-
- मानव-शरीर- शास्त्र के शरीर रचना, इंद्रिय-विज्ञान तथा आरोग्य-शास्त्र ही मुख्य अंग है। केवल एक अंग का अभ्यास । करने से ही कार्य नहीं चल सकता, क्योंकि इन अंगों का परस्पर घनिष्ट संबंध है।
- अत: आयुर्वेद शास्त्रों के पूर्वार्ध में शरीर-रचना तथा इंद्रिय-विज्ञान का वर्णन, और उत्तरार्ध में आरोग्य शास्त्र का वर्णन किया गया है।
- देह में किसी भी दोष के लिए वात-पित्त-कफ का असन्तुलित होना है। बाल झड़ने की मूल वजह पेट की खराबी होती है। जिनका पेट साफ नहीं रहता अक्सर उन्हें अनेक रोग-विकार घेर लेते हैं।
- हमारे अनियमित खसनपण से पाचनतंत्र बिगड़ने लगता है और पित्त की समस्या होने लगती है।
- आयुर्वेद तथा बुजुर्गों का निर्देश है कि ठंडे के ऊपर गर्म और गर्म के ऊपर ठंडा खाने के बीच 3 घण्टे का अंतराल होना चाहिए।
- गर्म चीज पीते समय कुछ बिस्कुट, चना, मुरमुरा, मूंगफली खाएं लेकिन ठंडा पाइन के समय नमकीन, बिस्कुट, टिप्स आदि बिल्कुल न लेवें। कोई भी ठंडी चीज के साथ कुछ खाने से वह पचती नहीं है।
- पित्त से कफ और कफ से वायु प्रगट होती है। पित्त सन्तुलित होता है कसरत, व्यायाम, मेहनत, पैदल चलना, दौड़ना, मालिश करना, स्नान के बाद भोजन या नाशता करना गहरी श्वांस लेना आदि कर्मों से पित्त दोष सन्तुलन में रहता है।
- शरीर में रोग एक दिन में नहीं पनपते और न ही एक-2 दिन में दूर होते हैं। तन-मन में रोज विकार उत्पन्न होते हैं एवं नित्य ठीक भी होते है।
- हर किसी को चाहिए कि महसूस करें कि परेशानी किन कारणों से बढ़ रही है। अगर खसनोआन की वजह से तकलीफ है, तो लंघन यानी व्रत, उपवास करें।
- भोजन पर जितना अंकुश लगाएंगे उतना ही स्वास्थ्य की ठीक रख सकते हैं।
- बाल झड़ने की वजह हमारी अनियमित व कग्रब जीवन शैली ही है। बीमारी अंदर से ही पैदा होती हैं और हमारी लापरवाही उसे बढाने में मदद करती है।
- मै खुद बालों की समस्या से 5 साल तक भारी परेशान रही, तो एक दिन अचानक गूगल पर सर्च करते समय कुन्तल केयर हर्बल हेयर स्पा का एक लेख पढ़ा। फिर मैंने बच्चों से कहकर उसकी एक बोतल ऑनलाइन मंगवाई।
7 दिन लगाने के बाद मुझे चमत्कारी रूप से फ़ायदा हुआ और सिरदर्द, तनाव आलस्य भी दूर होने लगा।
जब कुन्तल केयर सपा का दूसरी बार आर्डर दिया, तो मैंने कुन्तल केयर हर्बल माल्ट, भृङ्गराज हेयर थेरेपी शेम्पू आदि अन्य उत्पाद भी मंगवाकर उपयोग किया।
आज मै पूर्ण विश्वास के साथ कह सकती हूं कि मेरे बाल बहुत अच्छे हो गए। इसकी खुशबू से मन प्रसन्न रहने लगा। बसल बिल्कुल भी नहीं झड़ते बल्कि बाल बहुत चमकदार व लम्बे भी हो गए। इसे लगातार उपयोग कर रही हूं।
हालांकि ये कम्पनी बहुत पुरानी नहीं है न ये बहुत अधिक प्रसिद्ध है लेकिन इसके सभी प्रोडक्ट अत्यन्त असरदार हैं।
मेरी लड़की को भी पीसीओडी की समस्या जब चिकित्सक ने बताई, तो मैंने जिद्द करके amrutam का नारी सौंदर्य माल्ट सेवन कराया तो वह पूर्णतः स्वस्थ्य हो गई और आज भी वह 4 साल से नियमित ले रही है।
हमें आयुर्वेद की भरोसेमंद कम्पनी पर विश्वास करना पड़ेगा और लंबे समय तक खाना होगा, तभी हम स्वस्थ्य सुंदर बने रह सकते हैं।
मेरी एक सहेली ने amrutam का कुंकुमादि तेल के बारे में बताया और जब हमने इसका उपयोग किया, तो बेहतरीन परिणाम मिले।
16 खास बातें, जो सदैव स्वस्थ्य बनाये रखेंगी
- वात-पित्त-कफ का असन्तुलन ही त्रिदोष कहलाता है। अगर देह त्रिदोष युक्त है, तो रोगों का आगमन आरम्भ होने लगता है।
- अंग्रेजी भाषामें एक कहावत है “ If you are pure, you don’t need a cure ” जिसका यही अर्थ हो सकता है कि यदि हम शुद्धाचरण पालते हैं, तो हमें औषधियों की आवश्यकता नहीं होना चाहिये।
- किन्तु जब हम निरोग एवं निकोप प्रकृति रखेगें, तभी यह सत्य हो सकता है।
- आयुर्वेद चिकित्सा पध्दति के मुताबिक जो मनुष्य अपने तन यानी शरीर से बलवान होता है वह मन से भी बलवान होता है “Mans sana in Corpore sana.” उसके मन में न तो बुरी भावनायें उप्तन्न होती और न आचरण में गल्तियां ही हो पाती है।
- न वह किसी से डरता है और न उसे कोई छेडछाड करने का प्रयत्न ही करेगा।
- दुष्ट और गंदे विचार तो अशक्त मनुष्य में ही पाये जाते हैं। उसमें आत्मविश्वास की भावना उत्पन्न नहीं होने पाती। तथा ‘आगे क्या होगा’ इसी विचारधारा में वह अपने तन एवं मन को हानि पहुंचाता रहता है।
- ऐसी परिस्थिति में उससे शुद्धाचरण की क्या आशा की जा सकती हैं ? वैसे देखा जाय तो मनुष्य का शरीर ही नाशवान यानी मरणाधीन होता है। किन्तु हमें यह सोचना चाहिये कि जिस किसी भी दिन हमें मरना है, तो कम से कम उस समय तक हमें निरोगिता के साथ ही जीवित रहना चाहिये।
- यह बात मानव के लिये असंभव नहीं कि वह अपने आचरण एवं आत्मविश्वास के बल पर उस घडी को दूर न ढकेल सकेगा। हम जानते हैं कि किसी घायल मनुष्य के शरीर में से अधिक मात्रा में रक्त बहकर व्यर्थ नष्ट हो रहा हो, तो प्राकृतिक साधनों का उपयोग करते हुए. उसके शरीर से बहती हुई रक्त की धारा को रोक कर और अन्य साधनों से ‘अतिरिक्त रक्त’ शरीर में भर कर हम उसे अच्छा कर सकते हैं।
- क्या कारण है? कि हम कुछ आवश्यक नियमों का पालन करने से अपने को दिर्धायुषी न बना सकें।
- शरीर के विषय में कुछ आवश्यक झान की प्राप्त कर लेना हम अपना कर्तव्य अभी तक नहीं समझते थे!
- अब यह बात सिद्ध हो गई है कि अन्य देशों में विज्ञान-शास्त्र के अन्तर्गत किये गये नये-नये आविष्कार और उनकी फल प्राप्ति को देखते हुए इस प्रकार का ज्ञान प्राप्त कर लेना हमारा सर्व प्रथम कर्तव्य है।
- मानव-जीवन का, संसार की अन्य असंख्य वस्तुओं से ही काल तक संबध आता है परंतु शरीर का संबंध मनुध्य की जन्म-घटिका से लेकर उस की मृत्यु तक रहता है।
- अत: यह स्पष्ट है कि यह संबंध सबसे लम्बा है। मनुष्य के शरीर में जो कायशाली शक्तियां विद्यमान हैं या जो विशेष गुण पाये जाते हैं उन्ही के बल पर वह अपनी आकांक्षाओं को सफल बनाने का दीर्घ काल तक प्रयत्न करता है।
- इस कार्य में इन सुब प्रयत्नों का फलद्दुप होना शरीर के सामर्थ्य पर ही निर्भर है। सतत प्रयत्न तथा दीर्ध उद्योग करने के लिये निरोग प्रकृति एवं बलवान शरीर न हो तो यह कैसे संभव हो सकता है ?
- अत: प्रकृति को निरोग तथा शरीर-शक्ति को दीर्घकाल तक बनाए रखने के लिये यह नितांत आवश्ह त कुछ संबंधित ज्ञान प्राप्त कर लेना चाहिये। इस-हेतु हमें शरीर की रचना देखना होगी।
- शरीर के घटकों का कार्य समझ लेना होगा, तथा उसे सुचारू रूप स चलाने के लिये कर्मशील बनना होगा। यह हमारा एक प्रधान कर्तव्य है । क्यों कि इस शास्त्र की शिक्षा से हमें बहुत कुछ लाभ मिल सकता है।
Leave a Reply