Amrutam Chawanprash

बुंदेलखंड के झांसी-ललितपुर में ही हुआ था। च्यवनप्राश अवलेह का सर्वप्रथम निर्माण……

दुनिया में बहुत कम लोग हैं जिन्हें 
के इतिहास के बारे में पता होगा
हम आपको बता रहे हैं आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में शरीर में स्फूर्ति प्रदान करने वाले उम्र रोधी यानि एंटीएजिंग टॉनिक
अमृतम च्यवनप्राश को पहली बार किस ऋषि ने और किस स्थान पर  बनाया था?
हम अमृतम पत्रिका के माध्यम से आपको आयुर्वेद की सबसे जानी-मानी सर्वश्रेष्ठ औषधि, च्यवनप्राश के बारे में बता रहे हैं।
भारत में ऐसा कोई परिवार नहीं है, जिसके घर में च्यवनप्राश न हो। च्यवनप्राश हम में से ज्यादातर लोगों के घर में रखा होता है। सदैव स्वस्थ्य रहने के लिए घर सभी सदस्य इस्तेमाल भी करते हैं।
ऐसा माना जाता है कि च्यवन ऋषि ने बुंदेलखंड में ही च्यवनप्राश बनाया था। च्यवनप्राश का उपयोग करोड़ों लोग स्फूर्ति प्रदान करने वाले टॉनिक के रूप में करते हैं।
बुंदेलखंड के झांसी-ललितपुर में 
बना था-पहली बार च्यवनप्राश
च्यवन ऋषि का अनुसंधान केंद्र ललितपुर उप्र तहसील पाली से सात किलोमीटर दूर है।
झांसी उप्र से लगभग 40 km दूर बुंदेलखंड का ललितपुर जिला वर्षों से प्राकृतिक औषधीय वनस्पतियों के लिए विख्यात रहा है। यही कारण है कि च्यवन ऋषि ने यहां पर अपना आश्रम बनाकर जड़ीबूटियों-औषधियों को पूरी दुनिया में प्रसिद्ध एवं प्रचलित किया। उन्होंने सर्वप्रथम बुंदेलखंड की धरती ललितपुर में  ही च्यवनप्राश बनाया था।
ग्राम बंट के जंगली क्षेत्र में च्यवन ऋषि का आश्रम था। जिले की भौगोलिक स्थित ऐसी है कि पूरा क्षेत्र जड़ी-बूटियों से भरा पड़ा है। खासकर गौना वन रेंज और मड़ावरा के जंगल में बहुतायत में जड़ी बूटियां पाई जाती हैं।आज भी इस क्षेत्र में घना जंगल ही है। वर्तमान यहां पर विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं।
एक बार वन का भ्रमण करने के बाद यहां निकलने की इच्छा नहीं होती। मन रस-बस जाता है।
महर्षि च्यवन द्वारा खोजी गई  प्रमुख जड़ी बूटियां…..
बुंदेलखंड के इस बीहड़ जंगल में शंखपुष्पी, अश्वगंधा, ब्राह्मी, सफेद मूसली, पलाश, भूमि आंवला, खैर के बीज, गाद, कसीटा, धावड़ा, कमरकस जड़ी- बूटी प्रमुख हैं।
इसके बाद समिति ने 32 औषधियों के विकास के लिए चिह्नित किया था। इसमें आंवला, अशोक, अश्वगंधा, अतीस, बेल,
लिवर केन्सर की बेहतरीन बूटी- भूमि आमलकी,
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कभी यहाँ सफेद मूसली की भरमार थी…
आज से लगभग 15 साल पहले उच्च क्वालिटी की  सफेद मूसली जैसी शक्तिवर्धक ब्यूटी अथाह मात्रा में पाई जाती थी। ग्राम डोंगरा खुर्द के जुग्गा सहरिया और धीरू आदिवासी ने बताया कि 10-15 साल पहले पर्याप्त जड़ी- बूटियां मिल जाती थीं, लेकिन अब नष्ट होती जा रही हैं। इसका प्रमुख कारण अंधाधुंध तरीके से दोहन है। दस साल पहले सफेद मूसली जंगलों में भरपूर मिलती थी, जिससे सहरिया परिवारों की गुजर-बसर चलती थी।
इस घने जंगल में प्राचीनकाल से
 च्यवन ऋषि का आश्रम स्थापित है। पास में ही एक स्वयम्भू शिंवलिंग भी है। ललितपुर का जड़ी- बूटी बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण माना जाता है कि च्यवनप्राश का निर्माण महर्षि च्यवन के इसी आश्रम बुंदेलखंड में ही हुआ था।
 बताया जाता है कि-आयुरवेद का सबसे पुराना और सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ चरक सहिंता
भी इसी च्यवन आश्रम में लिखा गया था।

 अमृतम निवेदन…..
ऊर्जा का पारम्परिक स्त्रोत है, स्वास्थ्य सम्बन्धी सभी समस्याओं का स्थाई हल है, जो पूरे वर्ष शरीर को रोगों से मुक्त रखकर तन-मन, अन्तर्मन को ताकत देता है।
बॉडी बिल्डिंग में दवा-इंजेक्शन, रसायनिक पावडर की जगह प्राकृतिक चीजे और आयुर्वेदिक ओषधियाँ  जैसे अमृतम च्यवनप्राश अवलेह लेना ज्यादा बेहतर होता है।
आयुर्वेदिक दवाएँ बीमारियों को जड़ से मिटाती हैं। रोजमर्रा की जिंदगी को लेकर रहें सचेत..जल्दी ठीक होने के चक्कर में कहीं अपना शरीर खराब न कर लें!
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