- नैवेद्य अर्पित करना हो तो स्कंध पुराण के मुताबिक शिवजी सृष्टि के प्रथम पितृ हैं और पितरों को हमेशा सफेद मिष्ठान का ही नैवेद्य अर्पित करना शुभ फलदायक रहता है।
- देवी को सदैव घर का बना हुआ या खीर, पूड़ी, मालपुआ आदि अर्पित चढ़ाना उचित रहता हैं।
- नैवेद्य को पान के पत्ते पर ही रखकर चढ़ाने से घर में धन धान्य की वृद्धि होती है।
- नैवेद्य अर्पित करने के बाद एक दीपक जरूर जलाएं।
- प्रसाद चढ़ाने से ज्यादा अच्छा है की मंदिर में अग्निसाक्षी का प्रतीक दीपक को बताया गया है। अतः देशी घी का दीप प्रज्जलीत जरूर करें।
अघोरी अवधूत संत कहते हैं!
भोग लगे या रूखे सूखे, शिव तो हैं श्रद्धा के भूखे।
- पहली बात तो यह ही की शिव जी या किसी भी देवी देवता को नैवेद्य अर्पित किया जाता है। नैवेद्य चढ़ाने के बाद बचा हुआ शेष भाग प्रसाद खिलाता है और प्रसाद को जब खाने हेतु सबको दिया जाता है उसे भोग कहते हैं।
- ध्यान रखें नैवेद्य, प्रसाद एवम भोग तीनों अलग अलग चीज हैं।
- नैवेद्य को निम्नांकित मंत्र द्वारा अर्पित करने की वैदिक संस्कृति है, जिसे मंदिर के पुजारी ठीक से करते नहीं हैं। आपका अर्पित किया हुआ नैवेद्य तभी स्वीकार होता है, जब विधि विधान चढ़ाया जाए।
ॐ व्यायानाय स्वाहा
ॐ उदानाय स्वाहा
ॐ समानाय स्वाहा
ॐ अपानाय स्वाहा
ॐ ब्रह्मअणु स्वाहा
- इन मंत्रों के साथ ही नैवेद्य अर्पित करने से सही फल मिलता है और मनोकामना पूर्ण होती है।
- अघोरी साधु एक बात ये भी कहते हैं कि नैवेद्य हमेशा स्वयं के हाथों का बना हुआ ही अर्पित करना चाहिए।
- उनके अनुसार ह सब पाखंड है। इससे मंदिरों में गंदगी फैलती है। अगर भगवान प्रसाद खाने लगता, तो कोई भी नहीं चढ़ाता।
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