भारत में 51000 तरह के पकवान बनते हैं। नाम जानकर हैरान हो जाओगे!

  • आयुर्वेद के अनुसार भोजन १००८ तरह का होता है और पूरे भारत में क्षेत्रानुसार लगभग 51000 तरह के भोजन निर्मित किये जाते हैं।यह पौष्टिकता युक्त है।
    • इस जबाब को पढ़कर आपको भरोसा हो जाएगा कि भारत के ज्ञान के आगे सब तुच्छ हैं। दुनिया में फैला ज्ञान या जानकारी हिंदुस्तान की झूठन है। हमारे देश की परंपरा को कोई भी सानी नहीं है।
  • आज के जमाने, तो अब कोई भोजन बनाने, तो छोड़ भोजन का स्वाद बताने वाले भी नहीं बचे।
    • बाजारू चटोरेपन ने सबकी जीभ का जायका बिगाड़ दिया।
    • काशी का इतिहास नामक पुस्तक के मुताबिक एक बार वेदाचार्य अदब्धव्रतप्रमतिर्वसिष्ठभट्टाचार्य नामक महापंडित प्रसिद्ध थे। इन्होंने अपने पुत्र
  • झिलिमिलिझाकारशौचालंकारअलर्षियुध्मखज्जकृतपुरंदरभट्टाचार्य के जन्मदिन उपलक्ष्य में काशी के 108 ब्रह्मचारी शिव सन्यासियों को अपने यहां भोजन पर आमंत्रित किया था और इस भोज में 1008 तरह का भोजन परोसा गया था।
  • काशी में उस समय एक बहुत ही निराली परम्परा थी कि किसी भी साधु को खाना खिलाने से पूर्व बिना खंडित केले व पान के पत्तों से निर्मित पत्तलों तथा दोने को गाय के देशी घी से मांजकर साफ करते थे।
  • मान्यता थी कि ऐसा करने से साधु के तप का कुछ अंश प्राप्त होता है और पितृदोष मिटता है।
  • एक साथ 108 साधुओं को पंगत पर बैठाकर भोजन परोसना शुरू किया।
  • सर्वप्रथम पका आम, कच्चा आम, आम्र रस, आम का अचार, आम का पना, आम का मठ्ठा, इमली, इमली की चटनी, इल्मी का साग, कवक, नींबू, जम्भीरी, कागजी नींबू का अचार, नारंगी।
  • बेल का मुरब्बा, आंवला का मुरब्बा, आंवले का अचार, आमले की चटनी, हरड़ पत्र का साग, हरड़ मुरब्बा, ककड़ी, गूलर फल की चटनी, करीर, अलक इत्यादि परोस दिये।
  • इसके बाद बैगन, तरबूज, करैला, कोहँडा, लौकी, केला, घृतकोशातकी चिया कटहल, शिग्रु, परवल, कुंदरू, उरिक, तेंदू, राजमाष, ककड़ी, गजदन्त फल, गोरस ककड़ी सुखत्वास, कुलक, कर्कोटको (खेकसा, ककोड़ा) परसे गये। राजाबु, बार्हत, कठिल्लक, कारू चित्रा देवासी तथा कन्द में सूरन, आलू, मूली, लाल मूली, रतालू, पिडकन्द, अरबी और पोथिका थे। साहों में अकिनी, वास्तुक (बथूआ), उपोदका, चक्रवर्त, मूली, आलू, अगस्त्य (पोई), कुरंट, मियाभावसमष्टिला, बम (चकवड़), वृद्धदारु, श्रीहस्तिनी, हिबसा, तंडुलीयक (चौराई), कदलीस्तंभ, कदली पुष्प, अगस्त्या थे।
  • घी में तले करैले, भण्टे, बैगन भरता, भरमा बैगन, दमालु, कठिल्लक, निष्पाव, राजमाष, बृहती (बनभण्टा, सेम, कक्षा की कचौरिया परसी गयीं।
  • दही-भात, उड़द-भात, खट्टा भात, घी-भात, सिद्धार्थ-मिष्टान्न तिलमिशन और शाय-मिष्टान्न परोसकर पत्तों के बीच भात परोस दिया और फिर
  • अरहर, मूंग, उडट, राजमाघ, कना, कुलयो और बाल (निष्पाव) की दालें परसी गयीं।
  • तदनन्तर दूध में पकी तरह-तरह की दलिया तथा तिनी और चावल की खीरें परोसी गयीं।
  • इसके बाद प्रत्येक अभ्यागत को घी में तले दो-दो पापड-खीचला परसे गये।
  • करो और वेष छाछ, आँवला, इमली, अनारदाने के रस और मिर्च से बने थे।
  • अन्त में भैस का दही परोसकर बहुत प्रकार के पक्वान्न परोसे गये यथा उड़द बड़ा, मूंग बड़ा, चने का बड़ा, चूमे के लड्डू पूरी, लड्डु, तिल सड्डू, पूये, हलुआ (पिष्टका) और अनरसा।
  • इन सबके बाद ताजे घी और दूध को बारी आई ये स्टार्च स्त्रियाँ बार-बार परोस रही थीं। घबराकर पंडितजी ने पूछा- “अरे वामनाश्रम, जो कुछ परसा गया जून सब खा लिया अथवा नहीं?” उत्तर मिला-आचार्य हमने नहीं खाया। मेरे खाने लायक जो वस्तुएँ यो उसको ही मैंने लिया।”
  • गीर्वाण वाङ्मंजरी में इस भोजन का और भी रसमय वर्णन है। सब लोगों के पत्तल पर बैठ जाने पण्डित जी ने अपनी स्त्री से कहा- अरी, पहले सब पत्तों को घी से माँज दे और फिर भोजन परोस सुनते ही उसने जल्दी से परोसना शुरू कर दिया।
  • पहले नमक परोसकर बाद में सलोने साक परसे त्या सबू, अदरक, सूरन, हड़, बैर, बैगन, करौंदा, मूली, वासंकट और बनभंटा के अचार, फूट, लोको, केले के कुल तथा गाफ के कचूमर परसे।
  • फिर करैले और गाजर इत्यादि के शाक परसे। इसके बाद शुद्ध उडद के बई, मथीबड़ी, कोहंडौरी, आमबड़ी, कोहड़े के बीज की बड़ा, पापड़, दहीबड़ा और किसामसो बई परोसे नाये।
  • इसके बाद शुद्ध चने के दाल से बने दही और घी से संस्कृत लाडुवाटका आया,
  • इसके बाद मेयोकूर माया हुन सबके बीच खूब महान चावल का भात परोसा गया,
  • इसके बाद ऊपर शुद्ध अरहर की दाल बक बाद उसने अनेक तरह के भक्ष्यपदार्थ जैसे पूरणपोलो, पाँडे के लड्डू धो से पके उड़द के बड़े नया, सही पूरा, पूरी, फेनी चालड़े, घो के बने मालपुए, पापड चोनी भरा लुचुई, लड्डू तिलका, मंग और बार के लड्डू तथा पहे इत्यादि परसे।
  • खोरों में गेहूँ से बनी सात तरह का खोर चावल और तिल्ली को कार था। उनके अपर उसने शुद्ध सफेद शक्कर डाल दो तथा धा से सब दोने भर दिए।
  • उसके बाद चटपटे काया और उनके पास मिचं रख दिया। स्वामीजी के सात दोनों में छह में दूध, दही, घी. क्वाथ, पठा का पेय परसा और एक दोना पानी के लिए छोड़ दिया।
  • इसके बाद यजमान ने बह्मायण एवं किया। सबने पहले स्वामीजी को हस्तोदक दिया तथा इसके बाद सबने आचमन किया और प्रवरा पान का भोजन के लिए बैठ गया।

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