दक्षिण भारत के मंदिरों में विभिन्न कंनसों के लिए अलग अलग दीपदान का चलन है।
योग में दीपक का प्रयोग किया जाता है, जो ‘त्राटक’ कहाँ जाता है।
amrutam अमृतम पत्रिका, ग्वालियर से साभार तिरुपति बालाजी से 40 किलोमीटर दूर श्री कालहस्ती राहु शिवालय में 40 बेटी का दीपक, 11 बाती का दीपक ओर 100 बाती का दीप जलाने का विधान है।
दीप प्रज्वलन का रहस्य और महत्व दीपं ज्योति परब्रह्म दीपं सर्वतमोपहम्।
दीपेन साध्यते सर्वं संध्यादीप नमोस्तुते ।।
- सामान्यतः हर घर में संध्या के समय दीप के प्रज्वलन को जलाते वक्त इस मंत्र का पठन किया जाता है।
- दीप प्रज्वलन का महत्त्व इसमें बताया गया है कि दीपज्योति ही परब्रह्म स्वरूप है।
- भविष्य पुराण के अनुसार दीपक जलाकर उसकी उपासना करने से सब पाप मिट जाते है।
- हिंदू संप्रदाय के अनुसार कार्य शुभ हो या अशुभ, दीप जलाया जाता है। कोई भी कार्य के शुभारंभ के समय दीप को प्रज्वलित किया जाता हैं, तो दूसरी ओर किसी की मृत्यु होती तो पार्थिव शरीर के सामने दीप को जलाकर रखते हैं।
- वैसे तो, अग्नि याआग के उपयोग का आरंभ होने के बाद ही मानव संस्कृति का विकास होता गया। पुराने जमाने में जब विद्युत दीप नहीं थे, तब रात के समय अंधकार को दूर करने के लिए दीप का महत्व उस समय बहुत अधिक था।
- भारतीय संस्कृति में धार्मिक तथा सामाजिक रूप से दीप की बड़ी विशिष्टता है। पारंपरिक रूप में दीप का प्रकाश ही एकमात्र आधार मिट्टी का होता था।
- परंतु, आजकल अनेक धातुओं के जैसे- पंचलोह, कांच, चांदी और सोने के दीप का भी उपयोग किया जाता हैं।
- साधारणतया दीप में गाय के घी को या तिल के तेल को उपयोग किया जाता है।
- दीप को जलाने से वहाँ के आस-पास का वातावरण शुद्ध हो जाता है। तेल या घी के दिये से वातावरण की हवा शुद्ध होकर हमारे स्वास्थ्य के लिए जो अच्छे अंश चाहिएँ, वो अंश वहाँ के परिसर में मिलते हैं। इसी कारण से हवन करने के बाद वहाँ के परिसर में पवित्रता और मानसिक आनंद का अनुभव कर सकते हैं।
- दीपक या दिये से हमारी नकारात्मक भावनाएँ मिटकर सकारात्मकता जागृत होती है। इसलिए खिन्नता, आतंक जैसे मनोरोग मिट जाते हैं। इतना ही नहीं, जलते दीप को एकाग्र दृष्टि से कुछ समय तक देखते रहने से एकाग्रता बढ़ती है और दृष्टिदोष का निवारण होता हैं।
- आज्ञाचक्र में दीपज्योति का निवास
- जिस प्रकार बाहर प्रकाश के लिए दीप को प्रज्वलित किया जाता है, उसी प्रकार हमारे अंतरंग में एक ज्योति है, जो हमारी भृकुटि के मध्य में है; ध्यान से उस ज्योति को प्रज्वलित करके मनुष्य आध्यात्मिक साधना में सफल हो सकता है।
- यहाँ ज्योति निराकार परब्रह्म परमेश्वर का प्रतीक है। हमारे ऋषि मुनियों ने अनेक वर्षों तक तपस्या करके ज्ञान ज्योति को प्रज्वलित करके, उस ज्ञान रूपी ज्योति को अपने शिष्यों में जलाकर अज्ञान रूपी अंधकार को दूर किया करते थे।
- इस रूप में वे स्वस्थ समाज का निर्माण करके समाज में शांति और उन्नति को लाये।
- अग्नि सूत्र से ऋग्वेद का आरंभ होता है। हमारे पूर्वजों के लिए अग्नि ही सब कुछ थी। उसी दीप ज्योति के महत्व को बृहदारण्यक उपनिषद में कहा गया है
- ॐ असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। त्योर्मा अमृतं गमय ।। शान्ति शान्ति शान्तिः ।।
- अर्थात दिव्य ज्योति असत्य से सत्य की ओर; अज्ञानांधकार से प्रकाश की ओर; मृत्यु से अमरता की ओर ले जाने वाली है।
- दीपक को भगवान शिव के शिवलिंग का स्वरूप माना गया है। इससे दीपावली त्यौहार के वक्त दीप को महालक्ष्मी समान मानकर पूजित की जाती है, तो पति संजीविनी व्रत में शिव के रूप में ज्योति स्तंभ को रखकर पूजा की जाती है।
- 26 आटे के दीपक का रहस्य
- श्रावण मास में मंगल गौरी व्रत के समय 26 चावल के आटे के दीपकों को जलाया जाता है, तथा उत्थान द्वादशी के दिन तुलसी पूजा के समय आंवले के दीप जलाएँ जाते हैं।
- शक्ति, हिम्मत के लिए जलाएं नीबू के दीपक
- आदि शक्ति, माँ दुर्गा के मंदिरों में राहुकाल में नींबू के दीप जलाएँ जाते हैं।
- शनि को करें प्रसन्न
- भगवान शनि देव के मंदिर में एक काले कपड़े में तिल को रखके, तिल के तेल में भिगोके दीप जलाये जाते है, जिससे शनि ग्रह के दोषों से मुक्ति मिल सके।
- दीप विजय का भी संकेत है, इसलिए पुराने जमाने में युद्ध को जाते समय योद्धा को तिलक लगाकर आरती उतारते थे। जिस प्रकार भक्ति और श्रद्धा के साथ भगवान से प्रार्थना करने पर अपनी मिन्नतें पूर्ण होती हैं, उसी प्रकार दीप स्वयं भगवान का रूप होने से भक्ति और श्रद्धा के साथ भगवान को मन में भरकर दीप जलाने पर अवश्य हमारी मिन्नतें पूर्ण होती हैं।
- पूजा करते समय भगवान को दीप दर्शाते हुए यह मंत्र पढ़ाया जाता है.
- साज्यं त्रिवर्ति संयुक्तं वह्निना योजितं मया
- गृहाण मंगलं दीपम् त्र्यैलोक्य तिमिरापहम्।
- भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाया परमात्मने
- त्राहिमां नरकात् घोरात् दिव्यज्योतिर्नमोस्तुते।।
- अर्थात “हे परमात्मा! घी के त्रिवर्ति के दीप को भक्ति पूर्वक समर्पित करता हूँ, जो मंगलकारिणी है और जिससे त्रिलोक का अंधकार दूर होता है। मुझे नरक से उद्धार करनेवाली दिव्य ज्योति ! मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ।”
- मनोकामना पूर्ति हेतु विविध प्रकार के दीप :
- हिंदू धार्मिक संप्रदाय में विविध प्रकार के दीपों को प्रज्ज्वलित किया जाता है। इनकी श्रद्धा और भक्ति समेत उपासना की जाती है.
- कामाक्षी दीप :दीपक के पिछले भाग में गजलक्ष्मी का चित्र हो तो वह ‘कामाक्षी दीप’ या ‘गजलक्ष्मी दीप’ कहलाता है।
- दीपक में माता के चित्र होने से यह अत्यंत पवित्र माना जाता है। कामाक्षी दीप को प्रज्वलित करने से पहले उसे हल्दी और कुंकुम से पूजा करके फूल चढ़ाकर प्रणाम करना चाहिए। विश्वास किया जाता है कि हर दिन कामाक्षी दीप जलाने से सकल ऐश्वर्य प्राप्त होते हैं।
- 365 बत्तियों का दीप चमत्कारी है
- हर दिन प्रातः और संध्या को भगवान के सामने दीप को प्रज्वलित करना हिंदू संप्रदाय का एक रिवाज है। कभी-कभी किसी कारणवश दीप नहीं जलाने पर तथा दीप को जलाते समय होनेवाले दोषों के निवारणार्थ, और हर दिन दीप जलाने के पुण्य को प्राप्त करने के लिए साल में एक दिन अर्थात कार्तिक पूर्णिमावके दिन गाय के घी के 365 बत्तियों के दीप को जलाते हैं।
- पूरा दिन उपवास रहकर शाम को 365 बत्तियों के दीप को एक केले के पत्ते में रखकर नदी में बहा दिया जाता है।
- एक लाख बत्तियों का व्रत :
- वेलूर से 60 किलोमीटर दूर तिरुणामले नामक़्क़ शिव मंदिर है, जिसे अग्नितत्व शिवलिंग कहते हैं। यह कार्तिक पूर्णिमा को एक लाख दीपक जलाएं जाते हैं।
- ब्रह्मांड पुराण में एक लाख बत्तियों के व्रत के बारे में उल्लेख मिलता है। कार्तिक मास में इस व्रत का आचरण किया जाता है।
- सबसे पहले इस व्रत का संकल्प करके ब्राह्मणों द्वारा विधि-विधान के अनुसार बंधु-मित्रों समेत इस व्रत का आचरण किया जाता है। इस व्रत के आचरण से नित्य पूजा करते समय स्त्रियों द्वारा अनजाने हुए दोषों से मुक्ति मिलती है। दीप जलाते समय मंत्रपुष्प का पाठन और नारायण नाम स्मरण किया जाता है।
- आकाशदीप का रहस्य
- मंदिरों में संध्या समय में आकाशदीप को प्रज्वलित किया जाता है। एक ऊंचे स्तंभ पर इस दीप को रखते हैं, जो आध्यात्मिक रूप से विशिष्ट है।
- माना जाता है कि जो व्यक्ति भक्ति से आकाशदीप प्रज्ज्वलित करता है, उन्हें कभी भी अकाल मृत्यु नहीं होती, और जो लोग अपने पितरों के लिए आकाश दीपोत्सव करते हैं, उनके पितर उत्तम गति को प्राप्त करते हैं।
- आकाशदीप शास्त्रीय रूप से भी सम्मत हैं, क्योंकि वर्षा काल के बाद पानी में अनेक कीडे उत्पन्न होते हैं। साधारणतया मंदिर गाँव के एक कोने में निर्मित किए जाते थे। मंदिर के ऊपर
- आकाशदीप से कीटादि आकर्षित होकर गाँव में नहीं कार्तिक मास पहुँचते थे। इस प्रकार लोग स्वस्थ रहते थे।
- दीपों के विविध नाम :
- विविध स्थानों पर आराधना किए जाने वाले दीपों का अलग-अलग नाम है –
- घर में पूजा करते समय करनेवाली दीपाराधना ‘व्यष्टि’;
- तुलसी के सामने की जानेवाली आराधना बृंदावन,
- भगवान को विशेष रूप से की जानेवाली दीपाराधना ‘अर्चना’;
- नित्य में पूजा जलानेवाला छोटा दीप ‘निरंजना’;
- मंदिर के गर्भगृह के दीप ‘नंदादीप’;
- महालक्ष्मी मंदिर में प्रज्वलित दीप ‘धनलक्ष्मी दीप’; मंदिर के प्रांगण में बलिपीठ पर प्रकाशित दीप ‘बलिदीप’;
- उसके समीप ऊंचे स्तंभ पर प्रकाशित किए जाने वाला दीप ‘आकाशदीप’ कहलाते हैं।
कार्तिक के महीने में दीपाराधना तथा महत्व :
दीपावली के अगले दिन से कार्तिक मास शुरू होता है। कार्तिक मास की विशिष्टता दीपादान है। भगवान के सामने प्रज्वलित दीप को रखकर भक्ति पूर्वक पूजा करना दीपादान है।
अग्निपुराण में बताया गया है कि
दीपदानात्परं नास्ति न भूतं न भविष्यति ।”
- अर्थात्-दीपदान से बढ़कर पूर्व भी कुछ नहीं नही था, और भविष्य में कुछ नहीं होगा।
- प्राचीन ग्रंथों के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था। इस विजयोत्सव पर देवों ने दीपोत्सव मनाया था। इससे कार्तिक पूर्णिमा ‘देव दीपावली’ भी कहा जाता है।
- कार्तिक पूर्णिमा के दिन शिव मंदिर में दीप आराधना करना तीन करोड़ देवताओं की पूजा करने के समान माना जाता है।
- पुराणों में उल्लेख है कि भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को योग निद्रा में चले जाते हैं। चार महीनों के बाद कार्तिक एकादशी को जाग उठते हैं। इससे कार्तिक एकादशी ‘उत्थान एकादशी’ भी कहा जाता है।
- इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करके दामोदर दीप को प्रज्वलित करने से भगवान की कृपा बनी रहती है; माँ लक्ष्मी की कटाक्ष से धन संपदा का सौभाग्य प्राप्त होगा।
- अतः कार्तिक मास हरि और हर दोनों का पवित्र मास है और इससे कार्तिक मास को न कार्तिके समो मासो’ तथा ‘मासानां कार्तिकं श्रेष्ठो देवानां मधुसूदनः’ कहा गया है। इस पवित्र मास में शिव और विष्णु के मंदिरों में विशेष रूप से दीपों को प्रज्वलित किया जाता का विशेष अलंकार तथा पूजा की जाती है।
- उत्थान द्वादशी को ‘क्षीराब्धि द्वादशी’ भी कहा जाता है। विश्वास किया जाता है कि इस दिन को देव दानवों ने क्षीर सागर का मंथन किया था।
- इस दिन स्त्रियाँ घरों में तुलसी पौधे के साथ आंवले वृक्ष की शाखा को रख के पूजा करती है। तुलसी के सामने आंवले के दिए जलाए जाते हैं। इस पूरे मास में शाम के समय दीपों को जलाया जाता है।
- माना जाता है कि कार्तिक मास में मंदिर, नदी-तीर, घर और चौराहों पर दीपदान करने से पाप मिट कर अनेक प्रकार के शुभ, लाभ तथा मुक्ति मिलती हैं। जैसे ऊपर वर्णन किया गया है कि इस कार्तिक पूर्णिमा को 365 बत्तियों की पूजा और एक लाख बत्तियों के व्रत का संकल्प करके दीपों को प्रज्वलित किया जाता है, ताकि अनजाने किये दोषों से मुक्त मिल सके और एक साल दीपों को जलाने का पुण्य प्राप्त हो सके।
- कार्तिक मास में दीप को जलाना शास्त्रीय सहमत भी है: कारण यह है कि कार्तिक मास वर्षा काल के बाद आता है।
- बारिश से चारों ओर पानी होने से अनेक कीड़े उत्पन्न होते हैं। दीप प्रज्वलन करने से कीडे दीप कांति से आकर्षित होते हैं; गाँव के अंदर अथवा घर के अंदर वे कीड़े नहीं आते हैं। इस प्रकार से पुराने जमाने में कार्तिक मास में दीपों को जलाने की परंपरा शुरू हुई।
- कार्तिक मास में शाम को जल्दी ही अंधकार छा जाता है। मौसम ठंडा पड़ना शुरू होता है। इससे शीत, बुखार और चर्म से संबंधित अनेक रोग शुरू होते हैं।
- इनसे बचने के लिए वातावरण को कुछ गरम रखने के लिए दीपों को प्रज्वलित किया जाता था। इन कीड़ों को रोकने के लिए घर के देहली पर तथा तुलसी पौधे के पास दीप जलाएँ जाते हैं।
- इससे कार्तिक मास में केवल सोमवार, एकादशी, द्वादशी और पूर्णिमा के अलावा पूरा महीना जप-तप के साथ नियमों का पालन करते हुए दीप को प्रज्वलित करना एक पारंपरिक रिवाज बन गया है, जो शुभ माना जाता है।
- कार्तिक मास में दीप महत्व के बारे में कहा गया है कि
शुभं करोति कल्याणंमारोग्यं धनसंपदा |
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ।।
- उस दिव्य ज्योति को प्रणाम, जो शुभ, कल्याण करनेवाली है; जो स्वास्थ्य, धन-सम्पदा प्रदान करने वाली है तथा शत्रुओं का विनाश करती है।
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