क्या नाक की सौरभ के लिए हम सब कुछ ताऊ रख देते हैं?….

वर्तमान हिमाचल प्रदेश में स्थित कांगड़ा प्लास्टिक सर्जरी का गढ़ था आदिकाल से ही नाक इज्जत का सवाल नाक का महत्व रहा है….

नाक की चिंता सबको रहती है..

देश का झंडा ऊंचा रहे या ना रहे हमारी नाक ऊंची रहना चाहिए!

नाक ना कटे इसके लिए हम सब कुछ लुटाने को तत्पर रहते है….

नाक की सौरभ के लिए हम सब कुछ ताऊ रख देते हैं…

नाक ऊंची रखने की प्रक्रिया घर परिवार के अहंकारी सत्कार से आरंभ होती है..

घर में मोहल्लों में बाजार में समाज में रिश्तेदारों में शहर में ऊंची नाक रखने के लिए लोग उम्मीद रखते हैं..

कई सनकी तो पूरे राज्य देश और विश्व में नाक इज्जत की खातिर स्वयं और बर्बाद भी कर देते हैं ..

जबकि बुजुर्गों की समझाइश रही है कि….

* इतना मत घबराओ की कर्ज हो जाए !

* इतना मत खाओ कि मर्ज हो जाए !

* इतना मत सताओ कि दर्द हो जाए !

* इतना मत नहाओ कि सर्द हो जाए !

* इतना मत कमाओ की तर्ज हो जाए !

* चाहत मत करो इतनी कि बेदर्द हो जाए !

* देश के लिए भी इतना तो करो कि फर्ज पूर्ण हो जाए!

आदि अनेकों प्रेरक वचन है…

ताकि सब कुछ सम रहे और समता आई नाक की चिंता छोड़ अपनी मर्यादा में रहकर शक्ति के अनुसार व्यवस्था करो …

लोग क्या कहेंगे इसकी चिंता बिलकुल छोड़ दो बड़ी बड़ी घटना दुर्घटना मान अपमान बड़े से बड़े काम तामझाम कुछ ही दिन के मेहमान होते हैं ..

भगवान श्री कृष्ण का उद्देश्य है परिवर्तन संसार का नियम है..

600 करोड़ के इस जगत में नित्य कई घटनाएं घट रहे हैं लोग समय के साथ सब भूलते चले जाते हैं..

समय की बचत करना जानते हैं तो धन की चिंता ना करें और यदि समय भी बर्बाद कर रहे हो निठल्ले से घूम रहे हो तो…

धन नष्ट ना करो अनावश्यक वह मत करो समय का सदुपयोग करने वाले धन की फिक्र नहीं करते क्योंकि वे समय बचाकर धन वह करते हैं…

लापरवाह समय की कद्र ना करने वाले लोगों को धन पर अंकुश बनाए रखना चाहिए!

समय की शक्ति एवं धन की शक्ति नष्ट करने वाले लोग भिखारी से भी बदतर हो जाते हैं …

ऐसे प्राचीन अनेक उदाहरण हैं…

इस जमाने में भारत के राजाओं की तृप्ति बोलती है…

लखनऊ के नवाबों की नाक की अदाएं विश्व प्रसिद्ध थी लेकिन समय और धन की बर्बादी के कारण इनका कोई नाम लेने वाला भी नहीं बचा है …

हम स्वयं से सीख कर दुनिया को सिखा सकते हैं …

दुनिया को देखकर प्रतिस्पर्धा करने पर बर्बाद हो सकते हैं…

नाक के कारण कई सफलता पा गए तो कोई असफल हो गए देव दानव का युद्ध हुआ महाभारत जैसे संग्राम नकचड़ी द्रौपदी की देन रहा…

अधिकांश डकैत बन्ना नाक की देन है नाक बनाने कई बार फांक फांक हो जाते हैं तो अनेक साख भी बना लेते हैं ..

नाक की वैज्ञानिक प्राचीनता..

प्राचीन काल में नाक काट लिए जाने का दंड प्रचलित था पति वचक नारियां बेवफा औरतों का यह दंड सामान्य रूप से भोगना पड़ता था युद्ध में आक्रमणकारी शत्रुओं की नाक काट लेते थे!

प्रायः डाकू भी इसी प्रकार लोगों की नाक काट लेते थे नाक काटने के विषय में सन 1767 का एक किस्सा है..

जब पृथ्वी नारायण शाह एक गुट का सरदार था जब उन्होंने हिमाचल प्रदेश के 1 स्थान को त्रिपुर को जीता तो उसने अपने सैनिकों को कहा…

कि सभी 865 पुरुष के नाक कान और काट लेने का आदेश दिया ऐसा करके उसने अपने भाई को अंधा किए जाने का बदला लिया था …

उसी समय से कीर्तिपुर नकटों का शहर कहा जाने लगा अनुमान किया जाता है…

कि इतिहास से कटी हुई नाकों को ठीक करने के लिए प्लास्टिक सर्जरी का आविष्कार हुआ होगा ….

इस तरह की सृष्टि में प्रथम घटना तो राजा दक्ष के समय की है …

जब भगवान शिव ने अपने ससुर राजा का शीश काटकर बकरी का मुख लगाया इसके बाद श्री गणेश का गला काटकर हाथी का शीश लगाया …

यह सब हिंदू संस्कृति के प्रचलित किस्से हैं इसे आध्यात्मिक ज्ञान इश्वर यह चमत्कार से जोड़कर सुनाया जाता है…

जबकि यह संपूर्ण वैज्ञानिक आविष्कार था यह भगवान शिव की प्रथम खोज और सद प्रयास था!

ऋषि महा ऋषि यों वेदों द्वारा इस तरह का प्रथम ऑपरेशन का प्रथम विवरण 600 ईसवी पूर्व सुश्रुत संहिता में मिलता है …..

ऋषि सुश्रुत जो एक महान चिकित्सक थे…

इन्होंने अपने अविष्कारों और अनुभवों को एकत्रित कर सुश्रुत संहिता नामक आयुर्वेद के महान ग्रंथ की रचना की…

इसमें गाय के चमड़े को काटकर नाक पर प्रत्यारोपित करने का वर्णन किया…

विश्व की जानकारियों का संपूर्ण विवरण इनसाइक्लोपीडिया नामक विशाल पुस्तक के अनुसार ईसा से 1000 वर्ष पहले भारत में कुंभकार जाति के लोग कटी हुई …

नाकों को जोड़ने का कार्य करते थे सुश्रुत संहिता में वर्णित नासिका प्रत्यारोपण विज्ञान का विस्तार चौथी शताब्दी में वागभट्ट द्वारा किया गया…

प्राचीन भारतीय चिकित्सा विज्ञान के विकास में दूसरा महत्वपूर्ण स्थान भागवत को ही है…..

उन्होंने गाल में चमड़ी काटने के बजाय माथे से चमरा निकालने की विधि को अपनाया इस विधि में नासिका का दोष को पहले मोम पर चित्रत किया जाता था!

बाद में इसे स्याही से माथे पर उतारा जाता था..

माथे पर इस प्रकार चिन्हित चमड़ी के केवल तीन और से काटकर चौथी और नीचे इस तरह घुमा दिया जाता था….

कि वह नासिका दोष को ढक ले इस तरह नासिका दोष को ठीक करते हुए सावधानी पूर्वक टांके लगा दिए जाते थे ..

लगभग 3 माह में रोगी पूरी तरह स्वस्थ हो जाता था अनेक शताब्दियों तक भारत के कुछ घरानो मैं यहां ज्ञान लुप्त रूप से सुरक्षित था….

नासिक का शल्य का एक ऐसा घर आना हिमाचल के कांगड़ा में था जो सन 1440 में राजा शंकर चंद्र प्रथम के शासनकाल तक इस वैज्ञानिक कला का अभ्यास करता आ रहा है !

इस घराने के शल्य चिकित्सको के पास मुगल सम्राट अकबर जहाँगीर शाहजहाँ और आलमगीर शाह शासन के प्रमाण पत्र थे …

इस शल्य चिकित्सक घराने के अंतिम चिकित्सक थे हक़ीम दीना नाथ इन्होंने सन 1939 में रावल पिंडी के एक व्यक्ति शाबिया जत्ती की नासिका का प्रत्यारोपण किया था !

हाकिम दीनानाथ ने यह कला अपने चाचा हकीम श्री सुंदरलाल से सीखी थी ….

उस समय इस ज्ञान को इतना गोपनीय रखा की शल्य क्रिया करते समय वे लोग अपनी बहू को सहायक के रूप में रखते थे….

लेकिन अपनी लड़की को नहीं डर यहां था …

कि लड़की विवाह के बाद पराई होकर इस गोपनीय ज्ञान को दूसरे तक पहुंचा देगी उनके अधिकांश मरीज उत्तर पश्चिम सीमा के लड़ाकू जाति के होते थे….

जिसमें पुरुषों से महिलाओं की संख्या अधिक होती थी ….

विनय नामक एक फ्रांसी यात्री ने कनाडा आते जाते समय अनेक लोगों को अपनी कई नाक का प्रत्यारोपण करवा कर लौटते हुए देखा था एम एस रंधावा नामक एक आईपीएस अधिकारी और इतिहासकार ने लिखा है …

कि कनाडा अपनी चित्रकला के लिए जितना बजट है…

उतना ही कटी नाक और कान की शल्य चिकित्सा के लिए है …

रंधावा ने कनाडा प्रवास के दौरान या देखा था..

कि ईस्ट इंडिया कंपनी के दो चिकित्सक अधिकारियों ने पुणे के कुमार नामक स्थान पर एक मरण शल्य चिकित्सक कि…..

भारतीय पद्धति से नासिक प्रत्यारोपण उपचार करते हुए देखा था…

सन 1793 के मद्रास गजट में रावण का उल्लेख एकमात्र ऐसा ऑपरेशन के रूप में हुआ है….!

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