आयुर्वेद के किस किताब या ग्रंथ में अश्वगंधा की जानकारी है !!

  • अश्वगंधा ऊर्जा शक्ति और बुद्धि बल बढ़ाने में उपयोगी है।
  • अश्वगंधा के फूल को पनीर ढोढ़ा कहते हैं, जो मधुमेह यानि डायबिटीज में विशेष कारगर ओषधि है।

अश्वगंधा के 108 गुण, लाभ, फायदे जाने

  • शतावरी को संस्कृत में सहस्त्रवीर्या कहते हैं ओर यह पुरुषों में वीर्य बढ़ाता है और प्रसूता स्त्री के स्तनों में दूध की वृद्धि करता है। महिलाओं के स्तनों को भी कठोर और सुडोल बनाने में बहुत उपयोगी है।
  • आयुर्वेद के 5000 साल पुराने लगभग 16 से अधिक ग्रंथों में अश्वगंधा, शतावरी का उल्लेख मिलता है। इस लेख में अश्वगंधा की विस्तार से जानकारी पढ़ें –

अश्वगन्धाऽनिलश्लेष्मश्वित्रशोथक्षयापहा।
बलकारका रसायनी तिक्ता कषायोष्णाऽतिशुक्रला।।
(भाव.प्रकाश निघंटू गुडूच्यादि वर्ग: १९०)

अश्वगन्धा कषायोष्णा तिक्तावातकफापहा।
विषव्रणक्षयान् हन्ति कान्तिवीर्यबलप्रदा॥
(ध.नि. गुडूच्यादि वर्ग: २७५)

अश्वगन्धा कटूष्णा स्यात्तिक्ता च मदगन्धिका।
बलकारका वातहरा हन्ति कासश्वासक्षयव्रणान्॥
(रा.नि.शताह्वादि वर्गः ११२)।

अश्वगन्धा कषायोष्णा तिक्ता वृष्या रसायनी।
बलपुष्टिप्रदा हन्ति कफकासानिलव्रणान्॥
शोफकण्डूविषश्वित्रकृमिश्वासक्षतक्षयान्।
(कै.नि.औषधि. वर्ग: १०४६)

अश्वगंधा ऽनिलश्लेष्मशोफश्वित्रक्षयापहा।
बलकारका रसायनी तिक्ता कषायोष्णाऽतिशुक्रला।।
(म.नि.अभयादि वर्ग: १७४)

  • अर्थात तन मन अंतर्मन को हेल्दी बनाकर धन भी बचाता है अश्वगंधा। स्त्री पुरुष के गुप्त रोग मानसिक विकार ठीक करने में उपयोगी है। बीमारियां बाहर कर बुढ़ापा रोकने में मदद करता है।
  • अश्वगंधा के बारे में यह जानकारी लगभग 11 प्राचीन हस्तलिखित पांडुलिपि, ग्रंथों से संस्कृत के श्लोकों सहित ली गई है, ताकि गुगल पर भ्रम फेलाने वाले ज्ञान से सावधान हो सकें। अतः शास्त्रों में लिखी बात को ही सत्य माने।

सन्दर्भ ग्रंथ और प्राचीन पुस्तके

  • भावप्रकाश निघंटू, वैद्यक चिंतामणि, द्रव्यगुण विज्ञान, भेष्यज्य रत्नाकर, आयुर्वेद जड़ीबूटी रहस्य, आयुर्वेदिक निघंटू, वनौषधि चंद्रोदय, आयुर्वेद चिकित्सा सार, निघंटू आदर्श और गांवों की दुर्लभ जड़ीबूटियां।
  • संस्कृत के श्लोक अनुसार अश्वगंधा के कार्य

अश्वगन्धाऽनिलश्लेष्मश्वित्रशोथक्षयापहा।
बलकारका रसायनी तिक्ता कषायोष्णाऽतिशुक्रला।।
(भा.प्र.गुडूच्यादि वर्ग: १९०)

अश्वगन्धा कषायोष्णा तिक्तावातकफापहा।
विषव्रणक्षयान् हन्ति कान्तिवीर्यबलप्रदा॥
(ध.नि. गुडूच्यादि वर्ग: २७५)

अश्वगन्धा कटूष्णा स्यात्तिक्ता च मदगन्धिका।
बलकारका वातहरा हन्ति कासश्वासक्षयव्रणान्॥
(रा.नि.शताह्वादि वर्गः ११२)।

अश्वगन्धा कषायोष्णा तिक्ता वृष्या रसायनी।
बलपुष्टिप्रदा हन्ति कफकासानिलव्रणान्॥
शोफकण्डूविषश्वित्रकृमिश्वासक्षतक्षयान्।
(कै.नि.औषधि. वर्ग: १०४६)

अश्वगंधा ऽनिलश्लेष्मशोफश्वित्रक्षयापहा।
बलकारका रसायनी तिक्ता कषायोष्णाऽतिशुक्रला।।
(म.नि.अभयादि वर्ग: १७४)

 

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