स्वस्थ्य जीवन के लिए
!!हर शब्द अमॄतम!!
कैसे करें-बीज मन्त्रो से बवासीर, मधुमेह यानी डाइबिटीज और लिवर, पेट की तकलीफों की चिकित्सा...
जानेे इस लेेेख में-
स्वस्थ्य रहना जीवन की सर्वश्रेष्ठ
सफलता है। स्वस्थ्य शरीर ही
अनेक अविष्कार की जननी है।
जब आप स्वस्थ्य रहेंगे, तभी
जीवन के उत्सव को उमंग-उत्साह
से मना पाएंगे।
थोड़ी सी सावधानी बरतने से
आपकी जवानी बरकरार रहेगी।
बुढ़ापे में भी रोग-विकार आपसे
आने की इजाजत मांगेगा।
स्वस्थ्य वतन के लिए स्वच्छ तन,
प्रसन्न मन का होना आवश्यक है।
आयुर्वेद के कुछ प्राचीन नियमों पर
गौर करें। हमारे पूर्वजों की भी यही
परम्परा थी, तभी सौ वर्ष जीते थे-
क्या करें तन्दरुस्त रहने के लिए-
【१】प्रातःकाल सूर्योदय के समय
बिस्तर त्यागने की आदत डालें।
【२】सुबह उठते ही खाली पेट
कम से कम आधा से 1 लीटर सादा
पानी आराम से जरूर पियें।
【३】प्रतिदिन नहाने से पहले अभ्यंग
अवश्य करें। रोज अमॄतम “काया की तेल”
की मालिश कर स्न्नान से नाड़ियाँ शिथिल
नहीं होती। हमेशा फुर्ती बनी रहती है।
【४】बिना स्नान के बिस्कुट आदि
अन्न ग्रहण न करें।
【५】किचन में किच-किच (क्लेश)
और कीच यानि गन्दगी न करें।
【६】भोजन बनाते समय पंचतत्व
की शक्ति से परिपूर्ण पंचाक्षर
मन्त्र !!ॐ नमःशिवाय!! गुनगुनाते हुए
धीरे-धीरे मंदी आंच पर पकाएं।
【७】 आयुर्वेद की मृदा चिकित्सा
के मुताबिक भोजन यदि मिट्टी के पात्र
में बनाया जाए, तो उदर रोग, पेट की
परेशानी, गैस, वायु-विकार नहीं होते।
【८】 सुबह नाश्ते या खाने में मीठा
दही या लस्सी लेना शक्तिवर्द्धक होता है।
लेकिन रात्रि में दही न लेवें।
【९】आयुर्वेदिक ‘स्वास्थ्य विशेषांक’
के अनुसार-कभी नमकयुक्त दही न लेवें।
यह रक्त दोष या खून की खराबी
उत्पन्न करता है।
【१०】नमकीन दही कभी लेना हो,
तो दही का चार गुना पानी में नमक,
भूंजा जीरा, अजवायन आदि मिलाकर
मट्ठा बनाकर लेवें।
【११】भोजन को अन्न देवता मानकर
माँ अन्नपूर्णा का ध्यान कर,बहुत ही
आराम से बैठकर धीरे-धीरे ग्रहण करें।
【१२】खाना हमेशा बहुत चबा-चबाकर
ऐसे खाएं, जैसे पी रहे हों।
【१३】भोजन के 2 घण्टे बाद पानी
पीने से पाचनतंत्र मजबूत रहता है।
【१४】पानी हमेशा बैठकर ही पियें,
जिससे जोड़ों में दर्द नहीं होगा।
जल कभी जल्दबाजी में नहीं पियें।
【१५】जल को सदैव बड़ी तसल्ली
से एक-एक घूंट करके ग्रहण करें।
जैसे खा रहे हों।
【१६】दिन में न सोएं। रात को भोजन के बाद टहलते हुए गहरी सांस लेवे। सोते समय एक गिलास गुन-गुना पानी पियें, लेकिन सुबह उठते ही सादा पानी पियें। फिर, दिन भर सादा या गर्म पानी ले सकते हैं।
■ क्यों पीना चाहिए सुबह सादा जल-
आयुर्वेद के अनेक ग्रंथो में जल
चिकित्सा का वर्णन आया है।
औषधि शास्त्र, रस रत्नाकर, शरीर शास्त्र, रक्ताभिसरण शास्त्र, रसेन्द्र मंगल,
कक्षपुटतंत्र एवं आरोग्य मंजरी आदि
आयुर्वेदिक पुस्तकों में उल्लेख है कि-
सुबह जब व्यक्ति सोकर उठता है, तो
उसकी जठराग्नि अर्थात पेट की गर्मी
तेज रहती है, इसलिए उठकर सदैव
सादा पानी पीने से उदर तथा शरीर
की गर्माहट शान्त हो जाती है,
जिससे शरीर में कभी अकड़न-
जकड़न नहीं होती। थायरॉइड
जैसे वात रोग नहीं सताते। इसलिए सुबह उठते ही सादा जल पीना ही श्रेष्ठ रहता है।
【१६】रात को अरहर यानि तुअर
की पीली दाल न खाएं। यदि खावें, तो
दाल में देशी घी या मख्खन पर्याप्त मात्रा
में मिलाएं और भोजन के 2 घण्टे
उपरांत पानी अधिक पियें।
【१७】सप्ताह में 2 से 3 बार एक बार
मूंग की छिलका दाल जरूर लेवें।
【१८】फेफड़ों को संक्रमण से
बचाने के लिए 24 घण्टे में कम से
कम 50 से 100 बार बहुत धीरे-धीरे,
आराम से गहरी श्वास जरूर लेवें।
इस प्रक्रिया से त्रिदोष शान्त होता है।
कफ-विकार नहीं होते।
ध्यान रखें-कफ नहीं बनना चाहिए...
कफ की बीमारी ही सब रोगों की
जननी है, इसलिए कभी कफ खांसी,
जुकाम से बचें। शरीर में संक्रमण
इसी वजह से फैलता है।
कफ विकार से बचाव के लिए सदैव
पेट साफ रखें। कब्ज नहीं होने देवें।
निम्न ओषधियाँ अपने भोजन का हिस्सा
बना लेवें। जैसे-मुलेठी, कालीमिर्च,
अडूसा काढा, तुलसी पत्र, टंकण,
आवलां मुरब्बा, हरड़ मुरब्बा,
अजवायन, जीरा, सेंधा नमक,
आदि लेना हितकारी है। आप चाहें,
तो अमॄतम च्यवनप्राश हमेशा
सपरिवार लेकर हमेशा स्वस्थ्य
रह सकते हैं। यह त्रिदोषनाशक
और रोगप्रतिरोधक क्षमता में
बेतहाशा वृद्धि करता है।
【19】बीज मन्त्रो से करें चिकित्सा-
ऋग्वेद की कई ऋचाओं में
जल चिकित्सा, वायु चिकित्सा,
सौर (सूर्य) चिकित्सा, मानस चिकित्सा
और हवन द्वारा चिकित्सा आदि का
उल्लेख है।
मन्त्र और मन की बात…
मन्त्र से ही मन,मंत्री, मंत्रणा, मंत्री, मत,
मति, मतिमन्त और मतिमान इसी मूल
से बने शब्द हैं। मन्त्र का हर शब्द अमॄतम
है। इन्हें शब्द ब्रह्म तथा वाणी कहते है।
मन्त्र हमें कभी साधारण वाक्यों के समान
हमको कभी बन्धन में नहीं डालते, बल्कि
वे-बन्धन से मुक्त करते हैं।
【20】रोगों का मन्त्रो से करें-इलाज….
अर्श-बवासीर, मधुमेह, पेट दर्द और
उच्च रक्तचाप आदि का इलाज आप
बीज मंत्रों के द्वारा घर बैठे कर सकते हैं
¶आध्यात्मिक चिकित्सा विधान,
¶यज्ञ चिकित्सा विज्ञान,
¶कुंडलिनी योग,
¶पतञ्जलि योग चिकित्सा,
¶आथर्वनिक मनोचिकित्सा विधि
आदि किताबों में इन रोगों का
मंत्रों द्वारा उपायों का वर्णन है-
अर्श रोग होने की आध्यात्मिक वजह...
अर्श/बवासीर/पाइल्स रोग होने का
कारण मूलाधार चक्र का सुप्त या
ऊर्जाहीन होना है। कुण्डलिनी योग
में मूलाधार चक्र जागृत करने के लिए
श्रीगणेश जी ध्यान कर “लं” बीज मन्त्र
जपने का विधान है।
【21】बीजमन्त्र द्वारा करें-
बवासीर चिकित्सा…
रोज स्नान से पहले अन्न, बिस्कुट आदि
न लेवें। नहाते समय 108 बार “लं”-“लं”
मन्त्र को जपें। यह प्रयास 27 दिन करें।
२७ दिनों में नक्षत्र का एक भचक्र पूर्ण
हो जाता है। यदि कोई किसी ग्रह की
पीड़ा है, तो इस मन्त्र से यह रोग है,
तो दूर हो जाएगा। “लं” यह श्रीगणेश
जी का बीज मन्त्र भी है।
【22】 “वं “ बीजमन्त्र जाप से डाइबिटीज करें दूर….
@हिमालय के महायोगी,
@सिद्धयोग और @अघोर तन्त्र
आदि पुस्तकों में वर्णन है कि-
७ चक्रों में दूसरा स्वाधिष्ठान चक्र, जब
दूषित हो जाता है, तब पेशाब सम्बंधित
विकार जैसे-पथरी पड़ना,
पेशाब में जलन, नपुंसकता,
शिश्न की शिथिलता
और डायबिटीज आदि रोग शरीर में
उत्पन्न होने लगते हैं। यह सब स्वाधिष्ठान
चक्र के सुप्त/सुस्त/शिथिल होने की
वजह से होते हैं। लेकिन मंत्रों के द्वारा
इन्हें जड़ से मिटाया जा सकता है।
निम्नलिखित उपायों से ठीक होगा रोग-
नहाने से पहले पूरे शरीर में सिर से तलवों
तक अमृतम द्वारा चन्दन, गुलाब इत्र युक्त,
जैतून, बादाम एवं चंदनादि तेलों से निर्मित
काया की तेल की मालिश कर 108 बार
दोनो हाथों से ताली बजाकर “वं “-वं”
बीज मन्त्र का जाप कर स्नान करें।
हो सके, तो नहाने वक्त भी 27 बार
सत्ताईस दिनों तक
वं-वं बीजमन्त्र मन ही मन या अजपा
जपें। यह महादेव का बीज मन्त्र भी है।
【23】मन्त्र करेंगे उदर रोगों का अन्त….
पेट की खराबी, कब्ज, गैस-वायु व्याधि, ह्रदयरोग, यकृत विकार, लिवर की समस्या,
आलस्य, मानसिक अशान्ति, अनिद्रा आपदाओं को अलग कर तन-मन को मजबूत बनाता है।
“रं” यह अग्नि का बीज मन्त्र है। इसे सदैव नाभि का ध्यान रखते हुए केवल कण्ठ से जपना चाहिए। इस मन्त्र को भूलकर भी मुख से बोलकर न जपें। दरअसल यह चमत्कारी बीजमन्त्र को ही लोगों ने “रं-रं” की जगह
राम-राम बना दिया। शास्त्रों में उल्लेख
है कि-जो बीजमन्त्र बोलकर जपा जाता
है उसके बहुत दुष्प्रभाव होते हैं। जैसे
बीज को जमीन के अंदर न रोपकर
ऊपर ही डालकर पानी देने से बीज गल
जाता है।
अतः कथावाचक तथा ज्ञानीजनों से करबद्ध निवेदन है कि-इस विषय पर पुराणों का गहन अध्ययन कर लोगों तक शास्त्र-सम्मत सही व उचित जानकारी प्रदान करें
बीजमंत्रों के रहस्यों को जाने-
बीज जमीन के अंदर रहने से ही बड़ा वृक्ष
बन पाता है। यह शरीर में स्थित देवताओं
की शक्ति को जागृत करता है। इसलिए बीजमंत्रों को बोलना नहीं चाहिए। बीज जितना गहरा होता जाएगा, उतना ही पनपकर एक दिन वटवृक्ष बनकर छाया देगा।
इसका लाभ आने वाली पीढ़ी को सीढ़ी-दर-सीढ़ी सन्सार को भी मिलता रहेगा।
सूर्य वैज्ञानिक स्वामी विशुध्दानंद जी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि- बीजमंत्रों का जाप बिना गुरु आज्ञा के या बिना जाने-समझे नहीं करना चाहिए।
बीजमन्त्र और गायत्री मंत्र को बोलकर नहीं जपे। ज्ञानाभाव के कारण यह लाभ के स्थान पर हानि ज्यादा पहुंचाते हैं। इससे अच्छा है कि-महादेव के मन्त्र !!ॐ नमःशिवाय!! को ही अपना गुरु मन्त्र बनाकर 24 घण्टे जपते रहें। जिस दिन भी ये मन्त्र अजपा हो जाएगा, उस दिन अनेक ताप-पाप का नाश कर परिवार को स्वस्थ्य रखते हुए अथाह सुख-समृद्धि प्रदान करेगा।
ॐ नमःशिवाय मन्त्र के रहस्य को जानने के लिए नीचे लिंक क्लिक कर 9 हजार शब्दों का पूरा ब्लॉग पढ़ें।
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ऊपर लिखे 23 सूत्र आपको हमेशा स्वस्थ्य, मस्त,तन्दरुस्त और प्रसन्न रखेंगे
कोरोना/कोविड-19 से बचने
तथा बहुत कुछ अधिक जानने के
लिए क्लिक करें…
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कोरोना/कोविड-19 से बचाव हेतु
इसका भी ध्यान रखें..
घर में रहेगा इण्डिया,
तभी, तो बचेगा इण्डिया!
भारत के लोगों का मनोबल, आत्मविश्वास और इम्युनिटी पॉवर बहुत मजबूत है।
इस देश में संक्रमणों ने अनेकों बार अपना
सौतेला स्वभाव दिखाया है। लेकिन हमेशा
मुहँ की खाई है।
रोग कोई भी, चाहें कितना भयंकर
हो, मनुष्य की इच्छा शक्ति के आगे
नतमस्तक हो जाता है। अंत में रोग
को इंसान के हाथों पराजय स्वीकार
करनी ही पड़ती है।
1918 में फैले स्पेनिश फ्लू से
भारत में 2 करोड़ और दुनिया में
10 करोड़ से अधिक लोग अकाल
मौत मरे थे। अतः डरो मत, मन-मजबूत
बनाकर कोरोना से लड़ो-ना!
क्यों कि-भारतवासियों में हर
तकलीफ से लड़ने का होंसला है।
हम अनेक हमले-,जुमले झेलकर
शक्तिशाली हो चुके हैं।
भगवान पर हमारा भरोसा, सदैव
हमारी रक्षा करता रहा है। हमारे
शरीर रूपी दुर्ग की रक्षा हेतु माँ
दुर्गा ने केवल इसी देश में अवतार लिया था।
यह अवतारों की भूमि है। अतः हमें
कोरोना से डरना नहीं, लड़ना है।
किशोर कुमार का यह गीत आपका होंसला अफजाई करेगा-
साथी न कारवां है ये तेरा इम्तिहां है….
रुक जाना नहीं, तू कहीं हार के।
काँटों पे चलके मिलेंगे साये बहार के
ओ राही, ओ राही...
स्वास्थ्य वर्द्धक शास्त्र–
8वीं से 12वीं शताब्दी के मध्य लिखे गए ग्रंथ इनमें से प्रमुख हैं-
आदिशंकराचार्य के सदगुरू द्वारा लिखा गया-गोविंद भगवत्पाद की रस हृदयतंत्र एवं रसार्णव।
आयुर्वेद महर्षि वाग्भट्ट की अष्टांगहृदय,
सोमदेव की रसार्णवकल्प एवं रसेंद्र चूणामणि तथा गोपालभट्ट की रसेंद्रसार संग्रह आदि!
#औषधि शास्त्र, #रस रत्नाकर, #रसेन्द्र मंगल,
#आरोग्य मंजरी, #योग सार, #चरक संहिता, #सुश्रुत संहिता, #च्यवन संहिता, #शरीर शास्त्र आदि और भी हैं।
कटुता मिटायें-नॉलेज बढ़ाएं….
मन-मस्तक एवं स्वास्थ्य वर्द्धक
किताबों के किबाड़ खोलकर पढ़े
हमारे यहां का प्राचीन साहित्य, पुराण,
पंच पक्षी विज्ञान, ऋषि कणद रचित
परमाणु शास्त्र, पंचतंत्र, जातक कथाएं,
कथासरित्सागर, सिंहासन बत्तीसी,
हितोपदेश, , तेनालीराम की कहानियां, शुकसप्तति, संस्कृत सुभाषित,
समयसार, अगस्त्य ज्योतिष संहिता, जिन सूत्र, विदुर नीति, भास्कराचार्य रचित गणित ग्रन्थ-लीलावती, नीतिकार चाणक्य सूत्र, आदि पुस्तकों में ज्ञान के अनेक रोचक रहस्यमयी सूत्र उपलब्ध हैं।
कुछ अन्य महत्वपूर्ण पुस्तकों में-रसकल्प, रसरत्नसमुच्चय, रसजलनिधि, रसप्रकाश सुधाकर, रसेंद्रकल्पद्रुम, रसप्रदीप तथा रसमंगल आदि की बात भी नहीं। अश्वघोष, भास, भवभूति, बाणभट्ट, भारवि, माघ, श्रीहर्ष, शूद्रक और विशाखदत्त की पुस्तकों का संग्रह करने का प्रयत्न करें।
स्वास्थ्य शक्तिवर्द्धक है हनुमन्त उपासना
पवित्र मन से हनुमान जी को मनःशिल
(सिंदूर) चढ़ाने से भी व्यक्ति स्वस्थ्य
हो जाता है।
कब, कैसे चढ़ाएं हनुमान जी को चोला जानने के लिए अमृतम पत्रिका पढ़ते रहें।
अंत में प्रार्थना सहित-
“पूरी हो मनकामना तुम्हारी” रामायण
यह मनगढ़ंत नहीं है। मनचाही मर्जी
हेतु बजरंग की उपासना जरूरी है!
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