मिच्छामी दुक्कड़म क्या है?

यह जैन धर्म का क्षमावाणी पर्व है। इस दिन भगवान महावीर के जेनी भक्तगण पूरे वर्ष हुई गलतियों के लिए दिल से क्षमा मांगते हैं। यह पर्व साल में एक बार ही आता है। मलिनता मिटाने के लिए यह एक अच्छी पहल प्राचीन काल से चलन में है।

भगवान विष्णु का बड़प्पन था कि महर्षि भृगु द्वारा उनकी छाती पर पद-प्रहार किया, किन्तु श्रीहरि ने ऋषि से पूछा? कोई चोट तो नहीं लगी। इस भगवान विष्णु का किसी भी तरह से सम्मान कम नहीं हुआ।

ये दोहा बहुत ज्यादा प्रसिद्ध था कभी—

क्षमा बड़ेन को चाहिए, छोटन को उत्पात

का रहिमन हरि को घट्यो, जो भृगु मारी लात।।

संत कवि रहीमदास ने कहा है-
रहिमन जिह्वा बावरी, कह गयी सरग-पताल।
आप कह भीतर गयी, जूती खात कपाल।।
अर्थात—

बावरी जिह्वा अंट-शंट बकवास करके, अपशब्द कह कर मुँह के भीतर चली जाती है। मगर बदले में सिर को मार खानी पड़ती है। इस जिह्वा के कारण संसार में बड़े-बड़े युद्ध हो गए हैं। द्रौपदी ने दुर्योधन को अंधे का पुत्र अंधा कहा और महाभारत के युद्ध की भूमिका तैयार हो गयी थी।

अहंकारी क्षमा मांग नहीं पाता और कमजोर कर नहीं सकता। यह समस्या सालों से है

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