फैटी लिवर की वजह से कुछ भी पचता नहीं है। पेट में तरल पदार्थ बनने लगता है।
यकृत्गत मेदोसंचय यानि फैटी लिवर होने की दो वजह मुख्य हैं।
मदिरापान या मद्यपान ज्यादा करने से (Alcohol) तथा मिथ्या-आहार (Unhealthy lifestyle), जिसमें वसायुक्त खाद्यपदार्थों का अत्यधिक सेवन तथा न्यूनतम शारीरिक श्रम प्रमुख रहते हैं।
फैटी लीवर की बीमारी होने पर शरीर को पर्याप्त ऊर्जा नहीं मिल पाती है।
शरीर के पेट के हिस्से में जहाँ पर लीवर होता है वहाँ पर सूजन दिखाई देती है।
यकृत्गत मेदोसंचय यानि फैटी लिवर सिंड्रोम या बीमारी होने की स्थिति में लीवर के आसपास वसा का जमाव हो जाता है जिससे लीवर पर सूजन आने लगती है।
चरक सहिंता, भारत भैषज्य, चक्रदत्त आदि किताबों के अनुसार यकृत की खराबी के लक्षणों में पेट साफ न होना,
कब्ज बनी रहना, उल्टी होना, संग्रहणी यानी आईबीएस ibs डिसीज, भूख लगना, थकावट, आलस्य, दस्त होना, पीलिया, लगातार वजन घटना, शरीर में खुजली होना आदि शामिल है।
फैटी लिवर की तकलीफ से शरीर में मेदोसंचय होकर स्थौल्य (Obesity), रक्त में अत्यधिक मेदोसंचय (Dyslipidemias),
मधुमेह (Diabetes), धात्वाग्नि-दुष्टि (Metabolic dysfunction) तथा समान-वात-क्षय (Hypo-thyroidism) होकर यकृत्गत मेदोसंचय होता है।
आजकल अधिकांश लोगों को यकृत रोग का कारण एलोपैथी मेडिसिन की अधिक मात्रा में उपयोग।
क्या खाना हितकारी है…
हमें लिवर की सुरक्षा के लिये सदैव सुबह नाशते के साथ पपीता, अमरूद, अंजीर, गन्ने का रस जरूर लेना चाहिए।
यकृत में क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को दुरुस्त करने के लिए चुकंदर जरूर खाएं क्योंकि इसमें बीटा केरोटीन की भरपूर मात्रा पाई जाती है।
सुबह खाली पेट चुकंदर, पपीता, अमरूद खाने से लिवर की सफाई होने लगती है।
सुबह खाली पेट कीलिव माल्ट दूध के साथ, भोजन के बाद कीलिव स्ट्रांग सिरप
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और रात्रि भोजन से एक घण्टे पहले कीलिव कैप्सूल एक सादे जल से लेने की आदत बनाएं। इसमें आयुर्वेद की कारगर और असरकारी जड़ी-बूटियों का समावेश है-
वर्तमान में यकृत्गत मेदोसंचय यानि Fatty liver की बीमारी विकराल रूप धारण कर रही है।
यकृत रोग का मुखः कारण है-भोजन न पचना, संग्रहणी और कब्ज बनी रहना।
यकृत रोगों की श्रृंखला…
पीलिया, लिवर में सूजन, सिरोसिस (Cirrhosis), लिवर कैंसर (CA liver) तथा
इसोफेजिअल वेराइसिस Esophageal varices) में से कोई न कोई उपद्रव हो चुका होता है।
प्रायः आरम्भ में इससे या तो कोई कष्ट नहीं होता अथवा यकृत् के स्थान पर हल्का सा दर्द महसूस होता है।
लिवर का समय पर इलाज न करने से भविष्य में असंख्य प्रकार के उपद्रव हो सकते हैं।
जैसे- यकृत्-काठिन्य (Cirrhosis of liver), अन्ननलिका-आमाशय द्वार पर सिरा-गन्थियाँ (Esophageal varices), तथा यकृत्गत कर्क-रोग (Malignancies in the liver)
लिवर हमारे शरीर के अंदर रहते हुए भोजन पचाने से लेकर रक्त निर्माण आदि खून से हानिकारक और विषैले पदार्थों को भी फिल्टर कर अलग कर एक साथ कई काम करता है।
यकृत मानव देह का दूसरा सबसे बड़ा अंग है। अंग्रेजी में इसे लिवर, हिंदी में यकृत, उर्दू में जिगर और कलेजा भी कहा जाता है।
आयुर्वेद के प्राचीन ग्रन्थ रसतन्त्र सारः तथा द्रव्यगुण विज्ञान में यकृत्गत मेदोसंचय (Fatty liver) रोग नाश आने औषधियों का उल्लेख है-
मेदोहर औषधियाँ -Anti-hyperlipidemic drugs
यकृत्गत मेदोसंचय (Fatty liver) यदि स्थौल्य (Obesity) तथा अत्यधिक रक्तगत मेदोसंचय (Hyoerlipidemia) से हुआ हो
तो ऐसे में मेदोहर औषधियाँ (Anti-hyperlipidemic / Antiobesity drugs) दी जा सकती हैं। इसके लिए निम्न औषधियों का उपयोग कर सकते हैं –
शुद्ध गुग्गुलु, गण्डीर, पिप्पली, पुर्ननवा, नागरमोथा, चित्रक, शुण्ठी, मरिच, कलौंजी, विडंग इत्यादि।
ये औषधियाँ मुख्य रूप से थायरॉइड हार्मोन्स का उत्पादन व क्रिया बढ़ाकर (Thyro-stimulant action) सम्पूर्ण
देह व यकृत्गत अतिरिक्त वसा का दहन-पाचन बढ़ाती हैं व यकृत्गत मेदोसंचय कम करती हैं।
भूम्यामलकी, काकमाची, शरपुंखा, भूम्यामलकी, पुनर्नवा, भृंगराज, कटुकी, कासनी, हरीतकी, पटोलपत्र इत्यादि।
ये जड़ीबूटी यकृत्गत विकृतियों (Hepatic abnormalies) को दूर कर उनकी क्रियाओं में साम्यता लाती हैं
(Normalize liver functions), व धात्वाग्नियों को सामान्य करती हैं। इससे सम्पूर्ण देह व यकृत् की अतिरिक्त वसा का दहन-पचन बढ़ाकर यकृत्गत मेदोसंचय कम करती हैं।
सावधानी, परहेजवभी करें….हल्का व सुपाच्य भोजन करें जिसमें वसा व मधुरता कम हो, जबकि ताज़े फल, ताज़ी पत्तेदार सब्ज़ियाँ, व प्रोटीन्स अधिक हों।
प्रतिदिन 3 से 5 लिटर पानी पीयें।
फैटी लिवर से पीड़ित रोगी भूलकर भी निम्नलिखित चीजों का न करें उपयोग…
अरहर की दाल, रात में दही, मठा, फल, जूस, रायता, गर्म पानी, हल्दी वाला दूध और देर से या आसानी से न पचने वाली वस्तुओं का परित्याग करें।
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