फेफड़ों/लंग्स की खराबी के कारण बढ़ रहीं है-हजारों बीमारियां। आलस्य की मुख्य वजह भी है कफदोष…

फेफड़ों /लंग्स की खराबी एवं कफ बढ़ने से होते है 45 से ज्यादा रोग। 

यह लेख काफी लंबा है। इसे आयुर्वेद के लगभग ८८ प्राचीन ग्रन्थ-शास्त्र, उपनिषदों से संकलित किया है।

अच्छे स्वास्थ्य के लिए सहायक है।

कफ-कोप का समय, कारण, लक्षण, कफ रोग की पहचान (सिम्टम्स) और उपचार, निदान।

सर्दी-खांसी, जुकाम एवं ५ प्रकार का फेफड़ों की कमजोरी, कफविकार ही कोरोना वायरस की वजह है-इस लेख में जाने 108 रोचक बातें

आयुर्वेद के जिन ग्रन्थों से इस ब्लॉग को संवारा है, उनके नाम यह हैं! सन्दर्भ ग्रन्थ…

@ चक्रधर सहिंता,

@ श्रीमद्भागवत

@ चरक सहिंता 1922

@ गुण रत्नमाला

@ नामरूपज्ञानं

@ निघण्टु रत्नाकर 1936

@ नेपाली निघण्टु 1966

@बिहार की वनस्पतियां 1955

@भारतीय वणौषधि बंगला 1-3 भाग

सन 1050 में प्रकाशित हस्त लिखित

@ मदन विनोद सन 1934

@ धन्वंतरि निघण्टु 1890 पूना

@ सुश्रुत सहिंता 1916

@ चिकित्सा चंद्रोदय

@ टीका महेश्वर 1896

@ अभिनव बूटी दर्पण 1947

@ अमरकोश 1914

@ ओषधि संग्रह मराठी 1927

@ वनस्पति परिचय

@ यूनानी द्रव्यगुण विज्ञान

@ संदिग्ध ब्यूटी चित्रावली

@ शंकर निघण्टु

@ वंगसेन सहिंता

@ भैषज्य सहिंता गुजराती

@ नारायण सहिंता केरल

@ आयुर्वेद मंत्र सहिंता

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¶ पावहारी बाबा विश्वनाथ की सन्तों की वाणी,

¶ बनारस के परम वेदाचार्य समाधिस्त श्री श्री बालकृष्णजी यति द्वारा रचित कठोउपनिषद,

¶अवधूत सन्त किनारामजी की अघोर वाणी तथा ¶आयुर्वेद के असँख्य ग्रन्थ आदि

अब आयुर्वेद की और देख रही दुनिया

● आयुर्वेद अतीत और भविष्य के मध्य ईश्वर का दिया हुआ वर्तमान का उपहार है।

दरअसल आयुर्वेद चिकित्सा के साथ-साथ जीवन पध्दति है।

● यह देह के सिस्टम अर्थात शरीर की कार्यप्रणाली को ठीक करता है, ताकि कोई भी बीमारी तन में पनपे ही नहीं।

● आयुर्वेद औषधियों की विशेषता यह भी है इसे बिना बीमारी के भी लिया जा सकता है।

● पूरे विश्व के लोग अब एलोपेथिक चिकित्सा से ऊब चुके हैं। ‎अंग्रेजी दवाओं के ‎दुष्प्रभावों ने अनेक नई बीमारियों को जन्म ‎दिया है ।

‎● भविष्य की चिकित्सा ‎एलोपेथी से नहीं, अमृतम आयुर्वेद पर निर्भर होगी ।

रोगों का काम खत्म करें- अमृतम…

● सभी नर-नारी पर भारी ..सारी‎ बीमारी दूर करने हेतु अलग-अलग ‎रोगों के लिए कई तरह की औषधियों तथा malt ‎(अवलेह) का निर्माण किया है।

क्या फेफड़ों की कथा। फेफड़ों को स्वस्थ्य रखने हेतु कफ का कंट्रोल भी हानिकारक है…

      • बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा की कफ सन्तुलित होने से फेफड़े एवं शरीर स्वस्थ्य रहता है।
      • कफ को सुखाना-मिटाना नहीं है। इसलिए कफ सम या सन्तुलित करें,
      • परिवर्तनशील नहीं है आयुर्वेद के सिद्धान्त…
        इस ब्लॉग में अच्छे स्वास्थ्य हेतु सिद्धान्त-सूत्रों का विस्तार से विवरण दिया जा रहा है।
      • ध्यायं रखें आयुर्वेद की दवाएं, नियम, अनुपान, सिद्धान्त, योग-घटक, फार्मूले आज तक नहीं बदले। यह सटीक हैं।
      • त्रिफला का फार्मूला आज भी लाखों वर्ष पुराना है। देह में कफ के असंतुलन से होती हैं तमाम समस्याएं और परेशानियां।

फेफड़ों को स्वस्थ्य रखने का प्राकृतिक तरीके…

१■~ फेफड़ों को स्वस्थ्य रखने के लिए सुबह जल्दी उठकर खुली हवा में गहरी श्वांस नाभि तक ले जाकर धीरे से छोड़े।

२■~ दिन भर में गहरी श्वांस लेकर त्यागने की आदत बनाएं।

३■~ पानी पीते समय श्वांस न लेवें।

४■~ मल विसर्जन के समय दांतों की बत्तीसी बांधकर रखें।

५■~ रात को सोते समय शरीर में पृरी सांस भरकर अहसास करें कि हमारी सम्पूर्ण नाड़ियों में श्वांस का आवागमन हो रहा है।

फेफड़ों की संरचना….

६■~ मानव शरीर में श्वांस की नली या श्वास नलिका (trachea) वह नली होती है, जो गले में स्थित स्वरयंत्र यानि लैरिंक्स) को फेफड़ों से जोड़ती है।

यही मुख से फेफड़ों तक हवा पहुँचाने के रास्ते का एक महत्वपूर्ण भाग है।

७■~ श्वासनली की आन्तरिक सतह पर कुछ विशेष कोशिकाओं की परत होती है जिनसे कफ-श्लेष्मा (mucus) रिसता रहता है।

८■~ प्राणवायु के साथ शरीर में प्रवेश हुए अधिकतर कीटाणु, जीवाणु, संक्रमण, धूल व अन्य हानिकारक कण इस श्लेष्मा से चिपक कर फँस जाते हैं और फेफड़ों तक नहीं पहुँच पाते।

९■~ अनेक अशुद्धताओं से मिश्रित यह श्लेष्मा या तो अनायास ही पी लिया जाता है,

जिस से ये पेट में पहुँच कर पाचनतंत्र या हाज़में के रसायनों द्वारा नष्ट कर दिया जाता है, या फिर बलगम बन कर मुंह में उभर आता है, जहाँ से इसे थूका या निग़ला जा सकता है।

१०■~ मनुष्यों में श्वासनली की भीतरी चौड़ाई 21 से 27 मिलीमीटर और लम्बाई 10 से 16 सेन्टीमीटर तक होती है।

यह स्वरग्रंथि से शुरू हो कर नीचे फेफड़ों की तरफ आती है और फिर दो नालियों में बट जाती है जिन्हें श्वस्नियाँ (ब्रोंकाई) कहते हैं

११■~ दाईं श्वसनी दाएँ फेफड़ें में सांस ले जाती है और बाईं श्वसनी बाएँ फेफड़ें में।

श्वासनली को अकड़कर सांस के लिए खुला रखने के लिए श्वासनली के अंदर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर 25 से 20 उपस्थि (कार्टिलिज) के बने छल्ले होते हैं।

इन सब छल्लों से जुड़ी हुई एक मांसपेशी होती है।

१२■~ जब मनुष्य ख़ांसी करता है तो यह मांसपेशी सिकुड़ जाती है जिससे यह छल्ले भी सिकुड़ जाते हैं और श्वासनली थोड़ी तंग हो जाती है जाती है।

१३■~ श्वासनली के सिकुड़ने से गुज़रने वाली हवा का दबाव और गति ठीक उसी तरह से बढ़ जाती है

जिस तरह अगर किसी पानी की नली को सिकोड़ा जाए, तो पानी ज़्यादा ज़ोर से आता है।

अगर कोई बलग़म या किसी चीज़ के कण श्वासनली में चिपके या फंसे हों तो वो हवा के इस तेज़ बहाव से मुंह की तरफ उड़ते हुए चले जाते हैं।

१४■~ ज़ुक़ाम या कोई ग़लत पदार्थ श्वासनली में जाने की हालत में ख़ांसने की इसी व्यवस्था से श्वासनली स्वयं को साफ़ कर लेती है।

१५■~ आयुर्वेद के मुताबिक मनुष्य के फेफड़ों में लगभग 6000 सूक्ष्म छिद्र होते हैं और इनमें साँसों का पहुंचना अति आवश्यक है,

लेकिन अधिकांश लोगों के 2 से तीन हजार छेदों तक ही श्वांस पहुंच पाती है। आलस्य, सुस्ती, चिड़चिड़ापन का मूल कारण यही है।

नींद न आने का भी ज्यादातर कारण यही है।

आध्यात्मिक पक्ष…

१६■~ फेफड़ों को स्वस्थ्य साफ रखने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता में कहा है कि सांस-सांस में ईश्वर का स्मरण होना चाहिए।

१७■~ गुरुग्रन्थ साहिब में भी श्री सदगुरू गुरूनानक जी ने यही संदेश दिया है..क्लिक कर देखें-सुने वीडियो-

https://youtu.be/-c9eaf4w5rw

१८■~ फेफड़े ही मनुष्य को वायु प्रवाह प्रदान करते हैं, जो मानव भाषण सहित मुखर ध्वनियों को संभव बनाता है।

१९■~ दमा, श्वांस, अस्थमा, कफ-विकार, सर्दी-खांसी की तकलीफ भी फेफड़ों में सम्पूर्ण सांस या वायु न जा पाने की वजह से होती है।

२०■~ आयुर्वेद में फेफड़ों को फुप्फुस तथा अंग्रेजी में लंग्स कहते हैं।

२१■~ हमारे शरीर का मुख्य अंग है फेफड़े ही हैं। यह वक्ष स्थल के समीप प्राणियों में एक जोडे़ के रूप मे उपस्थित होता है।

फेफड़े की दीवार असंख्य गुहिकाओं की उपस्थिति के कारण स्पंजी होती है। यह वक्ष गुहा में स्थित होता है। फेफड़ों से ही खून की शुद्धि होती है।

२२■~ प्रत्येक फेफड़ा में एक फुफ्फुसीय धमनी ह्रदय से अशुद्ध रक्त लाकर फेफड़े में रक्त का शुद्धीकरण करती है।

रक्त में ऑक्सीजन का मिश्रण होता है।

२३■~ लंग्स यानि फेफडो़ं का मुख्य काम वातावरण से प्राणवायु लेकर उसे रक्त परिसंचरण मे प्रवाहित (मिलाना) करना

और रक्त से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर उसे वातावरण में छोड़ना है।

२४■~ गैसों का यह विनिमय असंख्य छोटे छोटे पतली-दीवारों वाली वायु पुटिकाओं को अल्वियोली कहते हैं।

शुद्ध रक्त फुफ्फुसीय शिरा द्वारा हृदय में पहुँचता है, जहां से यह फिर से शरीर के विभिन्न अंगों मे पम्प किया जाता है।

२५■~ मनुष्य के दो फेफड़े होते हैं, एक दायां फेफड़ा और एक बायां फेफड़ा। वे भीतर स्थित हैं।

दायां फेफड़ा बाएं से बड़ा होता है। दाहिने फेफड़े में तीन लोब होते हैं और बाएं में दो होते हैं।

फेफड़ों की खराबी के कारण

२६■~ फेफड़ों के ऊतक संक्रमण की वजह से दूषित होने पर श्वसन रोगों सहित, निमोनिया और फेफड़ों के कैंसर कादि दिक्कतें खड़ी करते हैं।

२७■~ अस्थमा से भी ज्यादा खतरनाक कफ रोग को वर्तमान में क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) कहते हैं।

यह कफ के असंतुलन से होती है।

२८■~ भयंकर प्रदूषण, दूषित हवा और धूम्रपान या हानिकारक पदार्थों के संपर्क में आने से यह कफ रोग बेशुमार बढ़ रहे हैं।

श्वांस कोयले की धूल , एस्बेस्टस फाइबर और क्रिस्टलीय सिलिका धूल जैसे पदार्थों के कारण कई फेफड़े के रोग हो सकते हैं।

२९■~ यह सब परेशानी गहरी श्वांस न लेने के कारण फेफड़ों की बीमारी बढ़ रही हैं

३०■~ फेफड़ों से सीओपीडी रोग में मरीज की एनर्जी लेबल कम होने लगता है।

वह कुछ देर 100-50 कदम चलकर ही थक जाता है।

३१■~ सांस नली में नाक से फेफड़े के बीच सूजन के कारण ऑक्सीजन की सप्लाई घट जाती है।

इसका असर सभी अंगों पर भी पड़ता है। पाचनतंत्र बिगड़कर कब्ज होने लगती है। भोजन समय पर नहीं पचता।

सीओपीडी/COPD के लक्षण Symptoms

३२■~ खासकर शारीरिक श्रम करने पर, सांस लेने में घरघराहट और सीने में जकड़न होना आदि इसके लक्षण हैं।

३३■~ जिन लोगों को दो महीने तक लगातार बलगम की तकलीफ रहती है और खांसी के सामान्य सिरप और दवाएं असर नहीं करती हैं।

अधिक बलगम वाली खांसी तथा सांस की तकलीफ की परेशानी बनी रहती है।

३४■~ कोरोना संक्रमण से वे लोग ज्यादा पीड़ित हुए, जिनकी सांस फेफड़ों तक नहीं पहुंच पाती थी।

आज कोरोना से प्रभावित लोगों के भी फेफड़े स्वस्थ्य नहीं हैं।

३५■~ आने वाले भविष्य में जिन लोगों को गहरी श्वांस लेने की आदत नहीं है, वे भयंकर रूप से बीमार पड़कर डिप्रेशन में जा सकते हैं।

क्योंकि फेफड़ों में जब पर्याप्त हवा नहीं जाती, तो अनेक संक्रमण, फंगल इंफेक्शन होने लगते हैं।

३६■~ अभी-अभी कुछ चिकित्सा वैज्ञानिकों ने एस्परजिलियस लेंटुलस पैथोजन नामक फेफड़ों के फंगल की खोज की है।

इस फंगस पर किसी तरह की कोई भी एलोपैथी दवा काम नहीं कर रही है। विश्व में पहली बार 2005 में इसका पता लगा था।

३७■~ भारत में यह फेफड़ों के विकार बहुत तेजी से फैल सकता है। इससे बच्चे सर्वाधिक प्रभावित होंगे।

३८■~ WHO के अनुसार फेफड़ों की इस बीमारी से मरने वालों का आंकड़ा 15 लाख के करीब जा चुका है।

३९■~ से कवक संक्रमण बताया जा रहा है। यह बीमारी फ़ंजाई पर्यावरण से हो रही है।

अब जाने आयुर्वेद के अनुसार …

४०■~ फेफड़ों की खराबी या संक्रमण की वजह से 5 तरह के कफ रोग हो जाते हैं।

फेफड़ों की वजह से होने वाले कफरोग के 16 लक्षणों को जानकर हो जाएंगे हैरान.…

४१■~ स्वस्थ्य रहने के लिए कुछ मात्रा में कफ भी अत्यन्त आवश्यक है।

आयुर्वेदक ग्रन्थ धन्वन्तरि, वनसेन सहिंता में वर्णन है कि-कफ (Phlegm) के क्षय होने से अर्थात कफ सूखने या कमी रहने से शरीर में में रूखापन आने लगता है।

४२■~ देह में जलन का अनुभव होता है।

४३■~ सिर सूना, खालीपन का अनुभव होता है।

४४■~ कितना ही श्रम या काम करने के बाद भी

४५■~ ऐसा प्रतीत होता है कि आज हमने कोई काम ही नहीं किया है। इस समस्या से पीड़ित दुनिया में 31 फीसदी से भी अधिक पीड़ित पाये जाते हैं।

अच्छी बात यह है कि इस तरह की परेशानी झूझने वाले अधिकांश सफल लोग ही होते हैं।

४६■~ कफ सूखने या ज्यादा कमी हो जाने से देह की सन्धियाँ अर्थात जोड़ों में ढ़ीलापन आने लगता है।

अकस्मात दर्द एवं चमक सी बनी रहती है।

४७■~ कफ क्षय वाले लोगों को प्यास अधिक लगती है अथवा पानी अधिक पीते हैं। शरीर दुर्बल, इकहरा , सुन्दर तथा आकर्षक होता है।

फेफड़े अस्वस्थ्य होने से ही आलस्य रहता है..

४८■~नींद जल्दी नहीं आती या फिर कम सोने की आदत होती है।

इसलिए ध्यान देवें कि जिनकी देह ज्यादा रूखी हो, वे कफनाशक यानि कफ को सूखाने वाली अंग्रेजी दवाओं का सेवन कम ही करें।

४९■~ फेफड़ों की खराबी हो, तो ऐसे लोगों को हमेशा रसायनिक युक्त मेडिसिन से परहेज करना हितकारी होता है।

केवल देशी, घरेलू या प्राकृतिक चिकित्सा करें।

५०■~ ज्योतिष के अनुसार चन्द्रमा कमजोर होने से कफ खांसी यह तकलीफ चन्द्रमा के नक्षत्र रोहिणी, हस्त एवं श्रवण में जन्मे जातकों में अधिक होने की सम्भावना रहती है।

५१■~ अमृतम लोजेन्ज माल्ट आयुर्वेद की एक विशेष विधि से निर्मित किया है, जो कफनाशक एवं कफवर्द्धक दोनों ही है

अर्थात तन्दरुस्त देह के लिए कफ की जितनी जरूरत है उतना बनाये रखता है। यह कफ को पूरी तरह न, तो सुखाता है और न ही ज्यादा कफ निर्मित होने देता है।

५२■~ त्रिदोष के आधार पर ही शरीर की प्रकृति तय की जाती है। तीन दोषों में से एक भी दोष विषम होने पर शरीर में अनेक रोगों का खतरा मंडराने लगता है।

कफ से पीड़ित मरीजों को क्या-क्या सावधानी बरतना चाहिए…..

५३■~ त्रिदोषों में एक कफ (Phlegm) रोग सूखा
हो या गीला हो, इसके कारण ही देह में
संक्रमण फैलता है।
भविष्य में लोगों ने यदि रोगों का कारण

५४■~ वात-पित्त कफ के संतुलन पर ध्यान नहीं दिया, तो सन्सार में अभी कोरोना वायरस जैसी महामारी और फैलेंगी।

याद रखें हमें तीनों त्रिदोषों को मिटाना नहीं है-केवल सम यानि सन्तुलित करना है।

५५■~ गले में बहुत दिनों तक कफ का बना रहना खांसी पैदा करता है।

गीले कफ में तो खांसी होती ही है, लेकिन कफ के सूख जाने पर श्वास नलिकाओं-नाड़ियों में सुकड़न-संकुचन होने से सांस लेने में दिक्कत आती है।

यह और भी खतरनाक हो सकता है।

कफ-लाइफ को रफ, टफ बना देता है…
५६■~इस ब्लॉग में जानेंगे की कफ की मात्रा कम या कमजोर होने से देह में अनेक विकार उत्पन्न होने लगते हैं।

वात, पित्त, कफ की अधिकता या क्षय होने से इम्युनिटी क्षीण यानि रोगप्रतिरोधक क्षमता कमजोरहो जाती है। फिर….

चाहें कर लो लाख उपाय …..

५७■~ शरीर सुधरता नहीं है। अब आने वाले वक्त में आयुर्वेद की अमृतम ओषधियाँ, वैदिक परम्पराएं, सात्विक भोजन, सयंमित सुख-सुविधाएं, सद्चरित्रता, एकान्त यानि क्वारेंटाईन,

योग और योगेश्वर महादेव का ध्यान, भजन ही जीवन को पार लगा सकता हैं। अतः स्वस्थ्य रहने और जीने के लिए आपको इस पर विश्वास करना ही पड़ेगा।

५८■~बहुत प्राचीन ग्रन्थ शंकरनिघण्टु में लिखा है-
लम्बे समय से सूखी खांसी है, तो तुरन्त कफ ढ़ीला करने वाली ओषधियाँ लेवें।

५९■~कफ रोगों का काम खत्म….अमृतम की अधिकांश ओषधियाँ हजारों साल पुराने चिकित्सा ग्रन्थों का अध्ययन,

अनुसंधान करके उचित हितकारी घटक-द्रव्यों का शास्त्रमत विधि अनुसार तैयार किया जाता है।

आयुर्वेदिक शास्त्रों में कफ-कोप काल का भी समय बताया गया है-

६०■~ कोरोना का एक कारण कफ सूखना भी है-
आयुर्वेद के अनुरुप कफ का स्वरूप-
सफेद, मटमैला, चिकन, घिलमिला-सा शीतल, तमोगुण युक्त और स्वाद यानि मधुर होता है, विदग्ध (पुराना, तप हुआ) होने से खारी हो जाता है।

कफ नाम, स्थान और कर्म-भेदों से 5 प्रकार कहा गया है-)।

कफ के तन में रहने के स्थान…

●कफ शरीर के आमाशय में क्लेदन कफ
●ह्रदय में अवलम्बन कफ

●कण्ठ (गले) में रसन कफ
●सिर में स्नेहन कफ़ यह शरीर की सभी
इंद्रियों को चिकनाई देकर तृप्त करता है।
एक प्रकार से स्नेहन कफ देह में चिकनाहट यानि लुब्रिकेंट बनाये रखता है।
●संधियों अर्थात शरीर के जोड़ों में
में श्लेष्मण कफ रहता है, जो सभी संधियों को जोड़कर रखता है। फ्रेक्चर होने पर श्लेष्मण कफ ही टूटी हड्डीयों को जोड़ने में मदद करता है।
६१■~ मतलब साफ है-जिन लोगों का कफ पूरी तरह सुख जाता है, उनकी हड्डियां कमजोर होकर चटकने लगती हैं

६२■~ इन सभी कफ के शरीर में महत्वपूर्ण कार्य भी हैं।इसकी जानकारी अगले किसी लेख में विस्तार से दी जावेगी। पढ़ते रहें अमॄतम पत्रिका
www.amrutampatrika.com

कफ-कोप के सोलह लक्षण….

【१】बिना भोजन के ही पेट भरा सा लगे।
【२】नींद, आलस्य, सुस्ती अधिक आये
【३】शरीर में अत्यधिक भारीपन हो।
【४】मुहँ का स्वाद मीठा से लगे।
【५】मुख से बार-बार पानी गिरे
【६】हर पल-हर क्षण कफ निकले
【७】ज्यादा डकार आये
【८】पखाना बहुत अधिक हो
【९】गला कफ से ल्हिसा सा मालूम हो।
【१०】भूख बहुत कम लगती हो।
【११】खाना खाते ही मन उचाट हो।

【१२】मन्दाग्नि से भोजन पचता न हो।

【१३】शरीर सफेद सा होने लगे।

【१४】मल-मूत्र, नेत्रों में सफेदी आने लगे।

【१५】सदैव जाड़ा/ठंडक का एहसास हो।

【१६】गाढ़ा दस्त वह भी अधिक होता हो।

६३■~ कोरोना शुष्क यानी सूखा कफ विकार है।
बदलते मौसम के दौरान साल में 2 से 3 बार सर्दी-जुकाम, कफ-कास, खांसी, गला रुन्धना, बार-बार छींक आना, खरास,

कफ ज्यादा मात्रा में बनना आदि समस्याएं सभी के समक्ष साल में सात दिन के लिए उत्पन्न होती है।

६४■~ आयुर्वेदिक शरीर क्रिया विज्ञान, धन्वंतरि निघण्टु, वंगसेन सहिंता, शंकर निघण्टु में लिखा है कि-

६५■~ जुकाम जैसे रोग शरीर की शुद्धता के लिए बहुत जरूरी है।

६६■~ फेफड़ों का यह संक्रमण श्वास-नलिकाओं को साफ कर तन-मन को क्रियाशील बनाने हेतु कुदरत की एक व्यवस्था है।

सर्दी-खांसी की यह तकलीफ 5 से 7 दिन तक रहकर अपने आप ठीक हो जाती है।

६७■~ यह सामान्य सर्दी-जुकाम, खाँसी-हल्दी, दालचीनी, कालीमिर्च, अदरक, जीरा, मुलेठी, मुनक्का, तुलसी का काढ़ा पीने और घरेलू इलाज से ठीक हो सकता है।

अंग्रेजी चिकित्सा पध्दति में एंटीबायटिक, एंटीएलर्जी, एंटीकोल्ड दवाईयां कफ को सुखाने के लिए देते हैं

६८■~ लेकिन ये पहले ही सूखा हुआ कफ है तो इस पर कोई फायदा नहीं होता, बल्कि आदमी अस्थमा, दमा, श्वास की परेशानियों से घिर जाता है।

इम्युनिटी घटने लगती है।

६९■~ स्वस्थ्य शरीर के लिए कफ ढ़ीला होकर निकलना अत्यन्त आवश्यक है।

कफ कोशिकाओं नाड़ियों की गन्दगी है इसका निकलना बेहद जरूरी होता है।

७०■~ आयुर्वेद ग्रन्थों में कफनाशक अर्थात कफ को नष्ट करने वाली और कफवर्धक यानि कफ को बढाने वाली दो तरह की ओषधियों का उल्लेख मिलता है।

७१■~ जिन मरीजों की खांसी 7 दिन बाद भी बन्द नहीं हो रही अथवा कफ़ निकलना रुक नहीं रहा हो, उन्हें कफनाशक दवा मुफीद रहती है।

७२■~ ठसके वाली खांसी, जिसमें कफ नहीं निकलता, गले में दर्द एवं खराश रहती है।

दमा-अस्थमा से परेशान हों ऐसे रोगियों को कफवर्द्धक यानी कफ बढ़ाने वाली दवा या काढ़ा लेना लाभकारी रहता है।

७३■~ दमा, अस्थमा या कोरोना से पीड़ित रोगी को सांस लेने में दिक्कत होती है,

क्योंकि अधिक एलोपेथी मेडिसिन लेने से कफ पूरी तरह सुख चुका होता है।

जिससे फेफड़ों या लंग्स में प्राणवायु यानि ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती है।

इस कारण शरीर शिथिल, निढाल होकर आलस्य, सुस्ती से घिरने लगता है।

कोई काम करने की इच्छा खत्म होने लगती है और बेचैनी, घबराहट, चिड़चिड़ाहट तथा डिप्रेशन महसूस करने लगता है।

कफ कोप का काल (समय)…

# बचपन में 3 वर्ष की उम्र तक
# शीतकाल यानि ठण्ड के दिनों में।
# दिन और रात के पहले प्रहर में
(अर्थात सुबह उठते ही, रात्रि में
सूर्यास्त के बाद)
# भोजन करने के तुरन्त बाद।
# शीतल क्षेत्रों में रहने से
# वृद्ध अवस्था में कफ-कोप रहता है।
श्री रावण रचित ग्रन्थ-अर्कप्रकाश और मन्त्रमहोदधि में कहा गया है कि कफ काल के समय महारोग नाशक महाकाल मन्त्र
!!ॐ शम्भूतेजसे नमः!! और

!!महामृत्युंजय मन्त्र!!
की एक माला करने से कफ का दुष्प्रभाव
तुरन्त दूर हो जाता है।
कफ-कोप 10 के कारण क्या हैं…
महान आयुर्वेद वैज्ञानिक महर्षि सुश्रुत
तथा हारीत के अनुसार
[१] दिन में अधिक सोना
[२] बिना मेहनत के घर बैठे रहना
[३] अधिक आलस्य में समय व्यतीत करना
[४] मीठा-खट्टा एवं नमकीन का अधिक सेवन
[५] चावल, उड़द, अरहर की दाल, तिल आदि
[६] रात्रि में दूध-दही, चावल की खिचड़ी

[७] सूर्यास्त के बाद ईख यानी गन्ने का रस पीना

[८] जल-जीवों का माँस,

[९] सिंघाड़े, ककड़ी, अमरूद , गाजरऔऱ लताओं से उत्पन्न फल सुखिनः खाँसी में लाभकारी होते हैं

लेकिन गीली, कफ वाले कास में नुकसान पहुंचते हैं।

[१०] शीतल यानि ठंडे, चिकने यानि अधिक तेल या घी युक्त, बर्फमलाई, मख्खन, भारी, अभिष्यंदी अर्थात रिसनेवाला, रेचक पदार्थो का अधिक उपयोग करना।

कायम चूर्ण जैसे दस्तावर, रेचक एवं पेट साफ करने वाले सभी उत्पादों का अधिक मात्रा में सेवन करना कफ पीड़ितों को अत्यधिक हानिकारक बताया है।

आँखों के रोग मोतियाबिंद को अभिष्यंद
कहा जाता है।

कफ को सन्तुलित-सम कैसे करें….

७४■~ अमॄतम फार्मास्युटिकल्स, ग्वालियर

द्वारा बनाये गए लोजेन्ज माल्ट का

नियमित सेवन देह में विषम कफ की मात्रा

को सम बनाने में सहायक है।

लोजेन्ज माल्ट (LOZENGE malt)

७५■~ गीले-ढ़ीले कफ को गाढ़ा कर बाहर निकालता है

और सूखी खांसी या कफ से पीड़ित मरीज की आंतों और फेफड़ों में जमे या चिपके कफ को ढ़ीला कर मल विजर्सन द्वारा साफ कर देता है।

७६■~ तन में आवश्यकता अनुसार कफ की मात्रा

बनाये रखने में लोजेन्ज माल्ट अत्यन्त हितकारी है।

७७■~ यह श्वांस नलिकाओं को कांच सा चमका देता है।

तीन माह तक निरन्तर लेने से शरीर का कायाकल्प कर देता है।

७८■~ कफवर्धक पदार्थो की सूची (लिस्ट) कफवर्द्धक का अर्थ होता है कफ को बढ़ाना।

जिन लोगों को कफ ज्यादा बनता हो या निकलता हो, उन्हें तत्काल नीचे लिखी चीजों का इस्तेमाल रोक देना चाहिए-

@ घी, दूध, लस्सी, पनीर, दही, अंडा रात्रि में अधिक लेने से कफ की वृद्धि करते हैं।

@ कच्चे आलू, तुअर, उडद की दाल।

@ अरबी, शकरकन्दी, फूलगोभी, बंदगोभी,

शिमला मिर्च, टमाटर आदि गीली खांसी

वालो को नहीं लेना चाहिए।

@ सुबह खाली पेट संतरा, सेब, केला,

ग्लूकोज, फेफड़ों में कफ की वृद्धि करते हैं।

@ खाने और सोकर उठने के बाद चाय के साथ बिस्कुट, ब्रेड तथा नमकीन न लेवें।

@ गर्म के साथ ठंडा और ठन्डे के साथ

गर्म चीजों के खाने में 2 से 3 घण्टे का

अन्तराल (गेप) रखें।

७९■~ निम्नलिखित वस्तुएं कफनाशक अर्थात

कफ को सुखाती हैं, इन्हें अधिक लेने से

जोड़ों में लुब्रीकेंट या ग्रीस सूखने लगता है।

मधुमेह, हृदय रोगी, कोलेस्ट्रॉल और बीपी

हाई से परेशान तथा नेत्र रोगियों को

बहुत कम क्वान्टिटी में ही लेना चाहिए।

 नीम, हल्दी, तुलसी, काली मिर्च।

 शिलाजीत, मुलेहठी, आमलकी रसायन,

 अदरक, अधिक मूंग की दाल लेने से कफ सूखने लगता है।

 जौ की रोटी, घीया, तोरई, जीरा, चीकू,

सेंधा नमक, मीठा अनार, नारियल पानी।

इन पदार्थों को आयुर्वेदिक ग्रन्थ निघण्टु

में कफ को बांधने वाला बताया है।

फेफड़ों, लंग्स स्वस्थ्य रखने का घरेलू तरीका

८०■~ यह घरेलू उपाय इम्युनिटी बढ़ाने तथा कफ को सामान्य कर सभी संक्रमणों को जड़ से मिटा देता है तथा तन पूर्णतः निरोगी हो जाता है।

छोटी हरड़मुनक्का दोनों 8-8 नग

त्रिकटु, वासा अडूसा, हंसराज, जीरा,

अजवायन, सौंफ, कालीमिर्ची,

सेंधानमक, धनिया, गिलोय, तुलसी,

दालचीनी, सौंठ, कायफल, आंवला,

काकड़ासिंगी, नागरमोथा, अतीस

तेजपात, इलायची और मुलेठी

८१■~ सभी 1-1 ग्राम लेेकर करीब 400 ML पानी में गलाकर 24 घण्टे बाद इतना उबाले कि करीब लगभग 100 ग्राम काढ़ा रह जाए।

८२■~ फिर इसमें 25 ग्राम गुड़ डालकर कुछ देर तक और गर्म करके छान लेवें।

यह खुराक परिवार के सभी सदस्यों को 2 से 3 चम्मच सुबह खाली पेट और रात में खाने से पहले लेवें।

८३■~ दिन में तीन बार 1 से 2 चम्मच दूध के साथ लोजेन्ज माल्ट सेवन करें।

८४■~ यह श्वांस नलिकाओं को कांच सा चमका देता है। तीन माह तक निरन्तर लेने से शरीर का कायाकल्प कर देता है।

८५■~ कुछ समय वेद-पुराणों का स्वाध्याय कर स्वास्थ्य पर ध्यान देवें ऐसा न हो कि हमारी लापरवाही फेफड़ों को किसी लफड़े में डाल दे। फिर कहेंगे कि-

अब पछताय होत क्या, जब चिड़िया चुग गयी खेत।

८६■~ जिंदादिली से जीने का एक फ्री का फंडा

यह भी है! कभी आजमाकर देखें-

शरीर की अपनी भाषा है।

दिव्य ओषधियों के साथ-साथ बड़ा दिल

रखने से स्वस्थ्य रहना सम्भव है।

पीछे की और लौटकर अपने स्मृति पटल

पर पुरानी बातें लाने से प्रतिक्रमण प्रक्रिया

पीड़ित होने लगती है। तनाव का मूल कारण

पूर्व की घटनाएं होती हैं। यही रोगों की उत्पत्ति में सहायक है-

८७■~ छोड़िए गठरी अतीत की….

इसलिए कम पढ़े-लिखे पुराने लोग कहते थे

बीतीं ताहिं बिसार दे, आगे की सुधि लेय।

जो बनि आवै सहज में, ताही में चित देय॥

ताही में चित देइ, बात जोई बनि आवै।

दुर्जन हंसे न कोइ, चित्त मैं खता न पावै॥

कह ‘गिरिधर कविराय’, यहै करु मन परतीती।

आगे को सुख समुझि, होइ बीती सो बीती॥
अर्थात-
८८■~ पुरानी यादों को भूलकर आगे बढ़ने का प्रयास प्रत्येक पुरुष के लिए प्रथम कार्य है,

जो बीत गया-सो रीत गया उसे फॉर्मेट कर

आगे की सोचो। वर्तमान में जो कार्य प्रसन्न मन और सरलतापूर्वक करेंगे, तो जग-हँसाई से बचकर अपने कार्य को संपन्न कर पाओगे

इसलिए गिरिधर कविराय कहते हैं कि

बस आगे का देखो, पीछे जो गया उसे

बीत जाने दो।

कफ के प्रकार…लक्षण

८९■~ कफ ज्वर में बदन जकड़ा हुआ प्रतीत होता है। सफेद फुंसी हो सकती हैं।

कभी सर्दी, कभी गर्मी लगना, बार-बार रोयें खड़े होना। जी मिचलाना, निरन्तर जुकाम, नाक से पानी बहना, देह में भयंकर पीड़ा होना आदि।

कोरोना संक्रमण के लक्षण कफ ज्वार से बहुत मेल खाते हैं।

९०■~ वात-पित्त ज्वर के लक्षण..प्यास अधिक लगना, आंखों के समक्ष अंधेरा छह जाना, जोड़ों में असहनीय दर्द होना, नींद न आना

९१■~ वात-कफ ज्वर के लक्षण…मल-मूत्र रुक जाना, जम्हाई, आलस्य आना,

सिर में भयंकर दर्द रहना,

शरीर में कम्पन्न, व्याकुलता,

खांसने में कठोरता होना,

पित्त कफ ज्वर-

मुहँ में कड़वापन से लगना,

बार-बार गंदा कफ आना,

मुख में बदबू रहना,

बेहोशी सी छाना,

कण्ठ सुखना,

आंखों में जलन होना,

धुंधला सा दिखना,

शरीर का तापमान कम, ज्यादा होना।

आदि कफ रोगों के लक्षण हैं।

९२■~ अगले लेख में जाने-

वात-पित्त-कफ, विषम हो, तो देह में

अनेक तरह शारीरिक दोष पैदा होते हैं।

मानसिक दोष- रज और तम, मन का दोष है।

कफनाशक रस- कड़वा, कसैला और चरपरा ये तीनो रस कफ को सन्तुलित करते हैं।

हल्के गर्म प्रभृति विपरीत गुण वाले द्रव्य-घटक, पदार्थों से कफ सम रहता है।

शरीर फुर्तीला होकर दिमाग तेजी से काम करता है।

अपनी देह पर भी दृष्टि डालें….अमृतम लोजेन्ज माल्ट शरीर के सात आशय की मरम्मत कर ठीक करता है।

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९३■~ जैसे- कफाशय इसे कफ की थैली भी कहते हैं। कफ इसी में रहता है। यही से शरीर के जोड़ों में रस

लुब्रीकेंट भेजकर जोड़ों में चिकनापन बनाये रखता है, जिससे जोड़ों में दर्द या सूजन नहीं होती।

कफ की थैली सूख जाने से तन के अनेक हिस्सों का पतन होना शुरू हो जाता है।

९४■~ आमाशय क्या है–नाभि से स्तनों तक की दूरी वाला बीच का भाग अमाशय कहलाता है।

अग्नाशय (पित्ताशय)
पवनाशय (वाताशय)
मलाशय (पक्वाशय)
मूत्राशय (वस्ति)
रक्ताशय और

९५■~ महिलाओं के तीन अलग से है।

दो स्तनाशय एवं एक गर्भाशय।

अपने शरीर को भी समझना जरूरी है…

इस ज्ञान से हम अनेकों व्याधियों से

बचे रह सकते हैं।

९६■~ मनुष्य के वक्षस्थल अर्थात छाती में कफाशय, इससे कुछ नीचे आमाशय है।

९७■~ नाभि के ऊपर बाईं तरफ (लेफ्ट साइड)

में अग्नाशय (पित्ताशय) होता है।

९८■~ अग्नि-आशय के ऊपर तिल या क्लोम है,

यही प्यास का स्थान है। इसी के नीचे

की तरफ पक्वाशय यानि मलाशय स्थित है

और मलाशय के नीचे मूत्राशय रहता है।

जीव-तुल्य मतलब जीवित रखने के लिए

९९■~ रक्त (खून) का स्थान रक्ताशय, उर अर्थात छाती में है, इसे प्लीहा, तिल्ली, जिगर कहा जाता है।

यह शरीर के दाहिनी तरफ (राइट साइड) में होता है।

१००■~ यह विषय बहुत ही विस्तारित है। हमारे शरीर में 210 सन्धि सात त्वचा, 900 स्नायु, 300 अस्थियां, 108 मर्म बाबा नीम करोली बाबा के अनुसार जो 108 बार ॐ नमःशिवाय के जाप से सिद्ध होने लगते हैं।

https://amrutampatrika.com/omamrutam/**महादेव ने विचित्र बनाया मानव शरीर…**

सात तरह के मैल, सात तरह की मांस, कला, सप्तावस्था, सप्तधातु, सात प्रकार के विकार,।

700 शिराएँ, सात मानसिक सिद्धिया, सात स्वरों से शरीर का सम्बन्ध, चौबीस धमनिया यही हँसने, बोलने, रोने, गाने भूख का एहसास, शब्द, रस, स्वाद का अनुभव कराती हैं।

500 मांसपेशियां,16 कण्डरा, दस छिद्र,तीन शारीरिक दोष, तीन मानसिक दोष, दो नितम्ब, भूतपंचक, पञ्चतन्मात्रा, एकादश इंद्रियां, त्रिविध अहंकार, तन के स्वरस आदि के बारे में आगे के ब्लॉग में बताया जाएगा।

१०१■~ जीवन का सार पाने औरजीवन के पार जाने के लिए स्वस्थ्य शरीर ही मूल आधार है।

१०२■~ पृथ्वी’ के कारण कफ दोष में स्थिरता और भारीपन और ‘जल’ के कारण तैलीय और चिकनाई वाले गुण होते हैं। यह दोष शरीर की मजबूती और इम्युनिटी क्षमता बढ़ाने में सहायक है।

१०३■~कफ दोष का शरीर में मुख्य स्थान पेट और छाती हैं। कफ शरीर को पोषण देने के अलावा बाकी दोनों दोषों (वात और पित्त) को भी नियंत्रित करता है।

स्वास्थ्य का सम्पूर्ण शास्त्रोक्त ज्ञान पाने के लिए पढ़ें अमृतम पत्रिका।

Ayurvedic Tips For Hair Regrowth: फेफड़ों की खराबी से सिर से उड़ गए हैं बाल तो उपयोग करें-कुन्तल केयर कॉम्बो।

१०४■~ भविष्य में जिनके लंग्स स्वस्थ्य हैं। हेयर की केयर वही महिलाएं कर पाएँगी, जिनकी खोपड़ी की लेयर मजबूत होगी।

यह फेयर बात जिसकी बुद्धि में होगी! केश उनके ही लम्बे-काले-निराले एवं खूबसूरत होंगे। यह फंडा क्लियर है।

इन आयुर्वेदिक नुस्खों से भी होगा फायदा, घरेलू-पारंपरिक और आसान विधियां…

रोज उपयोगी 5 चमत्कारी उत्पाद…

अपनी तासीर के मुताबिक निम्नलिखित क्वाथ

आपको स्वस्थ्य और सुखी बनाने में सदा सहयोग करेंगे।

【1】कफ की क्वाथ 【कफविनाश】

【2】वात की क्वाथ 【वातरोग नाशक】

【3】पित्त की क्वाथ 【पित्तदोष सन्तुलित करे】

【4】डिटॉक्स की क्वाथ

【शरीर के सभी दुष्प्रभाव, साइड इफ़ेक्ट मिटाता है】यह क्वाथ सभी तरह की डाइबिटीज पीड़ितों के लिए बहुत मुफीद है।

【5】बुद्धि की क्वाथ 【मानसिक शांति हेतु】

उपरोक्त ये पांचों क्वाथ तासीर अनुसार सर्वरोग नाशक और देह को तन्दरुस्त बनाने में सहायक हैं।

यह जड़मूल से रोगों का नाशकर रोगप्रतिरोधक क्षमता यानि इम्युनिटी को तेजी से बढ़ाते हैं।

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१०६■~ असन्तुलित वात-पित्त-कफ अर्थात त्रिदोषों की जांच स्वयं अपने से करने के लिए अंग्रेजी की किताब आयुर्वेदा लाइफ स्टाइल आपकी सहायता करेगी।

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