गुरुपूर्णिमा को करें- श्रीगुरुगीता का पाठ, तो मिल जाएंगे सारे ठाठ-वाट और राज्य-पाठ

               ★★★ ॐ ★★★
 
हर पल आपके साथ हैं हम….
सदगुरु द्वारा प्रदत्त गुरुमन्त्र के जाप,
अभ्यास और दृढ़ निश्चय से मूर्च्छा-भ्रम टूटकर जागरूकता एवं सकंल्प शक्ति बढ़ जाती है।
गुरु साधना से सन्सार का समस्त
कष्ट-क्लेश, भय-भ्रम,
शंका-कुशंका तथा डर मिटकर ‘सर
हल्का होने लगता है।
सप्तविकार दूर होकर नवीन विचार का
आगमन और सभी सपने साकार होने
लगते हैं। हमारा आकार बदलने में गुरुमन्त्र सहायक है। यशकीर्ति, ऐश्वर्य
और विश्व में विश्वास.. बाबा विश्वनाथ
की मर्जी से सम्भव है।
गुरुभक्ति का चमत्कार इतना है कि…
व्यक्ति का स्वतः ही प्रचार होने लगता है।
@ स्वामी विवेकानंद गुरुभक्ति, गुरुनिष्ठा
का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं। आज पूरी दुनिया
में कालीभक्त श्री रामकृष्ण परमहँस
इनके गुरु के रूप में जाने जाते हैं।
@ श्रेष्ठ धनुर्धर श्री एकलव्य की गुरुभक्ति
को कौन भुला पायेगा
नानक दुखिया सब सन्सार...
कोई मन दुःखी, कोई तन दुःखी
कोई धन बिन रहे उदास –
गुरुनानक देव जी कहते हैं कि… मैं
अपने दुख से दुःखी नहीं हूं, लेकिन
दुनिया के दुःख देखकर दुखी हो जाता हूँ।
दुःख की बात यह भी है कुछ व्यक्ति
अपने दुःख से दुःखी नहीं है…
वह तो दूसरों की सुख-प्रसन्नता तथा सम्पन्नता देखकर द्वेष-दुःखी होते है।
गुरु नानकदेवजी कहते हैं कि…..
जो लोग औरों को दुःख-दर्द में देखकर
खुश होते हैं, वे दरअसल प्राणी नहीं, पशु हैं।
भगवान महावीर का यह कथन अमर है…
       !!जिओ और जीने दो!!
जी के वन में चमन कैसे खिले, इस हेतु
सदैव सदगुरु का स्मरण करें।
मन रूपी जंगल में ..”मङ्गल” गुरुभक्ति
से ही हो सकता है। हर ऐंगल से देखे,
तो इस सृष्टि में सदगुरु और शिव के
अलावा सब व्यर्थ है।
सदगुरु की कृपादृष्टि और शिव की भक्ति से “जिओ और जीने दो”
का सूत्र जीवन में उपलब्ध होता है।
गुरुगीता ग्रन्थ में भोलेबाबा….
जगत-जननी माँ शक्ति को समझा रहे हैं कि….जो वर्तमान में जीना प्रारम्भ कर
देता है, वही अतीत के पतित पाप की
चादर धोकर….
‘ज्यों की त्यों धर, दीन्ही चदरिया’
कबीर की इस उक्ति को सार्थक
कर देता है।
अहंकार की हर जीत हार है….
बुद्धं शरणं गच्छामि…..
संघं शरणं गच्छामि….
धम्मं शरणं गच्छामि….
ये भगवान बुद्ध के त्रि-शरण या
त्रि-रत्न कहलाते हैं।
बुद्ध यानी सदगुरु-जगतगुरु।
ऐसा बुद्धगुरु, जो घने अज्ञान से
घिरी आत्मा में गहन ज्ञान प्रकाशित कर दे। बुद्धि ही तन-मन और मस्तिष्क
की शुद्धि करती है
बुद्ध का अर्थ है…आसमान के समान अनंत ज्ञान संपन्न, सदाशिव के समकक्ष,
भगवान शिव, सद्गुरु एवं कल्याण।
जिन्होंने अपने आत्मज्ञान से ईश्वर का
साक्षात्कार कर लिया, जो खुद ही खुदा हो गया। बुद्ध उन्हें कहते हैं।
भगवान बुद्ध के बारे में विशेष वैज्ञानिक
व्याख्या अन्य ब्लॉग में दी जावेगी।
 बुद्ध की बुद्धिमानी…..
भगवान बुद्ध के ये त्रिरत्न के अतिरिक्त
विश्व ब्रह्माण्ड में इससे बहुमूल्य दूसरा
कुछ भी नहीं है, क्योंकि इन्हीं को खोकर हमने सब खोया है और इन्हीं को पाकर
हम सब पा लेंगे।
भगवान विष्णु के 24 अवतारों
में से एक बुद्ध का मतलब गौतम बुद्ध 
नहीं है, इस भ्रम न पड़ो। जिन्होंने अपनी बुद्धि को वश में कर लिया,
जो पूर्णतः शुद्ध है….वही बुद्ध है।
 
यदि आप हिन्दू हैं, तो एक बार 
“श्री गुरुगीता” को जरूर पढ़ें
महर्षि व्यास द्वारा संकलित श्री गुरुगीता,
सदगुरु को समर्पित एक हिन्दू गुरूग्रंथ है।
यह सिखों के गरूग्रंथ साहिब जैसा पवित्र
ग्रन्थ है। भगवान शिव एवं माँ जगदम्बे
के बीच जब गुरु के महत्व को लेकर संवाद
हुआ, तो भगवान स्कन्द यानि स्वामी कार्तिकेय ने इसका लेखन किया था।
इसी कारण गुरुगीता स्कन्द पुराण का एक भाग है। इसमें भगवान शिव गुरु क्या है, गुरु की पूजा करने की विधि, गुरु गीता को पढने के लाभ आदि का वर्णन करते हैं।
 गुरुगीता ग्रन्थ में गुरुमन्त्र की शक्ति,
 वह सदगुरु कौन हो, कैसा हो, उसकी महिमा का वर्णन एवं चमत्कार एवं
किस प्रकार गुरु की शरण में जाने से शिष्य को पूर्णत्व प्राप्त होता है और वह स्वयं ब्रह्मरूप हो जाता है। गुरुगीता में गुरु ज्ञान सम्बंधित करीब 352 श्लोकों का उल्लेख है। इसमें शिष्य की योग्यता, उसकी मर्यादा, व्यवहार, अनुशासन आदि का भी विस्तृत उल्लेख है।
गुरुगीता के पाठ का रहस्य 
और होने वाले १६ लाभ/फायदे....
【१】गुरुगीता के पाठ से पराजय, विजय में परिवर्तित हो जाती है।
【२】विकार रूपी शत्रु परास्त होकर विदा हो जाते हैं।
【३】ज्ञान एवं गुणों की वृद्धि करता है। 【४】कुकर्म एवं पापों को नष्ट कर देता है।
【५】गुरुगीता के नित्य पाठ से दुर्घटना, कारागृह और अकाल मृत्यु नहीं होती।
【६】 व्यापार में बरक्कत होने लगती है।
【७】बच्चों का जीवन सुखमय होता है।
【८】असाध्य रोग जैसे कैंसर, मधुमेह, भगन्दर, हृदयरोग तथा बीपी हाई आदि रोगों
से मुक्ति मिलती है।
【९】सब संकटों का नाश करती है।
【१०】जादू, टोना-टोटका, नजर, तन्त्र-यन्त्र की दुषित क्रियायों को रोकती है।
【११】यक्ष, राक्षस, भूत, चोर आदि का विनाश करती है।
【१२】घर का वास्तु दोष गुरुगीता के नित्य पाठ से दूर होता है।
【१३】गुरुगीता के पाठ से अदना सा व्यक्ति पवित्र-पावन होकर पूजनीय
हो जाता है,
【१४】उसका पुनर्जन्म नहीं होता।
【१५】गुरुगीता का नियम से किया गया
जाप दुष्कृत्यों का नाश कर, सत्कर्म में
सिद्धी देकर ईश्वर के दर्शन दिलाने वाला है। 【१६】भगवान शिव द्वारा उच्चारित अथवा देवी माँ को दिया गया प्रवचन गुरुगीता पाठ के एक-एक अक्षर को मंत्रराज माना जाता है।
कैसे शुरू करें गुरुगीता का पाठ...
स्कन्दपुराण के नियमानुसार
रविवार या गुरुवार से आरम्भ करके
108 दिन लगातार करना चाहिए।
राहुकी तेल का एक दीपक जलाकर यह केवल पुरुषों को नीचे लिखे विधि-विधान से इसका पाठ करना चाहिए।
॥श्री गुरु चरित्र अन्तर्गत श्री गुरु गीता॥ 
!!श्री गणेशायनमः!!
!!श्री सरस्वत्यै नमः!!
!!श्री गुरुभ्योनम:!!
विनियोग- इसके बारे में जानने हेतु
अमृतम के पुराने लेख पढ़ें।
हाथ में जल लेकर नीचे लिखा
विनियोग मन्त्र” पढ़कर जल को
प्रथ्वी पर छोड़े…
ॐ अस्य श्रीगुरुगीतास्तोत्रमंत्रस्य भगवान्‌ सदाशिवऋषिः। नानाविधानि छंदांसि। श्री गुरुपरमात्मा देवता। हं बीजं। सः शक्तिः। सोऽहं कीलकं। श्रीगुरुप्रसादसिद्धयर्थे जपे विनियोगः॥
अथ करन्यासः –
तर्जनी उँगली को अगूंठे की जड़
में लगाकर निम्न मंत्र बोले
(१) ॐ हं सां सूर्यात्मने अंगुष्ठाभ्यां नमः!
अंगूठे और तर्जनी के अग्र पोरों को जोड़कर कहें….
(२) ॐ हं सीं सोमात्मने तर्जनीभ्यां नमः!
मध्यम और अंगूठे जोड़कर कहें..
(३) ॐ हं सूं निरंजनात्मने मध्यमाभ्यां नमः!
अंगूठे पर अनामिका उंगली जोड़कर कहें.
(४) ॐ हं सैं निराभासात्मने अनामिकाभ्यां नमः! 
सबसे छोटी उंगली को अंगूठे को जोड़कर
(५) ॐ हं सौं अतनुसूक्ष्मात्मने कनिष्ठिकाभ्यां नमः!
ॐ हं सः अव्यक्तात्मने करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:
॥ इति करन्यासः ॥
 
अथ हृदयादिन्यास...
अपने ह्रदय पर तर्जनी, मध्यमा और अनामिका तीनों उंगलियां रखकर बोलें..
@- ॐ हं सां सूर्यात्मने हृदयाय नमः
सभी चारों उंगलियों को जोड़कर अपने
माथे पर रखकर बोलें
@- ॐ हं सीं सोमात्मने शिरसे स्वाहा।
अपने दाएं अंगूठे को सिर पर रखकर बोले
@- ॐ हं सूं निरंजनात्मने शिखायै वषट्। 
दोनों भुजाओं पर हाथ रखकर बोलें..
@- ॐ हं सैं निराभासात्मने कवचाय हुं। 
तर्जनी से दायीं आंख, बाएं आंख पर अनामिका उंगली रखकर बोलें…
@- ॐ हं सौं अतनुसूक्ष्मात्मने 
नेत्रत्रयाय वौषट्। 
सिर के ऊपर से चुटकी बजाते हुए कहें…
@- ॐ हं सः अव्यक्तात्म्ने अस्राय फट्। 
@- ॐ ब्रह्म भूर्भुवः स्वरोमिति दिग्बन्धः।
॥ इति हृदयादिन्यासः ॥
अथ ध्यानं- सदगुरू का ध्यान करते हुए
नीचे लिखे मन्त्र को पढ़ें….
हंसाभ्यां परिवृत्तपत्रकमलैर्दिव्यैर्जगत्कारणैर्विश्वोत्कीर्णमनेकदेहनिलयैः स्वच्छन्दमात्मेच्छया।
तद्योतं पदशांभवं तु चरणं दीपांकुरग्राहिणं, प्रत्यक्षाक्षरविग्रहं गुरुपदं ध्यायेद्विभुं शाश्वतम्‌॥ मम चतुर्विधपुरुषार्थसिद्धयर्थे जपे विनियोगः॥
॥अथ श्रीगुरुगीता ॥
सूत उवाच– अर्थात ऋषि सूट जी ने बोला..
कैलासशिखरे रम्ये,
भक्तिसंधान-नायकम्‌।
प्रणम्य पार्वती भक्त्या,
शंकरं पर्यपृच्छत॥1॥
श्री देव्युवाच– देव बोले
ॐ नमो देवदेवेश, परात्पर जगद्गुरो।
सदाशिव महादेव, गुरुदीक्षां प्रदेहि मे॥2॥
केन मार्गेण भो स्वामिन्‌,
देही ब्रह्ममयो भवेत्‌।
त्वं कृपां कुरु मे स्वामिन्‌,
नमामि चरणौ तव॥3॥
ईश्वर उवाच– भगवान शिव ने कहा….
ममरूपासि देवि त्वं,
व्यत्प्रीत्यर्थं वदाम्यहम्‌।
लोकोपकारकः प्रश्नो,
न केनापि कृतः पुरा॥4॥
दुर्लभं त्रिषु लोकेषु,
तच्छृणुष्व वदाम्यहम्‌।
गुरुं विना ब्रह्म नान्यत्‌,
सत्यं, सत्यं वरानने॥5॥
वेदशास्त्रपुराणानि
इतिहासादिकानि च।
मंत्रयंत्रादिविद्याश्च,
स्मृतिरुच्चाटनादिकम्‌॥6॥
शैवशाक्तागमादीनि,
अन्यानि विविधानि च।
अपभ्रंशकराणीह,
जीवानां भ्रांतचेतसाम्‌॥7॥
यज्ञो व्रतं तपो दानं,
जपस्तीर्थं तथैव च।
गुरुतत्वमविज्ञाय,
मूढास्ते चरते जनाः॥8॥
गुरुबुद्धयात्मनो नान्यत्‌,
सत्यं सत्यं न संशयः।
तल्लाभार्थं प्रयत्नस्तु,
कर्तव्यो हि मनीषिभिः॥9॥
गूढविद्या जगन्माया,
देहे चाज्ञानसंभवा।
उदयः स्वप्रकाशेन,
गुरुशब्देन कथ्यते॥10॥
सर्वपापविशुद्धात्मा,
श्रीगुरोः पादसेवनात्‌।
देही ब्रह्म भवेद्यस्मात्‌,
तत्कृपार्थं वदामि ते॥11॥
गुरुपादांबुजं स्मृत्वा,
जलं शिरसि धारयेत्‌।
सर्वतीर्थावगाहस्य,
संप्राप्नोतिफलं नरः॥12॥
शोषणं पापपंकस्य,
दीपनं ज्ञानतेजसाम्‌।
गुरुपादोदकं सम्यक्‌,
संसारार्णवतारकम्‌॥13॥
अज्ञानमूलहरणं,
जन्मकर्मनिवारणं।
ज्ञानवैराग्यसिद्धयर्थं
गुरुपादोदकं पिबेत्‌॥14॥
गुरोः पादोदकं पीत्वा,
गुरोरुच्छिष्टभोजनम्‌।
गुरुमूर्तेः सदा ध्यानं,
गुरुमंत्रं सदा जपेत्‌॥15॥
काशीक्षेत्रं तन्निवासो,
जाह्नवी चरणोदकम्‌।
गुरुर्विश्वेश्वरः साक्षात्‌,
तारकं ब्रह्म निश्चितम्‌॥16॥
गुरोः पादोदकं यत्तु,
गयाऽसौ सोऽक्षयो वटः।
तीर्थराजः प्रयागश्च,
गुरुमूर्ते नमो नमः॥17॥
गुरुमूर्ति स्मरेन्नित्यं,
गुरुनाम सदा जपेत्‌।
गुरोराज्ञां प्रकुर्वीत,
गुरोरन्यन्न भावयेत्‌॥18॥
यो गुरु स शिवः प्रोक्तो,
यः शिवः स गुरुस्मृतः!
विकल्पं यस्तु कुर्वीत स नरो गुरुतल्पगः!!
अर्थात…
जो गुरु हैं, वे ही शिव हैं,
जो शिव हैं वे ही गुरु हैं। इन दोनों में
कोई भी अन्तर नहीं मानना चाहिए।
वेद्शास्त्रपुराणानि चेतिहासादिकानि च।
मंत्रयंत्रविद्यादिनिमोहनोच्चाटनादिकम् ।।
शैवशाक्तागमादिनि ह्यन्ये च बहवो मताः।
अपभ्रंशाः समस्तानां जीवानां भ्रांतचेतसाम्।।
जपस्तपोव्रतं तीर्थं यज्ञो दानं तथैव च।
गुरु तत्वं अविज्ञाय सर्वं व्यर्थं भवेत् प्रिये।।
अर्थात…
हे प्रिये ! वेद, शास्त्र, पुराण, इतिहास आदि मंत्र, यंत्र, मोहन, उच्चाट्न आदि विद्या शैव, शाक्त आगम और अन्य सर्व मत-मतान्तर,
ये सब बातें गुरुतत्व को जाने बिना भ्रान्त चित्तवाले जीवों को पथभ्रष्ट करनेवाली हैं और जप, तप व्रत तीर्थ, यज्ञ, दान, ये सब व्यर्थ हो जाते हैं | (19, 20, 21)
 गुरुबुध्यात्मनो नान्यत् सत्यं सत्यं वरानने।
तल्लभार्थं प्रयत्नस्तु कर्त्तवयशच मनीषिभिः
अर्थात–
हे सुमुखी ! आत्मा में गुरु बुद्धि के सिवा अन्य कुछ भी सत्य नहीं है …..सत्य नहीं है।इसलिये इस आत्मज्ञान को प्राप्त करने के लिये बुद्धिमानों को प्रयत्न करना चाहिये।
गूढाविद्या जगन्माया देहशचाज्ञानसम्भवः।
विज्ञानं यत्प्रसादेन गुरुशब्देन कथयते।।
अर्थात
जगत गूढ़ अविद्यात्मक मायारूप है और शरीर अज्ञान से उत्पन्न हुआ है | इनका विश्लेषणात्मक ज्ञान जिनकी कृपा से होता है उस ज्ञान को गुरु कहते हैं |
देही ब्रह्म भवेद्यस्मात् त्वत्कृपार्थंवदामि तत्।
सर्वपापविशुद्धात्मा श्रीगुरोः पादसेवनात्।।
जिस गुरुदेव के पादसेवन से मनुष्य सर्व पापों से विशुद्धात्मा होकर ब्रह्मरूप हो जाता है वह तुम पर कृपा करने के लिये कहता हूँ। (24)
शोषणं पापपंकस्य दीपनं ज्ञानतेजसः।
गुरोः पादोदकं सम्यक् संसारार्णवतारकम्।।
श्री गुरुदेव का चरणामृत पापरूपी कीचड़ का सम्यक् शोषक है, ज्ञानतेज का सम्यक् उद्यीपक है और संसारसागर का सम्यक तारक है। (25)
अज्ञानमूलहरणं जन्मकर्मनिवारकम्।
ज्ञानवैराग्यसिद्ध्यर्थं गुरुपादोदकं पिबेत्।।
अज्ञान की जड़ को उखाड़नेवाले, अनेक जन्मों के कर्मों को मिटाने वाले, ज्ञान और वैराग्य को सिद्ध करनेवाले श्रीगुरुदेव के चरणामृत का पान करना चाहिये।
स्वदेशिकस्यैव च नामकीर्तनम्
भवेदनन्तस्यशिवस्य कीर्तनम्।
स्वदेशिकस्यैव च नामचिन्तनम्
भवेदनन्तस्यशिवस्य नामचिन्तनम्।।
अपने गुरुदेव के नाम का कीर्तन अनंत स्वरूप भगवान शिव का ही कीर्तन है।
अपने गुरुदेव के नाम का चिंतन अनंत स्वरूप भगवान शिव का ही चिंतन है।
इस गुरुगीता के श्लोक भवरोग निवारण के
लिए अमोघ औषधि हैं। साधकों के लिए यह परम अमृत है। यह गुरु गीता का अमृत पीने से पाप नष्ट होकर परम शांति मिलती है, स्वस्वरूप का भान होता है। आत्मविश्वास
में वृद्धि होती है।
सृष्टि के सभी सदगुरुओं को शत-शत
नमन और हृदय से साष्टांग प्रणाम
“अमृतम” परिवार की अंतरात्मा 
से शुभकामना...
गुरु पूर्णिमा पर्व पर पूर्ण ब्रह्मांड के
प्राणियों को परम प्रकाश और परमपिता परमात्मा की कृपा प्राप्त हो।
!!ॐ!! का चमत्कार
 ॐ-कार के नाद से उत्पन्न,
उत्सव हो या उपासना,
ऊपर वाले के प्रति उन्मुख होने प्रक्रिया है।
आज गुरु उत्सव है….गुरु पूर्णिमा है
उत्साही शिष्यों के लिए आज का दिन
उदासी, उत्कंठा,
उष्णता, उन्माद,
उत्तेजना त्यागकर
उत्तरार्द्ध (पिछला समय) भूलकर
मन के उत्पात, तन के उधम छोड़कर
अपनी सम्पूर्ण
ऊष्मा, ऊर्जा, उत्साह से
सद्गुरुओं के उदघोष में
तल्लीन हो जाना है।
उद्धव जैसे उत्तम भक्त बनने के लिए
पूरी तरह उन्मुक्त होकर सदगुरू द्वारा प्राप्त
गुरु मन्त्र का जाप करना चाहिए।
गुरुकृपा के बिना
सारा संसार अन्धकार, अहंकार और अज्ञानता के कारण पीड़ित है,
इसलिए अमृतम वेदों ने सुझाया कि-
असतो मा सदगमय
तमसो मा ज्योतिर्गमय
मृत्युर्मा ‘अमृतम’ गमय
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:!!
हे, सदगुरू हमें अंधकार से प्रकाश
तथा मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो ।
इस पुनीत प्रयास में –
      ।।अमृतम।।
रोगों का काम खत्म
करने में सहायक है ।
अमृतम परिवार
और सभी सहायक, सहयोगी संस्थान
गुरु पूर्णिमा के परम् पावन पर्व पर
सभी जीव-जगत पर जगतगुरु महादेव
और सदगुरु की असीम कृपा आप पर बनी रहे कोटि-कोटि, अनन्त-असंख्य
शुभकामनाएं
इस भाव से कि
सर्वे सन्तुसुखिनः

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