हम कितने जिम्मेदार हैं और अब क्या कर सकते हैं… प्रकृति हमसे क्या चाहती है…
हर साल 90 लाख मौतें दूषित वायु के कारण…
हमने प्रदूषण फैलाया, जिससे इंसान हर साल लाखों मीट्रिक टन प्रदूषण फैला रहा है। वायु प्रदूषण से न सिर्फ पृथ्वी की सुरक्षा करने वाली ओजोन परत को नुकसान हुआ, बल्कि इसने हमारी सेहत को भी बिगाड़ा।
लैंसेट की रिपोर्ट के अनुसार प्रदूषण से हर साल 90 लाख लोगों की असमय मौत हो रही है। इसमें सबसे ज्यादा 24 लाख मौतें भारत में हो रही हैं।
मनुष्य ने कितनी तरक्की की और बदले में प्रकृति को क्या दिया?
विश्व पर्यावरण दिवस विशेष:
शिवलिंग रूपी वृक्षों को काट दिया.….
विश्व बैंक का अनुमान है कि 20वीं सदी की शुरुआत से अब तक 1 करोड़ वर्ग किमी जंगल मनुष्य ने नष्ट किए हैं।
प्रकृति के दुश्मनों ने बीते २०२० से अब तक 13 लाख वर्ग मील में जंगल काट दिए हैं।
पिछले 25 वर्षों में ही 13 लाख वर्ग किमी जंगल सिकुड़ गए हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक 1960 के दशक के बाद से आधे से अधिक वन नष्ट हो गए हैं। हर सेकंड एक हेक्टेयर से अधिक उष्णकटिबंधीय वन नष्ट हो जाते हैं।
सिस्टम को बचाने के लिए लैंड यूज में बदलाव रोकना होगा पिछले 50 वर्षों में हमारे इकोसिस्टम को अभूतपूर्व नुकसान हुआ है। इसका सबसे बड़ा कारण है- लैंड और सी यूज़ में बदलाव।
इंसान ने 75% भूमि का उपयोग बदल दिया है और पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभावों को अनदेखा कर 1970 के बाद फसलों का उत्पादन 300% बढ़ा लिया। लेकिन इकोसिस्टम को बचाने के लिए हमें यह प्रवृत्ति रोकनी होगी।
यह सभी के संभलने का वक्त है अन्यथा आने वाली पीढ़ी हमे धिक्कारेगी।और हम भी तार नहीं पाएंगे.
पिछले 150 वर्षों में तेज औद्योगिकरण से धरती का तापमान 1.1 डिग्री बढ़ा है।
हमने तापमान 1 डिग्री बढ़ा दिया, जो फसल की पौष्टिकता छीन रहा है
बढ़ा हुआ तापमान फसलों की पौष्टिकता को कम रहा है। गेहूं व चावल जैसी फसलों में प्रोटीन, जिंक, आयरन कम हो रहा है।
इस साल हीटवेव की जल्द आमद और बारिश में कमी से भारत में गेहूं के उत्पादन पर बुरा असर पड़ा। नतीजतन सरकार को गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगानी पड़ी।
हमने महासागरों को गर्म कर दिया…
अब समुद्र 1.5 डिग्री गर्म किया, जिससे 25% समुद्री जीव खतरे में 1901 के बाद से समुद्री सतह के तापमान में 1.5 डिग्री की वृद्धि हुई है।
साथ ही बीते 200 वर्षों में समुद्र में एसिडीफीकेशन 30% बढ़ गया है। इससे कोरल रीफ यानी समुद्री मूंगे की चट्टानों में रहने वाले जीवों का घर खतरे में है।
केकड़े, झींगा मछली जैसे जीवों के लिए अपना खोल बनाना मुश्किल हो गया है। हमने 25% समुद्री जीवों का जीवन खतरे में डाल दिया है।
क्योकि दुनिया बात 1.25 लाख वर्षा के सर्वाधिक गम दौर में हैं। यह क्यों हो रहा प्रकृति को ये दिया …और अब प्रकृ
कीटनाशक : जो 64% भूमि खराब कर रहे हैं… हमने फसलों को कीड़ों से बचाने के लिए कीटनाशकों का बेहिसाब उपयोग किया है। 1990 से 2018 के बीच दुनिया में इसका उपयोग करीब दोगुना बढ़कर 23 लाख टन से 41 लाख टन हो गया है। इससे भूमि, पानी और हमारी सेहत को भी नुकसान हुआ है। विश्व में कृषि भूमि का 64% हिस्सा (245 लाख वर्ग किमी) कीटनाशक से खराब हो रहा है।
पानी, गैस, तेल जैसे संसाधनों का अति दोहन रोकना जरूरी…
शिकार, मछली पकड़ने और लकड़ी काटने से लेकर तेल, गैस, कोयला और पानी को धरती के भीतर से निकालने से दुनिया के बड़े हिस्से में तबाही आई है।
प्रकृति इंसान को साल भर इस्तेमाल के लिए जो संसाधन देती है, उसे इंसान 6-7 माह में ही खर्च कर देता है। हमें संसाधनों का उतना ही इस्तेमाल करना होगा, जितना हर साल प्रकृति फिर बना लेती है।
प्रकृति का सन्देश एकदम साफ है –
एक बड़ा संदेश जो प्रकृति इंसान को रोज भेज रही है। अगर फूल-पौधे, पशु-पक्षी, कीट-पतंगे, शैवाल संरक्षित है, तो हम भी सुरक्षित हैं।
इनके बिना मनुष्य का धरती पर टिकना संभव नहीं है। फिर इंसान क्यों पेड़पौधों, कीट-पतंगों के महत्व को नहीं पहचान रहा है। उसने क्यों ताजी हवा, बहते पानी का आनंद लेना छोड़ दिया है।
पशु-पक्षियों को बचाने के लिए उपभोग के प्रति सतर्क बनना होगा।
पर्यावरण परिवर्तन से 47% पक्षी प्रभावित हुए हैं। ग्लोबल वार्मिंग से इनकी 5% प्रजातियां खत्म हो सकती हैं।
इधर 2050 तक हमारी आबादी 8 अरब से अधिक होगी। यानी इंसान अन्य जीव-जंतुओं की जगह पर कब्जा और बढ़ाएंगे। ऐसे में हमें उपभोग के प्रति सतर्क होना होगा। हमें क्लीन एनर्जी जैसे- सोलर ऊर्जा, ई-व्हीकल को तेजी से अपनाना होगा।
जंगल व वन्य जीवों की दुनिया में दखलंदाजी बंद करनी होगी!
मनुष्य ने जीवों की दुनिया में बेवजह की दखलंदाजी की है। इसीलिए सभी नए संक्रामक रोगों में से 75% वन्यजीवों से हो रहे हैं। कोविंड, सॉर्स जैसी महामारियां इसी का नतीजा है। हमारा स्वास्थ्य पूरी तरह से जलवायु और उन अन्य जीवों पर निर्भर करता है, जिनके साथ हम ग्रह साझा करते हैं। हमें जीवों की दुनिया में दखलंदाजी बंद करनी होगी।
एक खतरनाक त्वचा रोग है। अगर अंग गर्म रहता हो, बुखार, शरीर या सिरदर्द के साथ दाने उभरने लगे, तो यह चिकनपोक्स के लक्षण हैं।
चिकनपोक का शर्तिया इलाज आयुर्वेद में है। मंजिष्ठा, बाकुची, नीम, चतुर्जात, चालमोगरा, घृतकुमारी, अभया, आमलकी आदि जड़ी बूटियां चिकनपाक्स जैसे त्वचा रोगों का सफाया कर देती हैं।
उपरोक्त योग फार्मूलों के मिश्रण से अमृतम ने स्किन की माल्ट और स्किन की कैप्सूल निर्मित किया ही, जो त्वचा के सभी तकलीफों में फायदेमंद है।
बुखार, सिर दर्द के साथ शरीर में दाने हों तो हो सकता है चिकनपॉक्स चिकनपॉक्स के लक्षण चिकनपॉक्स को लेकर जारी किया आयुष मंत्रालय के स्वास्थ्य विभाग ने किया अलर्ट।
केसे पनपता है चिकनपॉक्स….
चिकन पॉक्स वैरिसेला जोस्टर नामक वायरस के कारण होता है। संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से संक्रमण होता है। यह बीमारी बच्चों के जल्दी पकड़ती है तथाकिसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है।
चिकनपॉक्स के लक्षण आमतौर पर सात या 21 दिन बाद दिखाई देते हैं। इसमें हल्का बुखार, सिरदर्द, हल्की खांसी, थकान और भूख न लगना जैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं। दो से तीन दिन बाद शरीर पर खुजली वाले लाल धब्बे जैसे दिखाई देते हैं।
सूतक के नियमों का पालन करें…
चिकनपॉक्स में पूरे शरीर में दाने एक साथ देखने को मिलते हैं। इसे माता समझकर अंधविश्वास में नहीं पड़ें। घर में किसी व्यक्ति को अगर चिकनपॉक्स हो गया है, तो उसे आइसोलेशन में रखें और उसके इस्तेमाल किए कपड़ों का उपयोग न करें।
गर्मी ने बढ़ाए फंगल इंफेक्शन एवम स्किन प्रोब्लम… भीषण गर्मी के चलते इन दिनों फंगल इंफेक्शन के साथ-साथ घमोरियों के मरीजों की संख्या बढ़ गई है।
स्किन रोग विशेषज्ञ बता रहे हैं कि आने वाले मरीजों में फंगल इंफेक्शन के 40 फीसदी मरीज आ रहे हैं। इसके अलावा 20 से 25 फीसदी मरीज घमोरियों से पीड़ित दिखाने आ रहे हैं। इसके साथ ही सर्दी, खांसी, और बुखार के मरीजों में भी इजाफा हुआ है।
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