किसी ताकतवर आदमी के सताने पर, सम्मान पर चोट पहुंचाने के बाद अत्याधिक गुस्सा, क्रोध आता है। इस क्रोध को शांत करने के लिए शारीरिक रूप दे
हिंसा न करते हुए अंदरूनी तरीके से अथवा मौखिक रूप से की गई हिंसात्मक कार्यवाही के लिए चुने गए
शब्दों का समूह जिसके उच्चारण के पश्चात मन-मस्तिष्क असीम शांति का अनुभव होता है।
उसे हम गाली कहते हैं।
कुछ व्यक्ति बात बात पर गाली को प्रयोग करते है। विशेषकर भिंड-मुरैना, ग्वालियर मप्र की गालियां दुनिया में प्रसिद्ध और अमर हैं- यहां भोसड़ी के कहना एक तरह से लोगों का तकियाकलाम हैं। वही महाराष्ट्र में गली देना बहुत बड़ा अपराध माना जाता है।
यहां गलिन देने पर जान भी जा सकती है।
मंगल उत्सव एवं विवाह के दौरान महिलाओं द्वारा सम्बधी के लिए गाये गए फूहड़ गीत भी गारी या गाली कहलाते हैं।
जैसे-
ढाड़ी सुख गई बलम तोरे, देख गुलाबी नैना।
खानों-पीनो भूल गई, बलम तोरे देख शराबी नैना।।
दूसरा है-
हमारे आ गए लिबौआ, भेज दे बलम पीहर भेज दे।
तीसरा है-
हमाये सम्बधी की मूंछ जैसे कुत्ता की पूछ।
चौथा है-
दौना आरे में रखो है भोजी खाले रबड़ी,
खाले रबड़ी के, भोजी हे-जा तगड़ी।
पांचवा है-
मैं जब पीहर जाऊं रे बलमा भूखों जिन मरिये।
अपने गांव में चक्की लगी है, आटो रोज पीसईये।।
चूल्हों धरो है उठउल, कछु उल्टो काम न करियो।
गुरु, शिक्ष, माता-पिता की गाली खाने जीवन सुधर जाता है। यह भारत की प्राचीन मान्यताएं हैं।
भिंड मुरैना की गालियां विश्वभर में प्रसिद्ध हैं। जैसे- तू मेरी झांट का पसीना भी नहीं है।
कुछ जगह बुरचोद, भोसड़ी के, मादरचोद, बहनचोद, आदि बहुत सी गाली देने का चलन है।
कुछ बड़चोदी में धौंस देते हुए कहते हैं कि-
छाती में इतेक गोरी (गोली) ठोक देंगे कि-
बीनत-बीनत थक जागोगे ओर इकट्ठी कर लईं, तो गोली बेच के करोड़पति है जायेगो।
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