क्या मरने के बाद परिवार से संबंध बना रहता है।

मौत के बाद का रहस्य जानने को सारा संसार आतुर है, लेकिन पक्की खोज किसी के पास नहीं है।
मृत्यु के पश्चात आदमी का क्या होता है ? इस विषय पर विभिन्न धर्मों में भिन्न-भिन्न मत मिलते हैं।
एक मान्यता तो यह है की आज के कर्मों का फल आज ही मिलेगा। जैसे जलती आग को पकड़ो, तो तुरंत उसी क्षण जल जाओगे।
आपका अंग अगले जन्म में नहीं जलेगा। ऐसे ही पत्थर पर सिर फोड़ोगे, तो रक्त आगे के जन्मों में नहीं निकलेगा।

श्रीमद भागवत गीता के अनुसार आत्मा अमर है! उस दिन मृत्यु का सारा भय विलीन हो जाएगा! जिस दिन यह भरोसा जग उठेगा कि आत्मा न मरती है और कोई इसे मार भी नहीं सकता। मरने के बाद अगला जन्म मिलने तक आत्मा भटक कर अपने परिजनों को दुख या सुख दोनो दे सकती है।

अब एक सनातन प्रश्न उठता है कि क्या हमारे पति-पत्नी, माता-पिता, पुत्र-पुत्री से संबंध इस पृथ्वी तक ही सीमित रहते हैं अथवा उसके बाद भी।
 गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं, “हे अर्जुन न जाने कितने जन्मों से लोग तेरे पिता बने हैं और न जाने कितने जन्मों में तू इनका पिता बना है।”
पर इस भौतिकवादी युग में हम हर वस्तु को वैज्ञानिक व उपयोगितावादी दृष्टिकोण से देखना चाहते हैं। यही कारण है कि इन बातों पर विश्वास करना वैज्ञानिकों के लिए कठिन हो गया और अनुसंधानकर्ता इस बात को पचा नहीं पाये कि जब सारी पृथ्वी आकर्षण और गुरुत्वार्कषण के सिद्धांत से बंधी है, तब क्या आदमी गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का अपवाद है।
 पिछले १०० वर्षों में पश्चिमी देशों की लगभग ५०० संस्थाओं ने इस विषय पर हजारों अन्वेषण किये। ये सब अनुसंधान स्वतंत्र रूप से किये गये थे, पर उन सबके परिणामों में साम्य था और ये साम्य भारतीय योग व समाधि द्वारा बताये गये पारलौकिक जीवन के अनुभवों से काफी मिलता-जुलता था।
इसके अतिरिक्त तर्क की कसौटी पर भी उनके परिणाम खरे उतरे हैं।
 पाश्चात्य देशों के ये अन्वेषण या तो सम्मोहन क्रिया के माध्यम से किये गये थे या मृतकों के स्वलेखन द्वारा अपने मित्रों या संबंधियों के जरिए स्थापित किये गये थे।
क्या मरने के बाद रिश्तेदारों से जुड़े रह सकते हैं..
आश्चर्य की बात तो यह है कि ये अनुभव या अन्वेषण/रिसर्च पश्चिमी जगत की उन परलोकगत आत्माओं के सौजन्य से प्राप्त हुए थे जो अकसर पुनर्जन्म व पारलौकिक जीवन में विश्वास नहीं करते थे, क्योंकि वे ईसाई थे, इसीलिए इन अनुसंधानों की सत्यता व निष्पक्षता का औचित्य और भी बढ़ गया।
प्राचीनकाल की काल्पनिक प्रक्रिया भूत लेखन (घोस्टराईटिंग) आधुनिक काल में सत्य बन गयी । इन अनुसंधानों में परलोकगत आत्मा ने भूलोक के मित्रों से पूरी किताबें लिखवायीं यद्यपि भूलोक के उनके ये परिचित न तो लेखक थे और न ही बहुत ज्यादा पढ़े-लिखे थे।
इन पुस्तकों के प्रकाशित होते ही ईसाई जगत में तहलका मच गया। इनके लेखकों को कई प्रकार की यंत्रणाओं का चर्च व समाज से सामना करना
पड़ा।
पर सत्य को उजागर करने का आनंद उन्हें इन तमाम यंत्रणाओं के मुकाबले में कहीं अधिक सुखदाई लगा।
 स्वर्ग का द्वार खुल रहा है.… भूलोक निवासी डी. एच. मूरी ने तो मरने से पूर्व ही (मरणासन्न अवस्था में) कहा था- ओह । स्वर्ग का द्वार खुल रहा है….. कितना शानदार….देखो ये आईरीन है। देखो ये आईरीन है।
आईरीन मूरी के कुत्ते का नाम था-वह उसे बहुत प्यार करता था। उसकी मृत्यु मूरी की मृत्यु से कुछ माह पूर्व ही हुई थी। उसके इस तथ्य की पुष्टि धर्मराज युधिष्टिर के अपने स्वान को स्वर्ग में साथ ले जाने वाली बात से होती है।
मृत्यु के बाद रिश्तेदारों से मिलने जुलिया ने भी कही। वह इंगलैंड की निवासी थी। उसकी मृत्यु के पश्चात उसका प्रेत रूप भी दो-तीन बार उसके मित्रों ने देखा था।
जुलिया की मृत्यु १८८१ में हुई थी। उसने अपनी मरणोपरांत राइटिंग) डब्ल्यू. टी. स्टेड के माध्यम से आत्मकथा स्वचालित लेखन (ऑटोमेटिक लिखायीथी।
इस पुस्तक का नाम था-आफ्टर डैथ। इस पुस्तक का पहला संस्करण सन् १८९७ में प्रकाशित हुआ था और दसवां संस्करण सन् १९२१ में। इसके बाद भी कई सस्करण निकले।
यह पुस्तक इतनी लोकप्रिय हुई कि इसका अनुवाद फ्रेंच, जरमन, स्विस, डेनिस, रूसी, स्वीडिश, इटालियन, ग्रीक व अन्य कई भाषाओं के साथ-साथ हिंदी में भी हुआ। इस पुस्तक का प्रकाशन होते ही ईसाई जगत में तहलका मच गया।
सुंदर वाटिका में
१९ जून १९३६ के अपराहन में तीन बजे अपने शिष्य श्री परमहंस योगानंद जी को ज्ञानावतार योगी युकतेश्वर गिरि ने (जो कुछ दिनों पूर्व समाधिस्थ यानि  मृत्यु को प्राप्त को प्राप्त हुए थे)
साक्षात दर्शन देकर बताया, ‘जिस प्रकार कर्मभोग में नवों की सहायता के लिए महापुरुषों को पृथ्वी पर भेजा जाता है, उसी प्रकार मुझे एक सूक्ष्म जगत में त्राता के रूप में कार्य करने के लिए ईश्वर से आदेश मिला है।
इस जगत का नाम हिरण्यलोक है। सूक्ष्मजगत के कर्म से छुटकारा पाकर सूक्ष्म पुर्नजन्म से मुक्ति लाभ करने में वहां के उन्नत अधिवासियों की मैं सहायता करता हूं।
हिरण्यलोक के अधिवासी आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत उन्नत हैं, यहां सब ऐसे-ऐसे लोग हैं, जिन्होंने पृथ्वी पर अपने पुर्नजन्म में ध्यान बल से मृत्युकाल में सज्ञानभाव से भौतिक शरीर का त्याग करने की क्षमता प्राप्त की थी, तब उन्हें ये लोक मिला था।
उनके अनुसार ईश्वर ने मानवात्मा को तीन शरीरों में आबद्ध कर रखा है- भाव अथवा कारण शरीर, सूक्ष्म अतिवाहक शरीर और स्थूल पंच भौतिक शरीर।
स्वामी परमहंस योगानंद जी ने बाद में आटोबाईग्राफी ऑव ए योगी (हिंदी-योगी कथामृत) ‘ नामक लोकप्रिय पुस्तक में सविस्तार स्वामी मुक्तेश्वर गिरी की इस मुलाकात का विस्तार से पूरे एक अध्याय में वर्णन किया है, जिसमें अन्य लोकों की आंखों देखी विशेषताओं का वर्णन है।
 ये पुस्तक मुंबई की जयको पब्लिशिंग हाउस ने प्रकाशित की है तथा अनेक भाषाओं में अनुदित हुई है।
योगी युकतेश्वर गिरी ने एक नयी बात यह बतायी कि पिछले और कई जन्मों के संबंधी केवल स्वर्ग लोक में ही मिलते हैं।
पिछले जन्म के संबंधी केवल एस्ट्रलप्लेन (लोक) में ही मिलते हैं, जबकि पिछले कई जन्मों के संबंधी स्वर्गलोक में ही मिलते हैं। स्वर्गलोक एस्ट्रल लोक से आगे है।
एस्ट्रल प्लेन बाडी क्या है ?
एस्ट्रल या सूक्ष्म शरीर ऐसा शरीर होता है, जो पृथ्वी के लोगों को नहीं दिखता, पर वह पृथ्वी के लोगों को देख सकता है।
मृत्यु के समय सूक्ष्म शरीर जो एक सिल्वर कॉर्ड (चमकीली डोरी) से बंधा हुआ होता है, भौतिक अथवा स्थूल शरीर से अलग हो जाता है।
इसी प्रकार एस्ट्रल प्लेन या परलोक भूलोक के मुकाबले में अंक ऊंचा व सूक्ष्मतर लोक है।
इस लोक के रहने वाले भूलोक संबंधी घटनाओं को उनके घटित होने से पहले ही भांप लेते हैं।
एस्ट्रल लोक के रिश्तेदारों को भूलोक पर मरने वालों की मृत्यु का पहले से ही आभास हो जाता है, जिससे मृत्यु के समय अकसर वे उसे लेने आ जाते हैं।
जिनके रिश्तेदार मरे नहीं होते उनको लेने एस्ट्रल लोक सेवक दल के सदस्य आते है-
ये लोग कपोल कल्पित यमदूतों की तरह यातना नहीं देते, अपितु मृत आत्मा का मार्गदर्शन करते हैं। पर व्यसनपूर्ण मृत व्यक्ति उनके निर्देशन की परवाह किये बिना अपनी वासना के निम्न लोकों (वेश्यालय, मयखाने, व्यसनालय) की तरफ भागते हैं।
तब विवश होकर वे उसे उस दुख भरे संसार में छोड़कर चले जाते हैं।
वासना रहित सहकर्मी मृतात्मा उनके निर्देशन का पालन करती हैं और उनके साथ उच्च लोकों में चलती है।
दो शरीर होते हैं…
रूस के एक इलेक्ट्रानिक विशेषज्ञ समेयोन किलियान ने फोटोग्राफी की एक विशेष विधि से पुष्ट कर दिया है कि प्रत्येक प्राणी के दो शरीर होते हैं।
पहला भौतिक जो आंखों से दिखाई देता है और दूसरा
सूक्ष्म शरीर जो आंखों से दिखाई नहीं देता।
इस शरीर की भी सभी प्राकृतिक विशेषताएं लगभग भौतिक शरीर जैसी ही होती हैं, पर ये आंखों से दिखायी नहीं देता।
 इन वैज्ञानिकों मतानुसार सूक्ष्म शरीर किसी ऐसे सूक्ष्मीकृत पदार्थ का बना होता है जिसके इलेक्ट्रान ठोस शरीर के इलेक्ट्रोनों की अपेक्षा अधिक तीव्र गति से चलायमान होते हैं।
उनके मतानुसार सूक्ष्म शरीर अस्थायी स्थूल प्रकृति (वासनाएँ) उसी तरह चिपकी तौर पर भौतिक शरीर
से अलग होकर कहीं भी विचरण कर सकता है।
मृत्यु के बाद अंधकार …
 लंदन से प्रकाशित एक अन्य पुस्तक में ‘रेवरेंड सी ड्रेटन’ ने बताया है, “मेरी मृत्यु के समय एक अंधकार भरी सी दुनिया थी। फिर वायुमंडल में कुछ उजाला-सा हुआ।
अब मुझे अपने उन बच्चों की आवाजें सुनायी
दे रही थी, जो मुझसे पहले चल बसे थे। मुझे मेरे लड़के, मेरे भाई और अनेक जन जो मर चुके थे, चारों तरफ साफ दिखायी दे रहे थे। उनमें मेरे इष्ट मित्र भी थे और मेरे स्वर्गवासी माता-पिता भी।
आत्मघात या अकाल मृत्यु …
दुर्घटनाग्रस्त व आत्मघाती अधिकतर
 भूर्वलोक के सातवें उपमंडल या उपखंड
अर्थात सबसे नीचे वाले उपलोक में अपने
आपको पाता है। साधारण, लंबे रोग या के
वृद्धावस्था प्राप्त शरीर की वासनाएँ तो
 समाप्त हो जाती हैं, पर आत्मघाती या
 अकाल मृत्यु वाले व्यक्ति में कुछ छोटी
मोटी नीचे की उन लोकों की या पृथ्वी की
स्थल प्रकृति (वासनाएं) उसी तरह चिपकी
 रह जाती हैं, जिस तरह गुठली के साथ गुदा भी  चिपका रह जाता है।
निम्नलिखित सात लोकों का उल्लेख भारतीय दर्शन में भी है –
भूलोक या स्थूल लोक
भूर्वलोक या एस्ट्रल प्लेन
स्वर्गलोक या मानसिक लोक
तपलोक या बुद्धिलोक
सत्यलोक या आत्मिकलोक
बैकुंठ लोक या मोनादिक लोक
गोलोक या आदिलोक
सृष्टि में ये लोक गेंद की तरह व्याप्त हैं तथा प्याज के छिलके की तरह एक-दूसरे पर व्यवस्थित हैं। वह लोक की अपनी-अपनी विशेषताएँ व पहचान है।
एक लंबी नींद….
लंबी बीमारी के बाद मरनेवाले मृत्यु के बाद एक लंबी निद्रा में चले जाते हैं। यह नींद कुछ दिनों से लेकर कई महीनों तक चलती है।
 उस समय उसका संरक्षण परलोकगत इष्टजन करते हैं जो मृत्यु के समय उसे लेने भी आते हैं (जिसका कोई संबंधी मरा न हो ( संबंधियों की अनुपस्थिति) तो उसके लिए परलोक स्थित सेवा समिति यह कार्यभार संभालती है।
ऐसा ही जिक्र मृत्यात्मा मोन्सिगनर बेंसन के कृतांत से मिलता है। बेंसन मृत्यु के पश्चात श्री बोर्गिया (जो उसके मित्र थे) के संपर्क में आये और उसको परलोक संबंधी ज्ञान दिया, जिसे बोर्गिया ने सन् १९५६ में, ‘मोर अबाउट लाईफ अनसीन’ नामक पुस्तक में लिपिबद्ध किया।
इसे ओहेय प्रेस लिमिटेड लंदन ने प्रकाशित किया। बेन्सन ने इस पुस्तक में लिखाया, मैं और रूथ जो उसके जीवित परिवार की एक सुंदर मृत युवती थी, यहां परलोक में हाल में मरे आदमियों की सहायता करते हैं।
 कल मैं मरणासन्न रोजर के बिस्तरे के एक तरफ बीच में खड़ा था और दूसरी तरफ रूथ थी।
लड़के (रेजर) को महानिद्रा का प्रभाव हो चुका था और उसके सूक्ष्म शरीर ने धीरेधीरे सिर की तरफ से बाहर निकलना आरंभ कर दिया था।
 शरीर जब बिलकुल बाहर आ गया, तब वह एक बारीक रूपहली तार (सिल्वर कॉर्ड) से उसके भौतिक शरीर से जुड़ा था।
धीरे-धीरे ये तार पतला होता चला गया। उसी समय मैंने लड़के के शरीर स्थूल पर तैरते हुए सूक्ष्म शरीर के नीचे अपना हाथ लगा दिया और तार एक झटके के साथ टूट कर लुप्त हो गया।
इस विषय पर यूरोप में सैकड़ों पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। जिन्हें परलोकगत आत्माओं ने संदेश द्वारा लिखाया हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि मृत्यु व परलोकगत  जीवन के विषय में उनकी शत-प्रतिशत बातें या अनुभव आपस में मिलते हैं। उससे भी बड़ी बात यह है कि पाश्चात्य जगत के ये अनुभव भारतीय दर्शन, गरुड़ पुराण, लिंग पुराण आदि से पूरा-पूरा मेल खाते हैं।

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