अमृतम मासिक पत्रिका यात्रा संस्मरण से..
स्कंधपुराण के अनुसार महादेव के पांच मुखों का तीर्थ है। यही से संसार में पंच महाभूत निर्मित और विसर्जित होते हैं। जाने केदारनाथ धाम के दुर्लभ रहस्य।
अमृतम पत्रिका यात्रा संस्मरण से साभार..
केदारनाथ और पंचकेदार मेरे जीवन यात्रा
सर्वश्रेष्ठ तीर्थ स्थल रहे हैं। यहां 8 से 10 बार
जाने का सौभाग्य मिला या ये माने कि बाबा
ने बुलाया, तो जाना पड़ा। (अशोक गुप्ता)
भोलेनाथ के इन पांचों तीर्थस्थलों पंच केदार
तक कठिन चढ़ाई चढ़ने के बाद पहुंचा जा
सकता है। दुर्गम पहाड़ियों पर चलते हुए
खूबसूरत वादियों से भरा यह
रास्ता कठिन है। सुंदरता से भरा हुआ है।
अपनी जीवन कर्मों की मात्रा में सुधार हेतु
केदार की यात्रा अवश्य करें।
भोलेबाबा के द्वारे, एसबी कष्ट मिटेंगे हमारे…
महानगरों की मशीनी जिंदगी और कोलाहल
तथा भागमभाग से दूर यह निरप्र एकांतिक
सौंदर्य आपके भीतर किसी महिम संगीत
की तरह बस जाएगा।
पांच केदार… बस थोड़ा-सा पैदल चलने का
साहस कर लें, पंचकेदार आपको पथारोहण
(ट्रैकिंग) के स्वर्गिक आंगन लगने लगेंगे ।
रुद्रनाथजी धाम…
छोटा-सा गुफा मंदिर। एक सीधी खड़ी चट्टान
की उपत्यका में यह गुफा बनी हुई है।
आसपास चारों ओर मनोरम पर्वत श्रृंखलाएं।
ये मलय मई-जून में भी बर्फ से ढंकीं रहती हैं।
अगस्त-सितंबर में तो कहने ही क्या?
सैकड़ों तरह के फूलों की सुगंध से पूरी
घाटी गमकती रहती है। हरे-भरे घास के मैदान (बुग्याल) गलीचे से बिछे दिखायी देते हैं।
ब्रह्मकमल और फेन कमल सरीखे दुर्लभ
पुष्पों के साथ ही अनेक तरह की जड़ी-बूटियां
इस घाटी की दुर्लभ संपदा हैं।
सालमपंजा, अतीस कुटकी, जटामासी, गुग्गुल, वज्रदंती पर्याप्त मात्रा में यहां मिलती हैं।
मंदिर के समक्ष ही विशाल भोजपत्र का वनखंड है। मंदिर के दक्षिणी छोर पर सूरजकुंड़ है।
उत्तर-पश्चिम में प्राचीन सरस्वती कुंड।
इसी दिशा में एक कि.मी. दूर मानसकुंड भी है।
मंदिर के नीचे पूर्व की ओर वैतरणी कुंड
दिखायी देता है।
दक्षिण-पश्चिम में एक विस्तीर्ण मैदान है,
जो खूब हरा-भरा रहता है।
रुद्रनाथ के मूल रावल (पुजारी) बताते हैं
कि यह देवांगनी है। देवांगनी, यानि देवताओं
का आंगन यानि यहां देवताओं की अक्सर बैठक
होती है।
कामेट, त्रिशूल, नंदाघुंटी, नीलकंठ की
पर्वत-चोटियां इस घाटी के चारों ओर
बहुत ही भव्य सौंदर्य की सृष्टि करती हैं।
देवांगनी के नीचे नारदकुंड दिखायी देता है।
रुद्रनाथ मंदिर में एकानन रुद्र की स्वयंभू
प्रतिमा है। यह अत्यंत दुर्लभ मानी जाती है।
शिव के एकानन रूप की पूजा केवल रुद्रनाथ
में ही होती है।
जबकि शिव के चतुरानन की पूजा काठमांडू
में और पंचानन की पूजा मानसरोवर में होती है।
इस आकर्षक एकानन स्वयंभू मूर्ति की पूजा यहां श्रावणमास में जय-विजय पुष्पों से और शेष समय
में ब्रह्मकमलों से करने का विधान है।
ज्येष्ठ संक्रांति के दिन से मंदिर के पट खुलते हैं
और कार्तिक संक्रांति को बंद हो जाते हैं।
उन दिनों यहां कुछ स्थानीय शिव भक्त ऋद्धालु
पूजा के लिए आते हैं तथा कुछ साहसी पर्यटक भी। जब मंदिर के पट बंद हो जाते हैं तब रुद्रनाथ
की पूजा गोपेश्वर के शिव मंदिर में होती है।
रुद्रनाथ मंदिर में एकानन शिव के अतिरिक्त
शेषशायी विष्णु तथा शिव-परिवार की अत्यंत
दुर्लभ मूर्तियां रखी हुई हैं। पूजारी इन दुर्लभ
मूर्तियों को चोरी के भय से कहीं गुप्त स्थान
पर रख देते हैं।
रुद्रनाथ शिव मंदिर का महत्त्व….
‘रम्यं शिवमुखं तत्र सर्वाभरण भूषितम्।
एतस्य दर्शनादेव मुक्तों भवनि मानवः।।
स्कंध पुराण के केदार महात्म के हिसाब से
जो लोग के8वीएन में हर प्रकार से हार गए हों,
निराश हो चुके हों, उन्हे परम शांति के लिए
एक बार अवश्य जाना चाहिए।
रुद्रनाथ से पेडल लौटते हुए पितृधार से
समूची घाटी स्वर्ग के से समान दिखती है।
नीलम घाटी यहां से उतरते हुए तोलीताल
और बगुवा बुग्याल तथा सुनार बुग्याल के
मनमोहक दृश्य बांधे रखते हैं।
रुद्रनाथ केसे जाएं…
ऋषिकेश से लगभग 200 किलोमीटर दूर
बद्रीनाथ मार्ग में पीपलकोठी से 10 किलोमीटर
पहले ही हेलंग नामक स्थान से आप पंच केदारों
में से एक कल्पेश्वर 10 km पर्वतों से चढ़कर
जा सकते हैं।
कल्पेश्वर से लगभग 15 या 18 km की
चढ़ाई के बाद आप रुद्रनाथ शिवलिंग के
दर्शन कर सकते हैं। सुविधा के लिए लेख
के अंत में एक नक्शा दिया गया है।
केसे जाएं केदारनाथ…
ऋषिकेश से गौरीकुंड तक सड़क द्वारा दूरी
करीब २२५ km है।
गौरीकुंड से १४ कि.मी. पगयात्रा के बाद
केदार नाथ पहुंच सकते हैं।
गौरीकुंड से कुछ पहले ही अगस्त्यमुनि नामक
स्थान पर शिवलिंग पर तेल अर्पित कर शनिदोष
शांति की प्रार्थना करके आगे बढ़ें।
यह धर्मधाम सतयुगीन साधकों की साधना-भूमि, भगवान शिव की आराधना-भूमि, पांडवों की
तपोभूमि और कवियों सैलानियों की भावभूमि है।
केदारनाथ मंदिर विश्व के बारह ज्योर्तिलिंगों
में से एक है। जगतगुरु आदि शंकराचार्य ने
३२ वर्ष की आयु में केदारनाथ में ही मुक्ति
प्राप्त की थी। उनकी समाधि इस मंदिर के
पीछे बनी है।
केदार नाथ के स्वयंभू शिवालय में कोई निर्मित
मूर्ति नहीं, अपितु स्वयं निर्मित एक त्रिकोण
प्रस्तर प्रतिमा है। इसी को पूजा का विधान है।
इस पर्वत रूपी शिवलिंग पर श्री गणेशजी
की प्रतिमा उत्कीर्ण है, जिसे पुजारी गण दर्शन
नहीं कराते।
शिव की श्रृंगारमूर्ति पंचमुखी है। इस उत्सवमूर्ति
को सदियों में पट बंद होने पर समारोहपूर्वक
ऊखीमठ ले जाया जाता है और पट खुलने तक उसकी पूजा यहीं की जाती है।
इस मंदिर में ही उषा, अनिरुद्ध, पंचपांडव,
श्री कृष्ण, तथा शिव-पार्वती की सौम्य मूर्तियां हैं। मंदिर के बाहर उदक कुंड या अमृत कुंड, ईशानकुंड,
हंसकुंड, रेतसकुंड आदि हैं।
केदारनाथ शिवालय से कुछ ही दूरी पर पर्वत
पर स्थापित भृगुपंथ, क्षीर गंगा, वासुकी ताल,
चौखारी ताल और भैरव शिला हैं।
मद महेश्वर जाने का रास्ता…
पंच केदारों में एक मदमहेश्वर में शिव की
नाभि का वास है।
यह पंचकेदार का एक और महत्त्वपूर्ण मंदिर है।
मद्महेश्वर। केदारनाथ से लोटकर ऊखीमठ आयें।
ऊखीमठ से १० कि मी. पर है मनसूना।
मनसूना तक सड़क है। मनसूना से आप
तुंगनाथ शिवालय भी जा सकते हैं।
मनसुना से पैदल चलना होगा।
कुछ दूरी तक चल अच्छा पथ मिल जाता है।
रासी गांव में राकेश्वरी देवी का प्राचीन मंदिर
के दर्शन कर, गोंढार गांव आये।
यह इस छोर का अंतिम गांव है।
एक कि.मी. पर है वनतोली।
रात्रि विश्राम यहीं करना ठीक रहेगा।
यहां तक कोई परेशानी नहीं है।
सुबह यहां से अपनी पथ यात्रा शुरू करें।
एकदम चढ़ाई चढ़ कर एक संघन वन से
गुजरते पथ पर चलते चलें।
कठिन मार्ग से ११ कि.मी. पेडल चलकर
एकदम अनूठे प्राकृतिक परिवेश में बने
मदमहेश्वर के मंदिर के सामने पहुंचेंगे।
मद्महेश्वर शिवालय समुद्रतल से ३२८९ मीटर
की ऊंचाई पर बना यह मंदिर अत्यंत आकर्षक है। मंदिर से कहीं अधिक आकर्षक है यहां का
प्राकृतिक परिवेश एवं एकदम हरी-भरी घाटी।
मद महेश्वर के नजदीक दाहिनी ओर बर्फ से
ढकीं पर्वत श्रृंखलाएं। बायीं ओर लगभग
एक कि.मी. चढ़कर देखें, तो फूलों की
छोटी-सी मनोरम घाटी या कह लें,
फूलों की छत। उसके सामने
चौखंभा पर्वत ऐसे दिखायी
देता है….मानो हम अपने
हाथ कुछ आगे बढ़ा लें,
तो बादलों को छू लेंगे।
यहां धरती आकाश यानि शिव पार्वती का
मिलन देखकर भावुक हो सकते हैं।
मधुर मिलन तीर्थ है..मद महेश्वर…
प्रथ्वी, गगन का मिलना एक नये उत्सव की सृष्टि करता लगता है। इसी उत्सवी सौंदर्य के बीच ही शिव की इच्छा जगी होगी, हिमवान् की पुत्री पार्वती के साथ इस स्थान पर अपनी मधुचंद्रात्रि मनाने की ऐसा माना जाता है कि मदमहेश्वर में शिव ने अपनी मधुचंद्ररात्रि मनायी थी।
प्रकृति से बड़ा कोई तीर्थ क्या होगा?
इस तीर्थ के विषय में यह कहा गया है
कि जो व्यक्ति भक्ति को पढ़ता या सुनता है
उसे शिवलोक की प्राप्ति होती है।
मान्यता है कि जो व्यक्ति इस क्षेत्र में पिंडदान
करता है, वह पिता की सौ पीढ़ी पहले के और
सौ पीढ़ी बाद के तथा सौ पीढ़ी माता के तथा
१०० पीढ़ी श्वसुर के वंशजों को तरा देता है।
प्रेत योनि से मुक्ति...
विशेषकर उन लोगों को यहां पिंडदान जरूर
करना चाहिए, जिनके पूर्वज अविवाहित होकर
प्रेत योनि में भटक रहे हैं।
स्कंध पुराण के केदार खंड का यह
श्लोक पर ध्यान देवें।
शतवंश्या : परा : शतवंश्या महेश्वरि।
मातृवंश्या: शेतंचैव तथा श्वसुरवंशका :॥
तरिता : पितरस्तेन घोरात्संसारसागरात्।
यैरत्र पिंडदेनाद्या : क्रिया देवि कृता : प्रिये॥ (केदारखंड, ४८, ५०-५१)
मद महेश्वर से वापसी के दौरान तुंगनाथ
शिवलिंग के दर्शन कर सकते हैं।
तुंगनाथ शिव का सर्वाधिक ऊंचाई
(३७५० मीटर) पर बना ये तीर्थ सर्व
पाप विनाशक है।
मदमहेश्वर से लौटें ऊखीमठ।
ऊखीमठ से एक सड़क मार्ग गोपेश्वर की
ओर जाता है, जो ऋषिकेश-बदरीनाथ-मार्ग
से चमोली में जुड़ जाता है।
इसी हरीतिमा से भरपूर मार्ग पर ऊखीमठ
से २८ कि.मी. की दूरी पर है दोपता बहुत
ही खूबसूरत छोटा-सा पर्यटन स्थल।
यहां से तीन-चार कि.मी. की ऊंची चढ़ाई
चढ़कर तुंगनाथ पहुंच सकते हैं।
रास्ते में मिलता है हरा-भरा बुग्याल।
यह समूचा स्थान दिसंबर के बाद से
मार्च-अप्रैल तक बर्फ से ढंका रहता है।
तुंगनाथ मंदिर ….
यह मंदिर भी छोटा ही है। लेकिन इसका
परिवेश आत्मा को विस्तार देता है। इस
स्वयंभू शिवालय के बाहर कई देवी-देवताओं
की मूर्तियां हैं।
मंदिर के भीतर पंचकेदारों की मूर्तियां, गणेश
और शिव-पार्वती की प्रतिमाएं हैं।
तुंगनाथ मंदिर में स्थित शिवलिंग का माहात्म्य
बहुत अधिक है।
शिवलिंग रहस्य नामक ग्रंथ में कहा गया है
कि जो शिव साधक शिवलिंग पर बिल्वपत्र
चढ़ाता है वह हजार वर्षों तक शिवलोक में
ऐश्वर्य भोगता है।
तुंगनाथ का यह संपूर्ण क्षेत्र समस्त कामनाओं
को पूर्ण करने वाला है। संपूर्ण पापों का नाशक है।
यह क्षेत्र सत्यतारा पर्वत पर स्थित है।
यहां सप्तऋषियों उच्चपद-प्राप्ति के लिए
महादेव की घोर तप साधना में मग्न हैं।
सत्व भाव गुणों के द्वारा आराधना करने के
कारण इस पर्वत का नाम भी सत्यतारा हो
गया। मैंने प्रसन्न होकर उन्हें तुंगपद दे दिया।
अतएव इस क्षेत्र का नाम तुंगक्षेत्र हो गया ।
जिस स्वयं भूलिंग की सप्त ऋषियों, तारा गणों
ने आराधना की उसे तुंगनाथ कहा गया।
यह परम क्षेत्र देवताओं को भी दुर्लभ है।
तुंगनाथ के दर्शनमात्र से ही पाप का क्षय
होकर परम पद की प्राप्ति होती है।
पंचकेदार क्रम में कल्पेश्वर…..
चोपता से मंडल होते हुए गोपेश्वर से चमोली
होते हुए पीपलकोटी से आगे हेलंग तक आते हैं। बदरीनाथ-यात्रा को जाने वाले यात्री इस मार्ग से अच्छी तरह परिचित हैं।
बस यहीं हेलंग से पैदल अलकनंदा की इस धार
के पार चलें, १० कि.मी., दूर गांव है, उर्गम।
यहां के तपस्वी साधु कहते हैं कि इस स्थान
पर इंद्र ने दुर्वासा ऋषि के शाप से मुक्ति पाने
के लिए भगवान शिव की आराधना की थी
और कल्पतरु प्राप्त किया था, तभी से इस
स्थान पर महादेव ‘कल्पेश्वर’ नाम से प्रसिद्ध हुए।
समुद्रतल से २१३४ मीटर की ऊंचाई पर
स्वयंभू कल्पेश्वर शिवलिंग अथवा कल्पनाथ
का यह रुद्रनाथ की भांति छोटा-सा गुफा मंदिर है।
कल्पेश्वर में शिव की जटाओं की पूजा होती है।
इस तीर्थ की ऊंचाई अन्य केदारों से कम है,
लेकिन फिर भी यहां आसपास प्रकृति का अनुपम सौंदर्य बिखरा पड़ा है।
यह सौंदर्य अन्य चार केदारों से कम भले ही हो, लेकिन उतना ही पवित्र और आत्मीय है।
अन्य दर्शनीय परिदृश्य : ….
ऊखीमठ और तुंगनाथ के बीच लगभग
८ कि.मी. पैदल चलकर देवरियाताल,
चोपता, चोपता से मंडल के बीच लगभग
१५ कि.मी. दूरी पर सड़क के किनारे ही
बना कस्तूरा मृगविहार भी देखा जा सकता है।
यहां कस्तूरी युक्त हिरण बहुत मिलते हैं।
पथारोहियों (ट्रैक्र्स) के लिए पंचकेदार
श्रृंखला के दर्शन १० से१२ दिन में एक
साथ पूरी कर सकते हैं।
पहले केदारनाथ, फिर मदमहेश्वर, तुंगनाथ
और रुद्रनाथ, वहीं से कल्पनाथ निकला
जा सकता है।
सुविधा के लिए पर्यटक गोपेश्वर पहुंच सकते हैं। गोपेश्वर में खोजने पर गाइड मिल सकता है।
मौसम की मेहरबानी….
पंचकेदार-यात्रा मई से आरंभ हो जाती है।
लेकिन प्रकृति का भरपूर आनंद लेने के लिए
अगस्त-सितंबर सर्वोत्तम है।
उन दिनों यहां अनेक प्रकार के फूल खिले
होते हैं। चारों ओर हरियाली रहती है। फूलों की घाटियों के मनोरम दृश्य देखने को मिलते हैं।
१. केदारनाथ केसे जाएं : ऊंचाई समुद्रतल
से ३४८४ मीटर। कहीं से भी सड़क
अथवा रेल से ऋषिकेश पहुंचे।
ऋषिकेश से गौरीकुंड तक २२५ कि.मी.
सड़क मार्ग।
गौरीकुंड से सात कि.मी. रामवाणा।
रामवाणा से सात कि.मी. केदारनाथ।
बीच में जलपाल की सुविधाएं उपलब्ध।
केदारनाथ में ठहरने की अच्छी सुविधाएं।
केदारनाथ-बदरीनाथ मंदिर समिति का विश्रामगृह। गढ़वाल मंडल विकास निगम का टूरिस्ट लॉज।
कुछ धर्मशालाएं भी उपलब्ध हैं।
२. मदमहेश्वर केसे जाएं…
ऊंचाई ३२८९ मीटर।
ऋषिकेश से ऊखीमठ १८० कि.मी.
तक अच्छा सड़क मार्ग।
११० कि.मी. तक मनसूना तक सड़क मार्ग।
यहां से पैदल लगभग ३६ कि.मी.।
मदमहेश्वर में केदारनाथ-बदरीनाथ मंदिर
समिति की एक धर्मशाला है।
३. रुद्रनाथ जाने का मार्ग… :
ऊंचाई २२८६ मीटर
ऋषिकेश से गोपेश्वर होते हुए मंडल तक
लगभग २१० कि.मी. का सड़क मार्ग।
मंडल से अनुसूया (छह कि.मी.) होते हुए
लगभग ३२ कि.मी. का कठिन पगमार्ग।
दूसरा मार्ग गोपेश्वर से तीन कि.मी.
सगर गांव होते हुए ३१ कि.मी. कठिन पगमार्ग।
मार्ग में चायपान की कोई व्यवस्था नहीं थी
मंदिर के पास दो-तीन झोंपड़ियां जिनमें अपने
साधनों से ठहरा जा सकता है।
४. तुंगनाथ केसे जाएं…
: ऊंचाई ३७५० मीटर।
ऋषिकेश से ऊखीमठ १८० कि.मी.।
ऊखीमठ से चोपता २८ कि.मी. सड़क मार्ग।
चोपता से तीन-चार कि.मी. चढ़ाई वाला पगमार्ग
कल्पेश्वर अथवा कल्पनाथ जाने का रास्ता…
ऊंचाई २१३४ मीटर।
ऋषिकेश से बदरीनाथ मार्ग पर पीपलकोटी
से २० कि.मी. आगे हेलंग।
हेलंग से १० कि.मी. पैदलमार्ग
अकेले न जाएं पंचकेदार.…
कोई साधुओं की टोली यदि जा रही हो,
तो उनके साथ हो लें।
किराया देकर अशक्त श्रद्धालु तीर्थयात्री
केदारनाथ धाम के दर्शन, तो घोड़ों-खच्चरों
या डोली- पालकी पर सवार होकर यात्रा कर
सकते हैं । शेष केदारों की यात्रा में यह सुविधा
नहीं है।
भारत के 25000 से भी ज्यादा स्वयंभू शिवलिंगों
की जानकारी हेतु amrutampatrika.com
गुगल पर सर्च कर सकते हैं।
रुद्रनाथ में शेषशाय विष्णु जी की दुर्लभ प्रतिमा।
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