स्किन प्रॉब्लम के लिए भूलकर भी न करें घरेलू इलाज अन्यथा हो सकता नुकसान…

त्वचा शरीर का सबसे बड़ा तंत्र है....

सिडन, ठंडी जगह या बिना घुप वाले स्थान पर रहने से त्वचारोग जल्दी और ज्यादा होते हैं।

यह सीधे बाहरी वातावरण के सम्पर्क में होता है।

इस वजह से हमारी स्किन सदैव संक्रमित होती रहती है।

त्वचा रोग या स्किन डिजीज के कारण

चरक सहिंता के हिसाब से बचपन में जिन लोगों को पेट में कीड़े रहते हैं और कृमियों का शरीर से निष्कासन नहीं हो पाता,

तो आगे चलकर वे लोग भयंकर त्वचारोगों से परेशान रहते हैं।

भारत देश में बदलते मौसम की वजह से त्वचारोग बहुत होते हैं।

शरीर की पूर्ण सफाई न करने, निरंतर नियम से स्नान न करने से निर्धनता के कारण गंदा रहन सहन या बीमार पशुओं

की त्वचा के स्पर्श से लोग त्वचारोगों से पीड़ित हो जाते हैं। इसे छुआछूत रोग भी कह सकते हैं।

कुछ स्किन विकार एक दूसरे के छूने या संसर्ग से लग जाते हैं। जैसे कोरोना वायरस संक्रमण आदि।

ऐसे रोगों में अधिकांश रूप से खाज (scabies), जूँ(pediculosis) और दाद (ringworm) इत्यादि कहलाते हैं।

त्वचारोगों की जानकारी…त्वचा शरीर का सबसे विस्तृत अंग है साथ ही यह वह अंग है जो बाह्य जगत् के संपर्क (contact) में रहता है।

यही कारण है कि इसे अनेक वस्तुओं से हानि पहुँचती है।

इस नुकसान का प्रभाव शरीर के अंतरिक अवयवों पर नहीं पड़ता। त्वचा के रोग विभिन्न प्रकार के होते हैं।

ऐसी त्वचा सरलता से देखी जा सकती है। इस कारण इसके रोग, चाहे चोट से हों अथवा संक्रमण (infection) से हों,

रोगी का ध्यान अपनी ओर तुरंत आकर्षित कर लेते हैं।

खाज-खुजली की समस्या की मूल वजह है खून की खराबी। ज्यादातर त्वचारोगों का कारण पुरानी कब्ज, पेट में कीड़े होना रहता है।

खाज-खुजली आदि स्किन प्रॉब्लम प्याज-लहसुन से ठीक नहीं होने वाली।

यह खतरनाक रक्त विकार है, जो तन-मन को दूषित कर याद्दाश्त कमजोर कर सकता है।

स्किन प्रॉब्लम ठीक करने वालों का भ्रम…लोग यह सोचते हैं कि इन रोगों के जीवाणुओं को मारने के लिये तीव्र से तीव्र एलोपैथी औषधियों का प्रयोग करना चाहिए।

यह विचार निर्मूल एवं गलत है। ऐसा करने से त्वचा को बहुत हानि पहुँचती है। किडनी की खराबी, लिवर की कमजोरी,

पाचनतंत्र का बिगड़ना, रक्त की कमी की समस्या अधिक अंग्रेजी मेडिसिन लेने के वजह से ही बढ़ रही है।

लोगों को इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि वे सब रोग, जिनमें खुजली एक सामान्य उपसर्ग है, भिन्न भिन्न कारणों से होते हैं।

जिसे केवल खानपान, व्यायाम, प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद दवाओं द्वारा सही किया जा सकता है।

त्वचारोग के पूरे निदान के लिये धैर्य से इलाज करने की आवश्यकता पड़ती है।

अमरीका में त्वचा रोग सम्बंधित खाज-खुजली, एग्जिमा, ल्युकोडर्मा, विटलिगो, एवं पेशी कंकाली एवं चर्म रोग राष्ट्रीय संस्थान के अनुसार लगातार लिवर की कमजोरी,

असंतुलित त्रिदोष, अल्सर, गुस्सा शरीर पर बड़े-बड़े ददोरे, दमा, त्वचा-रोग या पाचन से जुड़ी तकलीफों को बढ़ा सकता है,

या फिर इन बीमारियों का कारण बन सकता है।

फाइब्रोमाइऎलजिया के मरीज़ों को नियमित व्यायाम करना चाहिए और त्वचारोग नाशक

आयुर्वेदिक ओषधियों का सेवन भी करते रहने से ही स्किन प्रॉब्लम से राहत मिलती है।

अतः रक्तदोष नाशक आयुर्वेदिक दवाओं का आंतरिक और बाहरी रूप औषधियों का सेवन 3 महीने तक तक करें।

त्वचारोग नाशक आयुर्वेदिक जड़ीबूटियां…आयुर्वेद की हजारों वर्ष प्राचीन विश्वसनीय जड़ीबूटियों जैसे-बाकुची,

त्रिफला, स्वर्णपत्री, मजिंष्ठा, दारुहल्दी, शुद्ध गंधक, नीम, करजं आदि हैं।

त्वचा के किसी भाग के असामान्य अवस्था को हिंदी में चर्मरोग और अंग्रेजी में डर्माटोसिस/dermatosis कहते हैं।

त्वचा देह का आवरण है। यह सदैव प्रदूषित वायु तथा बाहरी वातावरण के सम्पर्क में रहती है।

इसके अतिरिक्त बहुत से अन्य तन्त्रों या अंगों के रोग जैसे बाबासीर आदि भी त्वचा के माध्यम से ही अभिव्यक्त होते हैं।

त्वचारोगों के लक्षण, कारण, इलाज….स्किन डिसीज त्वचा की वह अवस्था है,

जो परतदार, लाल त्वचा की पपड़ीदार धब्बे के कारण होती है।

यह सफ़ेद तरह की पपड़ी से ढकी होती है। ये धब्बा आमतौर पर तो आपकी कोहनी, घुटने, खोपड़ी और पीठ के निचले हिस्से पर दिखाई देते हैं,

लेकिन आपके शरीर पर कहीं भी दिखाई पड़ सकते हैं। अधिकतर लोग केवल छोटे धब्बों से प्रभावित होते हैं।

अमृतम द्वारा निर्मित अमृतम स्किन की माल्ट को अपने भोजन का अंग बनाकर खातें वक्त एक से दो चम्मच 2 बार जरूर लेवें।

चेहरे का रंग-जीने का ढंग बदल कर 31 प्रकार के त्वचारोगों से निजात दिलाता है।

त्वचारोगों से सुरक्षा के लिए सुबह की धूप में बैठकर स्किन की ऑयल पूरे शरीर में लगाएं।

31 तरह की अंदरूनी या बाहरी स्किन डिसीज के लिए स्किन की माल्ट और स्किन की माल्ट यह अमृतम के बहुत विशेष उत्पाद हैं।

स्किन की माल्ट तथा तेल दोनों ही सफेद दाग, ल्युकोडर्मा यानि विटलिगो आदि त्वचा विकारों को मिटाने वाली खास आयुर्वेदिक दवा…

दाद, खाज, खुजली का बेहतरीन इलाज है।

यह आयुर्वेद की असरदायक ओषधि है जो रक्त विकार, से उत्पन्न खाज-खुजली, खून की खराबी आदि त्वचारोगों स्किन प्रॉब्लम से जड़ से मिटा देता है।

स्किन की ऑयल के फायदे...अनेक असरकारी ओषधि द्रव्यों से निर्मित स्किन की तेल SKin Key Oil एक प्रमाणित आयुर्वेदिक त्वचारोग नाशक तेल है।

यह अनेक रक्तविकारों, को जड़ से मिटाता है।

■ स्किन की माल्ट… के उपयोग से पित्त या शीत उभरना, सूखी खुजली, रांगो या गुप्तांग की खुजली, सूखा एग्जिमा,

खुजली के निशान, दाग-धब्बे मिटाकर यह त्वचा निखारता है। यह सभी उम्र वालों के लिए गुणकारी है।

स्किनकी माल्ट एवं आयल के जबरदस्त फायदे…स्थाई लाभ के लिए स्किन की माल्ट का 3 से 6 महीने तक लगातार सेवन करें।

यह शरीर के सभी रक्त दोषों को दूरकर खून साफ करता है।

पैकिंग Skin key oil- 100 ml ₹- 799/

स्किन की माल्ट 400 ग्राम ₹-1199/-

स्किन की ऑयल का फार्मूला प्रत्येक 10 मिलीलीटर में…

Manjishtha मंजिष्ठा- 250 mg

Annatmool अनंतमूल- 150 mg

Bakuchi बकुची- 150 mg

Chameli चमेली- 125 mg

Daruhaldi दारुहल्दी- 125 mg

Khadira खदिर- 125 mg

Chakramard चक्रमर्द- 125 mg

Harad हरड़- 100 mg

Baheda बहेड़ा- 70 mg

Amla अमला- 70 mg

Kali mirch कालीमिर्च- 70 mg

Kapoor कपूर- 70 mg

Suddha gandhak शुद्ध गंधक- 50 mg

Neem ऑयल नीम तेल- 1 ml

Karanj oil करंज तेल 1 ml

Chalmogra oil चिरौंजी तेल 1 ml

Arand oil एरण्ड तेल- 5 ml

Narial oil नारियल तेल- 2 ml

Sugandhit drav etc

अष्टाङ्ग ह्रदय, भावप्रकाश, आयुर्वेद सारः सहिंता, द्र्वगुण विज्ञान आदि आदिकालीन किताबों में उपरोक्त सभी ओषधियाँ एवं तेल ..

यह असरकारी खाज-खुजली, त्वचारोग, सफेद दाग, ल्यूकोडर्मा, खुजली के काले निशान आदि त्वचारोग नाशक हैं।

स्किन की माल्ट में करौंदा मुरब्बा विशेष कारगर ओषधि है। इसके अलावा इसमें आंवला मुरब्बा, हरीतकी, बाकुची चूर्ण,

त्रिफला एक्सट्रेक्ट, बाकुची अर्क आदि का समिश्रण किया है, जो कब्जियत नहीं होने देता।

शरीर से पित्त को सन्तुलित कर इम्युनिटी तेजी से बढ़ाता है।

स्किन की माल्ट 25-पच्चीस गहन-गम्भीर तथा असाध्य चर्म रोगों को रक्त साफ कर जड़ से मिटाता है…

【१】त्वचा की सड़न

【२】खाज-खुजली अर्थात स्कैबी

【३】सफेद दाग,

【४】त्वचा के संधिशोथ,

【५】अनेक तरह के चर्म रोग

【६】त्वचा का रूखापन

【७】त्वचाशोथ, खाज से सूजन

【८】घमौरी, चकत्ते

【९】दाद-ददोरे,

【१०】कुष्ट रोग

【११】फोड़ा-फुंसी

【१२】एड़ियों की बिवाई

【१३】छाजन

【१४】छाल रोग (सोरायसिस)

【१५】त्वचा का रंग बदलना।

【१६】छुआछूत रोग

【१७】वर्णहीन (albino)

【१८】सभी तरह की एलर्जी

【१९】ल्युकोडर्मा, विटलिगो

【२०】मौसम के दुष्प्रभाव से उत्पन्न रक्तदोष या त्वचा रोग

【२१】बार-बार फोड़े-फुंसी होना

【२२】हाथ पैर की उँगलियाँ सूजन

【२३】कारबंकल (carbuncle) रोग

【२४】हरपीज़ लैबिऐलिस (herpes labialis) और

【२५】प्रोजेनिटैलिस (progenitalis)

आदि ऊपर लिखे त्वचारोगों को दूर करने में सक्षम है।

स्किन की माल्ट एवं स्किन की ऑयल स्किन रक्षक पूर्णतः हानिरहित दवा है।

अतः दाद, खाज-खुजली, एग्जिमा, मिटाने के लिये स्किन की माल्ट और स्किन की ऑयल दोनों आयुर्वेदिक दवाएँ बहुत लाभदायक है।

स्किन की ऑयल को शरीर पर रात में लगाकर सोना चाहिए। यह तेल तीन बार लगाना कारगर सिद्ध होगा।

रक्तदोष भी वजह है-त्वचारोगों का… कुछ लोगों की त्वचा रूखी-सूखी किसी की तेलीय और मछली की त्वचा की भाँति होती है।

कुछ मनुष्यों की यह जन्म भर ऐसी ही रहती है। ऐसे व्यक्ति साबुन का प्रयोग नहीं कर पाते।

किसी तरह का साबुन सोड़ा लगाने से इन्हें एलर्जी होने लगती है।

कुछ नर-नारियों की त्वचा, बाल और आँखों का स्वच्छ मंडल (cornea) श्वेत होता है।

ऐसे व्यक्ति को सूरजमुखी, अथवा वर्णहीन (albino), कहते हैं।

ये वर्णहीन स्त्री-पुरुष को सूर्य की किरणें अत्यंत हानिकारक होती हैं। ये लोग धूप या घाम में ज्यादा देर तक रुक नहीं पाते।

त्वचारोगों अथवा स्किन प्रोब्लम जैसी विकराल समस्याओं से जूझ रहे त्वचा रोगी को 6 से 10 महीने तक स्किन की माल्ट एवं ऑयल का उपयोग लाभकारी सिद्ध होगा।

मौसम का दुष्प्रभाव

कुछ स्त्री-पुरुषों की स्किन अधिक भीगने के कारण पर त्वचा सिकुड़ने या छूटने लगती है।

ऐसे में त्वचा पर साबुन का बुरा प्रभाव पड़ता है।

इस प्रकार की त्वचा धोबी, घर में काम काज करनेवाले नौकर होटल के रसोइए तथा बरतन साफ करनेवाली महिलाओं की हो जाती है।

हाथ पैर की त्वचा के साथ साथ उँगलियों और नाखून पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।

त्वचा के लिए ठंड का मौसम भी खराब रहता है।

विशेषकर यदि ताप शून्य से नीचा हो। अधिक शीत से त्वचा की कोमल (delicate) छोटी छोटी महीन रक्तवाहनी शिराएँ सिकुड़ने लगती हैं

तथा त्वचा नीली पड़ जाती है, इन शिराओं में रक्त जम जाता है तथा अंग गलने लग जाता है।

इस रोग को तुषाररोग (frost-bite) कहते हैं।

इस का प्रभाव कान, नाक और हाथ पैर की उँगलियों पर पड़ता है।

इस तरह के त्वचा रोग की प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान उन लोगों एवं सैनिकों के लिये अत्यंत आवश्यक है,

जो पर्वतीय क्षेत्र में रहते हैं या सीमा की रक्षा करते हैं।

सर्दियों ज्यादा दुखदाई है त्वचारोग….

अधिक शीत के कारण कुछ लोगों के हाथ पैर की उँगलियाँ सूज जाती हैं, लाल पड़ जाती हैं और उनमें घाव भी हो जाते हैं।

इस रोग से बचने के लिये पौष्टिक भोजन के साथ स्किन की माल्ट नियमित लेना चाहिए।

त्वचा पर रहने वाले जीवाणु/बैक्टिरिया…चरम/त्वचा पर रहनेवाले जीवाणु अधिकतर अपने आप ही त्वचा के रोग का कारण हो जाते हैं,

जो फोड़े (boils), फुंसियों (furrunculosis) के रूप में प्रकट होताहै। इन सब चर्मरोग में विषाणु-जीवाणु किसी छुपनेवाले स्थान, जैसे नाक,कान बालों में छिपे रहते हैं।

यह कृमि-कीटाणु धीरे-धीरे देह में खून को गंदा करके त्वचारोगों के रूप में उभरने लगते हैं।

इस स्थिति में अधिकांश रोगी कोई क्रीम या ट्यूब लगाजर बाहरी चिकित्सा कर कुछ समय के लिए निजात पा लेते हैं।

परन्तु रक्त की स्वच्छता हेतु कोई ओषधि नहीं लेते।

इस वजह से कुछ अंतराल के बाद अनेक असाध्य चर्म दोषों से त्वचा खराब हो जाती है।

स्किन की माल्ट….अंदर के गन्दे, दुष्ट-दूषित कीटाणुओं का सफाया करने में सहायक है।

यह गन्दे-दूषित खून को साफ कर कांच की तरह चमका देता है।

पेट के कीड़ों का सफाया कर देता है।

डाइबिटीज का कारण भी है-चर्मरोग..मधुमेह के जीवाणु अत्यधिक हानिकारक होते हैं

और कारबंकल (carbuncle) रोग पैदा करते हैं, जिसकी चिकित्सा के लिए सुबह खाली पेट स्किन की कैप्सूल का सेवन करना चाहिए।

ताकि जीवन को कोई हानि न हो। इनके अतिरिक्त त्वचा के कुछ और रोग भी हैं, जो बहुत ही सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा होते हैं।

इनमें से एक रोग को गोखरू (wart or molluscum contagiosum) कहते हैं। यह छूत का रोग है।

इसी प्रकार का एक और रोग है, जिसे हरपीज़जॉस्टर (Herpeszoster) कहते हैं।

इसको मकड़ी फलना भी कहते हैं। इसमें शरीर पर जलन करने वाले छाले पड़ जाते हैं और भयंकर दर्द होता हैं।

एक अन्य रोग हरपीज़ लैबिऐलिस (herpes labialis) और प्रोजेनिटैलिस (progenitalis) भी होता है।

इनमें होंठ तथा शिश्न पर ज्वर आदि के बाद छाले पड़ जाते हैं।

अभी तक आयुर्वेद के अलावा अन्य चिकित्सा पध्दति में इन चर्म रोगों के विषाणुओं (viruses) को नष्ट करने की कोई असरदार उपयुक्त औषधि ज्ञात नहीं हो सकी है।

इस तरह की तकलीफों में भी

■ स्किन की माल्ट

■ स्किन की ऑयल

उपरोक्त तीनों ओषधियों का इस्तेमाल बिना झिझक के तीन से 6 महीने तक किया जा सकता है।

यह सभी उत्पाद केवल ऑनलाइन ही मिलते हैं।

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आयुर्वेद के बारे में जानने के लिए देखें- अमृतमपत्रिका, ग्वालियर मप्र ऑनलाईन पढ़ें।

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