स्वस्थ्य रहने हेतु आयुर्वेद में भी छींक
पर खोज हुई थी-
आदिकाल से लेकर आज तक अमृतम आयुर्वेद जितना अनुसंधान, अध्ययन और काम तन तथा मन पर हुआ उतना शायद ही कहीं और हुआ हो…
आयुर्वेद की प्रबल मान्यता है कि मन श्रद्धा से भरपूर हो तब पहाड़ भी आपका रास्ता छोड़ देते हैं।
जिज्ञासा हेतु गीता ग्रन्थ पढ़िए पूरा ग्रंथ ही मनोविज्ञान पर आधारित है।
अमृतम आयुर्वेद ग्रंथों के मुताबिक
छींक आना अपशगुन नहीं है, उसका आपके स्वास्थ्य से घर नाता है क्यों कि किसी के भी मुंह से निकलने वाली वायु अशुद्ध होती है, जिसे हमारे आयुर्वेदिक ऋषियों और शरीर विज्ञान का ज्ञान रखने वाले त्रिकालदर्शी वैज्ञानिकों ने बहुत पहले ही जान-समझ लिया था।
प्रणाम का प्राचीन प्रकार…
प्राचीनकाल में अभिवादन भी बहुत दूर से किया जाता था और आज भी दुनिया के अनेक देशों में दूर से ही नमस्कार, अभिवादन करने का चलन है। प्राचीनकाल में शारीरिक सम्पर्क न के बराबर किया जाता था ताकि दूसरे व्यक्ति की अशुद्ध वायु, पसीना, या नकारात्मक तरंगे हमारे शरीर को अपने प्रभाव में लेकर हमारा स्वास्थ्य खराब न
कर देवें
आयुर्वेद में 13 तरीके के दुषित वेगों का उल्लेख है–
शरीर के 13 प्रकार के वेगों में छींक भी एक वेग होता है जिसके द्वारा मनुष्य के अंदर की दूषित वायु, पानी और कफ बाहर आता है जिससे बचने के लिए ऋषियों ने कहा कि ठहर जाओ…आगे न बढ़ो अर्थात मैं भी रुक जाऊं और तुम भी रुक जाओ !
मुझे इसलिए रुक जाना चाहिए कि छींक मारने के कारण झटका लगता है। छींक आते ही शरीर कुछ पल के लिए पूरा हिल जाता है और रक्त में बुलबुले बन जाते हैं जो कि न रुकने के कारण हृदय तक पहुंचकर हृदयशूल, सीने में दर्द या हार्टअटैक का कारण बन सकते हैं।
छींक आने के बाद क्यों रुकना चाहिए...
छींक आने के बाद कम से कम 3 से 5 मिनिट तक वहीं इस वजह से रूक जाना चाहिए कि मेरा आभामंडल जो कि सवा 21 फुट का होता है वह फिलहाल पूरी तरह दूषित हो चुका है और आपके संक्रमित होने की भरपूर संभावना है।
अपशगुन नहीं है छींक आना.…
आयुर्वेद के विज्ञान को अज्ञानता बस कुछ अज्ञानियों ने पहले के कुछ दुर्घटनाओं एवं संयोगों के साथ इसे जोड़कर
इसे अपशगुन और टोटके से जोड़ दिया।
बस यही परम्परा चलते-चलते आज भी छींक आते ही सब कहते हैं- कुछ देर ठहर जाओ।
क्यों कि छींक के समय आपका मन आपके नियंत्रण में नहीं रहता और कुछ गलत घटना का सामना हुआ जिसका ठीकरा सबने छींक पर फोड़ दिया।
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