★★★अमृतम★★★
“राहुकी तेल” से दीपों की श्रृंखला लगाना ही दीपावली का मुख्य त्योहार है...
दीपावली “रोशनी का रास्ता” है, जो आध्यात्मिक रूप से अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है।
दीपदान का मतलब है- आत्मा एवं आस्था के साथ नियम पुर्वक सृष्टि के समक्ष दीपक प्रज्वलित करना।
दीपदान सरलता से किया जाने वाला एक ऐसा वैदिक विधान है जो बड़े से बड़े यज्ञ के बराबर फल देता है।
प्रकाश उत्सव यानि दीपावली की प्रार्थना
“बृहदारण्यक उपनिषद” नामक ग्रन्थ
में लिखी है।यह एक बहुत प्राचीन ग्रन्थ है, इसमें अंधकार भरे जीवन को कैसे
प्रकाशित किया जाए- ऐसी अनेक प्रार्थनाओं का उल्लेख है।
अमृतम का भी यही उदघोष है…
असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मा अमृतं गमय।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
अर्थात-
हे महादेव! हम सब जीव-जगत को असत्य से सत्य के मार्ग पर ले चलो!
हम अंधकार से प्रकाश की तरफ जाने हेतु तत्पर हैं। हमारे विचार और कर्म ऐसे हों कि सारा सन्सार मृत्यु से अमरता की ओर जा सके।
ॐ शांति शांति शांति।।
लक्ष्मी की कामना हो, तो करें ये काम....
पदमपुराण के अनुसार कार्तिक के महीने में शुद्ध घी अथवा राहुकी तेल का दीपक परिवार के प्रत्येक व्यक्ति को जरूर जलाना चाहिये।
कार्तिक माह में जो व्यक्ति घी या
राहुकी तेल का दीपक जलाता है, उसे अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फलों की प्राप्ति होती है।
कार्तिक का वैदिक विज्ञान
कार्तिक महीने में सूर्य
नीच की राशि तुला में होने से बहुत कमजोर हो जाते हैं।
★ दीये (दीपक) को स्कन्द पुराण में सूर्य के हिस्सों का प्रतिनिधित्व करने वाला माना गया है।
★ सूर्य जो जीवन के लिए प्रकाश और ऊर्जा का लौकिक दाता है।
विशेष-
सूर्य देव के बारे में बहुत सी वैदिक और
वैज्ञानिक जानकारी भी आगे पढ़ने को मिलेंगी- अमृतमपत्रिका पर
★ अपने अंदर के अंधकार का नाश करने करने के लिये शिव मंदिरों में और नदी के किनारे दीपदान करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं|
★ इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठती है।
● ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदों की आज्ञा है। दीपावली उत्सव सिख, बौद्ध धर्म के लोग भी मनाते हैं।
जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं।
दीपोंत्सव का वर्णन
● पद्म पुराण और स्कन्द पुराण नामक संस्कृत ग्रंथों में भी विस्तार से मिलता है।
● 7 वीं शताब्दी के संस्कृत नाटक नागनंद में राजा हर्ष ने इसे दीपप्रतिपादुत्सव: कहा है।
● 9 वीं शताब्दी में राजशेखर ने काव्यमीमांसा में इसे दीपमालिका कहा है जिसमें घरों की पुताई की जाती थी और तेल के दीयों से रात में घरों, सड़कों और बाजारों सजाया जाता था।
● दीपावली के दिन ही लौटे थे पांडव
महाभारत के अनुसार जब कौरव और पांडव के बीच होने वाले चौसर के खेल में पांडव हार गए, तो उन्हें 12 वर्ष का अज्ञात वास दिया गया था। पांचों पांडव अपना 12 साल का वनवास समाप्त कर इसी दिन उनके लौटने की खुशी में दीप जलाकर खुशी के साथ दीपावली मनाई गई थी।
● विक्रमादित्य का राजतिलक –
बताया जाता है कि राजा विक्रमादित्य का राजतिलक इस दिन किया गया था।
● आर्य समाज – स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा आर्य समाज की स्थापना भी इसी दिन की गई थी।
● बोले सो निहाल- शस्त्र श्री अकाल..
सिख समुदाय इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है।
सिख धर्म के तीसरे गुरु अमरदास जी ने लाल पत्र दिवस के रूप में मनाया था जिसमें सभी श्रद्धालु गुरु से आशीर्वाद लेने पहुंचे थे। इसके अलावा सन् 1577 में अमृतसर के हरिमंदिर साहिब गुरुद्वारा का शिलान्यास भी दीपावली के दिन ही किया गया था।
● सिख धर्म का महातीर्थ है-ग्वालियर
.
सन् 1619 में सिक्ख गुरु हरगोबिन्द जी को ग्वालियर के किले में 52 राजाओं के साथ मुक्त किया जाना भी इस दिन की प्रमुख ऐतिहासिक घटना रही है। इसलिए इस पर्व को सिक्ख समाज बंदी छोड़ दिवस के रूप में भी मनाता हैं। इन राजाओं व हरगोबिंद सिंह जी को मुगल बादशाह जहांगीर ने नजरबंंद किया हुआ था।
गुरु मेरी पूजा- गुरु भगवंता...
इसलिए ही गुरुगोविंद सिंह जी के महत्याग के कारण सभी गाते-गुनगुनाते हैं-
ॐ “रं” बीज मन्त्र का 11 माला करें जाप,
तो शक्ति से भर जाएंगे आप…
विशेष कामना की पूर्ति के लिए दीपदान करके अग्नि के बीज मन्त्र “रं” का जाप करें-
दीपावली की रात्रि में पूजन से पूर्व 27दीपक
राहुकी तेल के जलाकर 11 माला जपना चाहिए।
● रं बीज मन्त्र के जाप से अनेक प्रकार के भय-भ्रम का सर्वनाश हो जाता है। नाभिचक्र जागृत होकर वाणी सिद्ध होने लगती है।
कैसे करें बीज रं मन्त्र के जाप की शुरुआत..
सबसे पहले पूज्य पितरों तथा कुल-देवता, ग्राम-नगर-देवताओं का स्मरण करते हुए उनके नाम से राहुकी के तेल का एक बड़ा दीपक जलायें। ईश्वर और महालक्ष्मी से इस दीपदान को स्वीकारने का निवेदन करते हुए दिन, अपना नाम, गौत्र तथा स्थल बताते हुए कहें-
कृपया मेरे जीवन से अंधकार मिटाकर प्रकाशित करें।
राहुकी तेल…
के दीपदान से होता है बहुत फायदा
दीपदान से गया श्राद्ध एवं पिंडदान का फल प्राप्त होता है। इससे पितर तृप्त होते हैं।
कार्तिक में दीपदान का महत्व-
हमारे शास्त्रों में दुखों से मुक्ति दिलाने के लिए कई उपाय बताए हैं।
दीपदान करने के लिए कार्तिक माह का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार इस माह भगवान विष्णु चार माह की अपनी योगनिद्रा से जागते हैं| विष्णु जी को निद्रा से जगाने के लिए महिलाएं विष्णु जी की सखियां बनती हैं और दीपदान तथा मंगलदान करती हैं। इस माह में दीपदान करने से महादेव और महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। जीवन में छाया अंधकार दूर होता है| व्यक्ति के भाग्य में वृद्धि होती है।
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