रवि पुष्य योग क्या होता है? इस में कौनसे कार्य प्रारंभ करने की अनुशंसा की जाती है?

  • अमृतम पत्रिका, ग्वालियर से साभार
  • रवि पुष्य योग का प्रचार तो बहुत है लेकिन इस चमत्कारी योग के बारे में काम लोग ही जानते हैं।
  • कैसे बनता है रवि पुष्य – अश्वनी से आरंभ होकर नक्षत्र क्रम में पुष्य नक्षत्र आठवां होता है। कुछ इसे पुख के नाम से भी जानते हैं।
  • पुष्य या पुख़ नक्षत्र के स्वामी शनि भगवान हैं और अधिपति देवता गुरु हैं। राशि कर्क है। गण देव हैं।
  • शनि से जब ठनी – शनि की ढैया, पनौती, साढ़े साती से पीड़ित जातक को केवल शनिदेव के गुरु मुनि पिप्पलाद की भक्ति और किसी पीपलेश्वर महादेव के नजदीक या नीचे किसी शिवलिंग पर रोजाना दीपक जलाने से राहत मिलती है।
  • शनि की प्रसन्नता के सर्वश्रेष्ठ उपाय स्कंध पुराण में मिलते हैं, जो चमत्कारी हैं।
  • पुष्य, अनुराधा और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में जन्मे जातक तथा शनि की महादशा, साढ़ेसाती आदि वाले जातक को निम्नलिखित उपाय अवश्य करना चाहिए।
  • शनिवार को सुबह राहुकाल में 9 से 10 बजे के बीच अपने वजन का आधा तेल और आधा अन्न दान करना चमत्कारी लाभ देता है। इसे किसी जानवर को खिलाएं।
  • रविवार को शाम 4 से 5 के बीच किसी बकरे या बकरी के मुंह में 50 या 100 ग्राम दही डालकर खिलाएं और 2 इमरती भरे के आगे रखकर छोड़ आए।
  • गुरुमंत्र अथवा ब्रहस्पति मंत्र का अधिक से अधिक जाप करें।
  • रवि पुष्य कब होता है – रविवार के दिन जब कभी गोचर में पुष्य नक्षत्र होने से रवि पुष्य योग निर्मित होता है और गुरुवार के दिन पुष्य नक्षत्र होने से गुरु पुष्य नक्षत्र कहलाता है
  • योग का अर्थ है जोड़ना, वृद्धि होना। आगे बढ़ना यानि उन्नति से जुड़े सभी शब्द शुभ और सिद्धि योग कहे जाते हैं।
  • गुरु पुष्य योग यह ज्योतिष का बहुत प्रसिद्ध महूर्त है— जैसा कि नाम से स्पष्ट है, गुरुवार को यदि पुष्य नक्षत्र हो, तो गुरु पुष्य योग घटित होता है।
  • विद्यारम्भ, व्यापार प्रारम्भ गृह प्रवेश एक अन्य शुभ कार्यों के लिए गुरु पुष्य योग अत्यन्त शुभ होता है।
  • रवि और गुरु पुख योग वैश्य या बनियों के लिए बहुत ही लाभकारी रहता है।
  • गुरुवार को पढ़ने वाला गुरु पुष्य योग ब्राह्मणों के लिए भयंकर अनिष्कारक होता है।
  • रवि पुष्य योग – क्षत्रि और ब्राह्मण जाति के लिए अति शुभ और श्रेष्ठ रहता है। इस योग में मंत्रों की सिद्धि तुरंत होती है।
  • अगर रविवार के दिन गोचर में या पंचांग में चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में हो, तो रवि पुष या रवि पुष्य नक्षत्र निर्मित होता है।
  • यदि रविवार को पुष्य नक्षत्र हो तो रवि पुष्य योग होता है। रवि पुष्य योग शुभ कार्यों के लिए उपयोगी है। मन्त्रादि साधन के लिए भी यह श्रेयस्कर है।
    • ज्योतिष काल गणना के अनुसार किसी योग, कुयोग का निर्माण नक्षत्र, तिथि, वार के हिसाब से होता है।
    • ध्यान रखें भारतीय संस्कृति में कोई भी वार सूर्योदय से आरंभ होकर दूसरे दिन सूर्योदय के पूर्व तक ही होता है।
  • उदाहरण के लिए मान लो आज सोमवार है, तो ये दूसरे दिन प्रातः सूर्योदय तक रहेगा। वार कभी भी अंग्रेजी तारीख के साथ रात को 12 बजे नहीं बदलता।
  • ज्योतिष में वार तो सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक माना जाता है। परन्तु तिथि व नक्षत्र का समाप्ति काल दिन अथवा रात्रि में भिन्न-भिन्न हो सकता है।
  • अतः ये दोनों योग उतनी ही देर के लिए होते हैं जितनी देर तीनों सम्बन्धित कालांगों का साथ ठहराव हो । पंचांगों में ऐसे योगों का प्रारम्भिक व समाप्ति काल दिन है।
  • ईश्वर ही देगा ऐश्वर्य – शेयर मार्केट में पैसा कमाने और नुकसान से बचने के लिए इस यंत्र को कारोबार स्थल, ऑफिस में शनिवार को राहुकाल के समय सुबह 9 से 10.30 के बीच स्थापित करें और रोज राहुकाल में
  • ।।ॐ शम्भू तेजसे नमः शिवाय।। मंत्र की एक माला जपकर 2 दीपक Raahukey oil के जलाएं।
  • हम इस उपाय को पिछले 32 सालों से कर रहे हैं और मार्गदर्शन और कृपा मिलती है। 54 दिन आजमा कर देखें।
    • शनिवार व्रत विधि – बहुत से शनि से दुखी लोग शनिवार का व्रत रखते हैं लेकिन इसका विधान किसी को नहीं मालूम। स्कंध पुराण में करीब 127 व्रत उपवास का वर्णन आता है। इसी के आधार पर व्रतराज नमक ग्रंथ की रचना की गई। यदि कोई शनिवार का व्रत वैदिक तड़के से करे, तो जीवन में कष्ट मिटने लगते हैं। केसा भी दुर्भाग्य सौभाग्य में बदल जाता है।
  • शनिवार व्रत को किसी भी महीने के प्रथम शनिवार यानि शुक्ल पक्ष के प्रथम (जेठे) शनिवार से आरम्भ करे। शनिदेव की प्रसन्नता के लिए 31 या 51 उपवास करने चाहिएं।
  • प्यार शरीर में केशर, बादाम से निर्मित ओषधि तेल पूरे शरीर में लगाकर आधा घंटे धूप में बैठना जरूरी है। इससे मानसिक शांति मिलेगी
  • व्रत के दिन काले तिल, सौंफ, सुरमा, अमरबेल, देवदारू, सफेद बिनोला या Detoxkey Herbs के काढ़े से स्नान करना चाहिए।
  • शनिवार को सुबह 200 gm उड़द की दाल उबालकर उसमें कालीमिर्च, कलानामक और घी मिलाकर किसी नंदी, बैल को खिलाएं।
  • काला वस्त्र धारण करके ॐ शम्भू तेजसे नमः शिवाय मंत्र अथवा शनि बीजमन्त्र की तीन माला का जप करें।
  • फिर, एक बर्तन में शुद्ध जल, काले तिल, काले फूल या लवंग (लौंग), गङ्गाजल तथा शक्कर, थोड़ा दूध डालकर पश्चिम की ओर मुंह करके पीपल वृक्ष की जड़ में डाल दें।
  • भोजन में उड़द के आटे का बना पदार्थ, पंजीरी, कुछ तेल से पका हुआ पदार्थ कुत्ते व गरीब को दें तथा तेलपक्व वस्तु के साथ केला व अन्य फल स्वयं प्रयोग में लाना चाहिए।
  • यही पदार्थ दान भी करें व्रत के अन्तिम शनिवार को हवन-पूर्णाहुति के बाद तेल में पकी हुई वस्तुओं को देने के बाद काला वस्त्र, केवल उड़द तथा देसी (चमड़े का) जूता तेल लगाकर दान करें।
  • शनिवार के इस व्रत से सब प्रकार की सांसारिक परेशानी दूर हो जाती है। झगड़े में विजय होती है। लोह-मशीनरी, कारखाने वालों के व्यापार में उन्नति होती है। शनिशान्ति का सरल उपचार : घर के परदे, जूते, जुराब, घड़ी का पट्टा, वाले कारखाने में वृद्धि होती है। हमेशा सफेद या काला लाल 0रुमाल आदि काले रंग के धारण करें।

सुयोग क्या होते हैं

  • ये योग या सुयोग सदेव शुभ होते हैं जिनमें शुभ कार्य प्रारम्भ करने से सफलता एवं लाभ प्राप्त होते हैं। भारत के लगभग सभी पंचागों में सिद्धि योग प्रत्येक माह में दिए जाते हैं ।
  • सिद्धि योग केसे बनता है –वार, तिथि तथा नक्षत्रों के सम्मिश्रण से निम्न प्रकार योग की रचना होती है ।
    1. (क) रविवार के दिन अष्टमी तिथि हो तथा अश्विनी, पुष्य, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, मूल, उत्तराषाढ़, धनिष्ठा या उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र होने पर सिद्ध योग निर्मित होता है।
    2. (ख) सोमवार को नवमी या दशमी तिथि तथा रोहिणी, मृगशिर, पुष्य, श्रवण या शतभिषा नक्षत्र होने पर।
    3. (ग) मंगलवार को तृतीया, अष्टमी या त्रयोदशी तिथि तथा अश्विनी, मृगशिर आश्लेषा, मूल या उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र होने पर
    4. (घ) बुधवार को द्वितीया, सप्तमी या द्वादशी तिथि तथा कृतिका, रोहिणी, मृगशिर या अनुराधा नक्षत्र होने पर।
    5. (ड.) गुरुवार को पंचमी, दशमी या पूर्णिमा तिथि तथा अश्विनी, पुनर्वसु पुष्य, विशाखा, अनुराधा या रेवती नक्षत्र होने पर।
    6. (च) शुक्रवार को प्रतिपदा, षष्टी या एकादशी तिथि तथा अश्विनी, पुनवसु, चित्रा, श्रवण, पूर्वा भाद्रपद या रेवती नक्षत्र होने पर।
    7. (छ) शनिवार को चतुर्थी, नवमी या चतुर्दशी तिथि तथा रोहिणी, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, स्वाति या श्रवण नक्षत्र होने पर।
  • अमृत सिद्धि योग क्या होता है और केसे बनता है, इस योग से क्या लाभ हानि हैं।
  • निम्नलिखित वारों व नक्षत्रों के संयोग से अमृत सिद्धि योग, पुष्य योग, रवि पुख या गुरु पूख्य योगों की रचना होती है, जो सभी शुभ कार्यों के लिए उत्तम है। परन्तु अमृत सिद्धि योग के दिन दुष्ट तिथि हो तो यह योग नष्ट होकर त्रितयत नामक विष योग बन जाता है, जो सभी शुभ कार्यों के लिए वर्जित है।
  • प्रत्येक वार नक्षत्र युग्म के साथ दुष्ट तिथि का उल्लेख किया जा रहा है।
      1. (क) रविवार को हस्त नक्षत्र होने पर अमृत सिद्धि योग परन्तु पंचमी तिथि भी हो, तो अशुभ।
      2. (ख) सोमवार को मृगशिर नक्षत्र होने पर अमृत सिद्धि योग परन्तु षष्ठी तिथि भी हो तो अशुभ।
      3. (ग) मंगलवार को अश्विनी नक्षत्र होने पर अमृत सिद्धि योग परन्तु सप्तमी तिथि भी हो तो अशुभ रहता है।
      4. (घ) बुधवार को अनुराधा नक्षत्र होने पर अमृत सिद्धि योग परन्तु अष्टमी तिथि भी हो तो अशुभ।
      5. (ड.) गुरुवार को पुष्य नक्षत्र होने पर अमृत सिद्धि योग परन्तु दशमी तिथि भी हो तो अशुभ।
      6. (च) शुक्रवार को रेवती नक्षत्र होने पर अमृत सिद्धि योग परन्तु दशमी तिथि भी हो तो अशुभ।
      7. (छ) शनिवार को रोहिणी नक्षत्र होने पर अमृत सिद्धि योग परन्तु एकादशी तिथि भी हो तो अशुभ।
  • अतः इस योग का उपयोग करते समय तिथि का ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए। दुष्ट तिथियों को छोड़कर अन्य तिथियों को अमृत सिद्धि योग पूर्ण शुभ फलदायक होता है।

सर्वार्थ सिद्धि योग के फायदे और किस दिन निर्मित होता है —

  • जैसा कि नाम से स्पष्ट है यह योग सर्व प्रकार से अर्थ-सिद्धि प्रदान करने वाला योग है । यह योग निम्न वारों व नक्षत्रों के संयोग से बनता है। परन्तु इसमें भी दुष्ट तिथियां आ जाने से सर्वार्थ सिद्धि योग नष्ट हो जाता है।

सर्वार्थ सिद्धि योग कुल योग 34 होते हैं।

  1. रविवार को अश्विनी, पुष्य, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, मूल, उत्तराषाढा, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र होने पर यह योग बनता है लेकिन इस दिन प्रतिपदा या तृतीया तिथि हो, तो ये योगनाशक दुष्ट तिथियां हैं।
  2. सोमवार के दिन रोहिणी नक्षत्र, मृगशिरा, पुष्य, अनुराधा, श्रवण, नक्षत्र होने पर सर्वार्थ सिद्धि योग निर्मित होता है, परंतु अगर इस दिन द्वितीया या एकादशी हो, तो ये योग हानिकारक फल देता है।
  3. मंगलवार को अश्विनी, कृतिका, आश्लेषा, उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र हो, लेकिन तृतीया, नवमी या द्वादशी ये तीनों तिथियां न हों, तो सर्वार्थ सिद्धि योग निर्मित होता है।
  4. बुधवार को यदि कृतिका, रोहिणी, मृगशिर, हस्त, अनुराधा नक्षत्र हो तो ये योग बनता है किन्तु सप्तमी, नवमी या एकादशी होने पर ये योग का नाश हो जाता है।
  5. गुरुवार अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य, अनुराधा, रेवती ये नक्षत्र जब भी ब्रहतिवार को इस दिन कोई भी तिथि होने पर पड़ें, तो सर्वार्थ सिद्धि योग निर्मित होता है।
  6. शुक्रवार अश्विनी, पुनर्वसु, अनुराधा, श्रवण, रेवती नक्षत्र किसी भी तिथि पर हों, तो सर्वार्थ सिद्धि योग कहलाता है।
  7. शनिवार रोहिणी, स्वाति, श्रवण नक्षत्र होने पर ये योग बनता है। लेकिन इसी दिन अगर एकादशी व त्रयोदशी तिथियां योगनाशक दुष्ट तिथियां हैं।
  • गुरुवार व शुक्रवार को सर्वार्थ सिद्धि योग को नष्ट करने वाली कोई दुष्ट तिथि नहीं होती।
  • कुमार योग यह शुभ योग है । यह योग निम्न तिथियों, वारों तथा नक्षत्रों के संयोग से बनता है।
  • 1. सोमवार, मंगलवार, बुधवार या शुक्रवार को प्रतिपदा पंचमी, षष्ठी, दशमी या एकादशी इनमें से कोई भी एक तिथि हो और अश्विनी, रोहिणी, पुनर्वसु, मघा, हस्त, विशाखा, मूल, श्रवण या पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र उपरोक्त में से किसी भी तिथि, वार एवं नक्षत्र के संयोग से कुमार योग की रचना हो सकती है, अतः ऐसे 180 समूह बन सकते हैं।
  • उक्त कुमार योग में मैत्री करना, शिक्षा-दीक्षा प्राप्त करना, गृह प्रवेश तथा व्रत आदि रखना शुभ होता है।
  • ज्योतिष में राजयोग क्या होते हैं? – राजयोग निम्नलिखित तिथियों, वार एवं नक्षत्रों के संयोग से बनता है।
  • तिथि द्वितीया, तृतीया, सप्तमी, द्वादशी या पूर्णिमा
  • वार रविवार, मंगलवार, बुधवार या शुक्रवार
  • नक्षत्र भरणी, मृगशिर, पुष्य, पूर्वा फाल्गुनी, चित्रा अनुराधा, पूर्वाषाढ़, धनिष्ठा या उत्तराभाद्रपद
  • उपरोक्त में से किसी भी तिथि, वार एवं नक्षत्र के संयोग से राजयोग क रचना हो सकती है, अतः ऐसे 180 समूह बन सकते हैं। राजयोग मांगलिक एवं धार्मिक कार्यों के लिए शुभ होता है ।
  • पुष्कर योग सूर्य विशाखा नक्षत्र में हो तथा चन्द्रमा कृतिका नक्षत्र में, तो ऐसा संयोग ‘पुष्कर योग’ कहलाता है।
  • पुष्कर योग’ शुभ योग अत्यन्त दुर्लभ है। सूर्य एक नक्षत्र में 13-14 दिन पूरे वर्ष में केवल एक बार रहता है । विशाखा नक्षत्र में सूर्य लगभग 6 नवम्बर से 19 नवम्बर तक रहता है ।
  • यह आवश्यक नहीं कि उन्हीं दिनों में चन्द्रमा कृतिका नक्षत्र में आए । इसलिए इस योग के लिए अनेक वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है। यह योग अत्यन्त शुभ माना जाता है ।
  • रवि योग – रवि योग अत्यन्त शक्तिशाली शुभ योग है । इस योग के दिन यदि तेरह प्रकार के कुयोग में से कोई भी कुयोग हो तो रवि योग उस कुयोग की अशुभता नष्ट कर शुभ कार्यों के प्रारम्भ करने हेतु मार्ग प्रशस्त करता है।
  • रवि योग निम्न स्थिति में घटित होता है। सूर्याधिष्ठित नक्षत्र से चौथे, छठे, दसवें, तेरहवें अथवा बीसवें नक्षत्र में यदि चन्द्रमा हो, तो उस दिन रवि योग घटित होता है।
  • उदाहरण के लिए यदि सूर्य पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र के द्वितीय चरण में हो और चन्द्रमा चित्रा 14 ( पू० फा० से चौथा ), विशाखा 16 (पू० फा० से छठा), पूर्वाषाढ़ 20 ( पू० फा० से दसवां), धनिष्ठा 23 ( पू० फा० से तेरहवां ) अथवा कृतिका 3 ( पू० फा० से बीसवां ) नक्षत्र में हो तो रवि योग घटित होता है।
  • यदि किसी दिन किसी प्रकार के कुयोग के कारण कोई शुभ कार्य प्रारम्भ नहीं किया जा सके तो विद्वज्जन रवि योग के आधार पर उस शुभ कार्य को प्रारम्भ करवाते हैं।
  • कुयोग क्या है?इसके नुकसान– वार, तिथि एवं नक्षत्रों के संयोग से अथवा केवल नक्षत्र के आधार पर कुछ ऐसे अशुभ योग बनते हैं जिन्हें ‘कुयोग’ कहा जा सकता है।
  • इन कुयोगों में कोई शुभ कार्य प्रारम्भ किया जाए तो वह सफल नहीं होता अपितु उसमें हानि, कष्ट एवं भारी संकट का सामना करना पड़ता है ।
  • कुयोग सुयोग–यदि किन्हीं कारणों से एक कुयोग तथा एक सुयोग एक ही दिन पड़ जाए तो सुयोग कुयोग को नष्ट कर शुभ फलदायक हो जाता है।
  • सर्वप्रथम कुछ ऐसे कुयोग दिए जा रहे हैं हैं परन्तु विशेष अशुभ होने से स्पष्ट रूप से परिभाषित किए जा रहे हैं।

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One response to “रवि पुष्य योग क्या होता है? इस में कौनसे कार्य प्रारंभ करने की अनुशंसा की जाती है?”

  1. Hansa Tated avatar
    Hansa Tated

    Amrutam patrika ka member kaise ban sakte hai

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