक

# शीतकाल यानि ठण्ड के दिनों में।

# दिन और रात के पहले प्रहर में
(अर्थात सुबह उठते ही, रात्रि में
सूर्यास्त के बाद)

# भोजन करने के तुरन्त बाद।

# शीतल क्षेत्रों में रहने से

#वृद्ध अवस्था में कफ-कोप रहता है।

श्री रावण रचित ग्रन्थ-अर्कप्रकाश

और मन्त्रमहोदधि

में कहा गया है कि कफ काल के समय महारोग नाशक महाकाल मन्त्र

!!ॐ शम्भूतेजसे नमः!!

और

!!महामृत्युंजय मन्त्र!!
की एक माला करने से कफ का दुष्प्रभाव
तुरन्त दूर हो जाता है।

कफ-कोप 10 कारण क्या हैं…

महान आयुर्वेद वैज्ञानिक महर्षि सुश्रुत
तथा हारीत के अनुसार
[१] दिन में अधिक सोना
[२] बिना मेहनत के घर बैठे रहना
[३] अधिक आलस्य में समय व्यतीत करना
[४] मीठा-खट्टा एवं नमकीन का अधिक सेवन
[५] चावल, उड़द, अरहर की दाल, तिल आदि
[६] रात्रि में दूध-दही, चावल की खिचड़ी

[७] सूर्यास्त के बाद ईख यानी गन्ने का रस पीना

[८] जल-जीवों का माँस का भोज्य,

[९] सिंघाड़े, ककड़ी, अमरूद , गाजरऔऱ लताओं से उत्पन्न फल सुखिनः खाँसी में लाभकारी होते हैं लेकिन गीली, कफ वाले कास में नुकसान पहुंचते हैं।

[१०] शीतल यानि ठंडे, चिकने यानि अधिक तेल या घी युक्त, बर्फमलाई, मख्खन, भारी, अभिष्यंदी अर्थात रिसनेवाला, रेचक पदार्थो का अधिक उपयोग करना। कायम चूर्ण जैसे दस्तावर, रेचक एवं पेट साफ करने वाले सभी उत्पादों का अधिक मात्रा में सेवन करना कफ पीड़ितों को अत्यधिक हानिकारक बताया है।
आँखों के रोग मोतियाबिंद को अभिष्यंद
कहा जाता है।

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कफ को सन्तुलित-सम कैसे करें….
अमॄतम फार्मास्युटिकल्स, ग्वालियर
द्वारा बनाये गए

लोजेन्ज माल्ट का नियमित सेवन देह में विषम कफ की मात्रा को सम बनाने में सहायक है।
लोजेन्ज माल्ट (LOZENGE malt)

गीले-ढ़ीले कफ को गाढ़ा कर बाहर निकालता है और सूखी खांसी या कफ से पीड़ित मरीज की आंतों और फेफड़ों में जमे या चिपके कफ को ढ़ीला कर मल विजर्सन द्वारा साफ कर देता है।

तन में आवश्यकता अनुसार कफ की मात्रा
बनाये रखने में लोजेन्ज माल्ट अत्यन्त कारगर ओषधि है। यह श्वांस नलिकाओं को कांच सा चमका देता है। तीन माह तक निरन्तर लेने से शरीर का कायाकल्प कर देता है।

कफवर्धक पदार्थो की सूची (लिस्ट)

कफवर्द्धक का अर्थ होता है कफ को बढ़ाना।
जिन लोगों को कफ ज्यादा बनता हो या निकलता हो, उन्हें तत्काल नीचे लिखी
चीजों का इस्तेमाल रोक देना चाहिए-

@ घी, दूध, लस्सी, पनीर, दही, अंडा रात्रि में अधिक लेने से कफ की वृद्धि करते हैं।

@ कच्चे आलू, तुअर, उडद की दाल।

@ अरबी, शकरकन्दी, फूलगोभी, बंदगोभी,
शिमला मिर्च, टमाटर आदि गीली खांसी
वालो को नहीं लेना चाहिए।

@ सुबह खाली पेट संतरा, सेब, केला,
ग्लूकोज, फेफड़ों में कफ की वृद्धि करते हैं।

@ खाने और सोकर उठने के बाद चाय के साथ बिस्कुट, ब्रेड तथा नमकीन न लेवें।

@ गर्म के साथ ठंडा और ठन्डे के साथ
गर्म चीजों के खाने में 2 से 3 घण्टे का
अन्तराल (गेप) रखें।

निम्नलिखित वस्तुएं कफनाशक अर्थात
कफ को सुखाती हैं, इन्हें अधिक लेने से
जोड़ों में लुब्रीकेंट या ग्रीस सूखने लगता है।
मधुमेह, हृदय रोगी, कोलेस्ट्रॉल और बीपी
हाई से परेशान तथा नेत्र रोगियों को
बहुत कम क्वान्टिटी में ही लेना चाहिए।

◆ नीम, हल्दी, तुलसी, काली मिर्च।

◆ शिलाजीत, मुलेहठी, आमलकी रसायन,

◆ अदरक, अधिक मूंग की दाल लेने से कफ सूखने लगता है।

◆ जौ की रोटी, घीया, तोरई, जीरा, चीकू,
सेंधा नमक, मीठा अनार, नारियल पानी।
इन पदार्थों को

आयुर्वेदिक ग्रन्थ निघण्टु

में कफ को बांधने वाला बताया है।

कैसे करें कोरोना वायरस की चिकित्सा…
यह घरेलू उपाय इम्युनिटी बढ़ाने तथा

कफ को सामान्य कर सभी संक्रमणों

को जड़ से मिटा देता है तथा तन पूर्णतः निरोगी हो जाता है।

छोटी हरड़, मुनक्का दोनों 8-8 नग

त्रिकटु, वासा अडूसा, हंसराज, जीरा,
अजवायन, सौंफ, कालीमिर्ची,
सेंधानमक, धनिया, गिलोय, तुलसी,
दालचीनी, सौंठ, कायफल, आंवला,
काकड़ासिंगी, नागरमोथा, अतीस
तेजपात, इलायची और मुलेठी

सभी 1-1 ग्राम लेेकर करीब 400 ML पानी में गलाकर 24 घण्टे बाद इतना उबाले कि करीब लगभग 100 ग्राम काढ़ा रह जाये। फिर इसमें 25 ग्राम गुड़ डालकर कुछ देर तक और गर्म करके छान लेवें। यह खुराक परिवार के सभी सदस्यों को 2 से 3 चम्मच सुबह खाली पेट और रात में खाने से पहले लेवें।

दिन में तीन बार 1 से 2 चम्मच दूध के साथ लोजेन्ज माल्ट सेवन करें

क्वारेंटाईन काल में वेद-पुराणों का स्वाध्याय कर स्वास्थ्य पर ध्यान देवें ऐसा न हो कि हमारी लापरवाही किसी लफड़े में डाल दे।अब पछताय होत क्या, जब चिड़िया चुग गयी खेत।

जिंदादिली से जीने का एक फ्री का फंडा
यह भी है! कभी आजमाकर देखें-

शरीर की अपनी भाषा है।
दिव्य ओषधियों के साथ-साथ बड़ा दिल
रखने से स्वस्थ्य रहना सम्भव है।
पीछे की और लौटकर अपने स्मृति पटल
पर पुरानी बातें लाने से प्रतिक्रमण प्रक्रिया
पीड़ित होने लगती है। तनाव का मूल कारण
पूर्व की घटनाएं होती हैं। यही रोगों की उत्पत्ति में सहायक है-

छोड़िए गठरी अतीत की….
इसलिए कम पढ़े-लिखे पुराने लोग कहते थे
बीतीं ताहिं बिसार दे, आगे की सुधि लेय।
जो बनि आवै सहज में, ताही में चित देय॥
ताही में चित देइ, बात जोई बनि आवै।
दुर्जन हंसे न कोइ, चित्त मैं खता न पावै॥
कह ‘गिरिधर कविराय’,

यहै करु मन परतीती।
आगे को सुख समुझि,

होइ बीती सो बीती॥

अर्थात-
पुरानी यादों को भूलकर आगे बढ़ने का प्रयास प्रत्येक पुरुष के लिए प्रथम कार्य है, जो बीत गया-सो रीत गया उसे फॉर्मेट कर
आगे की सोचो। वर्तमान में जो कार्य प्रसन्न मन और सरलतापूर्वक करेंगे, तो जग-हँसाई
से बचकर अपने कार्य को संपन्न कर पाओगे। इसलिए गिरिधर कविराय कहते हैं कि
बस आगे का देखो, पीछे जो गया उसे
बीत जाने दो।

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