मौका लगे, तो हिमाचल भरमौर जरूर जाएं। मणिमहेश के दर्शन के लिए यहीं से जाना पड़ता है ! Amrutam

  • बुदील घाटी के किनारे पर स्थित, भरमौर चंबा से सिर्फ 60 कि.मी. दूर है जहाँ रवि घाटी की खतरनाक पहाड़ी सड़कों के ज़रिये दो घंटे की लंबी सड़क यात्रा के बाद पहुँचा जा सकता है।
  • 626 ईस्वी पूर्व के प्राचीन मंदिरों के अलावा, भरमौर धौलाधर और शिवालिक रेंज में कई रोमांचकारी स्थान अत्यंत मनमोहक है।
  • भरमौर का धर्मराजेश्वर मंदिर जहां मरने के तुरंत बाद सभी की आत्मा हिमालय के धर्मराज शिवालय में जरूर जाती है।

मणि महेश जाने का यही सही रास्ता है

  • भरमौर से शुरू होने वाले कुछ लोकप्रिय मार्ग मणिमहेश झील, बारा भंगल, कीलोंग से कलिचो दर्रा और थमसर दर्रा हैं।
  • आप भरमौर के आसपास के गाँवों में घूम सकते हैं, खासकर जो गद्दी समुदाय के घर हैं।
  1. ऐसे ही एक दिन स्कंध पुराण का अध्ययन करते समय पता लगा कि भारत के हिमाचल में किसी महत्वपूर्ण शिव धाम के करीब धर्मराज का कोई मंदिर है।
  2. इंसान की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा सबसे पहले इसी मंदिर में जाती है और वहीं पर उसके कर्मों के उसे अगले जन्म या योनि में प्रवेश मिलता है।
  3. हिमाचल के सर्वाधिक हरे-भरे पर्वत वाले क्षेत्र ब्रह्मपुरा यानि भरमौर को भगवान शिव की भूमि भी कहते हैं क्योंकि यह माना जाता है कि भगवान शिव कैलाश पर्वत पर निवास करते थे।
  4. बाबा विश्वनाथ की कृपा से सन 2000 के करीब मुझे भी यहां जाने का सौभाग्य मिला।
  5. सिद्धों की तपस्थली भरमौर की ‘चौरासी’ में धर्मराज शिवलिंग स्थित है।
  6. मुस्लिम घुसपैठियों के आने से पहले भरमौर को पहले ब्रह्मपुरा के नाम से जाना जाता था। यहां के कई प्राचीन
  7. शिवमंदिर पर्यटकों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं, जो 84 मंदिर परिक्षेत्र भरमौर की चौरासी कहलाता है।
  8. शिवजी के ये स्वयंभू शिवालय में कुछ लगभग 10वी शताब्दी में स्थापित किये गये थे। इन मंदिरों के बारे में स्कंध पुराण में उल्लेख है।
  9. विश्व भर में अकेले मंदिर ब्रह्मपुरा ग्राम के इस श्री धर्मेश्वर महाराज (धर्मराज) श्री लक्ष्मण दत्त पुजारी,
  10. ने बताया कि जिस प्रकार राजस्थान के पुष्करजी
  11. में ब्रह्मा जी का मंदिर विश्व का एकमात्र मंदिर है उसी प्रकार धर्मेश्वर शिवालय एकमात्र मंदिर है।
  12. इस चौरासी में सबसे कम लोग यहां आते हैं। ज्यादातर लोग बाहर से ही लौट जाते हैं।
  13. मंदिर में प्रवेश द्वार पर बने एक कमरे को दिखाते हुए उन्होंने बताया कि जब संसार में कोई भी व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त होता है तो वह सबसे पहले इस कमरे में चित्रगुप्त जी के समक्ष हाजिर होता है।
  14. चित्रगुप्त, जो धर्मराज के छोटे भाई हैं तथा उनके सचिव का कार्य भी संभालते हैं, सभी प्राणियों का लेखाजोखा भी इनके पास होता है।
  15. धर्मराज जी के इस अद्भुत मंदिर की सबसे ऊपर की पौड़ी पर लकीरें जैसी खुदी हुई हैं। ऐसा बताते हैं कि चित्रगुप्त आत्मा को यहां खड़ी करते हैं। फिर चित्रगुप्त उसके कर्मों का लेखा-जोखा बताते हैं। इसके ठीक सामने धर्मराज की कचहरी में कर्मों के हिसाब से उसके भविष्य का फैसला होता है।
  16. मंदिर के बाहर अदृश्य चारों दिशाओं को रास्ता बना है। धर्म के चार द्वारों, जो क्रमशः सोने, चांदी, लोहे एवं तांबे के बने हैं, में से कर्म के अनुसार एक दरवाजा खुलता है तथा फैसले के अनुसार आत्मा को उसी द्वार से फल भोगने के लिए भेजा जाता है।
  17. पुजारी श्री लक्ष्मण दत्त ने बताया कि आम प्राणी के लिए तो यहां ऐसा कुछ भी दिखाई नहीं देता मगर उनके गुरु श्री जय कृष्ण गिरि, जो इसी मंदिर के प्रमुख रहे हैं, ने यहां लोगों की इतनी आई-चलाई देखी कि पलक झपकने की फुर्सत नहीं मिलती। अनेक अन्य पहुंचे हुए महात्मा भी बताते हैं कि परोक्ष रूप से धर्मराज जी का धाम यही है।
  18. सदियों पुराने इस मंदिर के ठीक सामने लगभग चार फुट ऊंचे बने एक विशाल मंच पर श्री सदाशिव का प्रतीक शिवलिंग हैं, जो गहरे काले रंग का है। इसमें बेमिसाल चमक है, जिसे देखने वाले मोहित हो जाते हैं।
  19. इस शिवलिंग की कहानी सुनाते हुए श्री पुजारी ने कहा कि सन् 1905 एवं 1947 में आठ भूकम्पों में इस मंदिर को काफी क्षति पहुंची थी।
  20. गुरु जी ने विक्रमी सम्वत् 2029 में इसका जीर्णोद्धार कराया जो भूकम्प के कारण टेढ़े हो गए।
  21. बारह फुट तक खोद कर भी जब उन्हें शिवलिंग का आदि-अंत न पता चला, तो गुरु जी ने भगवान श्री शिव से प्रार्थना की कि प्रभु आप तो अनन्त हैं, आप स्वयं अपनी सीधी स्थिति में आ जाएं, तो शिवलिंग स्वयं सीधा हो गया।
  22. तब भगवान शिव ने गुरु जी को कहा कि टेढ़ा होने से खाली हुआ स्थान भर दिया जाए। तब इस मंदिर को नया रूप दिया गया शिवलिंग को युगों पुरानी उसी स्थिति में दिया गया।
  23. चौरासी मंदिर भवन हजार साल पहले इस मार्ग पर ८४ त्रिकालदर्शी सिद्ध अघोरी भगवान शिव का ध्यान करते थे। इन चौरासी सिध्दियों में मुख्य देवी-देवता देवी लक्ष्मणा,
  24. भगवान गणेश और भगवान मणिमहेश शिवलिंग विशेष दर्शनीय हैं।
  25. भर्मानी माता मंदिर भरमौर को कभी भर्मानी कहते थे। बाद में इसे बाद
  26. ब्रह्मपुत्र के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मां की ये सिद्ध पीठ या देवी का मंदिर शहर से 4 किमी दूर है।
  27. भर्मानी देवी ऊंची चोटी पर स्थित है और पूरी तरह से देवदार और चीढ के पेड़ों से घिरा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर की ओर जाने से पहले मणिमहेश झील में एक डुबकी लगाना मंगलमय होता है।
  28. यह 4080 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और हिमालय में पीर पंजाल पर्वत श्रेणी के मनिमाहेश कैलाश पर्वत के करीब है। माना जाता है कि इस झील का धार्मिक महत्व झील मानसरोवर के बाद आता है।
  29. जाने का रास्ता रेल मार्ग पठानकोट रेलवे स्टेशन और चक्की बैंक रेलवे स्टेशन भरमौर 180 km दूर है। और दिल्ली से सड़क मार्ग निजी वाहन से 750 km है।
  30. डलहौजी से भरमौर 120 km करीब रह जाता है।

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