अमृतम हरड़ पार्ट- 3

हरड़ में 5 प्रकार के रस होते हैं

मज्जा में मधुर रस (मीठा), इसकी नाड़ियों में

खट्टा रस, ठूंठ (वृन्त) में कड़वा रस,  छाल में

कटु रस और गुठली में कसैला रस होता है ।

हरड़ में पाँच तरह के रस होने से तन को पतन सेबचाती है । यह अमृतम ओषधि है ।

हरड़ की पहचान

जो हरड़  नई,चिकनी,घनी,

गोल, तथा भारी हो और जल में डालने

पर डूब. जाए वह हरड़ उत्तम व

गुणकारक होती है  ।

अमृतम हरड़ के विशेष गुण

चबाकर खाने से अग्नि की वृद्धि करती है ।

पीस कर खाने से दस्त साफ लाती है ।

उबाल कर खाने से दस्त बन्द कर देती है ।

भूनकर खाने से तीनों दोष वात-पित्त-कफ

(त्रिदोष) का नाश करती है ।

भोजन के साथ खाने से बुद्धि-बल तथा इन्द्रियों  को बलशाली बनाती है ।

त्रिदोष नाशक है ।

मल-मूत्रादि विकारों को निकालने वाली है ।

भोजन के अंत में खाई हुई हरड़ मिथ्या या प्रदूषित अन्नपान से होने वाले वात-पित्त व

कफ के सब विकारों को शीघ्र दूर करती है ।

हरड़ के अमृतम प्रयोग

मिट्टी के पात्र में 200 ग्राम हरड़ डालकर

2 लीटर पानी मे 24 घंटे पड़ी रहने दें, हरड़ के पानी का पूरे दिन पूरा परिवार 5दिन लगातार दिन में 2 या 3 बार हरड़ जल सेवन करे ।  फिर पुनः पात्र में जल भरदे । 7 दिन के निरन्तर प्रयोग से उदर के सभी विकारों का विनाश हो जाता है ।

अथवा

   असाध्य उदर रोग का अमृतम उपाय       ‎

5 हरड़ कूटकर दरदरी कर 200 या

300 ml पानी मे किसी मिट्टी के पात्र

में डाल दे साथ ही इसमें 5 मुनक्के, 2 अंजीर, सूखा अनारदाना 10 ग्राम जीरा, सौफ, मुलेठी, अजवायन,सौंठ, सभी 2 ग्राम, अमलताश गूदा 5 ग्राम, इलायची 1 नग,

तथा कालीमिर्च 5 नग सभी को 24 घंटे सादे जल में गलाकर सुबह अच्छी तरह मसलकर  खाली पेट पियें । ऊपर से 1 या 2 गिलास सदा जल पीकर फ्रेश होयें ।

अमृतम हरड़ के औऱ भी अनेक उपयोग, गुण व लाभ बताएं हैं-

अमृतम हरड़ नमक के साथ लेने पर कफ को, शक्कर के साथ सेवन करने से पुराने से पुराना पित्त  दूर करती है ।

घृत (घी) के साथ वात-विकारों को तथा

हरड़ गुड़ के साथ खाने से महादुष्ट रोगों का नाश कर देती है ।

अमृतम हरड़ का ऋतु अनुसार अनुपान –

शरीर में रसायन की वृद्धि हेतु 

वर्षा ऋतु में नमक के साथ सेवन करें ।

शारद ऋतु में शक्कर से,

हेमंत ऋतु में सौंठ से,

शिशिर ऋतु में पिप्पली के साथ,

बसंत ऋतुमें अमृतम मधु पंचामृत के साथ औऱ ग्रीष्म ऋतु (गर्मी) में गुड़ के साथ हरड़ के  सेवन से शरीर शक्तिशाली

व निरोग होता है ।

हरीतक्यादी वर्ग के श्लोक 31 व 32 में

वर्णन है –

लवणन  कफम हन्ति पित्तम हन्ति सशर्करा….

घृतेन वातजान रोगानसर्व रोगांगूदानविता ….

इन्हें हरड़ का  सेवन  नहीं करना चाहिये –

जो मनुष्य मार्ग में चलने से थका हुआ हो ।

बल रहित हो, रुक्ष हो, कृश हो ।

अधिक पित्त वाला हो,

( जिसे ज्यादा गर्मी लगती हो वे

गुलकन्द के साथ लें)

‎वर्तमान प्रदूषित युग में सदा स्वस्थ रहने हेतु

‎हरड़ का उपयोग करते रहना चाहिए ।

‎त्रिफला योग हरड़, बहेड़ा, एवम आमला

‎इन तीनों के समभाग मिश्रण से बनाया

जाता है । त्रिफला आयुर्वेद का जगत प्रसिद्ध

‎योग है । जो रग-रग से रोगों को निकालकर

 ‎शरीर को शुध्द करने में विशेष

हितकारी है

 ‎हरड़ हारे का सहारा है  शास्त्रों का मत है कि जब हरि भी साथ छोड़ दे,

तो हरड़ साथ देती है ।

‎यह सर्वरोग हरती  है इसलिये

इसे हरड़ कहते हैं। ।

‎आयुर्वेद ओषधियों में अमृतम हरड़ का सर्वोच्च ‎स्थान है । अधिकांश योग हरड़ के बिना अधूरे हैं ।

‎हरड़ के विषय में औऱ विस्तार से जानने हेतु

‎हमारी वेबसाइट देखें –

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