गुरुपूर्णिमा किस दिन होती है। इसका कारण, महत्व और रहस्य जाने..

क्या है गुरुपूर्णिमा की कहानी…
 
सन 2019 में गुरुपूर्णिमा 16 जुलाई, मंगलवार को पूरी दुनिया में मनाई जावेगी।यह हर साल आषाढ़ महीने में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन पड़ती है।
क्यों मनाते हैं गुरुपूर्णिमा….
 
महर्षि व्यास, जो कि कलयुग के
आदिगुरु हैं। गुरु व्यास की पुण्य तिथि के रूप में गुरुपूर्णिमा, सम्पूर्ण भक्ति एवं
समर्पण भाव से पूरे विश्व में उत्साह
के साथ मनाया जाता है।
क्यों कहते हैं इसे गुरुपूर्णिमा..
इस दिन सभी शिष्यगण अपने गुरु को
भगवान की तरह पूजते हैं। यह परम्परा सदियों पुरानी है। आज से लगभग
5500 वर्ष पहले
हिन्दू धर्म का जो बिखरा हुआ
वेद लिखित में नहीं था महर्षि व्यास ने ही अपने ध्यान द्वारा बद्रीनाथ के पास व्यास गुफा में चारों वेदों की व्याख्या, सम्पादन
एवं संकलन करके सन्सार में वेदों के महत्व को बताया। महर्षि व्यास बोलते गए और गणेश ने वेदों का लेखन किया।  इसलिए इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं। ये कलयुग के आदिगुरु कहे जाते हैं। बद्रीनाथ में यह व्यासगुफ़ा आज भी स्थित है।
आषाढ़ की पूर्णिमा ही क्यों है गुरु पूर्णिमा
आषाढ़ की पूर्णिमा को आकाश बादलों से घिरा रहने के कारण चन्द्रमा के दर्शन
यदा-कदा दिखते हैं। गुरु पूर्ण चन्द्रमा है जो हमेशा पूर्ण प्रकाशमान रहता है और शिष्य आषाढ़ के अंधेरे बादलों की तरह।
सद्गुरु अंधेरे से घिरे वातावरण में भी चन्द्रमा की चमक जैसा प्रकाश जगा सके। गुरु ग्रंथो, उपनिषदों में गुरु को पूर्ण चन्द्र का दर्जा दिया गया है। गुरु का प्रकाश, उनका ज्ञान कभी क्षीण नहीं होता।
गुरु से प्रार्थना करें...
!!तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु!!
यजुर्वेद ३४/१
अर्थात-मेरे मन के सकंल्प से भरा हो,
कल्याणमय हों।
ऐश्वर्य और सिद्धियां मेरे लिये जयमाला लिये खडी हो, ऐसा आशीर्वाद गुरु से लेना चाहिए।
गुरु और सदगुरु में अंतर क्या है.
■ अष्टावक्र गीता तथा ■ श्रीमद्भागवत
आदि शास्त्रों में उल्लेख है कि…
दुनिया में जो भी तुम्हे चार पद पढ़ा दे या ज्ञान की बात बताकर सिखा दे, वह गुरु रूप होता है। भरण-पोषण का ज्ञान, जीवन के अनुभव, यांत्रिक सीख दे यानि जो भी कोई व्यक्ति शिक्षक होकर सिखाये वही गुरु है। सीखने वाले को शिष्य तथा सिखाने
वाले को गुरु कहते हैं।
सद्गुरु केवल वही कहलाते हैं, जो गुरुमन्त्र देकर शिष्य को ईश्वर और अध्यात्म
का ज्ञान करावे।
सद्गुरु को मांत्रिक गुरु भी कहते हैं। सद्गुरु ही
हमें अंधकार से उजाले की तरफ ले जाते हैं। जन्मपत्रिका में स्थित गजकेशरी योग और परमहँस योग सद्गुरु की कृपा से पूर्ण हो पाते हैं।
ज्ञान गुरु है। कलयुग में सांसारिक अथवा पारमार्थिक ज्ञान देने वाले व्यक्ति को गुरु कहा जाता है।
■ शारदा तिलक,
■ गुरुगीता के अनुसार
गुरुओं की पांच श्रेणिया हैं।
 【1】शिक्षक – प्राइमरी टीचर, जो स्कूलों में प्रारंभिक शिक्षा या ज्ञान देता है।
 【2】आचार्य – जो अपने आचरण से अच्छे संस्कार देकर जीवन को सकारात्मक बनाने की शिक्षा देता है।
 【3】कुलगुरु – जो वर्णाश्रम धर्म के अनुसार संस्कार ज्ञान देकर हमारी रक्षा करता है। अपने गहरे ज्ञान से समय-समय पर मन के अंतर्कलह और गृहस्थ जीवन के दुखों से मुक्ति दिलाता है।
 【4】दीक्षा गुरु – जो परम्परा का अनुसरण करते हुए अपने गुरु के आदेश पर आध्यात्मिक उन्नति के लिए शिष्यों को मंत्र दीक्षा यानि गुरुमन्त्र देकर ईश्वर से जुड़ने को प्रेरित करते हैं। सद्गुरु यही हैं।
बिना गुरु के गुत्थमगुत्था
निर्गुरा यानि दीक्षारहित व्यक्ति को
गुरु की कमी आत्मबल कमजोर कर
कुमार्ग ओर कुकर्म की तरफ ले जाती है…
  【5】सदगुरु -अष्टावक्र नामक ग्रन्थ में सद्गुरु शब्द भगवान शिव के लिए समर्थगुरु या परमगुरु के लिए आया है। सद्गुरु बार-बार के जन्म मरण से मुक्त करता है।
गुरु का अर्थ है भारी या वजनदार
गुरु के ज्ञान को सभी वस्तु-पदार्थो से भारी बताया है। पूर्ण ज्ञानी चेतन्य रूप पुरुष के लिए सदगुरु शब्द प्रयुक्त होता है, उसकी ही स्तुति-वंदना, आरती की जाती है।
सिद्ध सदगुरुओं की सत्य श्रृंखला-
¶ महर्षि वेद व्यास, ¶ आदि शंकराचार्य
¶ भगवान महावीर, ¶ भगवान बुद्ध,
¶ गुरु तेगबहादुरजी, ¶ नानक देव,
¶ गुरु गोविंदसिंहजी, ¶ गुरु दत्तात्रेय,
¶ बाबा विश्वनाथ यति,
¶ अघोरी गुरु बाबा कीनाराम,
¶ गुरु शंकरनन्दजी, ¶ त्रेलंग स्वामी,
¶ तोतापुरी, ¶ रामकृष्ण परमहंस,
¶ गुरु अरविंदो, ¶ साईंबाबा शिरडी,
¶ देवरहा बाबा, ¶ बाबा मोरारका नाथ,
¶ बाबा हथियाराम, ¶ महर्षि रमण,
¶ स्वामी समर्थ, ¶ स्वामी करपात्री महाराज , ¶ महावतार बाबा, ¶ लाहडी महाशय, ¶ हैडाखान बाबा, ¶ सोमवार गिरीजी महाराज, ¶ स्वामी शिवानन्द, ¶ आनंदमयी माँ,
¶ स्वामी बिमलानंदजी, ¶ मेहर बाबा आदि बहुत से सच्चे सदगुरु रहे हैं।
इन्हें परमहंस कहा गया है
सदगुरु का चमत्कार…
हिचिकियों से गला जब अवरूद्ध सा होने लगे, जब तुम्हारी आंखें भीगने लगें, ओर तुम्हारे होंठ फड़फडाने लगें, तो समझना तुमने सद्गुरु के द्वारा बताया गया सदमार्ग का कुछ रास्ता पार किया।
यह एहसास होने लगता है….
अब तुमने गुरू के नजदीक आने की प्रक्रिया संपन्न करने का प्रयत्न किया है..
अब सिद्धियां तुम्हारे लिये जयमाला
लिये खडी हो गईं..
क्योकि तुम गुरू में समाहित होने लगे हो..
इसी मंगल शुभ घड़ी की आपको शुभकामना है कि…… वह आये और तुम तुम सदगुरू के चरणों मे बिखर कर विलख-विलख कर रो सको .. यही तो अहोभाग्य है शिष्य का…. साधक का।
कवि कालिदास की कलाकृति…
महामूर्ख कालिदास बाद में विश्व के विख्यात कवि  हुए। कालिदास रचित अभिज्ञान शाकुंतलम, संस्कृत का महान काव्य है। वास्तु ग्रन्थ “पूर्वा कालामृत” और “उत्तराकालामृत” अमर ग्रन्थ हैं। यह ज्योतिष के ऐसे ग्रन्थ हैं, जब तक जीवन है, तब तक इनकी जरूरत रहेगी।
समय यानि काल का कलंक कालिदास-
निरक्षर व अबोध कवि कालीदास को उनकी पत्नी ने अपने महल से धक्का देकर उन्हें  बाहर निकाल दिया, तो रास्ते में अचानक परमयोगी कालीचरण मिल गए, उन्होंने अपनी तपस्या के बल पर सब कुछ जान लिया और बोले  कि तुम्हारे अपमान की अग्नि को शांत करने के लिए मैं तुम्हें अपना
शिष्य बनाकर ‘गुरुमंत्र’ दे देता हूँ और यदि
तुम निरंतर गुरु सेवा और गुरु मंत्र का जाप करोगे, तो निश्चय ही तुम जीवन में बहुत ज्ञानी और विद्वान कहलाओगे। वह सब कुछ पा सकोगे जो कि तुम्हारा अभीष्ट हैं।
मन की जाने सदगुरू…
कवि कालीदास ने गुरु की बात अपनी आत्मा में उतार ली और निरंतर गुरुमंत्र का जप में तल्लीन होते चले गए। सुबह से शाम तक माँ काली की पूजा करते और बैठते-उठते, सोते-जागते, खाते-पीते गुरु मन्त्र का ही ध्यान, चिंतन करते। सदगुरु एक दिन… कालीदासजी के इष्ट और भगवान बन गए, सामने काली की मूर्ति में भी उसे गुरु के दर्शन होते। गुरु को उदास देख, वह निराश होकर झुंझला जाते। गुरु को प्रसन्न मुद्रा में देखकर मस्त हो जाते। चौबीस घंटे वह गुरु के ध्यान में ही डूबकर, इसी कोशिश में रहते कि गुरु का कोई आदेश हो और वह पूरी शक्ति से उसे पूरा कर सकें।
गुरु से ज्ञान जो लीजिये…
 कवि कालिदास ने गुरुभक्ति द्वारा कुछ ही समय में अपने आपको पूरी तरह से गुरुमय बना लिया था। गुरु कालीचरण ने कालीदास की सेवा के फलस्वरूप प्रसन्न होकर “शाम्भवी दीक्षा” दी और ऐसा होते ही उसके अंतरात्मा का ज्ञान दीप प्रदीप्त हो उठा, कंठ से माँ वाग्देवी प्रगट हुयी और स्वतः काव्य उच्चरित होने लगा।
गुरु को सिर पर राखिए,
चालिये आज्ञा माहिं।
खएँ कबीर ता दास को,
तीन लोक डर नाहीं।।
सदगुरू की शरण में हर तरह का भय
मिट जाता है। कवि कालिदास का डर
खत्म हो चुका था।
आगे चलकर बिना अन्य कोई साधना किये केवल सदगुरु की करुणामयी कृपा और शाम्भवी दीक्षा के भरोसे कालिदास दुनिया के अद्वितीय कवि बने। कुमार संभव,मेघदूत और ऋतुसंहार जैसे काव्य ग्रंथों की रचना कर विश्व में प्रसिद्ध हुए।
कवि कालीदास के बारे में एक और किस्सा बहुत कम लोग जानते हैं-
कुछ विद्वान, जो अत्यन्त विदुषी राजकुमारी विद्योत्तमा से शास्त्रार्थ में पराजित हो चुके थे। अपने अपमान का बदला लेने के लिए
किसी महामूर्ख से विवाह करवाने की ठानी।
कालीदास इतने मूर्ख थे कि…वह वृक्ष की जिस डंगाल यानि तने पर बैठे थे, उसे ही काट रहे थे।
ब्राह्मण वहां से गुजर रहे थे,
मंदबुद्धि कालीदास से पूछा?..क्या तुम शादी करोगे। उसने हाँ कर दी! ब्राह्मणों ने एक शर्त रखी कि…जिस लड़की से तुम्हारा विवाह कराएंगे, वह कुछ प्रसन्न पूछेगी, तुम्हे बिना बोले केवल संकेत रूप में जबाब देना है। उसकी प्रत्येक शंका का समाधान हम करेंगे।
‘कालीदास ने हां कर दी’; उन्हें विद्योत्तमा के पास ले जाकर उनकी बहुत तारीफ कर शास्त्रार्थ करने को कहा….कि ये कुछ भी बोलेंगे नहीं। इन्होंने मौनव्रत धारण किया हुआ है। आपके हर प्रसन्न का उत्तर इशारे या संकेत में देंगे और उसकी व्याख्या हम लोग करेंगे।
विद्योत्तमा का पहला प्रसन्न
रानी विद्योत्तमा ने हामी भरकर मूर्ख कालिदास की तरफ एक उँगली दिखाई, तो उसने 2 उँगली रानी की तरफ कर दी।
कालिदास का उत्तर
मूर्ख कालिदास को लगा कि…रानी मेरी एक आँख फोड़ने की कह रही है, तो उन्होंने रानी की दोनों आँखे फोड़ने के लिए दो उंगली उसकी तरफ कर दी।
ब्राह्मणों ने इसकी व्याख्या यूं की, कि..रानी साहिबा आपकी एक उंगली का मतलब- ईश्वर एक है…परन्तु इस बालक का मानना है कि.. ईश्वर एक नही दो हैं- द्वेत-अद्वेत। रानी बहुत खुश हुई!
ब्रह्म एक है लेकिन ये कहना चाहते हैं कि उस एक ब्रह्म को सिद्ध करने के लिए दूसरे (जगत्) की सहायता लेनी होती है।अकेला ब्रह्म स्वयं को सिद्ध नहीं कर सकता।
विद्योत्तमा का दूसरा प्रसन्न…
रानी ने दूसरा प्रसन्न प्रसन्न जानने के लिए हाथ का पंजा कालिदास की ओर कर दिया, तब कालिदास ने रानी की तरफ हाथ का मुक्का यानि घूंसा दिखाया। कालिदास को लगा की यह मुझे थप्पड़ मारने की कह रही है, तो उसने मुक्का मारने का इशारा किया।
ब्राह्मणों ने इसकी व्याख्या इस प्रकार करके रानी को बताया कि… आपका कहना है कि यह सृष्टि पांच तत्वों से बनी है और कालिदास का विचार है कि इन पंचतत्वों को मिलाकर प्राणी का जन्म हुआ।
पृथ्वी जल आकाश वायु अग्नि… ये पांचों पंच महाभूत अलग-अलग हैं, परंतु यह पांचों तत्व पृथक-पृथक रूप में कोई विशेष कार्य संपन्न नहीं कर सकते। लेकिन इकट्ठे होकर या आपस में मिलकर  उत्तम मनुष्य शरीर का रूप ले लेते है जो भगवान की सर्वश्रेष्ठ कृति है।
 इस प्रकार मन्दबुद्धि कालिदास से 5 प्रसन्न पूछे गए। इन सबका उत्तर अपने हिसाब से कालिदास ने बता दिए, तो रानी विद्योत्तमा  विवाह के लिये राजी हो गईं। इस प्रकार उन कपटी पंडितों ने छल से कालिदास का विवाह उसके साथ करा दिया।
कालिदास का जन्म…
उत्तराखंड में केदारनाथ से लगभग 40-45 किलोमीटर गुप्तकाशी से कालीमठ नामक माँ महाकाली की सिद्धपीठ है। कालीमठ मंदिर से चार किलोमीटर आगे कविल्ठा गांव स्थित है।
यहीं कालीदासजी का जन्म हुआ था।
विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक थे..
कवि कालिदास इतने महान ज्ञानी हो गए थे कि राजा विक्रमादित्य ने उन्हें अपने नवरत्नों की उपाधि दे रखी थी।
उज्जैन का गढ़कालिका मन्दिर..
यह कालीदासजी का तपस्थान रहा है। यह आदिकालीन तांत्रिक शक्तिपीठ है। उन्होंने सभी ग्रंथों की रचना इसी स्थान पर की थी
सदगुरु की दयादृष्टि शिष्यों व सन्सार के लिए कल्याणकारी होती है। सदगुरु की सेवा और कृपा से कालिदास जैसे महामूर्ख…. दुनिया के जाने-माने विद्वान बने।
परम गुरुभक्त कवि वरदराजजी….
नीचे लिखे दोहे को लिखने वाले वरदराज कभी बचपन में बहुत मन्दबुद्धि बालक थे, लेकिन अपने गुरु की कृपा से बाद में कवि वरदराजजी संस्कृत व्याकरण के
महाविद्वान बने।
यह दुनिया की अत्यंत प्रसिद्ध कहावत है।
करत करत अभ्यास के,
जड़मति होत सुजान!
रस्सी आवत जात के,
सिल पर परत निशान!!
अर्थात- सच्ची लगन से निरंतर प्रयास करने पर कैसा भी कठिन कार्य आसान हो जाता हैं। जिस प्रकार कुएँ से पानी निकालने वाली मुलायम रस्सी के बार बार घिसने से अत्यंत ठोस एवं मजबूत पत्थर पर निशान आ जाते हैं।
कवि वरदराज के द्वारा लिखे गए संस्कृत व्याकरण के तीन ग्रन्थ विश्व की अमूल्य धरोहर मानी जाती है।
【१】मध्यसिद्धान्तकौमुदी
【२】लघुसिद्धान्तकौमुदी
【३】सारकौमुदी
सदगुरू की पूजा किये,
सब की पूजा होय।
सन्सार में भगवान शिव और सद्गुरु दोनो भला यानि सबका कल्याण करने के कारण पूज्यनीय हैं। इसलिए गुरुपूर्णिमा के दिन शिंवलिंग का रुद्राभिषेक तथा गुरुपूजन अवश्य करना चाहिए।
सिखधर्म का मुख्य पर्व…
सिख धर्म में भी इस पर्व का विशेष महत्व है।क्योंकि सिख इतिहास में उनके दस गुरुओं का बेहद महत्व रहा है। कहा जाता है कि..गुरुपूर्णिमा के दिन ही गुरुगोविन्द सिंहजी ने सिख धर्म के दस गुरुओं की वाणी को संकलित करके सिखों को सौंपा था।
सिख धर्म केवल एक ईश्वर और अपने दस गुरुओं की वाणी को ही जीवन का वास्तविक सत्य मानता है। सिख धर्म की एक प्रचलित कहावत  है…
गुरु गोविंद दोउ खड़े, 
काके लागू पांव, 
बलिहारी गुरु आपने, 
गोविंद दियो बताए’।।
 
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गुरु के चमत्कार” जाने…..
 
 
 
 
कलयुग का गुरु ज्ञान...
बिलगेट्स ने अपने गुरु से तीन सवाल पूछे
और कहा तीनों का जवाब एक ही होना चाहिये …
{१}  दूध क्यों उबल जाता है?
{२}  पानी क्यों बह जाता है?
{३}  सब्जी क्यों जल जाती है?
गुरुजी ने जवाब दिया …..
मोबाइल की वजह से”
 
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हेमकुण्ड साहिब की यात्रा और 
दर्शन करने जाएं, तो इस लेख को
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