उत्तरपूजा
यह अनुष्ठान विसर्जन से पहले किया जाता है। बहुत खुशी और भक्ति के साथ, सभी आयु वर्ग के लोग उत्सव में भाग लेते हैं। पंडालों, मंदिरों या घरों में हों, गणेश चतुर्थी को अपार खुशी के साथ मनाया जाता है। लोग गाते हैं, नाचते हैं और आतिशबाजी करते हैं। मंत्रों, आरती, पुष्पों के सुंदर जाप के साथ विदा करने के लिए गणेश जी की पूजा की जाती है। इसमें शामिल चरणों का क्रम निरंजन आरती, पुष्पांजलि अर्पण, प्रदक्षिणा है।
गणपति विसर्जन
यह भव्य उत्सव का अंतिम समापन अनुष्ठान है। गणेश की मूर्ति को श्रद्धापूर्वक जलाशयों में विसर्जित कर दिया जाता है और अगले साल ज्ञान के भगवान की वापसी की कामना की जाती है। विसर्जन के लिए जाते समय लोग जोर-जोर से चिल्लाते हैं “गणपति बप्पा मोरया, पुरच्य वर्षि लौकारिया”।
गणपति विसर्जन: पूजा विधि
विसर्जन समारोह से पहले, भक्त भगवान गणेश की मूर्ति को धूप (अगरबत्ती), गहरा (दीया), पुष्पा (फूल), गंध (इत्र), नैवेद्य और मोदक या लड्डू चढ़ाते हैं। वे सभी भक्तिभाव से आरती करते हैं और बप्पा को उनके घरों में आने और आशीर्वाद देने के लिए धन्यवाद देते हैं। वे पूजा के दौरान हुई किसी भी त्रुटि के लिए क्षमा चाहते हैं। उनकी महानता के नारों और अगले साल लौटने के अनुरोध के साथ, भगवान गणेश की मूर्ति को पानी में विसर्जित कर दिया जाता है।
क्यों करते हैं विसर्जन
भगवान गणपति की मूर्ति का गणेश चतुर्थी के दिन विधि विधान से स्थापना होती है और अनंत चतुर्दशी के दिन शुभ मुहूर्त के अनुसार उसका जल में विसर्जन कर दिया जाता है। 10 दिनों तक गणपति बप्पा की विधि विधान से पूजा-अर्चना और सेवा करने के बाद उनकी मूर्ति को जल में विसर्जित क्यों करते हैं, इसका उत्तर महाभारत से जुड़ा है। आइए जानते हैं इसका कारण क्या है।
गणेश विसर्जन की कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, वेद व्यास जी ने गणेश जी को गणेश चतुर्थी से 10 दिनों तक महाभारत की कथा सुनाई थी, जिसे गणेश जी ने बिना रुके लिपिबद्ध कर दिया। 10 दिनों के बाद जब वेद व्यास जी ने अपनी आंखें खोली, तो पाया कि अथक परिश्रम के कारण गणेश जी के शरीर का तापमान बहुत बढ़ गया है। उन्होंने तुरंत गणेश जी को पास के ही एक सरोवर में ले उनके शरीर को शीतल किया। इससे उनके शरीर का तापमान सामान्य हो गया। इस कारण से ही अनंत चतुर्दशी को गणेश जी की मूर्तियों को जल में विसर्जित किया जाता है। वेद व्यास जी ने गणपति बप्पा के शरीर के तापमान को कम करने के लिए उनके शरीर पर सौंधी मिट्टी का लेप लगा दिया। लेप सूखने से गणेश जी का शरीर अकड़ गया। इससे मुक्ति के लिए उन्होंने गणेश जी को एक सरोवर में उतार दिया। फिर उन्होंने गणेश जी की 10 दिनों तक सेवा की, मनपसंद भोजन आदि दिए। इसके बाद से ही गणेश मूर्ति की स्थापना और विसर्जन प्रतीक स्वरूप होने लगा।
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