क्या आयुर्वेद के कोई दुष्प्रभाव भी होते हैं?

  • आयुर्वेद की घरेलू चिकित्सा या स्वानुभूत उपचार करने से पहले इन खास, विशेष बातों को जानना जरूरी है।
  • विधि विधान से उपयोग करने पर ही आयुर्वेद अमृत है अन्यथा आप विष का उपभोग कर रहे हैं। ये 29 काम की बातें आपको सचेत कर आपके तन, मन, अंतर्मन को स्वस्थ्य बनाने मदद करेंगी।
  1. आयुर्वेदिक घरेलू चिकित्सा करते समय इस बात का स्मरण रखें कि औषधीय पोधो का सामान्य रूप से सेवन कितना उपयोगी है?
  2. भारत के लोगों की एक विशेष गंदी आदत ये है कि केवल सुनी सुनाई बातों, गुगल आदि पर भरोसा करके कुछ भी लेना आरंभ कर देते हैं।
  3. अधिकांश आयुर्वेदिक प्रेमी इतने अलसी होते हैं कि संदर्भ ग्रंथ को पढ़े बिना ही किसी के बताए अनुसार कुछ भी, कभी भी खाने पीने, इस्तेमाल करने लग जाते हैं।
  4. आयुर्वेद प्रेमियों से निवेदन है कि वे अपने घर में आयुर्वेद के कुछ प्राचीन ग्रंथ जैसे भाव प्रकाश निघंटू, द्रव्यगुण विज्ञान, अष्टांग ह्रदय, चक्रदत्त संहिता, भारत भैषज्य रत्नावली, चरक संहिता अपने पास मंगवाकर रखें और अध्ययन कर दूसरों को भी जागृत करें।
  5. आयुर्वेद में अनुपान विधि, मात्रा, लेने का तरीका और समय का विशेष महत्व बताया है। कब कौनसी जड़ी, बूटी, पत्ते किस समय केसे लेना है। तथा इसे लेने वाला किस प्रकृति का है। इसका ज्ञान होना और ध्यान रखना जरूरी है।
  6. द्रव्य गुण विज्ञान के अनुसार नीम, गुड़मार, पीपल, बेल पत्र आदि की केवल 3 से 4 कोपल या नई पत्तियों को चूसकर पत्ते थूक देना चाहिए। क्योंकि ये पत्ते कभी पचते नहीं है और आंतों वी पेट में संक्रमण पैदा कर अनेक रोग देते हैं।
  7. बिल्व पत्र के नियमित सेवन से स्वाद मुह का स्वाद खत्म हो जाता है। जीभ सफेद रहती है। पाचक रस बनना बंद हो जाता है।
  8. आयुर्वेद विशेषज्ञ बताते है की यदि हमारी तासीर गर्म है तो विल्व पत्र नुकसान करेगा और मुह में छाले, लीवर में खराबी, कब्ज, अपच जेसी समस्या भी हो सकती है।
  9. हल्दी का पाउडर हमेशा कफ प्रकृति वालों को ही लेना लाभकारी है। एक दिन में हल्दी की मात्रा 10 से 25 मिलीग्राम एवम एक माह में 7 से 10 ग्राम तक ही लेना पर्याप्त है अन्यथा हल्दी कफ को सुखाकर फेफड़ों को सुखा देती है।
  10. आजकल बढ़ते बवासीर, पाइल्स, वात रोग, लिवर की खराबी, कमजोर पाचन तंत्र की वजह अधिक हल्दी का सेवन ही है।
  11. लहसून वात रोगियों के लिए अमृत है लेकिन पित्त दोष वालों के लिए जहर है।
  12. लौकी, करेला, अदरक का रस मात्र 5 से 8 ML एक गिलास पानी में मिलाकर ही लेने की सलाह है। इससे अधिक लेने से अनेक त्वचा रोग, यकृत संक्रमण का खतरा बना रहता है।
  13. हमे क्या सेवन करना चाहिए इसके बारे में सतर्क रहने की जरूरत है.वर्तमान में सोशल मीडिया के कारण अनेक एसे लेख आ रहे है जिनकी प्रासंगिगता पर प्रश्न उठ रहे है.
  14. रिसर्च मेथोडोलाजी कार्य अनुसार भारत में आज हर मेडिकल सिस्टम के चिकित्सक को डेटा बेस बनाकर कार्य कर एनालिसिस करना होगा तभी हम सही निष्कर्ष पर पहुँच पायेगे.
  15. लगभग सभी मेडिकल सिस्टम में हर औषधि के लाभ हैं, तो उसके दुष्प्रभाव भी बताये गये हैं। हमे अपने सामान्य आहार सब्जी, अनाज, फल, देनिक उपयोगी मसाले आदि से हटकर कुछ भी सेवन करना है, तो उसका अधिक दिनों तक उपयोग हानिकारक हो सकता है।
  16. अमृतम पत्रिका, amrutam home app के अनुसार एक चिकित्सक और रोग दूर करने वाले चमत्कारी बाबाओं में बहुत अंतर ह।
  17. चिकित्सक केवल लाभ पर ही चिन्तन नही करता वरन रोगी की प्रक्रति का अध्ययन कर लाभ एवं उसकी हानियों को भी ध्यान में रखकर कार्य करता है.एक विज्ञान एक मेडिकल सिस्टम हजारो वर्षो के शोध और अनुभवो का परिणाम होता है और उसका पूर्ण अध्ययन ही उस क्षेत्र में व्यक्ति को पारंगत बनाता है।
  18. हमारे आयुर्वेद में अनेक देनिक उपयोगी खाद्य सामग्री एवं अन्य पोधो, वृक्षों का औषधीय उपयोग एवं लाभ बताया गया है किन्तु साथ ही उसकी मात्रा और अवधि भी तय की गई है।
  19. जेसे गिलोय को ही लेवे उसे अम्रता कहा गया है किन्तु हम इसका नियमित सेवन नही कर सकते।
  20. वर्तमान में ह्रदय रोग, डाइबीटीज, थाइराइड,केंसर जेसे रोगों ने आम आदमी को भयभीत कर दिया है और इनसे बचने का एकमात्र उपाय है हम अपनी देनिक जीवनशेली और आहार में बदलाव लाये।
  21. पान, चूना, नीम जेसी अनेक चमत्कारिक देनिक उपयोगी देंन है किन्तु सभी की अपनी सीमाएं, और सिमित मात्रा भी बताई गयी है।
  22. प्लास्टिक जार के सभी उत्पाद भयंकर हानिकारक है। पीड़ित मरीज लोग अनुभव कर रहे हैं कि शरीर में अचानक उपजे स्किन प्रोब्लम की वजह प्लास्टिक पैकिंग वाले च्यवनप्राश, चूर्ण, चटनी, आचार, मसले, कोल्डड्रिंक आदि ही हैं। जो लोग सतर्क होते जा रहे हैं। वे रोगी होने से बच रहे हैं।
  23. वैसे भी च्यवनप्राश कच्चे आंवले से बनता है और इसमें अष्टवर्ग सहित 55 के करीब जड़ी बूटियों का मिश्रण होता है। इसलिए अष्टवर्ग युक्त असली च्यवनप्राश को हमेशा कांच की शीशी में ही रखने या पैक करने का निर्देश है।
  24. प्लास्टिक जार वाले अधिकांश च्यवनप्राश में संपूर्ण द्रव्य घटक नहीं मिलते और सस्ता, स्वादिष्ट बनाकर एक प्रकार से आम जनता को जहर प्रो रही है।
  25. भारत के लोगों को सस्ता खरीदने की आदत ने भी बीमार कर रखा है। जबकि विशेषों में भारत की इन्ही आयुर्वेदिक कंपनियों के असली च्यवनप्राश का मूल्य 4 से 5000/ रुपए का 400 ग्राम होता है।
  26. विदेशों में बिकने वाला कोई भी च्यवनप्राश प्लास्टिक पैकिंग में नहीं होता। केवल भारत सरकार के आयुष मंत्रालय की लापरवाही के कारण कभी किसी कम्पनी के उत्पादों की वैज्ञानिक तरीके से जांच नहीं की जाती।
  27. आप किसी भी असली च्यवनप्राश को कभी एक साल तक ग्लास जार में रखना। उसका स्वाद और खुशबू में बढ़ोत्तरी मिलेगी। जबकि प्लास्टिक बॉटल वाले में बदबू और हीक आने लगती है।
  28. अपने बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य और सुखी जीवन के लिए प्लास्टिक च्यवनप्राश का उपयोग करना तुरंत बन्द करें और ग्लास जार वाला महंगा हो मात्र उसी का सेवन कराएं।
  29. दुखद यह है की अब अनेक गुगल, यूट्यूब के अज्ञानी जानकारों और साधू, बाबाओ ने अपनी सस्ती लोकप्रियता के लिए प्रवचनों में इसका उपयोग करना चालू कर दिया है जिससे अनेक रोग विकराल स्वरूप धारण कर लेते है।

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