19.11.19 को है– इंटरनेशनल मैन्सडे-
केवल पुरुषों को समर्पित...
पहली बार अमृतम पत्रिका पर
केवल ऑनलाइन उपलब्ध
क्या आदमी भी रोता है?
हाँ, मर्द के भी दिल में दर्द होता है
दर्द में होता हूँ, तो रो
देता हूँ खुलकर कभी,
बस इसलिए मुझे जमाना
मर्द नहीं समझता!
मर्द का दिल रोता है और
औरत की आँख रोती है।
ये बहुत पुरानी कहावत है।
जानिए-पुरुष की 10 रस भरी बातें।
मर्द के दिल में दुनिया का दिया हुआ इतना दर्द इकट्ठा हो जाता है कि- दिल भी डरकर भाग जाता है, तो इलाज किसका करें।
तभी, तो मंजर लखनवी ने लिखा–
दर्द हो मर्द के दिल में, तो दवा कीजे,
और जो दिल ही न हो, तो क्या कीजे।
आदमी का संघर्ष करते-करते, जब उसका पर्स खाली ही रहता है। सफलता हाथ नहीं लगती, तो पुरुष भी रो पड़ता है,
यही सच्चाई है।
मर्द के दर्द की फ़र्द (लिस्ट) बहुत लंबी है।
आदमी वह जिंदादिल इंसान होता है, जो तपती गर्मी हो या भयंकर सर्द वह कभी घबराता नहीं है।
अत्यंत दर्द सहकर ज़ुबैरअली ताबिश
ने कभी कहा था-
आज तो दिल के दर्द पर हँस कर,
दर्द भरा दिल दुखा दिया मैं ने।
पुरुष परिवार की परेशानी दूर करने में पूरी शक्ति झोंक देता है, ताकि गरीबी रूपी गर्द-गन्दगी से आने वाली पीढ़ी को मुक्त कर उन्नति की सीढ़ी दे सके।
हर इंसान, पूरी शान से जीने की कोशिश करता है। एक सच्ची शायरी है….
जिम्मेदारी से मर्द का दर्द दबा होता है
रोता वह भी है, बस दर्द छुपाना होता है।
कह देती है दुनिया ये केसा मर्द है, जो रोता है
ध्यान से देखो,
तो रोटी का आटा भी
पसीने से भीगा होता है।
रुद्र भी रोया था एक बार-–
शिवपुराण अग्निपुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, शिवतन्त्र रहस्य आदि ग्रन्थ पढ़े, तो पता चलता है कि – एक बार भगवान शिव भी एक बार रो पड़े थे, तभी से महादेव का एक नाम रुद्र पड़ गया।
रुद्राक्ष की उत्पत्ति का कारण शिव कल्याणेश्वर के आंसुओं से हुई थी।
!!शिवः सङ्कल्प मस्तु:!!
संकल्प शक्ति से सधा व्यक्ति सफलता के लिए 100 बार संघर्ष करता हुआ
–बेख़ुद देहलवी के शब्दों में कहता है…
राह में बैठा हूँ मैं,
तुम संग-ए-रह समझो मुझे।
आदमी बन जाऊँगा,
कुछ ठोकरें खाने के बाद।।
शिवकृपा के बिना, कैसे हो भला…
यदि कोई मर्द अच्छे परिवार में पला लेकिन किस्मत से नहीं फला या सही राह पर नहीं चला अथवा उसके नहीं हो पाया लला (बच्चे) और जिस मर्द को कोई नहीं आती कला… उसे जीवन भर तला-भुसा खाना पड़ता है।
असफल मर्द को समाज ताने मारता है।
किसी ने कहा है कि–
अपनी अपनी सोच का फर्क है बस
वरना आदमी तो कोई भी खराब नहीं।
एक मुहावरा है-
आदमी-आदमी अन्तर,
कोई हीरा कोई कंकर!
अर्थात-सबका मुकद्दर एक सा नहीं होता।
कोई-कोई दुनिया में इसे कर्मों का खेल भी मानती है। श्रीमद्भागवत गीता या अन्य धर्म-ग्रंथो का सार तो यह कहता है।
मानो न मानो, मर्जी आपकी….
आदमी जो सुनता है, आदमी जो कहता है ज़िंदगी भर वो सदायें पीछा करती हैं
आदमी जो देता है, आदमी जो करता है
रास्ते भर वो दुआएं पीछा करती हैं।
मुस्लिम धर्म के मुताबिक…
आदमी अशरफ-उल-मख़लूक़ात
अर्थात- मनुष्य सब प्राणियों में श्रेष्ठ है।
मर्द आखिर मर्द है….
जीवनभर मर्द हर तरह के मर्ज, कर्ज, मर्ज
मिटाता हुआ महायात्रा के लिए पलायन करता है। यह सब बिना दर्द के असंभव है।
हमारा मत, तो यह है साहिब..
मर्द मन से बड़ा होना चाहिए ‘अशोक‘
बड़ी-बड़ी बाते,तो सब बेकार की बाते हैं।
आदमी हमेशा इस डर में जीता है कि-
क्या कहेंगे लोग। यह दुनिया में सबसे बड़ा रोग भी है। हर पुरुष के दिल में एक दर्द छुपा होता है, जिसे कोई जानने की कोशिश नहीं करता।
मर्द के कुछ पुराने हमदर्द लोग
पहले समय में कुछ अच्छा-बुरा लिखकर छोड़ गये हैं। एक बानगी देखिए…
【१】 आदमी का शैतान आदमी
यानि मनुष्य ही मनुष्य को गड्ढे में गिराता है। मतलब सीधा सा है कि- जो व्यक्ति तैरना सिखाता है, चेला सबसे पहले उसे ही डुबोता है।
【२】मन महीप के आचरण,
दृग दिमान कह देत
अर्थ यही है कि-मनुष्य के हृदय के भाव उसके चेहरे पर दिखाई देने लगते हैं।
【३】आदमी अनाज का कीड़ा है।
अर्थात- हर कोई अन्न पर ही जीवित रहता है।
गुलजार साहब लिखते हैं-
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
आदत इसकी भी आदमी सी है
दुष्यंत कुमार की दया...
सामान कुछ नहीं है फटेहाल है मगर
झोले में उसके पास कोई संविधान है
कुछ अनुभवी साहूकार ज्ञानियों
की सलाह यह भी है कि…
इतना ही उधार दो कि –
किसी का उद्धार हो जाए।
ज्यादा उदारता से आदमी की,
खाल उधड़ जाती है।
एक दुनिया हजार तहखाने,
आदमी कहाँ है, ईश्वर जाने।
आजकल खुदा भी बनाने लगा है–इंसान
कुछ 2 हाथ वाले मर्द इतने बेदर्द होते हैं कि- हजार हाथ वाले भगवान को भी वेवकूफ बनाने में कसर नहीं छोड़ते।
मर्द की मान्यता…
भगवान को आदमी बनाने में 9 महीने
लग जाते हैं और आदमी 9 दिन में लोगों को खुदा बनाने लगे हैं।
एक दुनिया हजार तहखाने
आदमी कहाँ है, ईश्वर जाने
स्वार्थी साधक....
■ भगवान आदमी को बदल नहीं पाया,
तो आदमी ने मन्दिर बदल दिए।
हफ़ीज़ जालंधरी लिखते हैं….
दोस्तों को भी मिले दर्द की दौलत या रब
मेरा अपना ही भला हो मुझे मंज़ूर नहीं
बड़ी कड़वी बात
मर्द का पेट कभी एक औरत से नहीं भरता।
वो भी शामिल रही कैसे दिलाऊं यकीन
मर्द हूँ, झूठी ही लगेंगी सब कहानियां मेरी।
दिल धड़कता है सबके सीने में
तुम्हारे भी और हमारे भी वही
मेरी तो यही सलाह है कि–
वो मर्द बनो जिसे औरत चाहने लगे
वह मर्द नहीं, जिसे औरत चाहिए
मर्द वही है, जिसे शोहरत चाहिए।
जरा गौर फरमाएं….
मर्द औरत के माथे का श्रृंगार है।
हाथों में एक दूसरे की पतवार है।।
मर्द की मददगार महिला….
हिम्मते मर्दा मदद दे खुदा,
हिम्मते औरत मदद ए खुदा!
अर्थात – हिम्मती आदमी की मदद खुदा भी करता पर हिम्मती औरत खुदा की भी मदद कर सकती है।
व्यक्ति के हाथ में बरक्कत नहीं होती..
उल्लू लक्ष्मी का कारक होता है
पुरुष लक्ष्मी का मारक होता है
इतना भी मत उड़ो….
न राम हूँ, न मैं सीता हूँ
मैं मर्द हूँ, मर्जी से जीता हूँ।
बस, बदनाम हैं मर्द…
हर मर्द औरत के पीछे भागते है मतलब
सीधा से है कि औरतें पहले से आगे हैं।
आदमी औरत के साथ जीना चाहता है,
उससे जीतना नहीं।
बहुत से मर्द हैं बहुतों के साथ सोएं हैं
काश कोई मर्द किसी एक साथ जाग गया होता।
मर्द को दर्द नहीं होता
यही सोचकर अक्सर वे इश्क कर बैठते हैं।
तेरे जाने से ,कुछ नहीँ बदला ..
बस पहले जहाँ दिल रहता था,
अब वहाँ दर्द होता है ….!!!
कुछ मर्दों के सिर के बाल जा रहे हैं
फिर भी वे मर्द कहलाये जा रहे हैं।
‘कुन्तल केयर हर्बल हेयर स्पा’ बालों में लगाए।
कड़ी मशक्कत के बाद जब आशाएं अपूर्ण रह जाती हैं, तो मर्द को दर्द होता है और वह बेचारा रो पड़ता है
“जाँ निसार अख़्तर” की अर्ज है….
अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं
काश, कुछ संस्कार होते…
दिल भी तोड़ा तो सलीक़े से न तोड़ा तुम ने
बेवफ़ाई के भी आदाब हुआ करते हैं
– महताब आलम
अभी और भी पूरुषों के लिये बेहतरीन ब्लॉग
पढ़ते रहें अमृतम पत्रिका
केवल ऑनलाइन
विनम्र निवेदन…
यह ब्लॉग आपको अच्छा लगे, तो
लाइक, शेयर, कमेंट्स कर सकें, तो
ठीक रहेगा, अन्यथा
अपनी भी जिंदगी कुछ,
इस तरह चल रही है…
मानो धीमी सी आंच पर,
चाय उबल रही है…
बस इंस्टाग्राम पर कुछ फॉलोअर्स की कमी है….
बाकी मेंरे भी 50 फैन है,
20 घर में ओर 30 फैक्टरी पर।
मर्द हैं हम हसें और मुस्कराएं
अमृतम ओषधियाँ अपनाएं।
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