क्या उपवास रखने से मधुमेह, केंसर, लिवर की समस्या से मुक्ती मिलती है-

  • धर्म और उपवास-व्रत- आयुर्वेद,”व्रतराज” आदि धर्मग्रंथों में उपवास,व्रत एवं रोजा रखने का विशेष महत्व बताया है। उपवास आदि से शरीर तथा मनोवृत्तियों में निर्मलता आती है।
  •  अवसाद या डिप्रेशन एवं तनाव  मुक्ती के लिए व्रत एवं रोजा बहुत ही लाभकारी हैं।
  • व्रत-उपवास से होते हैं – 20 से ज्यादा चमत्कारी फायदे। जानकर हैरान हो जाएंगे: … इम्यून सिस्टम होता है मजबूत औऱ पेट की खराबीलिवर की समस्या का अंत हो जाता है। व्रत-उपवास करने से शरीर कभी कमजोर नहीं होता, अपितु पूरी तरह विकार रहित हो जाता है। 

संसार के समस्त धर्मों ने किसी न किसी रूप में व्रत को अपनाया है। इस आचरण से पापों का नाश, पुण्य का उदय, शरीर और मन की शुद्धि, मनोकामना की प्राप्ति, मन की शांति तथा परम चतुर्थ पुरुषार्थ-धर्म अर्थ काम मोक्ष की सिद्धि होती है।

  • व्रत सहिंता के हिसाब से किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति औऱ किसी कार्य को पूरा करने का संकल्प के लिए 24 घण्टे अन्न-जल-भोजन का त्याग व्रत बताया है।

उपवास एक आध्यात्मिक चिकित्सा है। बेहतरीन स्वास्थ्य के लिए व्रत-उपवास एक प्राकृतिक उपाय है। यह एक विषहरण इलाज है।

उपवास क्यों करना चाहिए…स्वास्थ्य की दृष्टि से उपवास या फास्ट का सम्बंध धर्म से भी है। यह मन-मस्तिष्क की क्रियायों को सुधार कर व्यक्ति की आयु में बढ़ोतरी करता है।

उपवास-व्रत में क्या फर्क है?.

संस्कृत में उपवास का अर्थ है- ‘उप’ यानि नजदीक और ‘वास’ का अर्थ बैठना अर्थात बिना कुछ खाये परमात्मा का ध्यान लगाकर बैठना। ईश्वर की भक्ति, जप-स्तुति करना है।

व्रत का अर्थ संकल्प है। सार यही है अपने शरीर पर भूख-प्यास आदि का अंकुश लगाकर प्रसन्न रहना।

स्कंदपुराण के मुताबिक व्रत फलाहार ले सकते हैं जबकि उपवास में निराहार (बिना खाये-पिये) रहना पड़ता है।

आयुर्वेद की पंचकर्म चिकित्सा के समय मरीज को निराहार रखा जाता है।

व्रतराज नामक एक पुरानी किताब में उपवास के अनगिनत फायदे बताए हैं।

  1. उपवास से शरीर की सारी दूषित गन्दगी एवं टोक्सिन बाहर निकल जाती है। तन-मन की अंदरूनी गन्दगी एवं मल मिटाने व पेट की सफाई करने के लिए उपवास जरूर करना चाहिए।
  2. उपवास एक एंटीएजिंग पध्दति है, इससे जल्दी बुढ़ापा नहीं आता।
  3. उपवास से पाचन तंत्र तथा इम्यून सिस्टम मजबूत हो जाता है।
  4. उपवास से शरीर की विषाक्तता दूर होती है यानी डिटॉक्सीफाई होता है।
  5. मोटापा या वजन कम करने हेतु उपवास अवश्य करें।
  6. उपवास पाचन तंत्र ठीक रहता है।
  7. उपवास से त्वचा में निखार आता है। खूबसूरती बढ़ती है।
  8. रक्तचाप या ब्लड प्रेशर औऱ कोलेस्ट्रॉल सन्तुलित करने के लिए उपवास एक अच्छी चिकित्सा है।
  9. सप्ताह में एक बार उपवास करने से वात-पित्त-कफ यानी त्रिदोष असन्तुलित नहीं होता।
  10. रोगप्रतिरोधक क्षमता यानी इम्युनिटी बढ़ाने के लिए उपवास कारगर उपचार दूसरा नहीं है।
  11. उपवास या फास्टिंग, देह की समस्त नाड़ी-कोशिकाओं से विषाक्त पदार्थों को निकालने में सहायक है।
  12. उपवास से metabolic क्रियाएं सुधरकर जीर्ण-जिद्दी पुराने रोग यानि chronic बीमारियों के विकास के जोखिम को भी कम करता है।
  13. ह्रदय रोगों से बचने हेतु उपवास एक शुद्ध सहारा है।
  14. उपवास दिल स्वस्थ रहता है।
  15. धन्वन्तरि चिकित्सा एवं अगस्त्य सहिंता के अनुसार व्रत करने या भूखह रहने से यकृत/लिवर को बहुत राहत मिलती है।
  16. उपवास करने से यकृत में एक विशेष प्रोटीन निर्मित होता है, जो लिवर व मेटाबॉलिज्म को करेक्ट करने में मददगार होता है।
  17. उपवास से यकृत के जीन कंट्रोल होते हैं और उदर विकार शांत हो जाते हैं।
  18. उपवास रखने से ज्वर,जुकाम,नजला,श्वांस, सर्दी,खाँसी,दमा,सूजन,अपच,कब्ज, वातरोग, त्वचारोग, वायुविकार,मधुमेह,गुर्दा (किडनी) के रोग, आदि मनोविकृतियाँ दूर हो जाती हैं।

बुजुर्ग विद्वानों का संदेश है कि जब पेट में हो रोग तो काहे का भोग। रोग रहित व्यक्ति ही सब भोग, सुख भोगने के अधिकारी है।

    • हमारा पेट साफ रहे इसलिए व्रत उपवास का विधान हमारे शास्त्रों ने बताया है। सप्ताह में एक 24 घण्टे यानी दिन-रात का उपवास हमारे पेट के अनेक रोगों का नाश कर जठराग्नि को जागृत करता है, ताकि हमें समय पर भूख लगे और खाया हुआ पच सके, पेट कब्ज रहित रहे। पेट साफ रहने से ही धर्म-ध्यान और भक्ति में मन लगता है!
  • आयुर्वेद कहता है कि शुद्ध भाव से किया गया भोजन आसानी से पच जाता है। ऐसा उपवास द्वारा सम्भव है।

उपवास से तन-मन हल्का और शरीर स्फूर्ति वान रहता है …हमारी जल्दी बाजी ने हमें ज्यादा अव्यवस्थित कर रखा है! शास्त्र विधान है कि….

    • धैर्य से धन बढ़ता है!
    • और धर्म से ध्यान तथा कर्म से कष्ट भागते हैं !
    • भागने से भाग्योदय होने लगता है।
    • इंसान के मान में वृद्धि होती है !
    • सहजता से समृद्धि और सरलता से शक्ति बढ़ती है…
    • विनम्रता से विवेक दया भाव रखने से व्यक्ति याद रखा जाता है….
    • प्रातः काल की भाइयों ग्रहण करने वाला सदैव युवा बना रहता है ..
    • प्रेम और पूजा करने वाला व्यक्ति पनपता जाता है आगे बढ़ता जाता है
    • औषधि विज्ञान अभी भी स्थूल ज्ञान के भरोसे तीर में तुक्का ही बना हुआ है!
    • छोटी-छोटी बीमारियों से ग्रसित व्यक्ति एक के बाद एक डॉक्टर का दरवाजा खटखटाते रहते हैं!
    • और उस मर्ज के लिए निर्धारित औषधियों में से प्रायः सभी का उपयोग कर चुके होते हैं !
  • पर उस कुचक्र में धन और समय गंवाने के बाद भी कुछ हाथ नहीं लगता यही स्थिति अधिकांश रोगियों की होती है …
  • वे विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों का भी आश्रय लेते हैं.. साथ ही जादू टोना झाड़ाफुखी तंत्र मंत्र से निरोग होने का प्रयास करते हैं

एलोपैथी होम्योपैथी नेचुरोपैथी आदि अनेकों चिकित्सा पद्धतिया प्रचलन में है…

यह सब अपने विज्ञान की मेहता का प्रचार प्रभाव करती रहती हैं…

अनेक उपचार धन और समय की बर्बादी के बाद भी रोग प्रायः जहां के तहां बने रहते हैं लेकिन आयुर्वेद के संपूर्ण स्वास्थ्य संभव है!

अमृतम आयुर्वेद के लगभग 100 से अधिक ग्रंथों में तंदरुस्त,स्वस्थ्य-सुखी, प्रसन्नता पूर्वक जीने के अनेकों रहस्य बताये गये हैं।

  • धर्म और आहार- मन में जैसे विचार आते हैं,वैसा ही वाणी से बोला जाता है और वैसा काम भी होता है। हमारे मन पर ही सब कुछ निर्भर है और हमारा यह मन आहार-शुद्धि पर टिका हुआ है।
  • “आहारशुद्ध्यो सत्वशुद्धि: सत्वशुद्धो ध्रुवा स्मृति:
    स्मृतिलम्भे सर्वग्रंथीनां विप्रमोक्ष:!”
    (छान्दोग्य.ग्रन्थ ७/२६/२)

    अर्थात- “आहार शुद्धि से सत्व की शुद्धि होती है, सत्व की शुद्धि से निश्छल स्मृति, प्रखर बुद्धि (सुपर मेमोरी) की प्राप्ति होती है। मन की निश्छलता से व्यक्ति रोगों के बंधन से मुक्त हो जाता है।

हमें बीमारियों के भार से बचने के लिए हमेशा आहार यानि खान-पान पर ध्यान देना चाहिए।

      • शुद्ध आहार स्वस्थ्य रखने का सबसे बड़ा हथियार है।
  • हमारा भोजन,खान-पान ऐसा हो जिससे हमारी बुद्धि,अवस्था और बल में निरन्तर वृद्धि होती रहे।
  • फल,मेवे,कंदमूल (गाजर-मूली), साग,भाजी, गेंहू, चावल, जौ, ज्वार, मूंग की दाल,मकई, नारियल,बादाम, किसमिस, अखरोट, नाशपाती, केला, नारंगी, अंगूर, दही, आदि को आयुर्वेद में शुद्ध आहार बताया है। यह शरीर के लिए पोषक हैं।
  • हमारे द्वरा ग्रहण किया गया आहार का केवल चौथा अंश ही हमारा पोषण करता है।

“कार्तिक-महात्म्य” नामक ग्रन्थ में लिखा है कि स्वस्थ्य रहने के लिए उपवास से बढ़कर कोई तपस्या नहीं है।

सूर्योपासना और स्वास्थ्य-

सूर्य प्रणाम, सूर्योपासना हरेक मनुष्य के स्वास्थ्य व आत्मबल हेतु एक अत्यंत लाभदायक कृत्य है। सूर्य से हमारी आत्मा को बल मिलता है। सूर्य हमारे मनोबल को बढ़ाते हैं। सूर्य से ही हमें प्रसन्नता, स्वास्थ्य, सौन्दर्य और यौवन आदि की प्राप्ति होती है।

यजुर्वेद ७/४२ की प्रसिद्ध ऋचा है-
“सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषशच”

अर्थात- सूर्य ही स्थावर-जङ्गम पदार्थो की आत्मा है।
अतः सूर्य से हम प्रार्थना करते हैं —
“जीवेमशरद:शतम” (यजुर्वेद३६/२४)
हम सौ वर्षों तक निरोगता पूर्वक जीवित रहें।

सूर्य-स्नान करने से अनेक रोगों – टायफाइड, यक्ष्मा, संक्रमण, वायरस आदि के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।

सूर्य के विषय में कुछ दुर्लभ जानकारियां-

सूर्य स्नान की प्राचीन परम्पराओं में एक माह का कार्तिक स्नान आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में किया जाता है।

◆ मैंगलौर (कर्नाटक) से करीब 80 किमी दूर
“धर्मस्थला” नामक तीर्थ में सूर्य स्नान करने से केन्सर जैसे असाध्य रोग खत्म हो जाते हैं।

◆ दक्षिण भारत के कुम्भकोणम से 10 किमी दूर
“सूर्यनारकोइल” नामक तीर्थ के दर्शन से अनेक बीमारियों से मुक्ती मिल जाती है।

◆ भिंड जिले में मिहोना के पास “बालाजी तीर्थ” बहुुुत प्राचीन सूर्य तीर्थ है।

◆ कालपी (पुराना वैदिक नाम कालप्रिय) भगवान शिव की तपस्या स्थली,यहीं पर सृष्टि में सर्वप्रथम काल की सूक्ष्म गणना की गई थी तथा ऋषि वेदव्यास की जन्मस्थली,जमुना नदी का किनारा एवं

◆ दतिया जिले में स्थित “उन्नाव बालाजी तीर्थ” त्वचारोग की शान्ति,मुक्ती हेतु एक प्राचीन सूर्य मंदिर है।

    • “आरोग्य – चिन्तन – प्रेरक – निर्देश“ लेखक श्रीराधाकृष्ण सहारिया ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि-स्वास्थ्य एवं आहार के नियम न जानने से व्यक्ति बार-बार रोगों का शिकार होता रहता है।
    • कुदरत के नियमों की अवहेलना करना बहुत बड़ा अपराध माना है। इसीलिए रोगियों को बीमारी रूपी सजा भोगनी पड़ती है। उन्होंने अपने अनुभव शेयर करते हुए लिखा कि-
  • 1- केवल दवाओं से रोगों का समूल नाश नहीं होता। दवा का अर्थ ही किसी रोग को दबाना,ठीक करना नहीं। कोई भी रोग दवा के प्रभाव से आज दब जाएगा,निश्चित ही कल पुनः पनप जाएगा। इसलिए रोगों को सदा प्राकृतिक उपायों द्वारा ही ठीक करने का प्रयास करना चाहिए।
  • 2- प्राचीन काल से ही “अमृतम आयुर्वेद चिकित्सा” को निरापद अर्थात पूरी तरह हानि रहित तथा रोगों को जड़-मूल से ठीक करने वाला बताया गया है। यह तन-मन से विष को निष्क्रिय कर देती हैं।
  • 3- रोगों का समूल नाश इन्द्रिय-संयम और मन की शुद्धि होने पर ही हो सकता है।
  • 4- भोजन की ज्यादा ललक, स्वादिष्टता का प्रलोभन इतना अहितकर है कि हमारा शरीर अनेक विकार व विकृतियों से घिर जाता है उसका दुष्परिणाम स्वास्थ्य-नाश की भारी क़ीमत चुकाने के रूप में भुगतना पड़ता है।
  • 5- अमृतम आयुर्वेद के अनुसार महत्व भोजन का नहीं,पाचनशक्ति का है।
  • 6- अरहर की पीली दाल बहुत गर्म और गरिष्ठ होती है,इसे पचाने के लिए 10 से 15 गुना पानी अधिक पीना जरूरी है।
  • 7- रात्रि में दही खाने से पाचन तंत्र (मेटाबॉलिज्म) दूषित हो जाता है। वायु-विकार एवं त्वचारोग उत्पन्न हो जाते है। सिर में तनाव व भारीपन रहता है। अतः रात में दही भोज्य तत्काल त्यागने का निर्देश है।
  • 8- सुबह उठते ही खाली पेट 3 से 4 गिलास पानी पीना उदर,रक्तचाप,हृदयरोग,मधुमेह के लिए बहुत ही हितकारी है।
  • 9- बीमारियों का सम्बन्ध केवल शरीर से न होकर, कभी-कभी मन की तरंगों से भी होता है। आयुर्वेदाचार्यों का मानना है कि रोग पहले मन में उत्पन्न होते हैं। मन के अच्छे होने से तन रोगरहित रहता है।
  • 10- तन को स्वस्थ्य रखने हेतु अङ्ग-प्रत्यंगों को मजबूत बनाना आवश्यक है। मन से कमजोर आदमी कितना ही जोर लगा ले,उसका स्वस्थ्य रह पाना असम्भव होता है।

    “नायमात्मा बलहीनेन लभ्य:”
    (मुण्डकोउपनिषद ३/२/४)

    अर्थात- जो मनुष्य बलहीन या उत्साहहीन होता है। वह हमेशा शारीरिक और मानसिक रोगों से परेशान रहता है। इस कारण वह प्रायः सुख-साधन,सफलता के मार्ग पर भलीभांति अग्रसर नहीं हो पाता। स्वयं को, अपनी आत्मा को समझ पाने में निराश रहता है। ऐसे लोगों की आस्था कभी स्थिर नहीं हो पाती। इस कारण वे सदैव रोगों से दुःखी रहते हैं।

  • 11- परमात्मा स्वरूप “श्रीगुरुनानक देव” ने गुरुग्रन्थ साहिब में कहा है कि- संसार में बहुत दवाएँ हैं, किन्तु प्रार्थनारूपी महौषधि से त्रिताप,त्रिदोष एवं त्रिशूल का सहज ही निवारण होता आया है।
  • 12- वैद्य श्री कृष्णगोपाल कालेड़ा के अनुसार एक साधारण रोगी की अपेक्षा भयग्रस्त रोगी असाध्य होता है। भय एवं चिन्ता करने से रक्त का शुद्ध रहना असम्भव हो जाता है। त्वचारोग और वातविकार तन में हाहाकार,उत्पात मचा देते हैं।
    • 13- शरीर विज्ञान नामक किताब के हिसाब से मस्तिष्क को शुद्धरक्त अवश्य प्राप्त होना चाहिए। सुचारू रक्तसंचरण से ही मन मलङ्ग रहता है। रक्त संचार के बाधित होने से खून की नाड़ियाँ कमजोर होकर अनेक रोग पैदा करती हैं।
    • रक्त अवरोध के कारण ही थाईराडिज़्म, थाइराइड, ग्रंथिशोथ,मानसिक विकार तन और मब मस्तिष्क होते रहते हैं।
  • 14- अपने विचारों को विकसित करें। सोच का प्रभाव केवल मस्तिष्क पर ही नहीं होता,बल्कि शरीर के प्रत्येक अङ्ग पर होता है।
  • 15- व्यक्ति सदैव अपनी इच्छा-शक्ति के बल पर अपने-आप को निर्देश देता रहे कि उसे कोई रोग नहीं है,वह पूरी तरह ठीक है,स्वस्थ्य है। यह सोच-विचार,आत्मविश्वास से हृदय में प्रवाहित होने वाली अपनी आस्था एवं विश्वास रूपी लहरों से निरोग रहने का बल व शक्ति प्राप्त होती रहेगी और धीरे-धीरे स्वास्थ्य में चमत्कारी रूप से सुधार शुरू हो जाएगा।
  • 16- दक्षिण भारत के पुराने “ज्योत्स्निका” नामक आदि आयुर्वेद ग्रंथों में दीपज्योति,ज्योतिर्गमय, ज्योतिर्लिंग दीप पूजा अर्थात विशेष समय,महूर्त में दीपक जलाकर स्वस्थ्य होने की प्रार्थना, कामना करना आदि की वैदिक नियम है।
  • 17- तिरुअन्नामलय, अग्नितत्व शिंवलिंग एवं “तिरुपति बालाजी“, तथा “श्रीकालहस्ती वायुतत्व” स्वयंभू शिवालयों में असाध्य रोगों की मुक्ती के लिए दीपांकर,दीपअलङ्कार चिकित्सा का विधान भी बहुत ही स्वास्थ्यवर्द्धक उपाय है। इस प्रक्रिया में असाध्य रोग से पीड़ित रोगी के नाम से हजारों दीपक जलाए जाते हैं। यह बहुत ही गोपनीय प्रयोग है।
  • चमत्कारी विकार नाशक उपाय-एक बहुत ही प्राचीन ग्रन्थ”ज्योतिकल्पतरुग्रन्थ” में उल्लेख है कि 9 मंगलवार राहुकाल में (दुपहर 3 बजे से 4.30 के बीच) और 7 शुक्रवार राहुकाल में (सुबह 10.30 से 12 बजे के बीच) अमृतम फार्मा.द्वारा निर्मित “राहुकी तेल” के अपनी उम्र अनुसार किसी भी शिवमंदिर में दीपक जलाने से जटिल से जटिल असाध्य रोग मिट जाते हैं।
    • भगवान महावीर की यह सूक्ति “जिओ और जीने दो” हमें धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति कराकर स्वस्थ्य व शतायु बना सकता है। इसके लिए आहार का शुद्ध-पवित्र होना बहुत महत्वपूर्ण है।
  • जैन धर्म में आहार योग,मेल जरूरी है,इसके न मिलने पर जैन धर्माचार्य,साधुगण भोजन ग्रहण नहीं करते। यह बहुत ही जटिल प्रक्रिया है। “आहार जी” नामक एक जैन धर्म का यह तीर्थ टीकमगढ़ जिले में स्थित है,जहां अनेको सिद्ध जैन तपस्वियों की तपःस्थलीं है।

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