डिप्रेशन मिटाने वाली एलोपैथी से हो रहा है भयंकर साइड इफेक्ट, मेमोरी वीक होकर, मनोभ्रंश रोग (डिमेंशिया) का खतरा बढ़ा! आयुर्वेद में है शर्तिया इलाज.

क्या आप बार बार, हर बात भूल जाते हैं,  तो इस अध्यात्मिक लेख को जरूर पढ़ें  और जानें दिमाग की कहानी को!.

याददाश्त का खो जाना जिसे इंग्लिश में मेमोरी लॉस  Memory Loss Causes: कहते हैं।

भूलना, मस्तिष्क से जुड़ी एक खतरनाक दिमागी बीमारी है। जो लंबे समय तक तनाव, चिंताग्रस्त, भय, भ्रम, नींद न आना आदि कारणों से पैदा होती है। जिसका दुष्प्रभाव मस्तिष्क यानि ब्रेन के ऊपर पड़ता है। मेमोरी लॉस होने पर धीरे-धीरे आपकी याददाश्त खत्म होती भी चली जाती है।
मस्तिष्क की सभी तकलीफों को जड़ से मिटा देता है -आयुर्वेद….
आयुर्वेद में दिमागी रोगों की कुछ खास औषधियों का वर्णन है, जो मानव जाति के मस्तिष्क हेतु वरदान हैं। अगर बचपन से ही बच्चों में याददस्त तेज करने वाली देशी दवाओं का नियमित सेवन कराएं, तो जवानी या बुढ़ापे में भी व्यक्ति अवसाद या डिप्रेशन का शिकार नहीं होता।
मानसिक विकार दूर करने वाली बूटियां…
ब्राह्मी, शंखपुष्पी, जटामांसी, बलछड़, स्मृति सागर रस, मालकांगनी, अगर, चंदन, खस, देवदारू, नीलकमल, बच, सर्पगंधा, ब्राह्मी वटी, स्वर्ण माक्षिक भस्म आदि।
इनके गुणधर्म, लाभ के बारे नीचे पढ़ें।
भावप्रकाश निघंतु के अनुसार अवसाद नाशक जड़ी बूटियां…
आयुर्वेद की  मोथा, गुलर, मुलेठी, त्रिकटु, सौंफ, जीरक, , अर्जुन छाल, चित्रक मूल, जीवक, अश्वगंधा, कालीमिर्च, अमलताश, अनंतमूल, स्मृति सागर रस, , स्वर्ण भस्म, शिलाजीत,बुद्धि वर्धक हैं।
तनाव, थकान, क्लेश नाशक ओषधियां...
गुलकंद, मुनक्का, आंवला मुरब्बा, करोंदा, हरड़ मुरब्बा, अंगूर, अनार, गन्ने का रस, पारद भस्म, रस सिंदूर, खस, उसीरा, साठी का चावल तथा देशी गाय का घी, ये सब श्रम हर हैं अर्थात यह मस्तिष्क की थकान मिटाकर याददाश्त बढ़ाती हैं।
अगर आप भूलने की आदत से परेशान हैं...
आयुर्वेद की ये देशी दवाएं सूक्ष्म गुणों के कारण सूक्ष्म स्त्रोतसों, में प्रवेश कर मस्तिष्क की शिथिल नाड़ियों में रक्त का सुचारू रूप से संचार कर दिमाग को तेज बनाने में सहायक हैं।
जब कि अंग्रेजी दवाएं पिच्छिलता और गौरव (भारीपन) के कारण सूक्ष्म रस -रक्तवाही मस्तिष्क शिराओं में जाकर रुककर सिर में भारीपन पैदा करती हैं।
एलोपैथिक मेडिसिन के साइड इफेक्ट
आयुर्वेदिक ग्रंथ माधव निदान के मुताबिक दिमागी रूप से कमजोर, याददाश्त की कमी, बार बार भूलना, गहरी नींद न आना, डिप्रेशन जैसे विकारों में अंग्रेजी दवाएं बहुत गर्म होने से कोशिकाएं सिकुड़ने लगती हैं।
कफ, तथा रक्त को सुखाकर एवं देह में अनेक रोग जैसे लिवर की खराबी, कब्ज, बैचेनी, चिंता, कमजोरी, आलस्य, चिड़चिड़ापन, भूख न लगना, नपुंसकता, सेक्स में अरुचि आदि समस्या उत्पन्न होने लगती हैं और तन मन विकृत होने लगता है।
दवा नहीं ध्यान अपनाएं.

चरक संहिता या अन्य प्राचीन योग ग्रंथ निर्देशित करते हैं कि देह को दवा से नहीं, अपितु ध्यान से ठीक किया जा सकता है।

केसे करें ध्यान
सदा स्वस्थ्य रहने के लिए हमें दोनों नासिका से गहरी गहरी श्वास नाभि तक ले जाकर, धीरे धीरे दोनों नाक से छोड़ने की आदत बनाना चाहिए। हमारे दिमाग को शीतल वायु की जरूरत है, जो नाक द्वारा ही मिल सकती है।
वायु से बढ़ती है आयु.
जब मस्तिष्क को प्राणवायु पर्याप्त मात्रा में नहीं मिलती है, तो रस, रक्त की कमी से कोशिकाओं में सिकुड़न आने लगती है। फिर मांस, मज्जा, तंतु, नाड़ियां सब शिथिल होंकर मस्तिष्क में रक्त का बहाव सरलता से नहीं हो पाता।
मस्तिष्क वैज्ञानिकों ने खोजा कि किसी भी यंत्र के वायर जलने से मशीन धीमा काम करती है, लेकिन ज्यादा वायर जलने से वह खराब हो जाती है।
ठीक उसी तरह एंटी एंजायटी ड्रग दिमाग के सेल को फ्राई कर देते हैं। अधिक इस्तेमाल से सेल डेमेज हो जाती है और इंसान भूलने लगता है। कभी कभी अंग्रेजी दवाओं के अधिक इस्तेमाल से याददाश्त हमेशा के लिए खत्म हो जाती है।
 
बुद्धि विवेक क्षीणता रोग डिमेंशिया
आयुर्वेद में डिमेंशिया को मनोभ्रंश विकार कहते हैं। यह दिमाग की एक बीमारी नहीं है बल्कि ये मस्तिष्क रोगों का एक लक्षणों के समूह का नाम है, जो मस्तिष्क की हानि से सम्बंधित हैं मनोभ्रंश रोग में याददाश्त निरंतर कम होने लगती है।
अब एलोपैथी में भूलने की बीमारी की दवाएं  बेअसर, शोधकर्ता बोले- उपचार नहीं,  बचाव पर ध्यान देना होगा….
स्वास्थ्य विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं का कहना  है कि डिमेंशिया से बचाव के अन्य तरीकों पर  काम करना होगा। डिमेंशिया के जोखिम वाले कारणों को खत्म करने पर ज्यादा ध्यान देना होगा।
 
रिसर्च में पाया गया है कि 40% डिमेंशिया का  कारण युवा अवस्था में ब्लड प्रेशर, धूम्रपान,  उम्र बढ़ने के साथ कम सुनाई देना, कम या  धुंधला दिखाई. देना आदि है। अब इलाज 
से ज्यादा बचाव के लिए ध्यान देना होगा।
 
डिमेंशिया पीडितों को नेत्ररोग का खतरा...
अमेरिका के नेत्र वैज्ञानिकों को एक शोध में पता चला कि मनोभ्रंश रोग यानि डिमेंशिया के 65 प्रतिशत मामले आंख की रोशनी के धुंधला होने से जुड़े हैं। रिसर्चर्स ने पाया कि आंखों को स्वस्थ रखकर हर साल एक लाख लोगों को डिमेंशिया से बचाया जा सकता है।चरक संहिता के अनुसार नेत्रों की सुरक्षा के लिए आयुर्वेदिक दवाएं जैसे -त्रिफला, विभिन्न मुरब्बे,
हरड़, ब्राह्मी, शंखपुष्पी, जटामांसी, चंदन आदि अत्यंत लाभदायक हैं। अमृतम आई की माल्ट EYEKEY Malt में इन सबका समावेश है।
 
एलसायमर रोग मनोभ्रंश रोग (डिमेंशिया) की सबसे सामान्य किस्म है।
Dementia अल्जाइमर और डिमेंशिया में दिमाग सिकुड़ जाता है, सक्रियता कम होने लगती है।
Dementia शब्द ‘de’ मतलब without और ‘mentia’ मतलब mind से मिलकर बना है।
यह दिमाग की बनावट में शारीरिक परिवर्तन की वजह से होता है। ये बदलाव स्मृति, सोच, आचरण तथा मनोभाव को प्रभावित करते हैं।
अधिकतर लोग डिमेंशिया को भूलने की बीमारी के नाम से जानते हैं. याददाश्त की समस्या एकमात्र इसका प्रमुख लक्षण नहीं है।
मनोभ्रंश मस्तिष्क से जुड़ी बीमारी है, जिसमें व्यक्ति धीरे-धीरे अपनी याददाश्त खोने लगता है। डिमेंशिया 55 से 65 वर्ष आयु के बाद होता है, जबकि अल्जाइमर ऐसी बीमारी है, जिसे होने के लिए किसी उम्र की कोई सीमा ही नहीं है। यह बीमारी जेनेटिक भी हो सकती है।
बुजुर्ग रहें सावधान…
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), यूनिवर्सिटी  कॉलेज लंदन और डिमेंशिया प्रिवेंशन पर लैंसेट आयोग द्वारा प्रकाशित रिसर्च  रिपोर्ट के मुताबिक बुजुर्गों में डिमेंशिया, मनोभ्रंश रोग और हर बात बार  बार भूलने की आदत अब पूरे विश्व में महामारी की  तरह फैल रहा है।
मस्तिष्क विशेषज्ञों के लिए चिंताजनक यह है  कि इससे जुड़ी बीमारी अल्जाइमर के इलाज  की क्रेनेजुमाब जैसी दवा बेअसर साबित हुई है। 
 
दवा पर हाल के परीक्षणों को लेकर यूनिवर्सिटी  कॉलेज ऑफ लंदन के साइकियाट्रिस्ट और  डिमेंशिया प्रिवेंशन से जुड़ी लैंसेट आयोग के  प्रमुख डॉ. गिल लिविंगस्टन ने कहा, यह  विश्व के लिए निराशाजनक है। 
 
अच्छा होता कि हमारे पास डिमेंशिया पर  कारगर भारतीय आयुर्वेदिक पद्धति की जानकारी और दवाएं होतीं। अब हमें आयुर्वेद के विकल्पों पर सोचना होगा।
दिनोदिन बढ़ता डिप्रेशन
डिप्रेशन के कारण दिमाग, तो कमजोर हो ही  जाता है। इंप्रेशन यानि दबदबा के साथ ही  आदमी को धन दौलत की बर्बाद होने लगती है।
अवसाद/डिप्रेशन या मस्तिष्क की सभी बीमारियों से बचने के लिए सभी उम्र के लोग आजकल रसायनिक एलोपैथिक दवाइयों का धड़ल्ले से उपयोग कर रहे हैं, जिससे डिप्रेशन के साथ साथ इम्यूनिटी कमजोर होकर शारीरिक विकार बढ़ रहा है।
खूबसूरती हेतु घातक….

अनिद्रा, तनाव, डिप्रेशन खत्म करने वाली दवाओं से युवा पीढ़ी की बुद्धि,याद्दाश्त कमजोर हो रही है, किशोरियों, नवयुवतियों में डिमेंशिया का खतरा बढ़ता जा रहा है और अल्पायु में ही सुंदरता नष्ट हो रही है।

आत्महत्या की वजह
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) एवम आयुष मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक एंटी एंजायटी अर्थात अवसाद रोधी मेडिसिन के सेवन से कई लोगों की याद्दाश्त कमजोर हो रही है। लोग भुलक्कड़ बनते जा रहे हैं। इसके चलते आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
ऑस्ट्रेलियन न्यूक्लियर साइंस एंड टेक्नोलॉजी ऑर्गेनाइजेशन (एएनटीएसओ) की एक रिसर्च में यह तथ्य सामने आए है कि अत्याधिक रसायनिक उपचार मानव मस्तिष्क की
माइक्रोग्लियल सेल को प्रभावित करती हैं।
शोध के अनुसार अंग्रेजी दवाओं का इस्तेमाल जीवन के कॉगनेटिव विकास में खतरा बन रहा है। दरअसल, ये दवाएं इसका असर दिमाग की सक्रियता पर पड़ता है।
चूहों पर परीक्षण के दौरान अलग एएनटीएसओ के वैज्ञानिक रिसर्ड बनाटी ने बताया कि मस्तिष्क में अरबों न्यूरॉन्स होते हैं, जिनमें इलेक्ट्रीक इमपल्स होते हैं। जो कैमिकल सिग्नल के तौर पर सूचना भेजते है। एलोपैथिक के इस्तेमाल से ये डेमेज हो जाते हैं।
मस्तिष्क में बार बार परिवर्तन या अनिर्णय का होना अल्जाइमर रोग पैदा करता है पर यह शुरुआत में हिप्पोकैम्पस को क्षति पहुचाता है. इससे न्यूरॉन्स नष्ट हो जाते है जिससे मस्तिष्क के सभी भाग प्रभावित होते हैं।
अल्जाइमर के लक्षण...

यह भूलने की बीमारी है। याददाश्त कमजोर होना, अनिर्णय की स्थिति यानि सही समय पर ठीक से निर्णय न ले पाना, बोलने में दिक्कत आना, हकलाना आदि पारिवारिक समस्याओं की गंभीर स्थिति आदि शामिल हैं। अल्जाइमर रोग में मस्तिष्‍क में दो प्रोटीन, एमिलॉयड बीटा और टाउ का निर्माण होता है, जो न्यूरॉन्स को परेशान करते हैं और उसे नष्ट करते हैं। इससे मस्तिष्‍क की स्मृति क्षमता में कमी आने लगती है।

!!ॐ शंभुतेजसे नमः शिवाय!!
के जाप से बहुत राहत मिलती है। साथ में ब्रेन की गोल्ड माल्ट और टैबलेट का 3 से 6 महीने तक सेवन करें।
डिप्रेशन नाशक दवाओं का विस्तृत वर्णन
ब्राह्मी के फायदे एवम गुण.
स्वर्थ्या स्मृतिप्रदा कुष्ठपाण्डु मेहात्रकासजित्। विषशोयज्वरहरी तद्वन्मण्डूकपर्णिका।।

अर्थात ब्राह्मी — शीतल, दस्तावर, कड़वी, हल्की, मेधा को हितकारी, बुद्धि वर्धक, कसैली, मधुर, आयु को बढ़ानेवाली, रसायन, स्वर वी कंठ को हितकारी, स्मरण शक्तिदायक और कोड़, पाण्डु, प्रमेह, मधुमेह, रक्त दोष, रुधिरविकार, खाँसी, विष, सूजन तथा मस्तिष्क ज्वर को नष्ट करने वाली है।

शंखपुष्पी मस्तिष्क विकारों में उपयोगी ....
शङ्खपुष्पी तु शङ्खाह्रा मङ्गल्यकुसुमाऽपि च।
शंखपुष्पी सरा मेध्या वृष्या मानसरोगहत्त्।।
रसायनी कषायोष्णा स्मृतिकान्तिबलान्निदा। दोषापस्मारभूता श्रीकुष्ठक्रिमिविषप्रणुत्।।
अर्थात  शंखपुष्पी का उपयोग सभी तरह के मानसरोग, उन्माद, अपस्मार, अनिद्रा, भ्रम एवं विष यानि नकारात्मक विचार (निगेटिव थिंकिंग) मिटाने में में किया जाता है।
शंखपुष्पी के अन्य प्रयोग  लाभ….
(१) उन्माद (frenzy) में २-४ तोला ताजी शंखपुष्पी का स्वरस देने से दस्त साफ होता है और मद उतरता है ।
(२) मस्तिष्क ज्वर में भी निद्रा के लिये एवं प्रलाप कम करने के लिये शंखपुष्पी का फांट जीरक के साथ दूध में पीसकर देते हैं ।
(३) बद्धकोष्ठ, गुल्म, आनाइ आदि में इसकी जड़ देने से दस्त साफ होता है तथा शारीरिक विष निकल जाता है ।
(४) शंखपुष्पी के पत्तों का धूम्रपान तथा जीर्णकास तथा श्वास में लाभदायक है।
(५) रक्तस्राव विशेषकर रक्तवमन में शंखपुष्पी के स्वरस से लाभ होता है।
(६) पूयमेह, मूत्रकृच्छ्र तथा शुकदौर्बल्य में भी वह लाभदायक है।
(७) गर्भाशय दौर्बल्य के कारण जिन महिला में गर्भधारणा नहीं होती उन्हें
Amrutam शंखपुष्पी चूर्ण से लाभ होता है।
जटामांसी — (Spike nard)
जटामांसी भूतजटा जटिला च तपस्विनी।
मांसो तिक्ता कवाया च मेध्या कान्तिबलप्रदा।।
स्वाद्वी हिमा त्रिदोषालदाहवोसर्पकुष्ठनत्
अर्थात जटामांसी, भूतजटा, जटिला और तपस्विनी ये जटामांसी के संस्कृत नाम हैं।
गुण लाभ…तिक्त, कसैली, बुद्धिवर्द्धक, कान्तिबलदायक, मधुर, शीतल तथा त्रिदोष, रक्तविकार, दाह, विसर्प और कुष्ठ को दूर करती है ॥
उसीर भी डिप्रेशन मिटाता है....
उशोरं पाचनं शोतं स्तम्भनं लघु तिक्तकम्।
मधुरं ज्वरद्वांतिमद जित्कफपित्तनुत्तृ।।
ष्णास्त्रविषवी सर्पदाह कृच्छत्रणापहम्॥७८॥
 नाम- वीरण की जड़ को उशीर, जलद, अमृणाल, सेव्य, समगन्धक कहा जाता है।

हिन्दी में खस कहते हैं।

उसीर के फायदे..गुण — खस-क्रोध, गुस्सा, चिड़चिड़ापन, कम कर मन को शांत रखता है।
पाचन, शीतल, स्तम्भन करनेवाला, हल्का, तिक्त, मधुर तथा मस्तिष्क ज्वर नाशक होता है।
डिप्रेशन, डिमेंशिया से मुक्ति का श्रेष्ठ उपाय.
परमात्मा की घड़ी से तालमेल बनाने के लिए सही समय पर जागें। तन का मन मस्तिष्क से तालमेल बिठाने की शुरुआत भी सुबह उठने की आदत बनाकर करें।
 सुबह समय पर उठें जिससे एक बेहतर दिनचर्या बनेगी और शरीर भी उस समय को अपनाने लगेगा।
 ● जिस समय हमारी आंखें खुलती हैं शरीर की आंतरिक गतिविधियां वहीं से सक्रिय होती हैं और इसी के साथ ही मस्तिष्क से कई तरह के हॉर्मोन के स्राव का संकेत भी शुरू हो जाता है।
  सुबह जल्दी उठने की कोशिश करें, सूर्य की रोशनी को अपने शरीर और चेहरे पर कुछ देर पड़ने दें।
जीवनशैली में बदलाव करें…
जब शरीर में मौजूद घड़ी की सुइयां हमारे शरीर के चक्र से आगे बढ़ जाती हैं और इसका असर स्वास्थ्य पर पड़ता है। लिहाजा इस संतुलन के महत्व को समझने की जरूरत है…
तन का मन तालमेल ज़रूरी है…
अधिकांश लोगों की जीवनशैली ही ऐसी हो गई है कि वे देर रात्रि में सोते हैं, समय पर खाते नहीं और सुबह उठना भी देर से होता है।
प्रातः जल्दी उठकर शरीर की घड़ी री-सेट करें सुबह सूर्य की रोशनी के साथ उठने पर दिमाग़में ताजगी का संचार होता है, जिससे पूरी दिनचर्या को जैविक घड़ी के सामंजस्य में रखना आसान होता है।
समय से सोएं की आदत बनाएं…
●  सोने का समय निर्धारित करें क्योंकि सही समय पर सोने से ही आप सही समय पर उठ पाएंगे और फिर अगले दिन सूर्योदय के साथ बेहतर दिनचर्या की शुरुआत कर सकेंगे।बिस्तर पर जाते ही गहरी श्वास नाभि तक ले जाकर, धीरे से छोड़ते हुए शरीर को ढीला करते जाएं।
त्रिदोष का संतुलन बिगड़ता है, देर तक सोने से…
अमूमन लोग सप्ताहांत पर देर रात तक जागते हैं, क्लब, दारू या किटी पार्टी करते हैं और सुबह देर तक सोते रहते हैं, जिससे वात पित्त कफ असंतुलित होने लगता है और तन मन एवम शरीर का संतुलन बिगड़ता है। देह का तालमेल जैविक घड़ी से बिठाने के लिए देर तक सोने से बचें क्योंकि देर तक सोने से अगले दिन की पूरी योजना गड़बड़ा जाती है।
●  यदि एक दिन भी अप समय पर सोकर नहीं
उठते हैं, तो इसका असर अगले दिन पर पड़ेगा।
सोने का सही समय रात के लगभग 9 बजे के आसपास का होता है, तभी आप अगले दिन सही समय पर उठ पाएंगे।
रात 10:00 बजे : शरीर में हॉर्मोन का स्राव होने से सोने के लिए सही समय।
भोर 1:00-4:00 बजे : शरीर सबसे गहरी नींद में होता हैं।
सुबह 4:00-5:00 बजे : शरीर का तापमान कम होता है इसलिए नींद ज्यादा आती है।

सुबह खाली पेट और रात को सोते समय एक चम्मच ब्रेन की गोल्ड माल्ट एवं 1 गोली Brainkey Gold tablet गुनगुने दूध से 3 से 6 महीने तक लेवें।

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