भगवान को चढ़ाया गया जल हमेशा उत्तर दिशा की तरफ उतरता है। जिस ओर से गिरता है, वहीं सोमसूत्र का स्थान होता है।
सोमसूत्र में शक्ति-स्रोत होता है, अत: उसे लांघते समय पैर फैलाते हैं और वीर्य निर्मित और पांच अन्तस्थ वायु के प्रवाह पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इससे उदर की मूल 5 वायु में से देवदत्त और धनंजय वायु के प्रवाह में रुकावट पैदा हो जाती है। जिससे शरीर विकारयुक्त होने लगता हैऔर मन पर बुरा असर पड़ता है। अत: शिवलिंग की आधी परिक्रमा अर्थात अर्ध चंद्राकार प्रदक्षिणा ही करने का शास्त्र, वेदों का आदेश है।
स्कंध पुराण के अनुसार शिवलिंग के जल निकलने वाले स्थान को जलहरी, जलेरी, सोमसूत्र, अरघा आदि बताया है। यह जलहरी सदैव उत्तर मुखी होती है।
शास्त्र वचन है कि-
अर्द्ध सोमसूत्रांतमित्यर्थ: शिव प्रदक्षिणीकुर्वन सोमसूत्र न लंघयेत!! इति वाचनान्तरात।”
उत्तर दिशा में गुरु का स्थान होता है। शिव साधक सदगुरु हमेशा उत्तरमुखी होकर ही बैठते हैं। जलहरी को लांघना इसलिए अनुचित है क्यों कि इससे गुरु का अपमान होता है। दूसरी बात शिवलिंग पर अर्पित पवित्र जल हमारे पैरों से दूषित न हो जाये। यह जल गुरु मुख में जाता है। ऐसा शास्त्र बताते हैं।
भगवान सूर्य की सात परिक्रमा करने पर सारी मनोकामनाएं जल्द ही पूरी हो जाती हैं। इसे एक ही स्थान पर खड़े होकर सात बार लगाया जाता है। मतलब वहीं पर 7 बार चक्कर लगा लें।
प्राय: सोमवती अमावास्या को महिलाएं पीपल वृक्ष की 108 परिक्रमाएं करती हैं। हालांकि आँवला, कचनार, बरगद आदि सभी देववृक्षों की १०८ परिक्रमा करने का विधान है।
पुत्र प्राप्ति के लिए पीपल वृक्ष पर 108 बार सफेद कच्चा सूट यानी धागा रविवार को दुपहर 11 बजे से 1 बजे के बीच लपेटे तो सन्तति हीन को सन्तान सुख मिलता है।
जिन देवताओं की प्रदक्षिणा का विधान नही प्राप्त होता है, उनकी तीन प्रदक्षिणा की जा सकती है। लिखा गया है कि-
‘यस्त्रि: प्रदक्षिणं कुर्यात् साष्टांगकप्रणामकम्। दशाश्वमेधस्य फलं प्राप्रुन्नात्र संशय:॥’
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वेद रहस्य,
ईश्वरोउपनिषद,
शिवसूत्र,
अग्निपुराण,
काली तन्त्र,
प्रतीक कोष
अवधूत साधना आदि
आध्यात्मिक एवं दार्शनिक महत्व :
व्यक्ति का संपूर्ण जीवन ही एक चक्र है। इस चक्र को समझने के लिए ही परिक्रमा जैसे प्रतीक को निर्मित किया गया।
इसका एक कारण यह भी है कि संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रत्येक ग्रह-नक्षत्र किसी न किसी तारे की परिक्रमा कर रहा है। यह परिक्रमा ही जीवन का सत्य है।
भगवान में ही सारी सृष्टि समाई है, उनसे ही सब उत्पन्न हुए हैं, हम उनकी परिक्रमा लगाकर यह मान सकते हैं कि हमने सारी सृष्टि की परिक्रमा कर ली है। परिक्रमा का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी है।
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