खाने के तुरंत बाद पिया पानी, तो मिटा देगी जवानी
खाने के तुरंत बाद पानी पीने से जठराग्नि शान्त हो जाती है, जिससे खाना पच नही पाता। उदर में भोजन सड़ेगा फिर सड़ने के बाद उसमें जहर बनेगा। यही विष यूरिक एसिड बनता है, जो वात विकार का कारण है। ये तन का पतन कर देता है। ये शरीर को शक्तऔर शक्तिहीन कर देता है।
आयुर्वेद में शरीर को स्वस्थ रखने हेतु सैकड़ों सहज सरल समझाइस दी हैं । सारी कायनात, शरीर के साथ हैं । उदर में एक छोटा सा स्थान होता है, जिसे आमशय कहा जाता है। इसी को संस्कृत में जठर कहा गया है। यह एक थैली की तरह होता है जो कि मानव शरीर का महत्वपूर्ण अंग है ।क्योकि सारा खानासबसे पहले इसी में आता है। खाना अमाशय में पहुंचते ही शरीर में तुरंत आग (अग्नि) जल जाती है। इसे ही जठर +अग्नि = जठराग्नि कहते है।
जठराग्नि स्वचलित है पहला निवाला उदर में गया कि जठराग्नि प्रदीप्त हुई। ये अग्नि तब तक जलती है जब तक खाना पचता है। अग्नि खाने को पचाती है। अब आपने खाते ही गटागट खूब पानी पी लिया इससे जो आग (जठराग्नि) जल रही थी वह बुझ गई।
अमृतम जीवन हेतु हमेशा स्मरण रखें कि उदर में भोजन जाते ही दो क्रियाऐं होती है। फर्मेटेषन अर्थात भोजन का सड़ना, कब्ज होना, उबकाई, जी मचलाना, बैचेनी आदि इससे मुक्ति हेतु हम अंग्रजी दवाओं का सेवन करते है जो विशेष विषकारक और हानिकारक है जो किडनी, लीवर, आँतो को विकार युक्त बनाकर हृदयघात कर सकती है।
अमृतम आयुर्वेद के अनुसार उदर में अग्नि जलेगी तो ही खाना पचेगा इससे रस बनेगा इसी रस से शरीर में माँस, मज्जा, रक्त वीर्य, हडिड्याँ, मल-मूत्र और अस्थि और सबसें अन्त मेद (चर्बी) का निर्माण होता है यह तभी सभंव है जब खाना पचेगा। मल-मूत्र का समय पर विसर्जन स्वस्थ शरीर हेतु आवश्यक। है।
खाना पचने पर ही माँस-मज्जा, रक्त वीर्य हडिड्याँ बनती है। नही पचने पर बनता है यूरिक एसिड और इस जैसा ही दूसरा विष जिसे कहते है लाडेन्सीटी लियो प्रोटिव अर्थात खराब कोलेस्टाल और शरीर में ऐसे 103 विष है। यह सब शरीर को रोगो का घर बनाते है।
पेट में बनने वाला यही जहर जब ज्यादा बढकर खून मे आते है। तो रक्त हृदयनाड़ियों से बाहर नही निकल पाता और थोड़ा-थोड़ा विषरूपी कचरा जो खून में आया है वह इकटठा होकर हृदय की नाड़ियों को ब्लॉक कर देता है जिसे हृदयघात कहते है।
अतः भोजन के एक घण्टे पश्चात पानी पीना विशेष हितकारी है।जल हमारा कल है कल को यन्त्र भी कहते है। शरीर भी हमारा यन्त्र है। परमेश्वर ने भी प्राणियों की प्राण प्रतिष्ठा की प्रक्रिया पूर्ण करने में अनगिनत यत्न किए, तब इस यन्त्र रूपी तन की रचना हो सकी। तन दुरस्त है तो तन्त्र भी कुछ अनिष्ठ नही कर पाता।
जल जीव व जंगल दोनों के लिए जीवन है। जल से ही जीवतंता आती है लेकिन भरी गर्मी में वृक्ष या व्यक्ति को जल दिया कि जवानी खत्म अर्थात दोनो ही सूख जायेगे या मुरझा जायेगें।
जब हम खाना खाते है, जो जठराग्नि (उदर की अग्नि) द्वारा सब एक दूसरे में मिश्रण होकर खाना पेस्ट में बदलता है। इस क्रिया में करीब 60 या 72 मिनिट का समय लगता है। तत्पश्चात जठराग्नि बहुत धीमी होने लगती है। पेस्ट बनने के बाद शरीर में रस बनने की प्रक्रिया शुरू होती है ,तब ही शरीर को पानी की जरूरत होती है। तब जीतना पानी पी सकते है पीयें।
भोजन के एक घंटा पूर्व भी पानी पीना भी लाभकारी है क्योकि मूत्र पिंड तक पानी पहुँचने में करीब 50 – 60 मिनिट का समय लगता है। अगर व्यक्ति पानी पीने के एक घंटे बाद भोजन ग्रहण करेगा , तो खाने के तुरंत बाद मूत्र विसर्जन की इच्छा तेजी से होगी और खाने के पश्चात पेशाब करने से किडनी सुरक्षित रहती है तथा मधुमेह रोग से बचाव होता है।
अमृतम उपाय प्रक्रिया
आयुर्वेद नियमों के अनुसार दिनभर में 7-8 लीटर जल धारण करना चाहिए। जल ज्वर ,जलन से रक्षा कर चहेरे पर झुरियाँ नही आने देता। खाली पेट जल पीना अमृत है। बिना स्नान के भी अन्न बिस्किुट आदि न ले यह रोगकारक है।
अमृतम दवायें -रोग मिटायें :
पाचन तंत्र की मजबूती और समय पर खाना पचाने व समस्त ज्ञात अज्ञात उदर विकार जैसे भूख न लगना, बचैनी कब्ज का कब्जा,पेट के अनंत, असंख्य रोग मिटाने हेतु अद्भुत असरकारक अमृतम गोल्ड माल्ट 1-1 चम्मच सुबह शाम दूध के साथ लगातार लेवें। इसका सेवन घर के सभी छोटे बड़े सदस्य महिलायें कर सकती है।
मानसिक अशान्ति, चिड़चिड़ापन क्रोध, भय-भ्रम से मुक्ति हेतु ब्रेन की टेबलेट 1-1 गोली सुबह शाम अमृतम गोल्ड माल्टके साथ ही लेवे। इससे आत्मबल और आत्मविश्वास भी बढ़ता है। हीनभावना का नाश होता है।
“अमृतम गोल्ड माल्ट” में डाले गए घटक द्रव्य विविध विकारों के विनाशक है।
इसलिये इसका सेवन वाले कहते है – ||अमृतम|| रोगो का काम खत्म।
विशेष सलाह –
भोजन को सदैव चबा चबाकर खाना चहियें। जैसे पी रहें हों और पानी इतना धीरे पीना चाहिये कि जैसे खा रहे हों। यही स्वस्थ जीवन अमृतम आयु का रहस्य है। हम शीघ्र ही एक अद्भुत जानकारी देने जा रहें हैं ,जिसे हमने आयुर्वेद के अनेकों ग्रंथों, पुस्तकों, एवम शरीर विज्ञान से संग्रहित की है कि कैसे उस अदृश्य परम् सत्ता के महावेज्ञानिकों ऋषियों, ने प्राणियों की प्राण-प्रतिष्ठा की । पढ़ने के पश्चात ही हमारे प्रयासों का पता लगेगा ।
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