जन्माष्टमी की अमृतम शुभकामनाएं | Happy Janmashtmi

जन्माष्टमी की अमृतम शुभकामनाएं | Happy Janmashtmi

बहुत कम लोगों को पता होगा कि
पंजीरी (पँचजीरी) के प्रसाद की 
परम्परा–जन्माष्टमी से जन्मी!!

पंजीरी की उपयोगिता

दरअसल ये 5 पदार्थो से बनी
पँचजीरी हर्बल दवा है।

 
वर्षाकाल के समय व्यक्ति में वात
का प्रकोप होता है।इस अवसर पर
घर-घर में निर्मित पँचजीरी जो
अब अपभ्रंश होकर पंजीरी हो गई।
इसके विलक्षण गुणों से ग्रामीण,
गांव के निवासी भलीभांति
परिचित हैं।

एक अदभुत अमृतम योग

ऋग्वेद में संस्कृत की वेदवाणी है-
न मृतम इति अमृतम”
अर्थात
अमृतम ओषधियों के
पान,सेवन या ग्रहण करने से
व्यक्ति जल्दी मृत नहीं होता,
रोगों से बचा रहता है।

कैसे बनाते हैं पंजीरी-

पंजीरी-वातरोगों का शमन,नाश
करने वाली घरेलू ओषधि है
पंजीरी या पँचजीरी में 5 प्रकार
के खाद्य पदार्थों का समान मात्रा
में समावेश किया जाता है-
1- धनिया
2- अजवाइन
3- सौंफ
4- जीरा
5-सोया
इनको पीसकर,इसमें
शक्कर का बूरा एवं
शुद्ध घी मिलाते हैं, जो
वात-विकार को दूर करने वाली
प्राचीनकाल की
भयँकर दर्द नाशक
आयुर्वेदिक ओषधि है।
इसे श्रीकृष्ण जन्म पश्चात
पूजा कर पंचामृत
(दूध,दही,घी,शहद,बूरा)
के साथ सेवन करते हैं।
यह अमृतम योग अत्यंत
स्वास्थ्य वर्द्धक,पौष्टिक तथा
वातशामक होता है।
राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान“,जयपुर
द्वारा प्रकाशित पुस्तक
आयुर्वेद मत से पर्व एवं स्वास्थ्य
प्रकाशक : — आयुष विभाग,
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय,
भारत सरकार द्वारा संस्थापित,
लेखक-
वैद्य श्री कमलेश कुमार शर्मा
एसोसियेट प्रोफेसर
“स्वस्थवृत एवं योग विभाग”
राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान,जयपुर
के अध्ययन, अनुसंधान,
अनुभव तथा आयुर्वेद 
के अनुसार
 दुनिया के सभी धर्मों के
तीज-त्योहार,व्रत-उपवास,ईद
आदि के उत्सव,उत्साह में वृद्धि करते हैं।
साथ ही स्वास्थ्यवर्द्धक योग भी हैं।

सत्यनारायण की कथा में पंजीरी-

देश की बुजुर्ग महिलाओं को
पता होगा कि पहले समय में
घर-घर में हर महीने की पूर्णिमा या
अमावस्या को
सत्यनारायण की कथा”
 
में यह “पँचजीरी” (पंजीरी) परिवार के
सभी सदस्य खाकर स्वस्थ्य रहते थे ।

अमृतम शास्त्रों का सत्य-

आयुर्वेद के एक बहुत ही प्राचीन ग्रन्थ
व्रतराज
में पंजीरी को असाध्य रोग नाशक
योग ओषधि कहा गया है।
पँचजीरी या पंजीरी के हर माह में
दो बार एवं बरसात के दिनों में
15 दिन तक 20 ग्राम की मात्रा में
 
दूध,दही,घी,शहद और बुरा
(पंचामृत) में मिलाकर
अथवा
★ शुद्धशहद,
★ ब्राह्मी रस,
★ मधुयष्टि सत्व,
★ पान का रस,
★ तुलसी का रस
इन पञ्च महा पदार्थों से निर्मित
अमृतम-मधु पंचामृत” 
के साथ सेवन करने से
अवसाद,हीनभावना,बीमारियों
का विसर्जन तथा पीड़ित
तन रोग रहित 
मन शांत हो जाता है।
केन्सर,मधुमेह,पथरी,हृदय रोग,
यकृत रोग,उत्पन्न नहीं होते।
पाचन तन्त्र मजबूत होता है।

उत्सव से उत्साहवर्द्धन-

“भैषज्य रत्नाकर”
नामक ग्रन्थ में लिखा है कि-
चिंता,शोक,भय-भ्रम,तनाव
से रोगों की वृद्धि होती है।
◆ उत्सव हमें उत्साहित करते हैं,
◆ उत्साह बढ़ाते हैं।
◆ उन्नति में सहायक हैं।
◆ उत्सव के समय उधम के
उपाय ढूढे जाते हैं
◆ ऊंट-पटाँग विचारों को
सकारात्मक व भावुक बनाकर
विभिन्न विकारों का नाश करते हैं।
जिससे हर्ष,उल्लास,अपार आनंद,
प्रसन्नता प्राप्त होती है।

स्वास्थ्य को साधने वाला!

श्रीकृष्ण सार-

■ प्रकृति में सब कुछ परिवर्तन शील है।
■ परिवर्तन संसार का नियम है।
कभी इससे डरें नहीं।
■ कर्म करो,पर फल की इच्छा न करो।
■ झूठ आनन्द आदमी को अहंकारी
और कठोर बना देता है।
■ जन्म,जरा,व्याधि और मृत्यु
जीवन के ये चार दुःख हैं।
■ कड़ी मेहनत से कष्ट को काटने
वाला,कल,काल की चिंता से रहित
व्यक्ति ही जीवन में परिवर्तन कर
सकता है।
■ स्वस्थ्य रहना ही सबसे बड़ा
साधन और साधना है।
■ इस सृष्टि में दुःख-सुख,
लाभ-हानि,जीवन-मरण
सब अस्थाई है।
■ मन को स्थिर करो,कैसे भी करो,
शांत मन के लिए बहुत जरूरी है।
■ कान्हा,काला होकर भी जगत
का रखवाला बना,मन का
कालापन जीवन को क्लेश-कारक
और कंगाल बना देता है।
■ दुःख के अंदर सुख छुपा है,
दुःख ही सुख का ज्ञान है,सार है।

हरिवंश पुराण-

इसमें भगवान श्री कृष्ण के कुटुंब
का वृतांत है। इसमें उनकी
सभी लीलाओं का विस्तार
से वर्णन है।
यह 18 पुराणों में से एक है।
अमृतम परिवार की और से
जन्माष्टमी की हृदय के
अंतर्मन से हार्दिक शुभकामनाएं।
भगवान श्रीकृष्ण सबका जीवन
स्वस्थ्य,सरल,सफल करें।

भादों की भावनाएं-

भादों का महीना, कृष्ण पक्ष की अष्टमी
विक्रम सम्वत २०७५, दिन सोमवार
दिनांक/तारीख- 3 सितंबर 2018
आज जन्माष्टमी है।
 
भाद्रपद मास (भादों का महीना)
कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि
को जन्म होने के कारण इसे
कृष्णाष्टमी (कृष्ण+अष्टमी)
भी कहते हैं।

!!”श्री कृष्ण गोविंद,हरे मुरारि

हे नाथ,नारायण हे वासुदेवाय”!!

अर्जुन के मित्र व मार्गदर्शक
कान्हा की काबिलियत को
कोटि-कोटि नमन करते हैं।
उनकी परमशक्ति माँ राधे
जगत को सही राह-दे,
इस निवेदन के साथ
उनको चरण वंदन है।
राधा, कृष्ण का आधा भाग है,
वे उनके बिना अपूर्ण है,
मां राधा हमारे तन में
विपरीत धारा के रूप में
विद्यमान है,प्रवाहित है।
शक्ति माँ (शक्ति-अम्मा)
की कृपा से
इस जीव-जगत में
” प्रेम की धारा”
नियमित बहती रहे
ऐसी करवद्ध प्रार्थना है।
उत्सव हमें ऊंचाइया देता है।
आयुर्वेद हमें स्वस्थ्य रखने
का उपाय बताता है।
प्राचीन परम्पराएं
परम् शांति प्रदाता हैं
उपरोक्त ये दुर्लभ ज्ञान
कभी आपके काम आए।
आयुर्वेद की अमृतम
स्वास्थ्यवर्द्धक पध्दति
कभी लुप्त न हो।
ऐसा अमृतम प्रयास है,
ताकि सबको स्वस्थ्य-मस्त
होने का एहसास हो सके।
प्राचीनकाल की बहुत पुरानी
दादा-दादी,नाना-नानी की कहानी
स्वस्थ-सुन्दर रहने,
आयुरवृद्धि के सूत्र
जीवन को अमृतम बनाने
एवं रहस्यमयी जानकारी के लिए
आज ही लॉगिन करें
amrutam.co.in
और पढ़े पिछले 100 से
अधिक दुर्लभ लेख/ब्लॉग
पुनश्च जन्माष्टमी सभी को
शुभ-सुखकारक हो।
अंत में….……
हर दर्द की दवा है-
गोविंद की गली में
 
बात बालों की हो या
लाडले लालों की,
दर्द की हो या सर्द की
मर्द की हो या नामर्द की
कोई भी बीमारी की हो या
नारी के माहवारी की
हर दर्द की दवा है
अमृतम के पास
90 तरह की शुद्ध हर्बल
ओषधियों के निर्माण में रत!!!!!!!
       !!अमृतम!!
हर पल आपके साथ हैं हम
हमारा उदघोष है-
रोगों का काम खत्म

 

[best_selling_products]

आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से बात करें!

अभी हमारे ऐप को डाउनलोड करें और परामर्श बुक करें!


Posted

in

by

Tags:

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *