अब 17 मई का इंतज़ार ना करें

जीना यहाँ, मरना यहां 
इसके सिवा जाना कहाँ…..
जीवन आपका-फैसला आपका! 
कोरोना की ज्यादा चिन्ता से ह्रदय (हार्ट)
और इम्यून सिस्टम को खतरा.
खुशी देने वाले काम करें।
आयुर्वेदिक अमॄतम च्यवनप्राश रोज लेवें।
जानने के लिए नीचे दी गई लिंक क्लिक करें

कोरोना जल्दी जाने वाला नहीं है।

भविष्य में जीने के नियम, 
काम करने का तरीका
अपनी दिनचर्या समझकर, 
उसे बदलने को कोशिश करें।
सरकार जीवन भर या 24 घण्टे 
आपकी चौकीदारी या तीमारदारी नहीं करेगी।
अचानक  कोरोना चला जायेगा, यह
अब असम्भव है। सरकार रोज-रोज
लोकडॉउन नहीं करेगी। आगे इतनी
सख्ती भी नहीं दिखाएगी क्योंकि….
सरकार ने सबको इस वायरस के
बारे में अवगत कराकर आपसी
शारीरिक दूरियां यानि सोशल डिस्टैंसिंग, क्वारेंटाईन, साफ-सफाई, स्वच्छता,
अमृतम हैण्ड सेनिटाइजेशन और
आयुष मंत्रालय के निर्देश इत्यादि
देकर सब समझा दिया है।
क्लिक करके पढ़ें-
लोकडॉउन खुले या न खुले, लेकिन
सुरक्षा सहित सोच समझ कर घर से
निकले, व्यापार करें एवं काम पर जाये…
नियम, नीयत तथा नम्रतापूर्वक बिना
किसी तनाव या क्रोध के ही अपना
कार्य करे।
मनोबल-आत्मबल वृद्धि के लिए
चलते-फिरते, उठते-जागते और
खाते-पीते कभी भी महाकाल का
ध्यान, स्मरण करते हुए-
!!ॐ शम्भूतेजसे नमः शिवाय!!
मन्त्र गुनगुनाते रहें।
ईश्वर अपने साथ है, तो
डरने की क्या बात है। 
 यही विचार से बाबा विश्वनाथ हमारे विश्वास को बढ़ाकर रखेगा।
इसी विश्वास के बलबूते ही हम
व्याधि रहित रह सकते हैं।
अब हमे कोरोना वायरस के साथ
रहना-जीना सीखना पड़ेगा। ये संक्रमण
अब सम्पूर्ण सन्सार के अलावा भारत में
भी जड़ें जमा चुका है।
हमें खुद पूरी मजबूती से इस वायरस से लड़ना पड़ेगा, अपनी जीवन शैली में
बदलाव करके, अपनी इम्युनिटी पॉवर बढ़ाकर!
कोरोना की यह बीमारी विश्व में बड़े
बदलाव के लिए है। जरा भी लापरवाही बर्बादी का कारण बन सकती है।
आप नियमित भोजन के साथ
अमृतम च्यवनप्राश
का सेवन करके, अपनी इम्युनिटी
बढ़ाकर खुद को और अपने परिवार
को स्वस्थ्य-प्रसन्न रख सकते हैं।
स्वयं एवं फेमिली का भविष्य अब
आपके हाथ में है।
Amrutam Chawanprash
अपने माथे पर रोज चन्दन या त्रिपुण्ड लगाएं-त्रिदोष मिटायें….
चन्दन की जानकारी हेतु क्लिक करें
 
आ अब! लौट चलें, प्राचीनता की तरफ़…
स्वस्थ्य-तन्दरुस्त रहने के लिए देशवासियों को हजारों वर्ष पुरानी परम्परा, जीवन शैली
संस्कार और संस्कृतियों को अपनाना होगा।
जैसे-
■ स्वच्छता, सूतक
■ सप्ताहिक व्रत-उपवास,
■ समय पर नहाना,
■ स्नान के बाद ही अन्न ग्रहण करना,
■ समय पर सोना-जागना,
■ ध्यान-तप, योग-,प्राणायाम,
■ 7 दिन में एक बार एकांतवास
■ शिंवलिंग पर जल अर्पित करना,
■ शुद्ध पौष्टिक आहार का इस्तेमाल
■ सात्विक भोजन लेना,
■ शुद्ध मसालों का उपयोग और
■ अपने खानपान में दूध, दही,
शुध्द देशी घी की मात्रा बढ़ाना।
■ अपने भोजन में अमृतम आंवला मुरब्बाअमृतम गुलकन्दएलोवेरा, तुलसी,  गिलोय, कचनार का रस, त्रिकटु चूर्ण, शतावरी चूर्ण, काली मिर्च, लौंग, दालचीनी, लौंग, सौंठ या अदरक, हल्दी
आदि पर निर्भर होने की आदत बनाएं।
100 फीसदी आयुर्वेदिक 
५००० साल पूूरानी रेसिपी
प्रतिदिन नियम से अपने खाने के पहले निबाले में लगाकर ग्रहण करें।
एंटीबायोटिक दवाओं का ज्यादा लेना
देह की प्रतिरक्षा प्रणाली को तहस-नहस
कर देता है। इसके टोक्सिन, विषैले चंगुल
से निकलकर स्वयं को सुरक्षित, स्वस्थ्य करें।
चट्टो बिगाड़े अपनो घर...
भूल जाइए जीभ का जलजला,
मुहँ का स्वाद, बहुत तला-भुना
मसालेदार होटल वाला खाना।
अधिक तेल, मिर्च-,मसाले युक्त
फ़ास्ट फ़ूड, पिज़्ज़ा, बर्गर, कोल्ड ड्रिंक, कचौड़ी-समोसे, जलेबी-पकौड़ी, मैदा,
चाट आदि का चटोरापन को  अपने
दिमाग से हमेशा के लिए भूल जाएं, तो
शरीर स्वस्थ्य और जीवन बेहतर होगा।
अब बर्तन बदलकर अपने तन-वतन 
को बलवान बनाने का मौका है……
अपने बर्तनों को भी बदलने का प्रयास
करें। जलवर-सिल्वर यानि अल्युमिनियम
के बर्तन तथा स्टील, टेफ़लोन कोटिंग
आदि धातु पात्रों एवं प्लास्टिक के
दोने-पत्तल, कप को त्यागना होगा।
हमें मटके, मिट्टी के घड़े, पीतल, कांसा,
तांबा भारी बर्तनो एवं केले के पत्ते,
पलाश वृक्ष के पत्तो की पत्तल का
उपयोग करना हितकारी है, जो प्राकर्तिक रूप से वायरस अर्थात संक्रमण नाशक होते हैं और अंदरूनी अज्ञात बीमारियों को खत्म करते हैं।
क्या कहतें हैं वेद-पुराण…..
परिवर्तन सन्सार का नियम है….  
श्रीमद्भागवत गीता का 5500 वर्ष पुराना  यह सूत्र या विधान अब लागू हो गया है।
हमें भगवान श्रीकृष्ण के इस विधान-संविधान का पालन करना ही होगा।
भविष्य में कोरोना का क्लेश 4 से 5
साल तक जाने वाला नहीं दिखता।
यह एक तरह से न्युमोनिया संक्रमण
जैसा हो जाएगा। अनावश्यक दिखावे
के खर्चे भी खत्म होने से सभी का जीना
भी आसान हो जाएगा। ये सब नियम-धर्म अपनाएंगे, तभी हम जीवित रह पाएंगे।
जो नही बदले वो खत्म हो जाएंगे।
समझदार और व्यवहारिक बने और
इस बात को मान कर इन पर अमल
करना आरम्भ कर दें।
अपनी रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने हेतु
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