राष्ट्रगान है क्या? अंग्रेजों का सम्मान या भारत का स्वाभिमान.

रविन्दनाथ टैगोर ने जन गण मन अधिनायक गीत जार्ज पंचम के भारत आगमन पर उनके सम्मान में लिखा था। जबकि बंदे मातरम आज देश का राष्ट्रगीत होता।

विदेशियों को महिमा मंडित करने के लिए राष्ट्रगान की रचना पारिश्रमिक देकर कराई थी।
अंग्रेजों शासकों हेतु लिखा राष्ट्रगान से केसे जागे स्वदेश में स्वाभिमान इस लेख में सत्य को जानेंगे।
जन गणमन अधिनायक जय हे। यह भारत का राष्ट्रगान है। इसे किन परिस्थितियों में राष्ट्रगान का दरजा मिला, यह जानना भारत वासियों का अधिकार है।
 जनगणमन अधिनायक और भारत विधाता कौन है?  जिसका जयगान हिंदुस्तान के रहवासी करते हैं।
  भारत के सभी प्रांतों, पर्वतों-हिमाचल तथा विंध्याचल आदि, नदियों- गंगा, यमुना आदि में तथा महासागर की उताल तरंगों में (तव-तुम्हारा) किसका नाम रचा-बसा है ? गूंज रहा है । (तव शुभनामे जागे)
 वह कौन-सी सत्ता या अदृश्य शक्ति है, जिसके शुभ-आशीष’ को याचना हम करते हैं ? (तव शुभ आशिष मांगे)
किसके यश को गाथा गाते हुए सारा देश किसका ‘जयगान करता है ? (गाहे तव जय गाथा)
यदि भारतीय जन-मानस के अधिनायक और ‘भारत भाग्य विधाता’ का उत्तर मिल जाए, तो अन्य प्रश्न स्वतः स्पष्ट हो जाएंगे। इस प्रकार पूरे गीत के प्रति उपजी जिज्ञासा का समाधान हो जाएगा।
दुनिया के हरेक देश के लिए राष्ट्रगान सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होता है… विश्व के किसी भी स्वतंत्र राष्ट्र के लिए उसका राष्ट्र-ध्वज और राष्ट्रगान सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होता है।
यह वस्तुतः उसकी स्वतंत्रता और गौरव का प्रतीक होता है।
देश का हर नागरिक, उसका सम्मान करते हैं, साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी विशेष अवसरों पर उन्हें समुचित सम्मान दिया जाता है।
भारत में स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले पर प्रधानमंत्री द्वारा तथा गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति द्वारा ध्वजारोहण किया जाता है, उसके तुरंत बाद ‘जनगणमन’ यानी ‘राष्ट्रगान’ की धुन बैंड पर बजायी जाती है।
भारत देश के सभी समारोहों में तथा अन्य विविध अवसरों पर भी ‘जनगणमन’ का गायन होता है।
 स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ‘तिरंगा झंडा’ कांग्रेस का झंडा था। उसमें चरखे के स्थान पर ‘अशोक-चक्र’ को स्थापित कर उसे ही स्वतंत्रता प्राप्ति पर राष्ट्र-ध्वज के रूप में स्वीकार किया गया।
जॉर्ज पंचम का गुणगान राष्ट्रगान के रूप में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर रचित ‘जनगणमन’ को गौरव प्रदान किया गया।
कभी-कभी यह जिज्ञासा होती है कि यदि गुरुदेव का स्वर्गवास स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व सा १९४१ में ही न हो जाता, तो क्या वे अपने इस गीत को ‘राष्ट्रगान’ बनने की स्वीकृति देते?
निश्चय ही विश्वस्त रूप से यह कहना अत्युक्तिपूर्ण होगा कि जिस गीत को गुरुदेव ने सन् १९११ में ब्रिटेन तथा (सभी ब्रिटिश उपनिवेशों के समान ही) भारत के भी शासक- जॉर्ज पंचम के भारत आने पर उनके अभिनंदन में लिखा था-
जिसमें – पराधीन भारत की झांकी मिलती है, जिसकी प्रत्येक पंक्ति जॉर्ज पंचम के गुणगान के साथ ही भारत की दीन-हीन स्थिति को उजागर करती है-उसे वे कभी भी इस रूप में स्वीकार न कर उस प्रस्ताव का विरोध ही करते।
 अधिनायक का तात्पर्य तानाशाह ‘जनगणमन अधिनायक जय हे !’ ‘अधिनायक’ का अर्थ शब्दकोष में तानाशाह अर्थात डिक्टेटर है।
राजनीतिशास्त्र में  ‘अधिनायकवाद’ के अंतर्गत हिटलर, मुसोलिनी आदि का उल्लेख मिलता है।
भारत में ब्रिटिश शासन की आज्ञा भी अटल थी-जो हमें इन पंक्तियों की याद दिलाती है।
“There is not to question why There is but to do and die.”
ऐसे अधिनायक जॉर्ज पंचम का जयगान किया गया था क्योंकि वे ही भारत के भाग्य (या दुर्भाग्य) के निर्माता भी थे।
एक बात और खटकती है कि गीत में उल्लिखित ‘सिंध-प्रदेश’ स्वतंत्र भारत में न होकर पाकिस्तान का अंग है और पंजाब तथा बंगदेश का अंग-भंग अर्थात विभाजन भी हो चुका है-जो दुःखद है। –
विदेशी शासक से संबंध था ‘तवशुभनामे जागे, तव शुभ आशिष मांगे, गाहे तव जय गाथा।’
शुभनाम, आशीष और जयगाथा का भी सीधा संबंध उन्हीं विदेशी शासक से है, जिनका नाम उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में हिंद महासागर तक और गुजरात, महाराष्ट्र से बंगाल, असम तक और गंगा-यमुना आदि नदियों में भी- अर्थात भारत के कणकण में व्याप्त था। इस गीत का दूसरा अंश इस प्रकार है
अहरह तव आह्वान प्रचारित
सुनि तव उदार वाणी। 
हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन, पारसी 
मुसलमान क्रिस्तानी। 
पूरब पश्चिम आशे। 
तव सिंहासन पाशे 
प्रेम-हार होय गाथा 
जनगणमन ऐक्य विधायक जय हे
सूर्य कभी अस्त नहीं होता था कहा जाता था कि विशाल ब्रिटिश राज्य में सूर्य कभी अस्त नहीं होता था।
स्पष्ट है कि कभी पूर्व में तो कभी पश्चिम में कहीं-न-कहीं सूर्य सदा चमकता और दृष्टिगोचर होता था।
 इंगलैंड के राजसिंहासन के कठोर आदेश रूप ‘पाश’ से ‘नागपाश’ का स्मरण हो आता है।
मानो सभी एक रस्सी से बंधे-से थे और वे एक डंडे से हांके जा रहे थे।
समझ नहीं आता है कि ये पंक्तियां उनकी स्तुतिपरक हैं या फिर हमारी परतंत्रता के बंधनों की अभिव्यक्ति हैं? उनकी राजाज्ञा से ही भारतीयों को जीने का अधिकार और मृत्यु की विवशता प्राप्त थी।
गीत के तीसरे अंश में दासता और हीनता… भारत जाग उठता है और तुम्हारे चरणों में अपना तुम्हारो दया/कृपा या करुणा के राग से सोता सिर झुकाता है।
 ऐसे राजाधिराज, भारत के भाग्य-विधाता की विजय हो।
विदेशी शासन भारत जब शासक के चरणों पर सिर झुकाता था की कृपा पर ही सांस लेनेवाला, सोया हुआ, तो क्या उसे किसी प्रकार के आत्मगौरव की के बंधनों को काटने के प्रयत्न में रत कितने ही अनुभूति होती थी? यदि ऐसा होता तो परतंत्रता देशभक्त भारतवासी फांसी के तख्तों पर क्यों लटकते?
स्वाधीन भारत में गौरवपूर्ण अवसरों पर जब पराधीन भारत की कटु स्मृतियों को सजीव करने वाला गीत गाया जाता है, तब मन विक्षुब्ध हो जाता है और कुंठा से भर जाता है।
पता नहीं राष्ट्र के कर्णधारों द्वारा इसका वरण क्यों किया गया था?

बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय की भारतमाता की वंदना ‘वंदेमातरम्’ और आजाद हिंद फौज का जनगनमन की धुन पर ही गाया जाने वाला गीत
सूरज बन कर जग में चमके
भारत नाम सुभागा। जय हे सबके मन में मातृभूमि के गौरव को उजागर करता है।
टैगोर का एक अन्य गीत भी मन को भारत-महिमा’ से ओतप्रोत कर देता है
अयि भुवनमनमोहिनी।
निर्मल सूर्य करोज्वल धरणी,
जनक-जननी जननी।
 नील सिंधु जल धौत चरण तल,
अनिल विकम्पित श्यामल अंचल।
अंबर-चुंबित भाल हिमाचल,
शभ्रतुषार किरीटिनी ॥ अयि भुवन…
इसी प्रकार –
अयि कल्याणमयि (त्वं) तुमि धन्या।
देशविदेशे वितरित अन्ना… आदि पंक्तियां हैं
– सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता ‘नेशनल एंथम’ (राष्ट्रगान) इकबाल का मीत ‘सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा बहुत अच्छा गीत है, जो देशभक्ति जैसे भावों से भरा हुआ है।
 यह मन को पुलकित कर देता है और हृदय में नया जोश भर देता है लेकिन विदेशी शासकों का जयगान। किसी विवाह. अथवा हर्षपूर्ण समारोह के अवसर पर गाने पर शेकगीत या उदासी का गाना क्या अनुपयुक्त नहीं लगता?
पिछले कुछ वर्षों से भारत में परतंत्रता के प्रतीकों को हटाने का प्रयत्न किया जा रहा है बहुत-से नगरों के नाम बदले गये हैं।
लखनऊ में भी जॉर्ज पंचम आये थे। १९११ में चारबाग. स्टेशन के बाहर उनके स्वागत में समारोह हुआ था।
 मुख्य डाकघर (जी.पी.ओ.) हजरतगंज के निकट के पार्क में जॉर्ज पंचम की सफेद संगरमरमर की विशाल प्रतिमा स्थापित की गयी थी।
 स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ वर्षों बाद उसे हटाकर वहां महात्मा गांधी की प्रतिमा को प्रतिष्ठित किया गया है। उसे ‘गांधी पार्क’ कहते हैं-
इसे सभी अनशन या आंदोलन करनेवालों ने आत्म-प्रदर्शन का स्थान बना लिया है।
प्रसिद्ध ‘किंग जॉर्जेस मेडीकल कॉलेज’ (के.जी.एम.सी.) को भी ‘महात्मा गांधी चिकित्सालय’ नाम दिया गया है।
जॉर्ज पंचम के चित्र का स्थान गांधीजी के चित्र ने ले लिया है। यद्यपि आम जनता उसे ‘मेडीकल कॉलेज’ के नाम से जानती है।
लखनऊ में ही एक विशाल पार्क ‘विक्टोरिया पार्क’ के नाम से जाना जाता थायहां सफेद संगमरमर के ऊंचे मंडप के नीचे संगमरमर की ही विक्टोरिया की विशालकाय भव्य प्रतिमा थी।
उसे हटाकर एक चबूतरा-सा बना दिया गया है।
 बेगम हजरत महल के स्मारक के रूप में इसी नाम से उस पार्क को जानते हैं।
 यहां बड़े-बड़े अधिवेशन व रैलियां भी होती हैं। संग्रहालय का भी नाम बदल दिया गया है। इसी तरह सड़कों के नाम भी परिवर्तित किये गये हैं।
हेवट रोड को शिवाजी मार्ग, कैनिंग स्ट्रीट को सुभाष मार्ग तथा कहीं सड़कों के नाम अशोक मार्ग तथा गौतम बुद्ध मार्ग आदि नाम दिये गये हैं।
भारत को स्वतंत्र हुए अर्धशताब्दी बीत रही किसी विवेकपूर्ण विचार-विनिमय के अंधानुसरण किया है।

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