प्रणव मन्त्र ॐ सभी विद्यायों की निधि है।
शनि ग्रह के सदगुरु महर्षि पिप्पलाद
ने “योग वसिष्ठ ग्रन्थ” में बताया है कि
यह जो ओंकार शब्द है वह निश्चित ही
परब्रह्म है, यही अपरब्रह्म भी है।
ॐ की उपासना से व्यक्ति का जीवन
भगवान सूर्य के समान भास्वर यानि
प्रकाशित हो उठता है।
दुनिया के सभी धर्मों में ॐ की उपासना
के महत्व को स्वीकारा है।
मन-मस्तिष्क और जीवन की शान्ति एव
तनाव, डिप्रेशन चिन्ता, भय-भ्रम से मुक्ति
तथा ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए सन्त-सन्यासी,
अवधूत-अघोरी “ॐ” का मानसिक जाप
करने का परामर्श देते हैं।
प्रसन्नोउपनिषद दुर्लभ ग्रन्थ के अनुसार
शनि के गुरु महर्षि पिप्पलाद ने
शनि देव को गुरु दीक्षा और ज्ञान देते हुए
बताया कि ॐ की उपासना और ध्यान
के सहारे सामान्य सा पुरुष प्रथ्वी लोक,
सोमलोक, सूर्यलोक एवं शिवलोक
तक पहुंच सकता है।
ब्रह्माण्ड की ऐसी कोई सिद्धि या संवृद्धि
अथवा ऐश्वर्य नहीं है, जिसे वह पा नहीं सकता।
Leave a Reply