क्या शादी न करके साधु बनना अच्छी बात है। amrutam

  • भारतीय उपनिषदों में महर्षि अगस्त्य ओर जरत्कारु की कहानी पढ़ने लायक है।
  • इनके पूर्वजों ने शादी नहीं कि ओर साधु बन गए।मारने के बाद ये सभी बहुत, प्रेत, पिशाच की योनि भोगते हुए महर्षि अगस्त्य को भारी परेशान करने लगें।
  • भयंकर खराब सपनों आकर ये सब पितृगण महर्षि से मुक्ति की प्रार्थना करते, तब अगस्त्य ने अपने गुरु से पित्तरों की शांति उपाय पूछा, तो उन्होंने विवाह कर सन्तान करने का आदेश दिया इर उस पुत्र से अपने पितरों को पिण्डदान देने को कहा और अंत में पूर्वजों की आत्मा की सगंती हेतु दोनों को विवाह करना पड़ा।
  • संसार में करोड़ों साधु भूखे मर रहे हैं। बीमार हैं। अनेको सड़ रहे हैं। बस कुछ ही साधु ऐश्वर्य भोग पाते हैं और कुछ भगवान के दर्शन कर मुक्ति पा जाते हैं।

साधु बनकर जो लोग शादी न करके अपनी माँ और परिवार के साथ छल करके उनका दिल दुखाते हैं।

  • स्कंध पुराण में स्पष्ट लिखा है कि गृहस्थ आश्रम से बड़ा अखाड़ा दूसरा नही है। गृहस्थ आदमी ही सबसे बड़ा साधक है, जो अपनी मेहनत की कमाई से सबक भला तथा दान पुण्य करता है।
  • एक हिसाब से समझा जाये, तो जो लोग मेहनत, परिश्रम से घबराते हैं। ये दिमागी रूप से भी कमजोर होते हैं। इन्हें अवसाद या डिप्रेशन की शिकायत होती है। अक्सर वही साधु महात्मा बनने की सोचते हैं।
  • ध्यान रखें भोलेनाथ ने हमें कर्म करने के लिए धरती पर भेजा है। कर्म के बिना धर्म, अर्थ नहीं आ सकता।
  • वर्तमासन काल में सीधे सच्चे इंसान सर्वाधिक पीड़ित हैं और दिमागी रूप से परेशान हैं। क्योंकि इस दोगली दुनिया से मात खाने के बाद रो पड़ते हैं। डिप्रेशन के लक्षण भी यही होते हैं।
  • दुनिया से दुःखी लोगों का साधु महात्मा होने का यही रुझान बनता जा रहा है और आज विश्वभर में करोड़ों व्यक्ति दिमागी रूप से प्रभावित है।
  • सोचो, खुद से भागकर कहाँ जाओगे, जो घर छोड़कर गए, वे गगर लौटने को आतुर हैं। आपके संग हर्ष नहीं है इसलिए जीवन संघर्ष लग रहा है।
  • दुनिया में कुछ भी निशुल्क नहीं है
  • आश्रमों में ओर भी अधिक मारामारी, राजनीति, कूटनीति चल रहीं हैं। वह रहकर मन ओर खराब हो जाएगा ओर भीख मांगकर रोटी खाने पड़ेगी।
  • आप एक बार हरिद्वार, मथुरा आदि तीर्थों पर जाकर देखें कि साधु का चोला पहने लोग सुबह से ही भंडारे की लाइन में लग जाते हैं।
  • सांसारिक जीवन में, तो आप एक बार सम्मान पूर्वक जी सकते हैं। लेकिन इन स्थानों पर तो आपके स्वाभिमान से हार दिन खिलवाड़ होगा।
  • भारतीय संस्कृति के अनुसार धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चार स्थितियां हैं। सबसे पहले धर्म यानी महादेव से जुड़ों। क्योंकि यही एक मात्र सत्यम, शिवम, सुंदरम है।
  • दूसरा जीवन का अर्थ समझते हुए अर्थ यानी धन कमाओ। बिना धन संसार में सब कुछ सून या खाली है।
  • तीसरा काम यानी कर्म और विवाह कर परिवार की वंशवृद्धि करना।
  • चौथे स्थान पर मोक्ष, मुक्ति का साधन अपनाकर जीवन को संभालने का प्रयास करना चाहिए।
  • मन को अमन यानि शांति-सुकून दें। मन का वजन, वतन से भी बड़ा होता है। मन की गति सूर्य से अनेक गुना अधिक है। मन को चन्द्रमा चलाते हैं। वैदिक मन्त्र है कि

चन्द्रमा मनसो जाताश्चक्षो सूर्यो अजायत।

श्रोत्रांवायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत। (ऋग्वेद)

ध्यान देने वाली बात ये है कि- प्राणी के दो रूप होते हैं- एक सूक्ष्म तथा दूसरा स्थूल। स्थूल शरीर में दो भुजाएं, दो आँख, नाक, पैर, सिर एवं पेट-पीठ आदि होते है। जिससे प्राणी अपनी भौतिक क्रियाओं को करता है और सूक्ष्म शरीर में बुद्धि, विवेक, चेतना, भावना, संवेदना आदि होते है। जिससे वह अपना काम करता है।

  • मन के खराब होने से तन का पतन निश्चित है। जब मन नहीं लगेगा, तो धन भी नहीं आएगा।
  • कहा गया है कि जब इच्छाएं असीमित होती हैं, तो मन बहुत भटकता है। फिर किसी भी कम में मन नहीं लगता।

तन की भूख तनिक है, तीन पाव या सेर।

मन का मान अपार है, कम लागे सुमेर”।।

मन शांत होगा, तब हर जगह मन लगेगा।

  • लोगों को विश्व के नाथ यानि बाबा विश्वनाथ पर अटूट विश्वास करने से सब सकारात्मक होने लगेगा। हम मूलाधार से भटक गए हैं। महादेव ही एक ऐसी अदृश्य परम् वैज्ञनिक सत्ता है, जो नष्ट ओर निर्माण की कारक है ।

‎दुनिया जिन देशों ने भी अपनी प्राचीन परम्पराओं को पीछे पछाड़ा वे आज तन-मन के रोग-राग के रहस्य को पकड़ नहीं पाए ।

‎प्राचीन पद्धतियों से हम सदा प्रसन्न रह सकते हैं। ये हमें जीना सिखाती हैं। अमृतम आयुर्वेद भी हमें रोगों की ‎राह में ले जाने से बचाकर भय-भ्रम मिटाता है ।

  • ‎भय की वजह से विकार होते हैं। मन कमजोर होता है। हमारे चार पुरुषार्थ ‎धर्म, अर्थ, काम एवम मोक्ष बेकार कर देते हैं। प्राकृतिक नियम धर्म, संस्कृति के प्रति लापरवाही हमें राग-रोग, व्याधि-बाधा, से भर देती है ।
  • ‎व्यक्ति विकार का शिकार हुआ कि काम खत्म! मन के कारण विकारयुक्त विचार हमारा व्यवहार, बदल देते हैं ।फिर हम भय-भ्रम से भरकर ‎भटकते रहते हैं औऱ जो भी भय से भरा है वही भाग्यहीन है।
  • भय के पीछे मृत्यु का चेहरा है। कभी तन की मौत, कभी मन की, तो कभी धन की मृत्यु ‎का भय।

‎तन से हम सुख भोगते हैं। लेकिन देह का रखरखाव नहीं करते। जीवन में भाग्य- भोग जरूरी है। भोग का रोग से राग-रिश्ता है इसलिए यह भय सदा सताता है कि- तन रोगों से न भर जाए।

  • ‎बीमारी मन से होती हैं। जैसा मन, वैसा तन बन जाता है। कहीं रोग न लग जाये के ‎भय से हम चिकित्सक के पास भाग खड़े होते हैं। तत्काल लाभ के चक्कर मे अंग्रेजी दवाओं के इस्तेमाल से शरीर की जीवनीय शक्ति अर्थात इम्युनिटी क्षीण कर बैठते हैं ।
  • तन-मन दुरुस्त रखने का तरीका… ब्रेन की गोल्ड माल्ट और टेबलेट का नियमित सेवन करें, तो जीवन में रोग कभी रास्ते मे भी नहीं आएंगे। इसमें ब्राह्मी, शंखपुष्पी, जटामांसी, अगर, चन्दन का मिश्रण है, जो निगेटिव विचार व विकार के विष का विनाश करता है ।
  • ‎अमृतम दवाएं- तन-मन के रोग मिटाएं…ब्रेन की गोल्ड माल्ट यह रोगों को दबाता नहीं, अपितु जड़ से मिटाता है! अमृतम आयुर्वेद के लिये अनुभवों की अमूल्य धरोहर है।

‎मन की मृत्यु से हमारी आत्मा दूषित हो जाती है। वेद-वाक्य है-आत्मा ही परमात्मा है। आत्मा मरी कि मानवता का महाविनाश निश्चित है। कहा गया है कि- मन के मत से मत चलिओ, ‎ये जीते-जी मरवा देगा! किसी महान आत्मा ने महादेव से मनुष्य की मदद के लिए मन ही मन मनुहार की है कि

  • अरे मन समझ-समझ पग धरियो, इस दुनिया में कोई न अपना, परछाईं से डरियो ……।

‎अमृतम जीवन का आनंद अशांति त्यागने में है! मन की शांति से ही, आकाश में अमन है। जरा (रोग), जिल्लत(अपमान) जहर युक्त जीवन अमृत से भर जाएगा। फिर मुख से बस इतना ही निकलेगा…

  • ‎“बोले सो निहाल”…..निहाल (भला) करने वाले की वाणी गुरुवाणी समान हो जाती है! सभी ग्रंथों, पंथों, संतों का यही वचन है! मन शांत हुआ कि सारी सुस्ती, शातिर पन, स्वार्थी पन, शरीर की शिथिलता, समझदारी सहज सरल हो जाएगी!
  • ‎धन की मृत्यु जीवन का अंत है, क्योँ कि धन हमें पार लगाता है!;धन से ही सारा मन -मलिन,मैला या हल्का, साफ-सुथरा हो जाता है! धन से ही ये तन ,वतन ओर अमन-चमन है! सारी पूजा-प्रार्थना का कारण धन की आवक है!

‎पहले कहते थे- धन गया तो कुछ नहीं गया, तन गया तो कुछ-कुछ गया,-‎लेकिन चरित्र गया, तो सब कुछ चला गया । लेकिन अब वक्त बदल सा रहा है-आधुनिक युग का आगाज है। चरित्र गया, तो कुछ नहीं गया बल्कि आनंद आ गया, तन गया, तो कुछ गया, परंतु धन चला गया, तो समझों सबवकुछ चला गया। धन के जाते ही रिश्तों में रिसाव होने लगता है। ज्यादा रूठने व लालच से रिश्ते रिसने लगे हैं।

  • ‎धनवालों को ही रिझाने में लगे हैं लोग। धन अब मन की मलिनता बढाने वाला यह एक राष्ट्रीय रोग हो रहा है । अपने रो रहे हैं, परायों पर रियायत (दया) हो रही हैं ।

‎ एक बहुत पुराना गीत है-

रिश्ते-नाते, प्यार-वफ़ा सब वादे हैं, वादों का क्या।

  • ‎सेवा-दया का भाव ‎त्यागकर चिकित्सा अब विशाल व्यापार हो चुका है।
  • मरा ओर जिंदा इंसान बिक रहा है।
  • ‎केवल भय-भ्रम, रोग-राग तथा अज्ञानता के कारण सारा संसार का मन भारी है।
  • ‎अतः हमें लौटना होगा, अपनी पुरानी परिपाटी ओर प्राचीन प्राकृतिक चिकित्सा की और।
  • ‎पुनः स्थापित करना होगा अमृतम आयुर्वेद को, पहचानना होगा, प्राचीन परम्पराओं को ।
  • ‎परम् सत्ता को….पूर्वजो, परिवार की शाँति-सकूँ के लिए!

‎40-45 वर्षों के घनघोर संघर्ष, अनुभव, अध्ययन, व अनुसंधान के पश्चात‎ “अमृतम” फार्मास्युटिकल्स-की स्थापना सन 2006 में इस पवित्र भाव से की गई की अमृतम औषधियों का-प्रभाव अत्यंत-असरकारक एवम शीघ्र लाभदायक हों!

  • ‎अमृतम द्वारा जड़ी-बूटियों के स्वभाव को संगठित कर करीब 25 तरह के अवलेह यानि माल्ट ‎(malt) सहित विभिन्न करीब 90-100 अमृतमवदवाओं का निर्माण प्रारम्भ किया है, ताकि सभी के सब, सदा के लिए असाध्य, जटिल, पुराने से पुराने रोग-विकारों का सर्वनाश हो सके।

‎ ” अमृतम” नवीन निर्माण की प्रक्रिया में फिलहाल प्रचार-प्रसार, प्रसिद्धि से परे है, लेकिन अपनी गुणवत्ता युक्त दवाओं के कारण हम अतिशीघ्र अंतरराष्ट्रीय ओर आयुर्वेद बाज़ारों में अपना सर्वोच्च स्थान बना रहे हैं, बना भी लेंगे ।

  • ‎ऐसा ही विन्रम प्रयास जारी है। अमृतम आयुर्वेद एक सम्पूर्ण चिकित्सा पद्धति है। देशकाल, परिस्थितियों के अनुरूप नवीन प्रस्तुतिकरण आदि में परिवर्तन आवश्यक है। सदमार्ग दिखाने वाले कई वेद-पुराण, ग्रंथ का आरम्भ व अंत निर्देश देता है कि.. ‘परिवर्तन संसार का नियम है’ श्रीमद्भागवत गीता का भी मूल सार यही है।

‎ मन को प्रसन्न रखने के लिए सब चिंता त्याग, गहन चिंतन त्यागना होगा। इसके पश्चात पीड़ित,परेशान पुरुषों के लिये परम् परिश्रम से नित्य नई व्याधियों के उपचार हेतु नए प्रयोगों, साधनों को खोजा।

  • अमृतम ने सर्वजन्य हिताय-सर्वजन्य सुखाय का ध्यान रखते हुए जड़ी-बूटियों के अलावा विभिन्न मुरब्बे, मेवा-मसाले, जीवनीय द्रव्यों, रस औषधियों, खनिज-पदार्थों ओर रस भस्मों का आयुर्वेद की आधुनिक पद्धतियों द्वारा अनुभवी आयुर्वेदिक वचिकित्सकों की देख-रेख में उत्कृष्ट 100 के करीब अमृतम दवाओं का निर्माण कर रहे हैं ।

‎ अमृतम दवाएं की सूची…

ब्रेन की गोल्ड माल्ट वात,पित्त,कफ त्रिदोषनाशक हैं। इसके लगातार सेवन से मनसा, वाचा, कर्मणा तीनों प्रकार की शुद्धि होती है। तन के तीन शूलों का नाशक है।

  • मलिन मन को साफ कर,सख्त शरीर में शक्ति भरकर चुस्ती-स्फूर्तिदायक है।
  • आमला, हरीतकी मुरब्बा, मालकांगनी, सेव मुरब्बा, गुलकंद, केशर, नागकेशर, विदारीकंद, अश्वगंघा, गिलोय, शंखपुष्पी, अर्जुन, त्रिफला, स्मृतिसागर रस, स्वर्ण भस्म, आदि अनेक अद्भुत असरदार औषधियों का मिश्रण चमत्कारी परिणामों को सुनिश्चित करता है।

ब्रेन की गोल्ड माल्ट मन की बेचैनी या घबराहट से गर्मी और पित्त के कारण प्रकट परेशानियों, त्वचा में जलन, क्रोध, चिड़चिड़ापन, ‎बेचेनी, भूख न लगना, खून की कमी, पेट साफ न होना, पुरानी कब्ज, आलस्य, थकावट विकारों को दूर करने में सहायक है ।

अमृतम ब्रेन की गोल्ड माल्ट दिमाग सम्बंधित समस्याओं अथवा रोगों को पुनः पैदा नहीं होने देता।

सेवन विधि –5 से 12 साल तक के बच्चों को सुबह-शाम आधा चमच्च दो बार गुनगुने दूध से ।

‎शेष सभी उम्र के स्त्री-पुरुष 2 या 3 बार एक चम्मच गुनगुने दूध से सेवन करें।

अमृतम ब्रेन की गोल्ड माल्ट– ‎परांठे या रोटी में लगाकर भी खाया जा सकता है।

‎शराब का नियमित या कभी-कभी सेवन करने वाले रात्रि में 1 या 2 चम्मच सादे जल से लेवें तो लिवर, किडनी एवम उदर रोगों की सुरक्षा होती है।

‎ब्रेन की गोल्ड माल्ट महिलाएं इसका हमेशा सेवन करें, तो लिकोरिया आदि स्त्री रोग नहीं सताते।

‎गर्भवती स्त्री भी इसे निसंकोच ले, तो शिशु रोगरहित रहता है ओर बच्चा विद्वजन निकलता है।

  • चन्द्र की खास बातें… चंद्रमा मनुष्य के मन का मालिक है। जब किसी की कुंडली में चंद्रमा की स्थिति कमजोर या दोषपूर्ण स्थिति में हो, तो जातक को मन-मस्तिष्क से मिलने वाली एनर्जी परेशानयों के रूप में परिवर्तीत हो जाती है।
  • चन्द्रमा ग्रह हमारे मन का सूचक और मन का कारक है। चन्द्रमा कर्क राशि के स्वामी हैं। वृषभ राशि में उच्च के तथा वृश्चिक राशि में नीच राशिगत हो जाते हैं।

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