ब्राह्मी: बूटी ब्रह्मण: इयं ब्राह्मी।

ब्राह्मी
बूटी ब्रह्मण: इयं ब्राह्मी।
अर्थात-यह ब्रह्म या बुद्धि से संबंधित है यानी बुद्धिवर्धक है।

आयुर्वेद के अनुसार ब्राह्मी बाबू जमीन के अंदर या नीचे उत्पन्न होती हैं। जिन ओषधियों की जड़ उपयोग में विशेष
लाभकारी होती हैं उन्हें जड़ी कहा गया है।
जैसे – सौंठ, अदरक, भूमि आँवला, हल्दी।

जड़ी और बूटी’ दोनों अलग-अलग शब्द हैं

जड़ी का अर्थ है

जड़ी अर्थात (Root) वाली वस्तु। पौधों में जड़ें होती हैं, जड़ को मूल भी कहते हैं। बिना मूल के पौधे का अस्तित्व नहीं होता।
बूटी का अर्थ– ‘बूटी’ शब्द संस्कृति के ‘भू-भूति’ (भू भूति) शब्द का अपभ्रंश है। पृथ्वी से जिसकी उत्पत्ति हो वह भू-भूति। बूटी के पौधों को बूटा भी कहते हैं क्योंकि ये पृथ्वी (भू) के तनय यानी पुत्र हैं। यह ऐसी भूति (बूटी) है जिसे पृथ्वी अपने पृष्ठ (सतह) पर उत्पन्न करती है।
अँग्रेजी में प्रचलित शब्द बॉटनी (Botany) संस्कृति ‘भूतनयी’ शब्द का अपभ्रंश है। संस्कृत से यह शब्द ग्रीक भाषा में अपभ्रष्ट होकर बाटनिक्स Botanikos
बना। संस्कृत का (‘‘भू-तनयिक’) जो कि फ्रेंच भाषा में Botanique (बॉटनिक) नाम से रूपान्तरित हो गया फिर ईसा की 17वीं शताब्दी में यही अँग्रेजी में बॉटनिक (Botanic) हो गया। 

आदिकाल से संस्कृत ही विश्व की एक मात्र भाषा थी जिसका व्यवहार सम्पूर्ण जगत करता था। संसार की सभी भाषाएँ किसी न किसी रूप में संस्कृत भाषा से ही विकसित हुई हैं। उच्चारण भेद से आज भाषाओं में अत्यधिक पार्थत्य ब्राह्मी ऐसी देशी बूटी है, जो दिमाग की सुप्त-सुस्त नाडियों को खोल देती है।
दिमाग को तरोताज़ा और बुद्धि को तेज़-तर्रार बनाने में इसका कोई सानी नहीं है। ब्राह्मी ब्रह्ममण्डल (मस्तिष्क) की कोशिकाओं को जागृत कर अनेक प्रकार के तनाव,चिन्ता, फिक्र, भय-भ्रम से मुक्ति दिलाती है।
डिप्रेशन (अवसाद),अनिंद्रा की जटिलताओं को दूर कर याददास्त दुरुस्त करने के लिए यह एक प्राकृतिक ओषधि है।
आयुर्वेद के आदि प्राचीन ग्रन्थ
【1】भावप्रकाश निघण्टु,
【2】धन्वन्तरि निघण्टु,
【3】आयुर्वेद एक विलक्षण विज्ञान,
【4】ग्रामीण जड़ी-बूटियाँ आदि में ब्राह्मी की बहुत ही बेहतरीन प्रसंशा की गई है।

ब्राह्मी कपोतवङ्का च सोमवल्ली सरस्वती। मण्डूकपर्णी माण्डुकी त्वाष्ट्री दिव्य महौषधि।।

इसे भारत वर्ष में विभिन्‍न नामों से जाना जाता है।
ब्राह्मी के संस्कृत में यह नाम बताये हैं-
■ मण्डूकपर्णी,
■ माण्डुकी,
■ त्वाष्ट्री,
■ दिव्य,महौषधि,
■ कपोतवङ्का,
■ सरस्वती, सौम्‍यलता,
■ दिव्या,सुप्रिया,
■ दर्दुच्छदा।

अलग-अलग भाषाओं में नाम भेद से ब्राह्मी के नाम इस प्रकार हैं-हिंदी में- ब्राह्मी, ब्रह्मी, वामी, ब्रह्ममंडूकि, सफेद चमनी। मलयालम में- वर्ण,नीरब्राम्‍ही,मुयालचेवी
मराठी– ब्राह्मी,ब्रह्ममण्डल । कोकर्णी में- ढोलामानामानि घोल।उड़िया में- लम्बक (Lambak)गुजराती में- ब्राह्मी,विद्याब्राह्मी,खंड़भराभि जल नेवरी। कन्नड़ में- ओंदेग,उरेज
उर्दू में- ब्राह्मी नेपाली में- घोडाप्रे, गोलपात तेलगु में- शम्ब्रानीचैट, मण्डूकब्रह्मी। तमिल में- वीमी,वल्लरी केरी।
फ़ारसी में- जरणव,सार्देतुरकास्तन अरबी में- झार्निबा सिन्धी में- लुणुविल,गोटू। लेटिन भाषा में- ग्रॉशओला मोनीरा(Gratiola/Bacopa Monniera Linn.), Hydrocotyle.Assiatiacs. Linn.एवं  Herpestis Monniera
ब्राह्मी का वैज्ञानिक नाम “बाकोपा मोनिएरी” है।कुल-स्क्रोफुलेरियसी (Scrophulariaceae)
बंगाली में- विर्मी,थुलकुड़ी,थानकुनीज़बंगाल में इसका अधिक होता है। असम के तांत्रिकों के लिए विशेष उपयोगी है।
सम्मोहन शक्ति साधना में भी इसका उपयोग किया जाता है।ब्राह्मी का एक औषधीय पौधा है जो गीली जमीन पर फैलकर बड़ा होता है। इसके तने और पत्तियाँ मुलामय, गूदेदार और फूल सफेद होते है। यह बूटी नमी वाले स्‍थानों में अधिक पैदा होता है, तथा मुख्‍यत: भारत ही इसकी उपज भूमि है।
अमृतम ब्राह्मी के गुण-ब्राह्मी आयुर्वेद की एक ऐसी जड़ी-बूटी है, जोमस्तिष्क संबंधी 97 प्रकार के विकारों को ठीक करती है।  डिप्रेशन (अवसाद) को मिटाने वाली दुनिया में यह सर्वश्रेष्ठ बुद्धि वृद्धि दाता प्राकृतिक विलक्षण ओषधि है।

कैसे बनाती है ब्राह्मी-बुद्धि को बलवान

स्वर्य्या स्मृतिप्रदा कुष्ठपाण्डुमेहस्त्रकासजित।विष शोथ ज्वरहरि….….आदि।२८४।। भाप्रनि.

{A} मस्तिष्क विकारों में यह बेहद के लाभकारी है।
{B} ब्राह्मी अद्भुत स्मरण शक्तिदायक ओषधि है।
{C} विवेकवान,मस्तिष्क को तेज करे। 
{D} भुलक्कड़पन से निजात दिलाये।
{E} दिमाग की कमजोरी दूर करे।
{F} दिमाग के शिथिल कीटाणुओं का नाश करे।
{G} ब्रेन की रक्तकोशिकाओ में खून का संचार बढ़ाये।
{H} शीतल,दिमाग के अवयवों को रिचार्ज करे।

 धन्वन्तरि निघण्टु के अनुसार-

【】ब्राह्मी दिमाग के लिए राहतकारी, शांतिदायक है।
【】मेधा को हितकारी,बुद्धि 
【】वृद्धिदायक,बुद्धिमान बनाने में सहायक। 
【】बुद्धिवर्धक,स्मृतिवर्द्धक,याददास्त और आयु को बढ़ाने वाली,
【】चिन्ता व बार-बार भूलने की आदत मिटाने वाली,
【】भय-भ्रम नाशक,समय पर नींद लाना,अनिंद्रा,तनाव,डिप्रेशन,(अवसाद),मानसिक विकार,मिर्गी आदि रोग दूर करना इसका प्रमुख कार्य है।

वनोषधि चन्द्रोदय में लिखा है कि
* ब्रैन का ऐसा कोई रोग नहीं जो ब्रह्मी के सेवन से ठीक न होता हो। * स्वर को सुधारने में सहायक है। ब्रह्मी के सेवन से कण्ठ व वाणी में मिठास आती है।इसी कारण अधिकांश गायक ब्राह्मी तथा मुलेठी के पावडर का सेवन करते हैं।

ब्राह्मी Brahmi अन्य रोगों में भी उपयोगी है-
निघण्टु के गुदुच्यादिवर्ग:
के अनुसार अनेक और भी बीमारियों को नाश करने में सहायक है।
जैसे —पुराना कोढ़,
◆सफेद दाग,
◆पाण्डु, खून की कमी,
◆ सारक (दस्तावर),
◆ कब्जनाशक,
◆ ह्रदयरोग,
◆दौर्बल्य,
◆ मधुमेह, प्रमेह,
◆शारीरिक क्षीणता,
◆ रूधिर विकार,
◆ कण्ठरोग,
◆ गले की खराबी,
◆ खाँसी,मस्तिष्क की नाडियों में सूजन,
◆ विष,
◆ संक्रमण से उत्पन्न बुखार,या अन्य
◆ वायरस तथा
◆ ज्वर के दुष्प्रभावों को जड़ से नष्ट करती है।

ब्राह्मी-थायराइड का नाश करने वाली बेहतरीन दवा है।
 ब्राह्मी– वात नाड़ी-संस्थान के लिये बल्य,मूत्रल एवं विरेचक है।
 ब्राह्मी का उपयोग “अपस्मार” यानि मिर्गी रोग,स्मरण शक्ति की हानि),”उन्माद” अर्थात

चित्तविभ्रम हिस्टीरिया एक मानसिक डिसऑर्डर है इससे पीड़ित व्यक्ति अजीब से भ्रम में जीता है। ब्राह्मी का उपयोग भावनाओं स्वरभंग आदि में भी किया जाता है।
ब्राह्मी से शिर:शूल,चक्कर आना दूर होता है।
ब्राह्मी चबाने से बच्चों का शब्दउच्चारण ठीक होता है।
 ब्राह्मी कोमा Coma (सन्यास,अचेतन अवस्था,लंबी बेहोशी) की अवस्था में ब्राह्मी मस्तिष्क की रक्तवाहिनियों में रक्तसंचरण में वृद्धि करती है। 
 “कोमा की अवधूत आयुर्वेदिक चिकित्सा”अघोर सन्त परमहँस बाबा कीनाराम द्वारा रचित “अवधूत के प्रयोग” नामक आयुर्वेद की
एक प्राचीन पांडुलिपि में पढा कि 
■ सौंठ,
■ कालीमिर्च,
■ पिप्पली (त्रिकटु)
 इन तीनों को समभाग यानि बराबर मात्रा में लेकर गाय के
कंडे पर त्रिकटु के पावडर का धुंआ यदि कोमा पीड़ित
की नाक में जाने दिया यानि सुंघाया जाये,तो बहुत जल्दी होश में आने की संभावना रहती है।

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मूर्च्छा से मृत्यु– यह बहुत खतरनाक रोग है।अचानक चलते-फिरते बेहोशी आना,झटके में ही मृत हो जाना इसे मूर्च्छा  कहा जाता है। 
ब्राह्मी से निर्मित ब्रेन की गोल्ड माल्ट इसके लिए अत्यंत कारगर दवा है।बच्चों की खूनी आंव व पेचिश में ब्राह्मी रस को जीरा एवं मिश्री के साथ मिलाकर पिलाने से तत्काल लाभ होता है।

कहाँ मिलती है ब्राह्मी

यह दुर्बल भूमि पर फैलने वाले असुगन्धित,शाक वर्ग का पौधा होता है।पानी के समीप होने से इसे जलनीम भी कहते हैं।
आद्र स्थानों एवं हरिद्वार आदि ब्रह्म प्रभावित क्षेत्रों  में यह सर्वत्र पाई जाती है। ब्रह्मचारी,सन्यासी ब्रह्म साधना में एकाग्रता के लिए इसका विशेष उपयोग करते हैं। इसके पंचांग का व्यवहार किया जाता है।
वैदिक युग में एवं आयुर्वेद के सहिंता ग्रन्थ में ब्राह्मी का विस्तार से वर्णन है। 
महर्षि चरक ने अपस्मार,हिस्टीरिया,अवसाद चिकित्सा में ब्राह्मी घृत,ब्रह्मी रसायन, बहुत लाभकारी बताया है।

ब्राह्मी की पहचान

१.३-१.८ सेमी लम्बा एवं ०.२-१ सेमी चौड़े,कदाचित मांसल,चमकीले हरे वर्ण तथा कृष्ण वर्ण के बिन्दुकित,पूर्ण अस्पष्ट शिराओं से युक्त होते हैं मण्डूकपर्णी (ब्राह्मी के दूसरा नाम) के पत्ते १.३-६.३ सेंटीमीटर चौड़े,मूल से अनेक पत्ते निकले हुए,कुछ गोलाकार,लम्बाई से ज्यादा चौड़े,७ शिराओं वाले,हरे रंग के,दोनो ओरखरखरे होते हैं। मण्डूकपर्णी एवं ब्राह्मी के फल-फूल-सफेद रंग के चौड़े रहते हैं।अप्रैल से जून तक मिलते हैं। फली लम्बी अंडाकार,चिकनी,नुकीली,दो काष्ठों में विभक्त,अनेक फीके रतग के सूखे बीजों से युक्त होती है।

ब्राह्मी का रसायनिक संगठन/संघटन

“आयुर्वेद जड़ी-बूटी रहस्य” नामक कृति मेंब्राह्मी में उपलब्ध रसायनिक तत्वों की जानकारी दी गई है।ब्राह्मी की ताजी पत्तियों में एशियटिककोसाइडनामकग्लूकोसाइड, वेलेरिन, राल, पेक्टिक अम्ल, (एसिड) स्टेरॉल, एशियाटिक अम्ल, ब्रह्मोसाइड, ब्रह्मिनोसाइड, ब्राह्मिक अम्ल, आइसोब्रह्मिक अम्ल, बेटूलिक अम्ल एवं स्टिग्मास्टरोल नामक तिक्त पदार्थ पाया जाता है। 

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ब्राह्मी के पञ्चाङ्ग में

एशियाटिकोसाइड,मेडिकसोसाइड,मेडिकेसिक अम्ल,सेंटेलोसाइड,बाइसाइक्लोएलिमिन,इंडोसेंटेलोसाइड,
ऑक्सीएशियाटिकोसाइड, थेँक्युनिसाइड,
बेटुलेनिक अम्ल,सेंटलिक अम्ल,
सेंटेलोसा अम्ल, केम्फेरॉल,विटामिन B1, 
B2, विटामिन C, हैड्रोकोटिलिन,फिलेंड्रिन
 तथा ट्रायटरपेनोयड, ट्राईसेकेराइड्स,
एस्कार्बिक एसिड,सेन्टिक एसिड,
सेंटोईक एसिड,पेक्टिव एसिड,कैरोटीन,
वसा, पेक्टिन,सैपोनीन, वेलेरीन,
ब्रह्ममिनोसाइड, आइसोथेँक्युनिसाइड,
ब्राह्मिकआइसोब्राह्मिक, आइसोथेँक्युनिक,
मेटासिएटिक, थेँकुनिक एसिड,केर्योफिलिन,
मेसोईनोसिटोल,एवंवसा अम्ल, टेनिन,
तिक्त पदार्थ ब्राह्मी में पाया जाता है।

अमृतम आयुर्वेद ग्रंथो,निघण्टु में ब्राह्मी एवंमण्डूकपर्णी को एक दूसरे का पर्याय बताकरसंदिग्धता उत्पन्न कर दी गई है। किन्तु वर्तमान में मण्डूकपर्णी से Centella asiatica
से Baccopa monnieri सारतत्वका उपयोग किया जाता है।ब्राह्मी के बीज- चपटे होते हैं।

ब्रह्मी का स्वाद-
कड़वा,कसैला,तिक्त होता है।ब्राह्मी वजन में हल्की होती है।
ब्रह्मी युक्त दवाएँ ब्रेन की गोल्ड माल्ट विशेष उपयोगी है।

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