जालिम नजरों से क्या बदन, हुस्न और स्तन देखते हो।क्या पर्दे के पीछे भयंकर दर्द का समुंदर भी देखते हो।
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- नारी स्तनधारी है लेकिन अमृत की जननी भी है। यहीं ममता और कामुकता का भंडार है।
- हमारा निवेदन नई पीढ़ी से बस इतना है कि वक्ष के साथ-साथ वृक्ष पर भी ध्यान देंवें। साल में एक पेड़ अवश्य लगाएं। ये घाव नहीं छांव देंगे। साथ ही शादी से पहले अकेले रहो, इससे हाथों में दर्द जरूर होगा, परन्तु दिल में नहीं।
बुजुर्ग कहते थे कि- लड़कों का मन और लड़कियों के स्तन सदैव बड़े होना चाहिए। यदि कोई चीज बड़ी है, तो उसे दिखाना लाजिमी है।
मन और स्तन को घर पर नहीं रखा जा सकता। यह देखने—दिखाने के लिए ही परमात्मा ने हमें प्रदान की है। मन व स्तन की सुंदरता के लिए तन की तंदरुस्ती भही जरूरी है। तन का पतन होते ही ये शरीर रूपी वतन शत्रु बनकर अन्तर्मन को तपन देना शुरू कर देता है।
बरक्कत केवल औरतों के हाथों में ही होती है…
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- ईश्वर ने नारी की सुंदरता हेतु 16 श्रृंगार देह में ही स्थापित कर दिए और पुरुष को हिलाने के लिए डंडा दे दिया। यह 2 इंच का हथियार भी स्त्री का हाथ लगते या छूते ही 6 से 8 इंच का हो जाता है। यह इस बात का सबूत है कि बरक्कत या बढ़ोतरी केवल महिलाओं के हाथ में है।
- एक बात यह भी पक्की है कि दुनिया की सभी करंसी पर पुरुषों के फोटो हैं, लेकिन इस पर अधिकार औरतों का ही है।
- नारी की होशियारी, अय्यारी, तैयारी के आगे जगत नतमस्तक है। ये स्तन दिखाकर लड़कों का मन जीत लेती हैं और कुछ लड़कियां तन दिखाकर धन हर लेती हैं।
- लड़कियों की छाती में लड़कों की पाती, एनर्जी, शक्ति, ऊर्जा छुपी हुई है। अगर वे छाती नहीं दिखाएंगी, तो बुढ्ढों के नाती कैसे होंगे।
छाती के बारे में एक कवि का काव्य पढ़ने योग्य है।
काया कंचन की बनी, काहे को कटि क्षीण।
गर कूचे कंचन के बने, तो मुख काला क्यों कीन।।
जबाब इस प्रकार है-
कटि से कंचन काढ़के कुचिन मध्य धर दीन।
यौवन के मद मस्त होए मदन मोहर धर दिन।।
यह कविता या दोहा बहुत बड़ा है, मुझे पूरा याद नहीं है। अगर किसी के पास सम्पूर्ण कवित्व हो तो लिखें।
शेख और आलम
परम्वि कृष्ण भक्त पंडित आलम रीतिकाल के बहुत प्रसिद्ध कवि हुए।
सनाढ्य ब्राह्मण जाति में जन्मे कवि आलम रीतिकाल के एक प्रसिद्ध कवि थे। पंडित की कवित्व योग्यता से औरंगजेब के दूसरे बेटे मुअज्जम बहुत प्रभावित होने की वजह से पंडित आलम उनका राज कवि बना। एक बार उन्हें एक समस्या पहेली के रूप में दी गई और इसे पूरा करने के लिए कहा गया।
दोहे की वह पंक्ति कुछ यूँ थी :-
!कनक छरी सी कामिनी, काहे को कटि छीन!
बहुत सोच-विचार करने पर भी वे इसके समाधान में दूसरी पंक्ति न सोच पाए। जिस कागज पर यह पंक्ति लिखी गई थी, वह कागज उन्होंने अपनी पगड़ी में रख लिया। वह कागज उनकी पगड़ी के साथ धुलने के लिए रंगरेजिन के पास चला गया।
कहते हैं कि वह रंगरेजिन बहुत सुंदर और चतुर थी । उसका नाम शेख था। जब उसने पगड़ी को धोने के लिए खोला, तो उसके हाथ वह कागज लगा, जिस पर पहेली-रूपी में वह पंक्ति लिखी थी, धोबिन ने इस पहेली को ध्यान से पढ़ा और उसके नीचे लिख दिया :-
कटि को कंचन काटि विधि कुचन मध्य धर दीनी।
जब पगड़ी धुल गई तो उस कागज को ज्यों का त्यों उसमें रख दिया । जब आलम ने पगड़ी लेकर अपना कागज देखा तो उसमें समस्या का उत्तर लिखा हुआ देख, वे समझ गए कि यह काम रंगरेजिन का ही हो सकता है।
पंडित आलम शीघ्र ही रँगरेजन के घर गए, और पगड़ी की धुलाई एक आना के साथ उसे एक हजार रुपए इनाम स्वरूप दिए। इस घटना के बाद, उनमें प्रेम हो गया। कुछ समय बाद वे शादी के बंधन में बंध गए । उससे उन्हें एक लड़का हुआ, जिसका नाम उन्होंने पंडित जहान रखा ।
एक बार औरंगजेब का लड़का आलम के घर के सामने से निकल रहा था, तो शेख को देख उसने पूछा कि क्या आप ही पंडित आलम की पत्नी हैं ?
तब, शेख ने उत्तर में कहा, “जी हां, जहांपनाह, जहान की माँ मैं ही हूँ ।” इस उत्तर को सुनकर वह बड़ा लज्जित हुआ और फिर आगे उसने कभी छोटे मुँह बड़ी बात नहीं की।
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